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गुजरातः नमक उत्पादन पर अनिश्चित मौसम की मार, बढ़ रही लागत

देश से बाहर भेजने के लिए नमक की पैकेजिंग करते मजदूर। नमक उत्पादन को बेमौसम बारिश से बचाने के लिए यांत्रिक टर्बुलेशन, सौर पैनलों की मदद से गर्मी को रेगुलेट करने और खारे पानी के तापमान को बढ़ाने और वाष्पीकरण में मदद करने वाली रासायनिक रंगों जैसी तकनीकों का पता लगाया जा रहा है। तस्वीर- रवलीन कौर/मोंगाबे।

देश से बाहर भेजने के लिए नमक की पैकेजिंग करते मजदूर। नमक उत्पादन को बेमौसम बारिश से बचाने के लिए यांत्रिक टर्बुलेशन, सौर पैनलों की मदद से गर्मी को रेगुलेट करने और खारे पानी के तापमान को बढ़ाने और वाष्पीकरण में मदद करने वाली रासायनिक रंगों जैसी तकनीकों का पता लगाया जा रहा है। तस्वीर- रवलीन कौर/मोंगाबे।

  • भारत में 80% नमक गुजरात में बनता है। इसका ज्यादातर उत्पादन तटीय क्षेत्रों में होता है और इन क्षेत्रों पर अप्रत्याशित बारिश और तूफान का असर बढ़ता जा रहा है।
  • एक तो तटों के पास स्थित नमक के कारखानों में उत्पादन कम हो गया है। दूसरी तरफ, खाद्य और औद्योगिक नमक की मांग के साथ-साथ निर्यात भी बढ़ गया है। इससे कीमतें बढ़ गई हैं। हालांकि, नमक बनाने वालों का कहना है कि कोई कमी नहीं है, क्योंकि नए क्षेत्र नमक उत्पादन में जुड़ रहे हैं।
  • लंबे समय से नमक बनाने वालों का कहना है कि किसी सक्रिय सरकारी प्राधिकरण को नमक उद्योग को विनियमित करने के काम में लगाना चाहिए, क्योंकि यह जरूरी वस्तु है।
  • केंद्रीय नमक और समुद्री रसायन अनुसंधान संस्थान अनियमित मौसम से नमक उत्पादन पर पड़ रहे असर से निपटने लिए कई तकनीकी समाधानों पर काम कर रहा है।

आषाढ़ी बीज, कच्छी समुदाय का नया साल है। यह दिन गुजरात के कच्छ क्षेत्र में मानसून की शुरुआत का प्रतीक भी है। यह त्योहार जून के आखिर में आता है। साथ ही, इस क्षेत्र में आजीविका के सबसे बड़े साधनों में से एक नमक बनाने का काम रुकने का संकेत भी देता है। यह छुट्टी अगस्त के आखिर में या सितंबर में खत्म होती है। इस दिन हिंदू देवता भगवान श्रीकृष्ण का जन्मदिन यानी जन्माष्टमी मनाई जाती है और नमक बनाने का नया सीजन शुरू होता है। करीब पांच साल पहले तक यही नियम था।

गुजरात के कच्छ और भरूच जिलों में समुद्री नमक बनाने वाली नीलकंठ साल्ट एंड सप्लाई प्राइवेट लिमिटेड के मालिक शामजी कांगड़ ने कहा, लेकिन पिछले पांच सालों में अप्रत्याशित मौसम ने इस नियम को तोड़ दिया है।

नमक बनाने का काम मुख्य रूप से कच्छ के नमक किसान अगरिया समुदाय के लोग करते हैं। कांगड़ ने कहा,आषाढ़ी बीज पर सभी अगरिया अपने गांव वापस चले जाते हैं। लेकिन हाल ही में मानसून में देरी हुई है कभी-कभी तो एक महीने तक की भी देरी हो गई है। आमतौर पर पहले सितंबर के आसपास खत्म होने वाली बारिश अब कभी-कभी नवंबर तक चलती रहती है। हम अभी भी इस बदलाव के साथ तालमेल बिठा रहे हैं” 

