Site icon Mongabay हिन्दी

सिक्किम की बाढ़ के बाद गाद और रसायनों से प्रभावित उत्तरी बंगाल के किसान

गोपाल सरकार अक्टूबर 2023 के बाद रेत और गाद से ढके अपने खेत को पुराने रूप में लाने की कोशिश कर रहे हैं। यह बाढ़  पड़ोसी राज्य सिक्किम से शुरू हुई थी और इसने पश्चिम बंगाल में तीस्ता नदी के किनारे जलपाईगुड़ी जिले के एक हिस्से पर असर डाला। तस्वीर - अरुणिमा कर।

गोपाल सरकार अक्टूबर 2023 के बाद रेत और गाद से ढके अपने खेत को पुराने रूप में लाने की कोशिश कर रहे हैं। यह बाढ़  पड़ोसी राज्य सिक्किम से शुरू हुई थी और इसने पश्चिम बंगाल में तीस्ता नदी के किनारे जलपाईगुड़ी जिले के एक हिस्से पर असर डाला। तस्वीर - अरुणिमा कर।

  • अक्टूबर 2023 में सिक्किम में आई बाढ़ ने पड़ोसी राज्य पश्चिम बंगाल में तीस्ता नदी के किनारे के खेतों को रेत और गाद से भर दिया और इन खेतों की हालत पूरी तरह बदल गई।
  • इस बाढ़ से प्रभावित हुए किसानों और मछुआरों को संपत्ति के अधिकार और भूमि के मालिकाना हक से जुड़े मुद्दों के चलते सरकारी मदद पाने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है।
  • अक्टूबर की बाढ़ में तीस्ता नदी पर बना अस्थायी बांध, जो बाढ़ के पानी से घरों को बचाता था, से प्रभावित हुआ था। अब स्थानीय लोग बाढ़ को रोकने के लिए तटबंध बनाने की जरूरत पर जोर देते हैं।

पश्चिम बंगाल के उत्तरी हिस्से में जलपाईगुड़ी जिले के 54 वर्षीय किसान गोपाल सरकार को पिछली सर्दियों में सब्जियों की खेती करने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। उनका एक हेक्टेयर का खेत रेत और गाद की 4-5 फीट की परत से ढका हुआ है।  इससे इसकी उत्पादकता पर असर पड़ रहा है।

सिक्किम की बाढ़ के बाद गाद और रसायनों से प्रभावित उत्तरी बंगाल के किसान

गोपाल सरकार का  खेत जिले के माल उपखंड में गाजोलडोबा बैराज क्षेत्र में है।  उन्होंने मोंगाबे-इंडिया को बताया,हर साल इस समय मैं आलू, हरी मटर, लौकी, पत्तागोभी, फूलगोभी और कई दूसरी सब्जियां उगाता हूं। इनकी बाज़ार में बहुत मांग है। हालांकि, इस साल मैं शायद ही कुछ लगा पाया। पूरा खेत खाली और बंजर पड़ा है।”

वे अक्टूबर 2023 में तीस्ता नदी में आई बाढ़ से प्रभावित कई किसानों में से एक हैं।  यह बाढ़ पड़ोसी राज्य सिक्किम से शुरू में हुई थी। इससे पश्चिम बंगाल में तीस्ता नदी के किनारे की फसल पर असर पड़ा जो गाजोलडोबा (नंबर 12 गांव) से चापाडांगा तक 22 किलोमीटर की दूरी तक फैली हुई थी। बाढ़ के पानी ने रेत और गाद की बाढ़ ला दीइससे गाजोलडोबा बैराज के नीचे के गांवों में खेती के हालात पूरी तरह बदल गए।

दरअसल, अक्टूबर 2023 की शुरुआत में हिमालयी राज्य सिक्किम में ल्होनक झील टूट गई। इससे सिक्किम की लाचेन घाटी के भीतर तीस्ता नदी में अचानक बाढ़ आ गई। चुंगथांग बांध से पानी छोड़े जाने के बाद सिक्किम में बाढ़ का असर और बढ़ गया। साथ ही, जलपाईगुड़ी जिले सहित उत्तरी पश्चिम बंगाल के कुछ हिस्सों में बाढ़ का असर जारी रहा।

