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संरक्षण के लिए गैर-टिंबर वन उत्पादों के बारे में जानकारी बढ़ाना जरूरी

NTFPs के बारे में स्थानीय नागरिकों की जानकारी का सर्वे किया गया। तस्वीर- अलोक मजूमदार।

NTFPs के बारे में स्थानीय नागरिकों की जानकारी का सर्वे किया गया। तस्वीर- अलोक मजूमदार।

  • हाल ही में हुई एक स्टडी में जैव विविधता की सूचनाओं की खोजबीन हुई जिसमें पश्चिम बंगाल के शहरी निवासियों के बीच गैर-इमारती लकड़ी से बने उत्पादों का अध्ययन किया गया।
  • इस स्टडी में यह खुलासा हुआ कि गैर-इमारती लकड़ी से बने उत्पादों के संपर्क में लगातार रहने से लोगों की रुचि जैव विविधता में बढ़ी है जिससे संरक्षण को मदद मिल सकती है।
  • गैर-इमारती लकड़ी वाले उत्पादों में ऐसे उत्पाद आते हैं जिन्हें जंगल से प्राप्त किया जाता है. इसमें कमर्शियल टिंबर शामिल नहीं होते हैं।

शोधार्थियों ने जैव विविधता से जुड़ी सूचनाओं की छानबीन की जिसमें खासतौर पर पश्चिम बंगाल के स्थानीय शहरी निवासियों के बीच नॉन-टिंबर फॉरेस्ट प्रोडक्ट (NTFPs) के इस्तेमाल को लेकर अध्ययन किया गया। इस स्टडी में यह पता चला कि प्रकृति से स्थानीय समुदायों के जुड़ा रहना पर्यावरण संरक्षण की दिशा में एक अहम कदम हो सकता है।

यह स्टडी पश्चिम बंगाल में स्थित भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT), खड़गपुर के सेंटर फॉर रूरल डेवलपमेंट एंड इनोवेटिव सस्टेनेबल टेक्नोलॉजी (CRDIST) के रिसर्चर्स ने की और इसे इस साल अप्रैल में GeoJournal में प्रकाशित किया गया। इस रिसर्च टीम के सदस्य अलोक मजूमदार ने कहा, “यह स्टडी प्रकृति आधारित समाधानों के सामाजिक आयाम का नतीजा है। खासकर लोगों को प्रकृति से कैसे जोड़ा जाए ताकि जैव विविधता, जलवायु परिवर्तन और इंसानों की सेहत के नुकसान जैसी गंभीर समस्याओं का हल निकाला जाए।”

मजूमदार आगे कहते हैं, “हमारी स्टडी में हमने पश्चिम बंगाल के शहरी और अर्ध शहरी क्षेत्रों की वृहद जैव विविधता पर ध्यान दिया, खास तौर पर ऐसे गैर-इमारती वन उत्पाद जिनका स्थानीय समुदाय के लोग इस्तेमाल करते हैं। हम यह जानना चाहते थे कि कैसे इन NTFPs का इस्तेमाल करके जागरूकता बढ़ाई जा सकती है और स्थानीय लोग संरक्षण के प्रयासों और वन जीव समूह के प्रोत्साहन में उनके योगदान को बढ़ाया जा सकता है।”

इस टीम ने पश्चिम बंगाल के शहरी और अर्ध शहरी इलाकों में आमतौर पर इस्तेमाल होने वाले पौधों पर ध्यान दिया। तस्वीर- अलोक मजूमदार।
इस टीम ने पश्चिम बंगाल के शहरी और अर्ध शहरी इलाकों में आमतौर पर इस्तेमाल होने वाले पौधों पर ध्यान दिया। तस्वीर- अलोक मजूमदार।

NTFPs में ऐसे उत्पाद होते हैं जिन्हें वन से प्राप्त किया जाता है। हालांकि, इसमें कमर्शियल टिंबर नहीं होते हैं। इसमें मशरूम, बीज, पौधों से निकलने वाले रस, गोंद और औषधीय गुणों वाले पौधों के साथ-साथ अन्य तरह की लकड़ियां हो सकती हैं। इन रिसर्चर्स का मकसद था कि स्थानीय लोगों को NTFPs देने वाले पौधों और उनकी प्रजातियों के बारे में जानकारी देकर उन्हें प्रोत्साहित किया जाए ताकि वे वन उत्पादों से और जुड़ें।