मई 2021 में ताउते और जून 2023 में आए बिपरजॉय ने भी नमक बनाने का मौसम जल्दी खत्म कर दिया। कंगड़ ने कहा,हालांकि तूफान की चेतावनी सिर्फ दस दिनों के लिए होती है, लेकिन इससे नमक बनाने का काम 30 दिनों के लिए रुक जाता है, क्योंकि नमक बनाने वाले सॉल्ट पैन को खाली करना पड़ता है और फिर मरम्मत का काम करना पड़ता है। तब तक मानसून शुरू हो जाता है। इसलिए, हम चरम गर्मी के मौसम को खो देते हैं जब सबसे ज्यादा सौर वाष्पीकरण होता है राज्य के भावनगर जिले में भावनगर साल्ट एंड इंडस्ट्रियल वर्क्स प्राइवेट लिमिटेड के मालिक चेतन कामदार ने कहा, “इन दो तूफानों के चलते उत्पादन में 25% का नुकसान हुआ।” 

गांधीधाम स्थित कच्छ स्मॉल स्केल साल्ट मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष बच्चू भाई अहीर ने दावा किया, “सीज़न नौ महीने से घटकर छह महीने रह गया है इससे तटीय क्षेत्र में नमक का उत्पादन 60-70% तक कम हो गया है।” हालांकि अहीर कहते हैं, लेकिन कोई कमी नहीं है। कई नए क्षेत्र नमक उत्पादन में जुड़ रहे हैं और गुजरात से कुल उत्पादन वही रहेगा

नमक के खेत में क्षतिग्रस्त और फंसी हुई नाव। अरब सागर में बने ताउते और बिपोरजॉय तूफानों के चलते 2021 और 2023 में नमक बनाने का मौसम जल्दी खत्म हो गया। तस्वीर - रवलीन कौर/मोंगाबे।
नमक के खेत में क्षतिग्रस्त और फंसी हुई नाव। अरब सागर में बने ताउते और बिपोरजॉय तूफानों के चलते 2021 और 2023 में नमक बनाने का मौसम जल्दी खत्म हो गया। तस्वीर – रवलीन कौर/मोंगाबे।

चीन और अमेरिका के बाद, भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा नमक उत्पादक देश है। चार राज्य गुजरात, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश के कुछ हिस्से और राजस्थान, भारत की ज्यादातर नमक ज़रूरतों को पूरा करते हैं। इन राज्यों के कुल नमक उत्पादन का 80% से ज्यादा गुजरात से आता है।

हाल के सालों में जलवायु में बढ़ती भिन्नताओं ने नमक उत्पादन का मौसम छोटा कर दिया है और इस बड़े लेकिन असंगठित क्षेत्र को सीमित समय वाली अवधि में उत्पादन बढ़ाने के लिए मजबूर कर दिया है। नमक का उत्पादन फैक्ट्री शेड में नहीं किया जाता है। ज्यादातर उत्पादन समुद्र तट के पास होता है, इसलिए दुनिया भर में हो रहे जलवायु परिवर्तन से उद्योगों पर असर पड़ रहा है। इंडियन साल्ट मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन (ISMA), अहमदाबाद के अध्यक्ष भरत रावल ने कहा, भारत में, औसत उत्पादन 2016 से 30 मिलियन टन (एमटी) से घटकर 2022 तक 27-28 मीट्रिक टन रह गया है। चीन में, 2012 के बाद से यह 69 से घटकर 53 मीट्रिक टन हो गया है। नमक का सबसे बड़ा उत्पादक होने के बावजूद, चीन भारत से नमक आयात करता है