स्थानीय लोगों का कहना है कि गाजोलडोबा तीस्ता बैराज के बगल में जलपाईगुड़ी का यह तीस्ता बेसिन क्षेत्र मुख्य रूप से आसपास के जिलों के प्रवासियों से आबाद है। वे सब्जियों और धान की खेती करते हैं। यह इलाका आलू, तुरई, परवल, लंबी फलियां और हरी मटर जैसी अपनी मौसमी उपज के लिए जाना जाता है।  नदी क्षेत्र की शुष्क भूमि गर्मी के महीनों के दौरान तरबूज और खरबूजा भी पैदा करती है। खेती और मछली पकड़ना यहां की आजीविका का मुख्य स्रोत है।

गोपाल सरकार 1970 के दशक के आखिर में कूच बिहार जिले से गाजोलडोबा गांव आए थे। वे क्षेत्र के ज्यादातर लोगों की तरह, तीस्ता बैराज बनने के दौरान रोजगार की तलाश में यहां आए थे।  अब ये लोग पिछले साल की बाढ़ से जूझ रहे हैं। मोंगाबे-इंडिया से बात करते हुए सरकार ने दावा किया कि बांध के ठीक बगल में लगभग 202 हेक्टेयर में फैले और लगभग 200 किसानों के मालिकाना हक वाले उपजाऊ खेत भूरे रंग की गाद की मोटी परत के नीचे दब गए हैं।

गोपाल सरकार ने कोंहड़े की खेती करने की कोशिश की, लेकिन पौधों पर लाल रंग की परत से पता चला कि पोषक तत्वों की कमी विकास में बाधा बन रही है। तस्वीर - अरुणिमा कर।
गोपाल सरकार ने कोंहड़े की खेती करने की कोशिश की, लेकिन पौधों पर लाल रंग की परत से पता चला कि पोषक तत्वों की कमी विकास में बाधा बन रही है। तस्वीर – अरुणिमा कर।

चुनौतियों के बावजूद, रोजगार के सीमित अवसरों और आजीविका के दूसरे तरीकों की गैर-मौजूदगी के चलते, क्षेत्र के कुछ किसान भूमि को पुराने रूप में लाने और शुष्क रेत को एक बार फिर उपजाऊ खेतों में बदलने की कोशिश कर रहे हैं। हालांकि, उनकी कोशिशों को अनिश्चितता का सामना करना पड़ रहा है, क्योंकि ज्यादातर फसलों को बढ़ने और जीवित रहने के लिए बहुत ज्यादा संघर्ष करना पड़ता है।

गोपाल सरकार ने हरी मटर उगाने के अपने असफल प्रयास के बारे में बताया। यह एक ऐसी फसल थी जो कभी इस क्षेत्र में खूब फलती-फूलती थी। प्रचुर मात्रा में उर्वरक लगाने के बावजूद, पौधों ने अपेक्षा के अनुरूप प्रतिक्रिया नहीं दी, जो मिट्टी में जरूरी पोषक तत्वों की कमी का संकेत देता है।

पचास साल के मीनू सरकार और 24 साल के अजय दास भी इसी गांव में रहते हैं। दोनो अपनी आजीविका के लिए तीस्ता नदी में धान की खेती और मछली पकड़ने का काम करते थे। उनका भी आय का साधन चला गया है। मीनू सरकार ने अफसोस जताया, मेरे पास लगभग दो हेक्टेयर धान की खेती थी। मैंने खेती करने के लिए दूसरों से कर्ज लिया। मैंने सोचा था कि मैं चावल उगाऊंगा और उसे बेचकर अपना कर्ज चुकाऊंगा। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। यहां खेत में एक तालाब था जहां मछलियां थीं। सब कुछ ख़त्म हो गया। गाद के कारण तालाब लुप्त हो गया। मेरे बेटे की शादी होने वाली है और हमारी वित्तीय स्थिति बेहद खराब है।

गाजोलडोबा क्षेत्र के किसान जमीन को उसके पुराने रूप में लाने और शुष्क रेत को एक बार फिर उपजाऊ खेतों में बदलने की कोशिश कर रहे हैं। तस्वीर - अरुणिमा कर।
गाजोलडोबा क्षेत्र के किसान जमीन को उसके पुराने रूप में लाने और शुष्क रेत को एक बार फिर उपजाऊ खेतों में बदलने की कोशिश कर रहे हैं। तस्वीर – अरुणिमा कर।

खेती के अवसरों के ख़त्म होने से युवा किसान काम के लिए देश के अन्य हिस्सों में जा रहे हैं। 12 नंबर में रहने वाले 28 साल के पार्थ सरकार यहीं गाजोलडोबा में पैदा हुए हैं। पिछले साल की बाढ़ से पहले वे खेतों में काम करते थे। लेकिन  अब केरल में मजदूरी करने गए हैं। पार्थ ने कहा, “हम बचपन से ही खेतों में काम कर रहे थे, लेकिन यहां की स्थिति को देखते हुए मुझे कहीं और रोजगार तलाशना पड़ा।” उन्होंने कहा, “हमारे पास लगभग दो हेक्टेयर खेती थी, जो अब पूरी तरह खत्म हो गई है।”

