- एक हालिया रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि भारत में हिम तेंदुओं की आबादी 718 हो गई है। सबसे अधिक हिम तेंदुए लद्दाख में पाए गए हैं।
- विकास का बुनियादी ढांचा, जलवायु परिवर्तन और आवारा कुत्ते हिम तेंदुओं के लिए कुछ बड़े खतरे हैं।
- हिम तेंदुए के ज्यादातर आवास संरक्षित क्षेत्रों के बाहर हैं, इसलिए रिपोर्ट में भूदृश्य स्तर प्रबंधन और समन्वय में सुधार का सुझाव दिया गया है।
पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की ओर से इस महीने की शुरुआत में जारी एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में हिम तेंदुओं की संख्या 718 हो गई हैं। इस रिपोर्ट में पहली बार भारत में उच्च ऊंचाई वाले हिमालयी क्षेत्रों में रहने वाले हिम तेंदुओं की संख्या का अनुमान लगाया गया है। यह बेसलाइन (आधारभूत) आंकड़ा उन करिश्माई प्रजातियों के संरक्षण प्रयासों को आगे बढ़ाने में मदद कर सकता है, जो जलवायु परिवर्तन और हिमालय में बढ़ते बुनियादी ढांचे की वजह से चुनौतियों का सामना कर रहे हैं।
विशेषज्ञों ने मोंगाबे-इंडिया को बताया कि 2019 से लेकर 2022 तक छह हिमालयी राज्यों और क्षेत्रों में किए गए जनसंख्या आकलन से हिम तेंदुओं के बारे में अधिक विस्तृत जानकारी मिलती है, मसलन किन इलाकों तक उनकी पहुंच है। सर्वेक्षण में पाया गया कि सबसे अधिक हिम तेंदुए लद्दाख में पाए गए हैं। इनकी संख्या लगभग 477 है। इसके बाद उत्तराखंड (124), हिमाचल प्रदेश (51), अरुणाचल प्रदेश (36), सिक्किम (21) और जम्मू और कश्मीर (9) आते हैं।
आईयूसीएन में देश के प्रतिनिधि और रिपोर्ट के साथ जुड़े यश वीर भटनागर ने कहा, “संख्याओं को छोड़ भी दें, तो ये अध्यावास (ऑक्यूपेंसी) सर्वे हमें इस बात का अंदाजा देता है कि किन जगहों पर हिम तेंदुए ज्यादा पाए जाते हैं, खासकर अरुणाचल प्रदेश जैसे राज्यों में, जहां अभी तक इस स्तर पर कोई जानकारी नहीं थी।”
भारत में हिम तेंदुओं को लेकर आखिरी “अनुमान के आधार पर आकलन” 1980 के दशक में इंटरनेशनल स्नो लेपर्ड ट्रस्ट के शोधकर्ताओं ने किया था। उस समय भारत में 400 से 700 हिम तेंदुओं की मौजूदगी की बात कही गई थी। रिपोर्ट में कहा गया था, “बेहतर पद्धति का इस्तेमाल करके हिम तेंदुओं की सही संख्या का संशोधित अनुमान लगाने की तत्काल जरूरत है। खासकर तब, जब उनकी जनसंख्या का विश्वसनीय घनत्व अनुमान लगाया जा चुका है।”
ग्लोबल स्नो लेपर्ड एंड इकोसिस्टम प्रोटेक्शन प्रोग्राम (जीएसएलईपी) के साथ भागीदारी कर, भारत हिम तेंदुए के संरक्षण पर ध्यान दे रहा है। जीएसएलईपी “करिश्माई और लुप्तप्राय हिम तेंदुए के संरक्षण को प्रमुखता से उठाकर उच्च-पर्वतीय विकास के मुद्दों की तरफ लोगों का ध्यान आकर्षित करना चाहता है।” 2019 में केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय की ओर से भारत में हिम तेंदुए की जनसंख्या आकलन (एसपीएआई) के लिए राष्ट्रीय प्रोटोकॉल जारी किया गया था।
