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उत्तराखंडः पर्यटकों की कमी से जोशीमठ की अर्थव्यवस्था चरमराई

पर्यटन के चरम सीजन के दौरान उजाड़ जोशीमठ बाजार से गुजरता एक व्यक्ति। तस्वीर-कुलदीप सिंह।

पर्यटन के चरम सीजन के दौरान उजाड़ जोशीमठ बाजार से गुजरता एक व्यक्ति। तस्वीर-कुलदीप सिंह।

  • पिछले साल जनवरी में उत्तराखंड की तीर्थनगरी जोशीमठ में जमीन धंसने से सैकड़ों घरों में दरारें आ गईं थी।
  • एक साल बाद स्थानीय कारोबारियों, होटल व्यवसायियों और होमस्टे मालिकों को पर्यटन के रूप में इसका खामियाजा भुगतना पड़ रहा है। यह शहर की अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार है।
  • हालांकि, सरकार ने पुनर्वास के लिए वैकल्पिक जगह का प्रस्ताव दिया है, यहां रहने वाले लोग अपनी आजीविका और जोशीमठ की अहमियत को ध्यान में रखते हुए उचित पुनर्वास नीति बनाने की मांग कर रहे हैं।

उत्तराखंड के जोशीमठ शहर में फरवरी की एक धूप भरी दोपहर में  65 साल के मोतीराम जोशी अपने जनरल स्टोर पर लोगों के आने का इंतजार कर रहे हैं। हालांकि, पिछले साल से पर्यटकों की आमद काफी कम हो गई है और इसका असर उनके कारोबार पर भी पड़ रहा है। जोशी ने मोंगाबे-इंडिया को बताया कि वह दो दशकों से ज्यादा समय से अपना स्टोर चला रहे हैं। लेकिन उन्होंने ऐसा बेदम कारोबार कभी नहीं देखा। हिमालय में बसे इस शहर में पिछले साल घरों में दरारें आने के बाद यहां रहने वाले लोगों के लिए चीजें काफी बदल गई हैं।

दरअसल, जोशीमठ समुद्र तल से 1,875 मीटर ऊपर बसा हुआ है। इसे हिमालय के प्रवेश द्वार के रूप में जाना जाता है। यह गर्मियों में बद्रीनाथ और हेमकुंड साहिब की यात्रा करने वाले तीर्थयात्रियों और सर्दियों में औली आने वाले पर्यटकों के लिए पड़ाव और आराम करने की एक अहम जगह भी है। यहां पिछले कुछ सालों में  पर्यटकों की संख्या बढ़ती रही। इससे स्थानीय लोगों को रोजगार के कई अवसर मिले। लेकिन तेजी से हुए विकास ने जोशीमठ के लिए कई समस्याएं भी पैदा की।

लेकिन, जनवरी 2023 में समस्याएं तब और बढ़ गईं जब नौ वार्डों के 868 घरों में ज़मीन धंसने और डूबने के चलते दरारें आ गईं। जिला प्रशासन के मुताबिक, सेंट्रल बिल्डिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट (सीबीआरआई) ने 2023 में अपनी शुरुआती रिपोर्ट में सरकारी इमारतों समेत 32 इमारतों को अपनी ब्लैकलिस्टमें डाल दिया था। इसका मतलब यह है कि उन्हें तुरंत खाली करने लायक माना गया था। जोशीमठ उप-विभागीय मजिस्ट्रेट चन्द्रशेखर वशिष्ठ ने मोंगाबे-इंडिया को बताया, “480 से ज्यादा इमारतों को लाल सूची में डाल दिया गया और इन्हें इस्तेमाल के लायक नहीं बताया गया।”

जमीन धंसने से सबसे ज्यादा प्रभावित क्षेत्र सिंघदार वार्ड में खाली घर। तस्वीर-कुलदीप सिंह।
जमीन धंसने से सबसे ज्यादा प्रभावित क्षेत्र सिंघदार वार्ड में खाली घर। तस्वीर-कुलदीप सिंह।