चपानडांगा ग्राम पंचायत के उप प्रमुख मनोरंजन बिस्वास के अनुसार हर पांच से दस साल में एक बार आने वाली बाढ़ गाद लाती है। इससे मिट्टी की ताकत बढ़ती है।  साथ ही, उपज और मिट्टी की गुणवत्ता भी बढ़ाती है।

हालांकि इस बार की बाढ़ पूरी तरह अलग थी। यह कहना है जाने-माने कंकन लाहिड़ी का। लाहिड़ी पश्चिम बंगाल में विभिन्न पर्यावरण और सामाजिक मुद्दों पर काम करने वाली स्वैच्छिक संस्था  सोसाइटी फॉर डायरेक्ट इनिशिएटिव फॉर सोशल एंड हेल्थ एक्शन (दिशा) के लिए उत्तरबंगा मत्स्यजीबी फोरम (यूएमएफ) की देखरेख करते हैं। अचानक आई बाढ़ के कारण उत्तरी सिक्किम में सेना के एक डिपो से गोला-बारूद बह गया। लाहिड़ी ने बताया, “पास के सैन्य शिविर से मोर्टार के गोले पानी के साथ तैरते हुए चार और नदी के अलग-अलग क्षेत्रों में फैल गए।”

मछली पालन को नुकसान

बाढ़ की मार मछुआरा समुदायों तक फैली हुई है। ये समुदाय जीविका के लिए तीस्ता नदी पर निर्भर हैं। कंकन लाहिड़ी ने उनकी दुर्दशा के बारे में विस्तार से बताया, “पानी दूषित हो गया है। मछली का भंडार ख़त्म हो गया है। कई लोग रोजगार के लिए दूसरे राज्यों में चले गए हैं या कहीं और से मछली खरीदने का सहारा लिया है। नवंबर और दिसंबर में पूरी तरह से शांति के बाद इस जनवरी में हालात में मामूली सुधार हुआ है।

पैंसठ साल के सचिन दास ने गंभीर असलियत साझा करते हुए कहा, “अज्ञात रसायनों से दूषित बाढ़ के पानी के कारण नदी की सभी मछलियां मर गईं। जलप्रलय गैस सिलेंडर और बड़ी लकड़ियां लेकर आया। इससे पानी और ज्यादा प्रदूषित हो गया और बड़ी संख्या में मछलियां मर गईं।

यूएमएफ के शाखा सचिव बब्लू दास को डर है कि पानी ठीक होने में लंबा वक्त लगेगा। उनका दावा है, ”अक्टूबर की बाढ़ से हुए नुकसान की भरपाई अगले 4-5 साल तक नहीं होगी।

बाढ़ के चलते गाजोलडोबा के सचिन दास के बहुत सारे खेत बर्बाद हो गए। उन्होंने जमीन के बढ़े हुए और बाढ़ से अपर्याप्त सुरक्षा के चलते आकर्षक मछली बाजार के नुकसान और भविष्य में बाढ़ के खतरे पर अफसोस जताया। तस्वीर - अरुणिमा कर।
बाढ़ के चलते गाजोलडोबा के सचिन दास के बहुत सारे खेत बर्बाद हो गए। उन्होंने जमीन के बढ़े हुए और बाढ़ से अपर्याप्त सुरक्षा के चलते आकर्षक मछली बाजार के नुकसान और भविष्य में बाढ़ के खतरे पर अफसोस जताया। तस्वीर – अरुणिमा कर।

कंकन लाहिड़ी ने सरकारी मदद पाने के लिए अपने संगठन की ओर से किए गए प्रयासों के बारे में बताया।हमने प्रधानमंत्री मत्स्य सम्पदा योजना और कम अवधि के प्रावधानों सहित अलग- अलग रास्ते अपनाए हैं, जहां सरकार को 5,000 रुपए और 30 किलो चावल देने हैं। इसके लिए स्थानीय सरकारी कार्यालयों से अपील की गई है और जिला परिषद के साथ चर्चा की गई है।

पिछले साल अक्टूबर में उन्होंने जलपाईगुड़ी से सांसद जयंत कुमार रॉय को एक पत्र लिखा था, जिसमें क्षेत्र में छोटे पैमाने के मछुआरों की आजीविका के नुकसान की ओर ध्यान दिलाया गया था।