हिम तेंदुओं का सर्वे
हिम तेंदुए बहुत ऊंचाई पर पाए जाते हैं। पश्चिमी हिमालय में समुद्र तल से लगभग 3,200 मीटर और पूर्वी हिमालय में 4,200 मीटर की ऊंचाई पर इन्हें देखा जा सकता है। यह मुश्किल, उबड़-खाबड़ इलाका अक्सर जंगली इलाकों और इंसानी बस्तियों से काफी दूर होता है। वर्ल्ड वाइड फंड फॉर नेचर इंडिया (डब्ल्यूडब्ल्यूएफ) में स्नो लेपर्ड प्रोग्राम के प्रमुख और रिपोर्ट में शामिल ऋषि कुमार शर्मा ने कहा, ” हिम तेंदुओं की संख्या का पता लगाना काफी चुनौतीपूर्ण काम है और इसके पीछे की एक बड़ी वजह इस तरह के इलाके ही हैं।”
रिपोर्ट अपने अनुमान पर पहुंचने के लिए दो-चरणीय प्रक्रिया पर निर्भर थी। पहली पद्धति एक अध्यावास-आधारित सर्वे था, जिसका उद्देश्य एक 15×15 किलोमीटर ग्रिड में हिम तेंदुओं के संकेतों और सबूतों की पहचान करना था। इसके लिए एक प्रश्नावली का इस्तेमाल किया गया, जिसे प्रमुख मुखबिरों (टूर गाइड, पोर्टर्स, चरवाहों, अर्धसैनिक कर्मियों, स्थानीय लोगों) से बातचीत के आधार पर भरवाया गया था। दूसरे चरण में जनसंख्या और उसके घनत्व का अनुमान लगाने के लिए कैमरा ट्रैप में कैद तस्वीरों और मॉडलिंग सिमुलेशन का इस्तेमाल किया गया। इस पद्धति को स्थानीय रूप से कैप्चर और रीकैप्चर कहा जाता है। हिम तेंदुए की सीमा वाले 70% हिस्से में कुल 1,971 कैमरा ट्रैप लगाए गए था। इनमें 241 हिम तेंदुओं को कैद किया गया।
शर्मा ने कहा, “जनसंख्या का अनुमान लगाने के लिए इस पद्धति में सिर्फ हिम तेंदुओं की तस्वीरों को कैद नहीं किया जाता है, बल्कि इससे मिले डेटा का इस्तेमाल भी किया जाता है। मसलन कैमरा ट्रैप और कई कैमरों से बार-बार ली गई तस्वीरों से इस बात का अंदाजा लगाया जाता है कि जानवरों की आवाजाही किन इलाकों में ज्यादा हैं और वे कहां जा रहे हैं। इस तरह उनके द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले वास्तविक क्षेत्र की पहचान की जाती है।” वह आगे कहते हैं, ”कोई जानवर कितनी दूर तक गया, इसका पता लगाने के लिए पहले हम अनुमान पर ज्यादा निर्भर रहते थे। लेकिन इस मॉडल में उनकी गतिविधि रिकॉर्ड की जाती है।
भारतीय वन्यजीव संस्थान ने सर्वे के नोडल राष्ट्रीय समन्वयक के रूप में काम किया और राज्यों से इनपुट इकट्ठा किए। जम्मू और कश्मीर और हिमाचल प्रदेश से मिले नमूनों को प्रकृति संरक्षण फाउंडेशन को सौंपा गया तो वहीं अरुणाचल प्रदेश और सिक्किम से तकनीकी इनपुट डब्ल्यूडब्ल्यूएफ इंडिया को दिए गए।