तमिलनाडु में भी हालात ऐसे ही हैं। दिसंबर 2023 में राज्य में आई बेमौसम बाढ़ से थूथुकुडी (पूर्व में तूतीकोरिन) में चार लाख (400,000) टन नमक बह गया। इस साल फरवरी में नमक और समुद्री रसायनों पर एक सम्मेलन में थूथुकुडी स्मॉल स्केल साल्ट मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन के अरुलराज सोलोमन सी. ने कहा, “17-18 दिसंबर को 24 घंटों में 90 सेमी से ज्यादा बारिश हुई। नमक के पूरे कारखानों पर गाद जमा हो गई है। गाद को हटाने में छह महीने से ज्यादा समय लगेगा और फिर नमक के खेत को दोबारा तैयार करने और फिर से क्रिस्टलीकृत करने में ज्यादा समय लगेगा। 

जरूरी वस्तु के लिए आवश्यक शर्तें

देश में कुल नमक उत्पादन में समुद्री नमक का हिस्सा लगभग 82% है। गुजरात का इस कुल उत्पादन में अहम योगदान है। राज्य ने साल 2023 में देश के कुल उत्पादन 30.8 मीट्रिक टन में से 25 मीट्रिक टन समुद्री नमक का उत्पादन किया।

नमक मुख्य रूप से राज्य की 1600 किमी लंबी तटरेखा पर कई नमक कारखानों में बनाया जाता है। इसके अलावा कुछ क्षेत्रों में खारी वाली गीली मिट्टी के भंडारों में भी बनाया जाता है। मानसून के बाद, खाड़ियों से समुद्री जल को बड़े पैमाने पर पंपों के जरिए उठाया जाता है और नमक बनाने के लिए खास तौर पर तैयार कठोर सपाट खेतों (कभी-कभी 90 पैन तक) की एक श्रृंखला के जरिए भेजा जाता है, जहां यह धीरे-धीरे धूप में वाष्पित होता है, जिससे बॉम के स्केल पर ( नमक सांद्रता की गणना करने के लिए माप) खारे पानी की सांद्रता 3 से 4 डिग्री तक बढ़कर 25 डिग्री बॉम तक पहुंच जाती है। इस स्तर पर, इसे आखिरी पैन में स्थानांतरित कर दिया जाता है, जिसे क्रिस्टलाइज़र के रूप में जाना जाता है। यहां यह जम जाता है। यह कच्चा नमक, जिसे “करकच” कहा जाता है, वैसे ही या फिर साफ करके बेचा जाता है। खाने-पीने में इस्तेमाल के लिए नमक से मिट्टी निकालने की जरूरत होती है। जबकि औद्योगिक उद्देश्यों के लिए कैल्शियम और मैग्नीशियम हटाने की जरूरत होती है।

आमतौर पर धोने में लगभग 10% नमक नष्ट हो जाता है। कांगड़ ने कहा कि चूंकि सर्दियों के दौरान वाष्पीकरण कम होता है, नमक महीने में एक बार एकत्र किया जाता है, लेकिन गर्मियों में, इसे हर 20 दिनों में एकत्र किया जाता है।

खारे पानी को कीचड़ के साथ-साथ समुद्री जल से भी उठाया जाता है। तस्वीर- रवलीन कौर/मोंगाबे।
खारे पानी को कीचड़ के साथ-साथ समुद्री जल से भी उठाया जाता है। तस्वीर- रवलीन कौर/मोंगाबे।

सरकार के वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद के तहत आने वाले केंद्रीय नमक और समुद्री रसायन अनुसंधान संस्थान (सीएसएमसीआरआई) के वैज्ञानिकों के अनुसार, नमक उत्पादन के लिए आदर्श मौसम की स्थिति में औसत तापमान 20 से 45 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा नहीं होना चाहिए। बारिश 100 दिनों के कुल अंतराल में 600 मिमी से ज्यादा नहीं होनी चाहिए। सापेक्ष आर्द्रता 50 से 70%, हवा का वेग 3 से 15 किलोमीटर प्रति घंटा, हवा की दिशा उत्तर-पूर्व से दक्षिण-पश्चिम और उत्तर-पश्चिम से दक्षिण-पूर्व होनी चाहिए और ये स्थितियां खारे पानी के वाष्पीकरण में मदद करती है। 