जमीन धंसने के बाद जोशी के सालाना कारोबार में बड़ी गिरावट देखी गई है। जोशी के कारोबार में 50 प्रतिशत की कमी आई है। जोशी ने कहा, जनवरी 2023 से पहले मैं एक साल में पांच लाख रुपए का सामान बेच लेता था। लेकिन 2023 में यह घटकर महज  2.5 लाख रुपए पर आ गया। हालांकि, यह उनकी अकेली चिंता नहीं है। उनकी बड़ी चिंता शहर के सबसे प्रभावित वार्ड सिंघदार में उनका दो मंजिला घर है। राज्य सरकार के अनुसार, अक्टूबर 2023 तक सिंघदार में 98 घर असुरक्षित क्षेत्र में थे। हालांकि, जोशी के घर में पिछले साल की भूमि धंसने की घटना के दौरान महज मामूली दरारें आईं। यह क्षेत्र में एक कुदरती जल निकासी वाली जगह के पास है और मोंगाबे-इंडिया की ओर से समीक्षा वाले अपने हालिया अध्ययन में सीबीआरआई द्वारा पहचाने गए बहुत ज्यादा जोखिम वाले 14 क्षेत्रों में से एक है।

साल 2013 में जोशी ने जमीन खरीदी और रहने के लिए एक घर बनाया।  साथ ही, किराए के लिए कुछ कमरे भी बनाए। उन्होंने इसे बनाने में एक करोड़ रुपए से ज्यादा खर्च कर दिए। इससे उन्हें हर महीने 25 हजार रुपए का किराया मिल रहा था। हालांकि, जनवरी 2023 के बाद लोगों ने डर से किराए के घर खाली कर दिए। इसके बाद उनकी संपत्ति से होने वाली आय में भारी गिरावट देखी गई। वह सवालिया लहजे में पूछते हैं, मैंने अपनी सारी बचत इस घर में लगा दी है। अब हम क्या करेंगे?” 

स्थानीय कारोबार पर असर

जोशी की तरह, कई अन्य स्थानीय व्यापारियों को भूमि धंसने का खामियाजा भुगतना पड़ा है। जोशीमठ नगर निगम के अनुसार, शहर में 564 पंजीकृत दुकानें हैं। हालांकि, असल संख्या ज्यादा है, क्योंकि कई व्यापारी निगम के साथ पंजीकृत नहीं हैं।

जोशीमठ में स्थानीय व्यापारियों के संगठन प्रांतीय उद्योग प्रतिनिधिमंडल के अध्यक्ष नैन सिंह भंडारी ने कहा, “वहां लगभग 800 दुकानें होंगी और कम से कम 672 हमारे साथ पंजीकृत हैं।” भंडारी खुद कस्बे में किराने की दुकान चलाते हैं।

उन्होंने कहा, हालांकि, जोशीमठ बाजार में हर रोज होने वाले व्यापार के संबंध में कोई सालाना अध्ययन नहीं किया गया है। लेकिन हमारा अनुमान है जनवरी 2023 से पहले हर दिन कमाई 1.5 करोड़ रुपये से अधिक थी।” “इसमें होटल और होमस्टे शामिल हैं। हालांकि, अगर हम अभी देखें तो कुल आय महज हर रोज 50 लाख रुपए है।

कई अन्य स्थानीय व्यापारियों को भी जमीन धंसने का खामियाजा भुगतना पड़ा है। तस्वीर-कुलदीप सिंह।
कई अन्य स्थानीय व्यापारियों को भी जमीन धंसने का खामियाजा भुगतना पड़ा है। तस्वीर-कुलदीप सिंह।

उन्होंने कहा कि फरवरी 2023 में राज्य सरकार ने उन कारोबारियों को मुआवजे के रूप में दो लाख रुपये देने की घोषणा की थी, जिनकी दुकानें भूमि धंसने के कारण क्षतिग्रस्त हो गईं। हालांकि, उनमें से किसी को भी अब तक कोई पैसा नहीं मिला है। 

इसके अलावा, अगले आदेश तक शहर में सभी निर्माण गतिविधियों पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। इससे क्षेत्र में निर्माण उद्योग को सबसे ज्यादा नुकसान हुआ है। इससे पहले से ही मंद पड़ी अर्थव्यवस्था में हार्डवेयर व्यापारियों की स्थिति और खराब हो गई है।

रामकृष्ण बहुगुणा हार्डवेयर की दुकान के मालिक हैं। जनवरी 2023 से पहले उनकी सालाना आय लगभग 65 लाख रुपए थी। हालांकि, निर्माण गतिविधियों पर पाबंदी के बाद से  उनके  कारोबार पर असर पड़ा और उनकी कोई बिक्री नहीं हुई। इस पाबंदी का असर शहर के मजदूरों पर भी पड़ा है। जोशीमठ नगर निगम के अध्यक्ष शैलेंद्र पंवार ने कहा, “नगर निगम कोई भी मरम्मत का काम नहीं कर सकता है। पहले इससे मजदूरों के लिए रोजगार के अवसर पैदा होते थे।