लद्दाख में सबसे अधिक संख्या में हिम तेंदुए पाए गए थे। सर्वे में लद्दाख के 8,604 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को कवर किया गया था। रिपोर्ट में पाया गया कि “उनके रहने के लिए उचित जगह यानी आवास उपयुक्तता…पश्चिमी लद्दाख में अपने चरम पर देखी गई है और इन इलाकों के पूर्वी भाग की ओर धीरे-धीरे कम होती चली गई।” हिम तेंदुओं द्वारा इस क्षेत्र को पसंद करने की बड़ी वजह उच्च ऊंचाई और ऊबड़-खाबड़ इलाका है। हालांकि इन इलाकों में शिकार ज्यादा नहीं मिलते हैं लेकिन वो इस बात की परवाह नहीं करते हैं।
भटनागर ने समझाते हुए कहा, “पूर्वी लद्दाख में चांगथांग क्षेत्र काफी ढलान वाला इलाका है। इन इलाकों में हिम तेंदुओं के लिए शिकार करना मुश्किल होता है। क्योंकि हिम तेंदुओं की शिकार करने की एक खास आदत है। पहले वे शिकार का पीछा करते हैं और फिर उसके बहुत करीब पहुंचकर उन पर छिप कर हमला करते हैं।” वह आगे कहते हैं, ”इसलिए, भले ही किसी क्षेत्र में पर्याप्त शिकार हो, अगर उन्हें ज्यादा देर तक पीछा करने के लिए जगह नहीं मिलेगी तो उनके लिए शिकार करना मुश्किल हो जाता है।”
लद्दाख के गैर-लाभकारी ‘स्नो लेपर्ड कंजरवेंसी इंडिया ट्रस्ट’ के निदेशक त्सेवांग नामगेल ने कहा कि रिपोर्ट एक अच्छी शुरुआत है। लेकिन लद्दाख को देखते हुए बड़े सैंपल साइज और अधिक विस्तृत आवास स्तरीकरण की जरूरत है। “पश्चिमी और पूर्वी लद्दाख के बीच स्तरीकरण का उल्लेख है, लेकिन इसमें पाए गए अंतरो का विवरण पर्याप्त रूप से सामने नहीं आया है। लेकिन इसके बावजूद इनकी संख्या की जानकारी एक मील का पत्थर है। इसका इस्तेमाल अन्य शोधकर्ता और गहन सर्वे करने के लिए किया जा सकता हैं।”
आधारभूत जानकारी देने वाली ये रिपोर्ट एक मजबूत जनसंख्या निगरानी प्रणाली बनाने के लिए स्थानीय लोगों, सरकारी विभागों, सरकारी एजेंसियों और अर्धसैनिक बलों के बीच एक नेटवर्क बनाने का सुझाव देती है। इसमें भारतीय वन्यजीव संस्थान को एक समर्पित स्नो लेपर्ड सेल स्थापित करने का भी सुझाव दिया गया है। यह सेल पमुख तौर पर दीर्घकालिक जनसंख्या निगरानी पर ध्यान देने के साथ बेहतर तरीके से डिजाइन किए गए अध्ययन लगातार क्षेत्र सर्वे पर काम करेगा। भारत के हिम तेंदुए संरक्षण योजनाओं के एक दस्तावेज़ का अनुमान है कि इस पर लगभग 10.08 मिलियन डॉलर की लागत आएगी।
शर्मा भविष्य में होने वाले तरीकों में सुधार को लेकर आशावादी हैं। उन्होंने कहा, “मुझे लगता है कि आने वाले में समय में फील्ड वर्क में काफी सुधार नजर आएगा। फिलहाल तो हमें इस विचार पर काम करना होगा कि इसे कैसे किया जाना चाहिए।”
संरक्षण के अवसर