आईएसएमए के रावल ने कहा,चिकनी मिट्टी के साथ शुष्क मौसम, (जो खारे पानी के रिसाव को कम करता है) ने गुजरात को नमक उत्पादन के लिए आदर्श बना दिया। दूसरी तरफ, पूर्वी भारत के रेतीले समुद्र तटों और समतल भूमि पर यह काम संभव नहीं है। वहीं दो खाड़ी, कच्छ और कैम्बे के चलते सौर वाष्पीकरण के लिए पर्याप्त जगह प्रदान करते हैं। लेकिन अब मिट्टी को छोड़कर, सब कुछ बदल रहा है

नमक बनाने वाले कामदार ने स्थानीय हवाई अड्डे के मौसम के आंकड़ों का हवाला देते हुए कहा कि भावनगर में 2019 से 2023 तक औसत बारिश लगातार 1000 मिमी के आसपास रही है, जो भावनगर जिले में 600 मिमी की सामान्य बारिश के मुकाबले ज्यादा है। कामदार ने कहा,पिछले कुछ सालों में बारिश के दिनों की संख्या 30 से बढ़कर 78 हो गई है और इस साल 100 दिन बारिश हुई। कच्छ में, पिछले चार सालों से सामान्य वर्षा 450 मिमी की तुलना में 600 मिमी से ज्यादा हो रही है इस साल सबसे ज्यादा 730 मिमी बारिश हुई है उन्होंने कहा, किसी सामान्य सीज़न में मुझे हर साल चार लाख (400,000) टन का उत्पादन मिलता है, लेकिन कम से कम दो सालों से कोई सामान्य सीज़न नहीं रहा है। नमक निकालने के समय बेमौसम बारिश क्रिस्टलाइजर में नमकीन पानी के साथ-साथ समुद्री जल में नमक की सांद्रता को कम कर देती है। तूफानों के दौरान तेज़ हवाओं के कारण धुलाई क्षेत्र के शेड और अन्य मशीनरी ख़राब हो जाती हैं” 

नमक बनने की अवधि के दौरान अप्रत्याशित बारिश के चलते क्रिस्टलाइजर में नमकीन पानी और समुद्री जल में नमक की सघनता दोनों कम हो जाती है, जिससे नमक का उत्पादन प्रभावित होता है। तस्वीर- रवलीन कौर/मोंगाबे।
नमक बनने की अवधि के दौरान अप्रत्याशित बारिश के चलते क्रिस्टलाइजर में नमकीन पानी और समुद्री जल में नमक की सघनता दोनों कम हो जाती है, जिससे नमक का उत्पादन प्रभावित होता है। तस्वीर- रवलीन कौर/मोंगाबे।

वैज्ञानिक समुद्र की सतह के बढ़ते तापमान के लिए बेमौसम बारिश को जिम्मेदार मानते हैं। सीएसएमसीआरआई के नमक और समुद्री जल प्रभाग के वरिष्ठ वैज्ञानिक भूमि आर अंधरिया ने कहा, “जैसे-जैसे तापमान बढ़ता है, समुद्री जल का वाष्पीकरण ज्यादा होता है, जिसके चलते तटीय क्षेत्रों में नमक के काम पर बहुत ज्यादा संतृप्त वायु द्रव्यमान पैदा होता है। इससे आर्द्रता बढ़ती है, जिससे नमक का वाष्पीकरण कम हो जाता है।