राज्य सरकार ने जनवरी 2023 में जोशीमठ में निर्माण गतिविधियों पर प्रतिबंध लगा दिया था। लेकिन इस प्रतिबंध के कुछ महीनों बाद कुछ लोगों ने निर्माण शुरू कर दिया था। इस साल 20 जनवरी को जन सुनवाई के दौरान निवासियों ने प्रशासन से स्पष्टीकरण मांगा था कि क्या निर्माण फिर से शुरू हो सकता है। हालांकि, उत्तराखंड राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के सचिव रंजीत सिन्हा ने निर्माण कार्य पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगाने का आदेश दिया। यही नहीं, जिला प्रशासन से यह भी सख्ती से पक्का करने को कहा कि शहर में कोई भी निर्माण कार्य नहीं होना चाहिए।

बाजार में घटते कारोबार के पीछे पर्यटकों की कमी ही अकेली वजह नहीं है। कॉस्मेटिक की दुकान चलाने वाले चंद्रमोहन शर्मा ने कहा कि स्थानीय लोग सुरक्षित शहरों की ओर पलायन कर रहे हैं और इससे भी अर्थव्यवस्था पर असर पड़ा है। जिला प्रशासन के अनुसार, लगभग एक हजार निवासियों ने अपना घर छोड़ दिया है। वे या तो किराए पर या रिश्तेदारों के साथ रह रहे हैं।

पर्यटन उद्योग पर सबसे ज्यादा असर

अप्रैल से मई और अक्टूबर से नवंबर के महीने शहर के लिए पर्यटन के दो प्रमुख मौसम हैं। हालांकि, 2023 में भूमि धंसने की घटना के बाद पर्यटकों ने इस शहर में रुकना बंद कर दिया और इससे स्थानीय कारोबार प्रभावित हुए जो आमतौर पर इन महीनों में फलते-फूलते थे।

राकेश रंजन ज्योतिर्मठ के पास शैलजा गेस्ट हाउस चलाते हैं। ज्योतिर्मठ एक हिंदू तीर्थ स्थल है। यहां धार्मिक पर्यटक आते हैं। उन्होंने कहा कि 2023 में तीर्थयात्रा के दौरान ज्यादातर होटल और होमस्टे खाली रहे। ऐसी नौबत पहले कभी नहीं आई। 

रंजन ने कहा, “होटल उद्योग में पिछले साल की बुकिंग के बाद लगभग 60 प्रतिशत की गिरावट देखी है।” वह जोशीमठ होटल एसोसिएशन के अध्यक्ष भी हैं, जिसके साथ कम से कम 45 होटल पंजीकृत हैं। उन्होंने कहा, ”जोशीमठ में पर्यटकों की संख्या घटकर महज पांच प्रतिशत रह गई।वो कहते हैं, पर्यटकों में डर है कि शहर पूरी तरह से असुरक्षित है। मेरे होटल में 18 कमरे हैं और वे सभी जनवरी में खाली थे जो हमारे लिए पीक सीजन है। जमीन धंसने के बाद से हम पूरी तरह से नुकसान में हैं।

होटलों में बुकिंग 60 फीसदी तक घट गई है। तस्वीर - ArmouredCyborg/विकिमीडिया कॉमन्स
होटलों में बुकिंग 60 फीसदी तक घट गई है। तस्वीर – ArmouredCyborg/विकिमीडिया कॉमन्स

राज्य सरकार के अनुसार, लोकप्रिय चार धाम तीर्थयात्रा के पहले 20 दिनों में (27 अप्रैल से 16 मई, 2023 तक) कम से कम 2.41 लाख लोगों ने बद्रीनाथ मंदिर का दौरा किया। जोशीमठ में होटल औली डी में फ्रंट डेस्क पर काम करने वाले मुकेश मार्टुले ने कहा,  “एक सामान्य पर्यटन सीज़न में हम अपने कमरे 5,200 रुपये की शुरुआती कीमत पर किराए पर देते हैं। लेकिन 2023 की तीर्थयात्रा के दौरान हमने हर रात महज 2,000 से 2,500 रुपए में कमरे किराए पर दिए हैं। होटल को यात्रा या तीर्थयात्रा के पहले 20 दिनों के बाद ही बुकिंग मिलनी शुरू हुई थी।