भारत ने 2009 में अपना पहला हिम तेंदुआ संरक्षण कार्यक्रम शुरू किया था। इसे प्रोजेक्ट स्नो लेपर्ड नाम दिया गया। लेकिन सार्वजनिक स्तर पर इसकी प्रभावशीलता के बारे में बहुत कम जानकारी है। जब भारत 2019 में वैश्विक हिम तेंदुए और पारिस्थितिकी तंत्र संरक्षण कार्यक्रम में 11 अन्य देशों के साथ शामिल हुआ, तो हिम तेंदुए के संरक्षण का मुद्दा एक बार फिर से गरमा गया। सरकार ने कहा था कि भारत के प्रयास ‘प्रोजेक्ट हिम तेंदुए’ के तहत भागीदारी संरक्षण के उद्देश्यों को आगे बढ़ाएंगे।
रिपोर्ट में सबसे महत्वपूर्ण सुझाव “भूदृश्य स्तर प्रबंधन और समन्वय” में सुधार करना है, क्योंकि हिम तेंदुए के अधिकांश आवास संरक्षित क्षेत्रों से बाहर हैं। इसके लिए तीन प्रमुख क्षेत्रों की पहचान की गई है – लद्दाख और हिमाचल प्रदेश में हेमिस-स्पीति, उत्तराखंड में नंदा देवी-गंगोत्री और सिक्किम व अरुणाचल प्रदेश में कंचनजंगा-तवांग।
अध्ययनों से पता चला है कि जलवायु परिवर्तन के प्रभाव भारत में हिम तेंदुओं को नई ऊंचाइयों की तरफ जाने के लिए मजबूर कर रहे हैं। हिम तेंदुए मुख्य प्रजाति हैं, जिसका मतलब है कि वे एक बड़े शिकारी हैं जो उस पारिस्थितिकी तंत्र को संतुलित करते हैं जिसका वे हिस्सा हैं। भटनागर ने कहा, “गर्म तापमान की वजह से बर्फ पिघलकर चरागाहों में जाने के बजाय बह रही है, जिससे उनकी गुणवत्ता ख़राब हो रही है। अगर हिम तेंदुओं को अच्छी सेहत बनाने के लिए पर्याप्त भोजन नहीं मिलता है, तो इससे लंबे समय में हिम तेंदुओं के लिए शिकार की गुणवत्ता प्रभावित होने की संभावना है।” उन्होंने आगे कहा, “अत्यधिक चराई से जंगली शिकार के लिए संसाधनों की उपलब्धता भी कम हो जाती है।”
स्नो लेपर्ड कंजरवेंसी के नामगेल ने कहा कि जलवायु परिवर्तन के अलावा आवारा कुत्ते और तेजी से बढ़ता बुनियादी ढांचा, लद्दाख में हिम तेंदुओं और अन्य वन्यजीवों के लिए खतरा हैं। वह कहते हैं, “इंसानों द्वारा जंगली जानवरों को मारना भी यहां एक बड़ी समस्या हुआ करती थीं, क्योंकि हिम तेंदुए उनके मवेशियों पर हमला करते थे। लेकिन पर्यटन की वजह से अब यह समस्या थोड़ी कम हुई है। हिम तेंदुओं को न मारने के लिए आर्थिक प्रोत्साहन दिया जाता है।” उन्होंने कहा, “चुनौती लोगों को यह समझाने की है कि इस प्रजाति का महत्व सिर्फ आर्थिक दृष्टि से नहीं है, बल्कि पारिस्थितिक तंत्र के स्वास्थ्य और संतुलन के लिए भी है।”
सीमावर्ती हिमालयी राज्यों में अधिकांश बुनियादी ढांचे पर काम “राष्ट्रीय सुरक्षा” के मद्देनजर सरकार की देखरेख में किया जाता है। रिपोर्ट बताती है कि इन क्षेत्रों में रहने वाले सशस्त्र बलों के बीच जागरूकता पैदा करने से “हिम तेंदुए के आवासों के संरक्षण के लिए दीर्घकालिक सहयोग को बढ़ावा मिल सकता है।”
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बैनर तस्वीर: भारत में हिम तेंदुओं की संख्या का अनुमान आखिरी बार 1980 के दशक में लगाया गया था। इसके मुताबिक, देश में हिम तेंदुओं की संख्या 400 से 700 थी। तस्वीर-इस्माइल शरीफ।