साल 2023 के एक अध्ययन के अनुसार, अरब सागर में पिछले दशकों की तुलना में हाल के सालों में सतह (1.2-1.4 डिग्री सेल्सियस) और उपसतह (1.4 डिग्री सेल्सियस) में नाटकीय बढ़ोतरी का अनुभव हुआ है। संभावना है कि यह बढ़ी हुई गर्मी अरब सागर के ऊपर संवहन गतिविधि को बढ़ाएगी, जो हाल के दशकों में उष्णकटिबंधीय तूफानों के बनने और और उनकी तीव्रता को बढ़ाती है। एक अन्य अध्ययन में कहा गया है कि 1982 से 2000 की तुलना में 2001 से 2019 तक अरब सागर के ऊपर चक्रवाती तूफानों की संख्या में 52% की बढ़ोतरी हुई है।

नमक का टीला। जैसे-जैसे तापमान बढ़ता है, समुद्र का ज्यादा पानी वाष्पित हो जाता है, जिससे तटीय क्षेत्रों में नमक के काम पर बहुत ज्यादा संतृप्त वायु द्रव्यमान बनता है। बदले में, यह बढ़ी हुई आर्द्रता नमक के वाष्पीकरण की दर को कम कर देती है। तस्वीर - रवलीन कौर/मोंगाबे।
नमक का टीला। जैसे-जैसे तापमान बढ़ता है, समुद्र का ज्यादा पानी वाष्पित हो जाता है, जिससे तटीय क्षेत्रों में नमक के काम पर बहुत ज्यादा संतृप्त वायु द्रव्यमान बनता है। बदले में, यह बढ़ी हुई आर्द्रता नमक के वाष्पीकरण की दर को कम कर देती है। तस्वीर – रवलीन कौर/मोंगाबे।

कामदार ने कहा, इस बेल्ट में कम दबाव और ज्यादा गति वाली हवा की घटनाएं नियमित हैं, लेकिन ताउते और बिपरजॉय के पैमाने पर इससे पहले कभी कोई बड़ी क्षति नहीं हुई। हालांकि, एक अन्य नमक निर्माता कांगड़ ने कहा कि 1998 के गुजरात चक्रवात में भारी क्षति हुई थी और उनके समुद्री नमक कारखाने के 23 कर्मचारी चक्रवात में बह गए थे। उन्होंने कहा,वह तैयारी नहीं होने के कारण था। तब चेतावनी प्रणालियां मौजूद नहीं थीं।” 

बारिश पर 2013 में हुए एक अध्ययन में कहा गया है कि 1983 और 2013 के बीच 30 सालों की अवधि में, राज्य के सौराष्ट्र और कच्छ क्षेत्रों में औसत वर्षा 378 मिमी से लगभग दोगुनी होकर 674 मिमी हो गई है। , इन दोनों जगहों पर राज्य का सबसे ज्यादा नमक बनता है।

मांग और आपूर्ति

नमक का उत्पादन खाने-पीने, निर्यात और औद्योगिक (क्लोर-क्षार उद्योग के लिए कास्टिक सोडा, क्लोरीन और सोडा ऐश बनाने के लिए) उद्देश्यों के लिए किया जाता है। तीनों क्षेत्रों में मांग बढ़ रही है। रावल ने कहा,2004 तक, हम सिर्फ उन पड़ोसी देशों को निर्यात कर रहे थे जिनके साथ भारत ने आपूर्ति के लिए समझौता किया था, जैसे कि नेपाल। लेकिन 2012 से अब तक, निर्यात 3.4 मीट्रिक टन से बढ़कर 100 मीट्रिक टन से ज्यादा हो गया है। यहां तक कि चीन भी अपनी औद्योगिक जरूरतों के लिए भारत से नमक मंगाता है।