निराशा का एक साल

40 साल की नाज़रा लाल रंग के एक स्टीकर के पास खड़ी है। यह स्टीकर बताता है कि उसका घर इस्तेमाल के लायक नहीं है। इसका मतलब है कि यह रहने के लिए सुरक्षित नहीं है। हालांकि, नाज़रा अपने पति और छह बच्चों के साथ अप्रैल 2023 से सिंघदार स्थित घर में रह रही हैं। परिवार उत्तर प्रदेश के बिजनौर का रहने वाला है।

वह कहती हैं, “हमारे घर में दरारें आने के बाद हम बिजनौर चले गए थे, लेकिन मेरी बेटी की कॉलेज परीक्षाओं के कारण अप्रैल में हमें वापस लौटना पड़ा।” हम यहां डर में रहते हैं। आप देख सकते हैं कि हमारे कमरे में दरारें हैं।

नाज़रा के परिवार ने साल 2020 में घर खरीदा और उन पर अभी भी करीब 10 लाख रुपए का कर्ज है। उनके पति बाजार में इलेक्ट्रिक की दुकान चलाते हैं  लेकिन स्थानीय अर्थव्यवस्था की स्थिति को देखते हुए उनकी आय कम हो गई है। उनका परिवार सरकार से मुआवजे की राशि का इंतजार कर रहा है, ताकि वे बिजनौर लौट सकें।

नाज़रा और उनकी बेटी आफरीन प्रशासन की ओर से लगाए गए उस स्टीकर के पास खड़ी हैं जिसमें घर को इस्तेमाल के लायक नहीं बताया गया है। तस्वीर-कुलदीप सिंह।
नाज़रा और उनकी बेटी आफरीन प्रशासन की ओर से लगाए गए उस स्टीकर के पास खड़ी हैं जिसमें घर को इस्तेमाल के लायक नहीं बताया गया है। तस्वीर-कुलदीप सिंह।

नाज़ारा की तरह ही कई निवासी अपने टूटे हुए घरों में लौट आए हैं और लगातार डर में जी रहे हैं। शिक्षिका रजनी नौटियाल अपने दो बच्चों के साथ मनोहर बाग वार्ड में रहती हैं। उनके घर को 2023 में असुरक्षित घोषित कर दिया गया था, क्योंकि उसमें दरारें आ गई थीं। तीन महीने तक वह एक सुरक्षित क्षेत्र के होटल में रही, लेकिन बाद में अपने घर लौट आई।


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रजनी ने कहा,सरकार सिर्फ इमारत के लिए मुआवज़ा दे रही है, ज़मीन के लिए नहीं। अभी भी यह स्पष्ट नहीं है कि सरकार हमें कहां बसाएगी। हम आसपास के क्षेत्र में पुनर्वास चाहते हैं।

उनके पड़ोस में नीलम परमार के परिवार ने पिछले साल क्षतिग्रस्त घर के लिए मुआवजे की रकम ली थी। उन्होंने  इस उम्मीद में यह रकम ली थी कि सरकार उन्हें पुनर्वास के लिए उचित जगह देगी।

जोशीमठ में पीड़ित लोगों के लिए कोई स्थायी पुनर्वास नीति नहीं होने के चलते नीलम अपने परिवार के सदस्यों के साथ अपने क्षतिग्रस्त घर में लौट आईं। उनकी स्थिति तब और खराब हो गई जब जिला प्रशासन ने निवासियों को असुरक्षित घरों में लौटने से रोकने के लिए ऐसे घरों के पानी और बिजली के कनेक्शन काट दिए, जिन्हें मुआवजा मिला था।

स्कूल से लौटने के बाद मनोहर बाग वार्ड स्थित अपने घर 'ज्योति विद्यालय' में जाती हुईं रजनी नौटियाल। तस्वीर-कुलदीप सिंह।
स्कूल से लौटने के बाद मनोहर बाग वार्ड स्थित अपने घर ‘ज्योति विद्यालय’ में जाती हुईं रजनी नौटियाल। तस्वीर-कुलदीप सिंह।

उन्होंने कहा, “हमारे बच्चे मोमबत्ती की रोशनी में पढ़ रहे हैं।” हम सचमुच इस ठंडे मौसम में गर्म पानी के लिए संघर्ष कर रहे हैं। आप समझ सकते हैं कि हमारे लिए, खासकर परिवार के बुजुर्ग लोगों के लिए बिना बिजली के शून्य डिग्री से नीचे तापमान में रहना कितना मुश्किल हो गया है।