NTFPs के अध्ययन और उन्हें बढ़ावा देने के लिए भागीदारी की पहल

स्थानीय लोगों की NTFP पौधों और उनके आर्थिक और पर्यावरणीय महत्व को समझने की क्षमता जानने के लिए इस स्टडी में प्रश्नावली और इंटरव्यू का इस्तेमाल किया गया। इसमें यह जाना गया कि लोग NTFP का इस्तेमाल कैसे करते हैं और उन पौधों के रोपण और स्टडी वाले इलाकों की खुली जगहों, पार्क और सड़क के किनारे इन पौधों के संरक्षण के लिए किए गए कामों के बारे में कितना जानते हैं।

मजूमदार आगे कहते हैं, “इस स्टडी में कई तरीकों जैसे कि गेम, क्विज, पोस्टर और फील्ड विजिट का इस्तेमाल किया गया जिससे कि सीखने की प्रक्रिया रोचक और मजेदार हो।”

मजूमदार आगे कहते हैं,  “हमने यह तरीका चुना क्योंकि हम स्थानीय समुदाय के लोगों को रोचक तरीके से इसमें शामिल करना चाहते थे, ना कि सिर्फ उन्हें सूचना देना चाहते थे। हम स्थानीय लोगों की आजीविका, सेहत और संस्कृति में NTFPs के फायदों को रेखांकित करना चाहते थे और यह भी बताना चाहते थे कि वे किस तरह प्राकृतिक स्थलों के संरक्षण पर निर्भर हैं। हम समझते हैं कि ऐसे तरीकों से स्थानीय समुदायों को प्रोत्साहित किया जाए जिससे कि दिबांग घाटी या मोल्लेम बचाओ जैसे आंदोलनों को समर्थन मिल सके। इससे लोग अपने प्राकृतिक संसाधनों की अहमियत और विकास योजनाओं से उनको होने वाले खतरों के बारे में विस्तार से समझ सकेंगे।”

वृक्षारोपण वाली जगह पर लगाया गया एक पौधा। तस्वीर- आलोक मजूमदार। 
वृक्षारोपण वाली जगह पर लगाया गया एक पौधा। तस्वीर- आलोक मजूमदार।

इस सर्वे में मिले जवाबों के अनुमान के हिसाब से NTFPs देने वाले पौधों को लगाने के साथ ही उनके साथ नेम प्लेट लगाई गईं ताकि लोग उनके बारे में जान सकें। इन नेम प्लेट पर पौधों के नाम के साथ-साथ उनके इस्तेमाल और हर प्रजाति की अहमियत के बारे में भी बताया गया है। 

स्थानीय समुदाय के लोगों ने पौधरोपण में हिस्सा लिया और इसके बाद वृक्षारोपणों में हिस्सा लेने वालों की संख्या लगातार बढ़ती गई।

इंसानों और वन्यजीवों के मेलजोल में NTFPs की भूमिका

मजूमदार से पूछा गया कि क्या इस तरह की पहल से इंसानों और वन्यजीवों के संघर्ष को कम किया जा सकता है? इस पर मजूमदार ने मोंगाबे इंडिया ने कहा, “हां, हमारा मानना है कि स्थानीय समुदाय में समर्थन बढ़ने की वजह से स्तनधारी और सरीसृप के संरक्षण में मदद मिल सकती है। खासकर उन इलाकों में जहां इंसानों और वन्यजीवों का संघर्ष ज्यादा होता है। हमने यह पाया कि NTFPs के लगातार संपर्क में रहने से स्थानीय लोगों की जानकारी और सकारात्मक रवैये में बढ़ोतरी की जा सकती है। इससे वन्यजीवों के प्रति नकारात्मक राय और उनके प्रति शत्रुता में कमी आ सकती है और सहअस्तित्व की भावना और उनके साथ रहने की इच्छा में बढ़ोतरी हो सकती है। हमें यह भी पता चला कि NTFPs स्थानीय लोगों के लिए आय के वैकल्पिक स्रोत और खाद्य सुरक्षा दे सकते हैं जिससे कि उनकी वन्यजीवों पर निर्भरता और उनसे प्रतिद्वंद्विता कम हो सकेगी।”