कांगड़ ने कहा, लोडिंग की बेहतर सुविधा के चलते निर्यात बढ़ा है। कंगड़ ने कहा, पहले, देरी के लिए शुल्क के चलते हमें नमक की कीमत से ज्यादा पैसे देने पड़ते थे। कोविड-19 महामारी के बाद, सैनिटाइजर और अन्य क्लीनिंग एजेंटों की मांग भी बढ़ गई है, जिन्हें कच्चे माल के रूप में नमक की जरूरत होती है। रिफाइंड नमक के लोकप्रिय होने के साथ, खाद्य नमक की खपत भी बढ़ गई है। आईएसएमए के रावल के अनुसार, अगर पहले 6% खाद्य नमक (आयोडीनयुक्त होने के अलावा) रिफाइन किया जाता था, तो अब इसका 50% रिफाइन किया जा रहा है। धुलाई के चलते नुकसान में रिफाइनिंग का हिस्सा 20% है।

आयोडीन नमक बनाने वाले कारखाने में नमक साफ करने की प्रक्रिया। तस्वीर- रवलीन कौर/मोंगाबे।
आयोडीन नमक बनाने वाले कारखाने में नमक साफ करने की प्रक्रिया। तस्वीर- रवलीन कौर/मोंगाबे।

वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय के उद्योग संवर्धन और आंतरिक व्यापार विभाग की 2022-23 की सालाना रिपोर्ट के अनुसार, देश में नमक बनाने के अंतर्गत कुल भूमि 6.57 लाख (6,57,000) एकड़ है। हालांकि, हाल ही में कच्छ के ग्रेटर रण में नमक उत्पादन के लिए ज्यादा जमीन पट्टे पर दी गई है, जिसे व्यापक नमक भंडार के कारण सफेद रेगिस्तान भी कहा जाता है। इस क्षेत्र में सात नए नमक कारखानों में से दो कंपनियां इन भंडारों से निकाले गए प्राकृतिक नमक का सीधे निर्यात कर रही हैं, जबकि बाकी नमकीन पानी पंप करने और इसे सौर तालाबों में वाष्पित करने की उसी तकनीक का इस्तेमाल कर रही हैं। कंगड़ ने कहा,अगर सीज़न अच्छा रहा, तो इस साल गुजरात से 30-40 मिलियन टन का उत्पादन आसानी से होगा। इसलिए भले ही तटीय नमक उत्पादन कम हो रहा है, चिंता की कोई बात नहीं है।

खाने-पीने और औद्योगिक नमक दोनों की कीमतों में उछाल आया है। पंजाब के नंगल में थोक किराना व्यापारी ने कहा कि खाने वाले एक किलो नमक की बाजार में कीमत साल 2016 में 15 रुपये थी। अब यह बढ़कर 25 रुपये हो गई है। अहीर ने कहा, 2016 में कीमतें 600-700 रुपए प्रति टन थी। अब एक टन की कीमत 900-1000 रुपए है। ” सुरेंद्रनगर जिले के खरगोड़ा में नमक व्यापारी हिंगोर रबारी ने बताया कि कच्छ के छोटे रण (एलआरके) बेल्ट में, जहां नमक कीचड़ वाले खारे पानी से बनाया जाता है, वहां 2021 में कीमतें 300 रुपए टन थी। अब यह बढ़कर 2023 में 610 रुपए प्रति टन हो गई। रबारी ने कहा,यहां और ज्यादा रिफाइनरियां भी आ रही हैं। अच्छे लाभ को देखते हुए, एलआरके क्षेत्र में ज्यादा लोग कच्चे नमक के उत्पादन में शामिल हो रहे हैं।


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कंगड़ ने कहा,हमने ऐसे दिन भी देखे हैं जब नमक बनाने में 500 रुपए का खर्च आया और हमने इसे 300 रुपए में बेच दिया। अगरियाओं को अपना नमक फेंकना पड़ा और वे आत्महत्या कर रहे थे। लेकिन अब जब दरें बढ़ गई हैं, तो क्लोर-क्षार उद्योग कीमतों को लेकर घबरा रहा है। भले ही नमक से सिर्फ 3000 रुपए मिल रहे हैं जबकि एक टन नमक बनाने पर 20,000 रुपए की लागत आती है।