सरकार ने पुनर्वास के लिए गोचर का प्रस्ताव रखा; लोगों ने किया अस्वीकार 

जोशीमठ के सब डिवीजनल मजिस्ट्रेट (एसडीएम) चंद्रशेखर वशिष्ठ ने मोंगाबे-इंडिया को बताया कि प्रशासन ने आवासीय, वाणिज्यिक और सरकारी भवनों की सटीक संख्या का पता लगाने के लिए सीबीआरआई द्वारा पहचाने गए ज्यादा जोखिम वाले 14 क्षेत्रों में घर-घर सर्वेक्षण शुरू कर दिया है। “प्रशासन प्रभावित लोगों से उनकी प्रतिक्रिया जानने के लिए फॉर्म बांट रहा है कि क्या वे जोशीमठ से 90 किलोमीटर दूर गोचर में सरकार की ओर से प्रस्तावित वैकल्पिक जगह पर बसना चाहते हैं या पुनर्वास के रूप में मुआवजा चाहते हैं।”

एसडीएम ने कहा कि सरकार या तो बमोथ गांव में एक घर देगी या भूमि और भवन के बदले मुआवजा देगी। अब तक 197 क्षतिग्रस्त इमारतों के मुआवजे के रूप में 55 करोड़ रुपये का भुगतान किया जा चुका है। हालांकि  एसडीएम ने कहा कि सरकार ने जमीन के मुआवजे के लिए अभी तक कोई नीति तैयार नहीं की है। “सर्वेक्षण पूरा होने के बाद इसे अंतिम रूप दिया जाएगा।”

सब डिविजनल मजिस्ट्रेट ने कहा है कि अब तक 197 क्षतिग्रस्त इमारतों के मुआवजे के रूप में 55 करोड़ रुपये का भुगतान किया जा चुका है। तस्वीर-मनीष कुमार।
सब डिविजनल मजिस्ट्रेट ने कहा है कि अब तक 197 क्षतिग्रस्त इमारतों के मुआवजे के रूप में 55 करोड़ रुपये का भुगतान किया जा चुका है। तस्वीर-मनीष कुमार।

इस साल 20 जनवरी को एक सार्वजनिक सुनवाई के दौरान, ज्यादातर निवासियों ने पुनर्वास के लिए राज्य सरकार की प्रस्तावित वैकल्पिक साइट, गोचर को अस्वीकार कर दिया।

गोचर में हम क्या करेंगे। हमारी ज़मीन यहीं है और हमारे भगवान भी यहीं हैं,” शर्मा जोशी ने भी सरकार के प्रस्ताव का विरोध किया और कहा कि वह तभी छोड़ेंगे जब सरकार उन्हें श्रीनगर या देहरादून जैसी जगहों पर फिर से बसाएगी, ताकि वह कमाई कर सकें।

जोशीमठ बचाओ समिति के अध्यक्ष अतुल सती ने स्थायी पुनर्वास नीति लाने में देरी पर असंतोष जताया। उन्होंने कहा कि सरकार ने वैकल्पिक जगह का प्रस्ताव दिया है, लेकिन वे उचित पुनर्वास नीति चाहते हैं। उन्होंने कहा, “वैकल्पिक जगह की पेशकश का मतलब है कि वे प्रभावित परिवारों को उनकी आजीविका के बारे में सोचे बिना सिर्फ जमीन का एक टुकड़ा दे रहे हैं।” जब हम पुनर्वास नीति के बारे में बात करते हैं, तो इसका मतलब प्रभावित लोगों की आजीविका की जरूरतों को पूरा करना है। हमें यह समझने की जरूरत है कि उत्तराखंड के किसी भी अन्य पहाड़ी इलाके के विपरीत, जोशीमठ एक आर्थिक रूप से व्यावहारिक शहर है। इसकी भौगोलिक स्थिति के कारण यहां आजीविका के पर्याप्त विकल्प मौजूद हैं। इस जगह पर सेब के बगीचे जैसी नकदी फसलें हैं। इसलिए, जब सरकार पुनर्वास के बारे में सोचती है, तो शहर की आर्थिक व्यवहार्यता को ध्यान में रखना और उसके अनुसार नीति तैयार करना अहम है।

 

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बैनर तस्वीर: पर्यटन के चरम सीजन के दौरान उजाड़ जोशीमठ बाजार से गुजरता एक व्यक्ति। तस्वीर-कुलदीप सिंह।

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