बांध की मांग

उनका कहना है कि बाढ़ के बाद किसानों को सरकार से कोई मदद नहीं मिली है। चपानडांगा ग्राम पंचायत के मनोरंजन बिस्वास कहते हैं, इसकी एक वजह यह है कि इनमें से लगभग 60% भूमि खास भूमि है, जो आधिकारिक तौर पर सरकार के मालिकाना हक में है, जिसमें किसी व्यक्ति को संपत्ति का कोई अधिकार नहीं दिया गया है। वह कहते हैं कि इससे उनके लिए राज्य या केंद्र सरकार की किसान योजनाओं के तहत राहत कार्यक्रमों के जरिए मदद पाना असंभव हो गया है। लोगों की शिकायत है कि सरकार ने उन्हें मक्के के कुछ बीज दिए हैं, लेकिन ज़मीन को फिर से खेती लायक बनाने के लिए कुछ नहीं किया गया है।

गाजोलडोबा में खेत पूरी तरह से रेत और गाद की 4-5 फीट की परत के नीचे दबे हुए हैं, जिससे किसी भी प्रकार की खेती करने में बहुत ज्यादा दिक्कत आ रही है। तस्वीर- अरुणिमा कर।
गाजोलडोबा में खेत पूरी तरह से रेत और गाद की 4-5 फीट की परत के नीचे दबे हुए हैं, जिससे किसी भी प्रकार की खेती करने में बहुत ज्यादा दिक्कत आ रही है। तस्वीर- अरुणिमा कर।

मोंगाबे-इंडिया ने जिन किसानों से बात की, उन्होंने भी इन चिंताओं को दोहराया। उन्होंने अपने खेतों और घरों को बाढ़ से बचाने के लिए तीस्ता नदी के पास बांध तुरंत बनाने पर जोर दिया। इससे किसानों में खेती में फिर से निवेश करने और भविष्य में खेती के लिए भूमि की उर्वरता बढ़ाने का विश्वास पैदा होगा।

स्थानीय लोगों का कहना है कि बैराज के ठीक बगल में सीमेंट की बोरियों से बना एक अस्थायी बांध, ‘बश्तार बंधथा। यह इलाके के लोगों के खेतों और घरों को तीस्ता नदी में बाढ़ से बचाता था। उनके दावों के अनुसार, इसका निर्माण लगभग पांच साल पहले स्थानीय ग्रामीणों द्वारा महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (एमएनआरईजीएस) के तहत किया गया था। बाढ़ ने इस ढांचे को प्रभावित किया, क्योंकि यह रेत और गाद से ढक गया था। ग्रामीण अब उस क्षेत्र में बैराज से अलग एक बांध बनाने की मांग कर रहे हैं, ताकि निचले क्षेत्र को आगे आने वाली बाढ़ से बचाया जा सके।


और पढ़ेंः बांध सुरक्षा और पूर्व चेतावनी प्रणाली की अनदेखी ने बनाया सिक्किम की बाढ़ को घातक


तुरंत बिना कदम उठाए, इस क्षेत्र का भविष्य अंधकारमय दिखता है। बब्लू दास ने जीवन और आजीविका की सुरक्षा के लिए बांध को जरूरी बताया। उन्होंने कहा,बांध के बिना, हमारे गांव को निकट भविष्य में फिर से बाढ़ का सामना करना पड़ेगा। ऐसा नहीं होने पर हमें अपने घरों को छोड़ने और कहीं और शरण लेने के लिए मजबूर करेगी।

जिले के अधिकारियों ने दौरा कर इलाके की स्थिति का जायजा लिया है। अधिकारियों ने किसानों को मामले की जांच करने का आश्वासन दिया। मोंगाबे-इंडिया ने बाढ़ के कारण हुए कुल नुकसान के पैमाने के बारे में जानने और ग्रामीणों को मुआवजा देने की योजनाओं पर चर्चा करने के लिए जिला प्रशासन को ईमेल किया था और खबर लिखे जाने तक कोई जवाब नहीं मिला था।

 

इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें। 

बैनर तस्वीर: गोपाल सरकार अक्टूबर 2023 के बाद रेत और गाद से ढके अपने खेत को पुराने रूप में लाने की कोशिश कर रहे हैं। यह बाढ़  पड़ोसी राज्य सिक्किम से शुरू हुई थी और इसने पश्चिम बंगाल में तीस्ता नदी के किनारे जलपाईगुड़ी जिले के एक हिस्से पर असर डाला। तस्वीर – अरुणिमा कर।

Exit mobile version