जलवायु परिवर्तन के असर से पार पाना

नमक बनाने के सीमित मौसम के दौरान उत्पादन बढ़ाने के लिए, सीएमएसआरआई में अंधरिया और उनकी टीम बारिश के खिलाफ क्षति नियंत्रण उपाय के रूप में क्रिस्टलाइज़र से कंडेनसर तक रिवर्स पंपिंग ब्राइन जैसे तकनीकी समाधानों पर काम कर रही है। टीम वाष्पीकरण बढ़ाने वाली तकनीकों की भी खोज कर रही है जैसे यांत्रिक टर्बुलेशन, सौर पैनलों की मदद से ताप विनिमय और रासायनिक रंगों का इस्तेमाल करना जो नमकीन पानी के तापमान को बढ़ाते हैं और वाष्पीकरण में मदद करते हैं। अंधरिया ने कहा,क्रिस्टलाइज़र क्षेत्र आमतौर पर कुल नमक कामों का 1/10 वां हिस्सा होता है। कुल बारिश के आधार पर इसे अब बढ़ाने की जरूरत है। बारिश से मिट्टी नरम हो जाती है और क्रिस्टलाइज़र में रिसने से नमक का नुकसान होता है। मशीनीकृत संचालन भी नहीं हो सकता, क्योंकि नरम मिट्टी भारी मशीनरी का भार नहीं उठा सकती। जियो-पॉलीमर शीट से बिस्तरों को सख्त करने से मदद मिलती है। इससे गुणवत्ता में सुधार में भी मदद मिलेगी, क्योंकि कोई भी मिट्टी नमक के साथ नहीं मिलेगी, जिससे धुलाई के नुकसान को कम किया जा सकेगा” 

हथेलियों में कच्चा नमक लिया हुआ एक शख्स। स्थानीय तौर पर नमक को कराकस के नाम से जाना जाता है। तस्वीर - रवलीन कौर/मोंगाबे।
हथेलियों में कच्चा नमक लिया हुआ एक शख्स। स्थानीय तौर पर नमक को कराकस के नाम से जाना जाता है। तस्वीर – रवलीन कौर/मोंगाबे।

रावल के मुताबिक, सरकार को इस जरूरी वस्तु का मालिकाना हक लेने की जरूरत है। उन्होंने कहा, वहां नमक आयुक्त कार्यालय था, लेकिन वह भी बंद होने की कगार पर है। आज तक उत्पादन, आपूर्ति और यहां तक ​​कि नमक उत्पादन के तहत आने वाले क्षेत्रों की निगरानी के लिए कोई सक्रिय नियामक संस्था नहीं है। अगर सरकार अपनी ज़िम्मेदारी से पीछे हटती है, तो संकट पैदा हो सकता है।रावल ने कहा, “दूसरी बात, नमक को खेती की वस्तु के रूप में वर्गीकृत करने की जरूरत है ना कि खनन खनिज के रूप में, क्योंकि इसकी खेती फसलों की तरह ही की जाती है। देश के बंटवारे से पहले भारत में नमक सिंध में चट्टानों के भंडार और हिमाचल प्रदेश में मंडी की पहाड़ियों से मिलता था। तब से, नमक को खनिज के रूप में गिना जाता है, भले ही इसका सिर्फ 0.5% अब पहाड़ियों से आता है।

 

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बैनर तस्वीर: देश से बाहर भेजने के लिए नमक की पैकेजिंग करते मजदूर। नमक उत्पादन को बेमौसम बारिश से बचाने के लिए यांत्रिक टर्बुलेशन, सौर पैनलों की मदद से गर्मी को रेगुलेट करने और खारे पानी के तापमान को बढ़ाने और वाष्पीकरण में मदद करने वाली रासायनिक रंगों जैसी तकनीकों का पता लगाया जा रहा है। तस्वीर- रवलीन कौर/मोंगाबे।

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