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सलीम अली सेंटर फॉर ओरनिथोलॉजी एंड नेचुरल हिस्ट्री, कोयंबटरू के होनावल्ली कुमार इससे सहमति जताते हुए चेतावनी भी देते हैं। वह कहते हैं, “क्योंकि NTFPs को इंसानों के लिए फायदेमंद समझा जाता है तो वे काफी महत्वपूर्ण हो जाते हैं। अगर NTFPs के स्रोतों, उनकी जगहों और उनकी जगहों की स्थिति की जानकारी साझा की जाए तो लोग ऐसी जगहों की अहमियत समझेंगे। इससे ऐसी जैव विविधताओं के संरक्षण को बढ़ावा मिल सकेगा। जहां तक जानवरों की बात है तो क्योंकि उन्हें परजीवी समझा जाता है तो उनके बारे में ऐसा भरोसा हो पाना संभव नहीं है। जंगलों से NTFPs को इकट्ठा करने वाले लोग भी इन जानवरों को परजीवी या समस्याएं पैदा करने वाला मानते हैं। ऐसे मामलों में स्थानीय समुदायों का भरोसा जीत पाना मुश्किल हो जाता है।”

इस स्टडी में पता चला है कि NTFPs के लगातार संपर्क में रहने से वन्य जीवन के बारे में लोगों की जानकारी और समझ बढ़ी है। तस्वीर- अलोक मजूमदार।
इस स्टडी में पता चला है कि NTFPs के लगातार संपर्क में रहने से वन्य जीवन के बारे में लोगों की जानकारी और समझ बढ़ी है। तस्वीर- अलोक मजूमदार।

यह रिसर्च टीम इस स्टडी के शानदार नतीजों को लंबे समय के संरक्षण प्लान में इस्तेमाल करने वाली है। मजूमदार कहते हैं, “हम अपनी स्टडी और अपने हस्तक्षेप को कई अन्य क्षेत्रों और समुदायों में ले जाना चाहते हैं। हम अपनी स्टडी के लंबे समय के असर को समझने के लिए इसे और बेहतर मॉनीटर करना चाहते हैं ताकि  स्थानीय लोगों के व्यवहार, उनकी जागरूकता, उनके रवैये और NTFP और वन्य जीवन के संरक्षण की स्थिति को भी समझ सकें।”

अगर देश के दूसरे इलाकों के लोग और संगठन इस स्टडी से प्रभावित होते हैं और अपने इलाके में भी इसे लागू करना चाहते हैं तो उनके मजूमदार का सुझाव है कि स्थानीय स्तर पर एक विस्तृत आकलन करें ताकि वहां के पर्यावरणीय और आर्थिक पहलुओं को समझें। साथ ही, वहां की परिस्थितियों के हिसाब से आने वाली खास चुनौतियों को भी समझें। इस सबका निष्कर्ष देते हुए मजूमदार कहते हैं, “इससे हमारे निष्कर्ष को एक प्रभावी तरीके से लागू करने और बेहतर ढंग से डिजाइन करने में मदद मिलेगी। हम यह सुझाव भी देते हैं कि ऐसे कामों में स्थानीय हिस्सेदारों को शामिल किया जाए जैसे कि सामुदायिक सदस्य, नेता, संगठन और संबंधित सरकारी एजेंसियां और NGO को साथ लिया जाए। इसमें उनकी हिस्सेदारी, समर्थन और निरंतरता को सुनिश्चित किया जाए।”

 

इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें। 

बैनर तस्वीरः NTFPs के बारे में स्थानीय नागरिकों की जानकारी का सर्वे किया गया। तस्वीर- अलोक मजूमदार।

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