- कश्मीर में जंगली भालू और तेंदुए भोजन की खोज में अक्सर जंगलों से बाहर आ जाते हैं। इस तरह की रिपोर्टें भी नियमित रूप से आती रहती हैं। इसके चलते उनका इंसानों और जानवरों से सामना होता है और कुछ मामलों में घातक हमले भी होते हैं।
- जानकारों का कहना है कि इन घटनाओं की कई वजहें हैं। इनमें इंसानी बस्तियों का फैलना, वन्यजीवों का प्राकृतिक आवास कम होना और बढ़ते आवारा कुत्ते शामिल हैं। भोजन की तलाश में जंगलों से बाहर निकलने वाले तेंदुओं के लिए आवारा कुत्ते आसान शिकार हैं।
- कश्मीर के खेती के तरीके भी बदल रहे हैं। जैसे धान के खेतों में अब बागवानी हो रही है। बागवानी के लिए लगाए गए बगीचों में जंगली भालूओं को पर्याप्त भोजन मिलता है और यहां तेंदुओं को छिपने के लिए जगह मिल जाती है।
घटना इस साल फरवरी महीने की है। कश्मीर वन्यजीव विभाग में काम करने वाले शब्बीर अहमद (अनुरोध पर बदला हुआ नाम) को किसी सहकर्मी ने फोन किया और उन्हें मध्य कश्मीर के एक आवासीय क्षेत्र में तेंदुए की मौजूदगी के बारे में जानकारी दी। अपने सहयोगियों के साथ शब्बीर तेंदुए को पकड़ने के लिए तेजी से आगे बढ़े। उस जगह पर पहुंचने के बाद टीम ने देखा कि भीड़ तेंदुए पर पत्थर फेंक रही है, जिससे स्थिति और खराब हो गई। चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों के बावजूद छह घंटे से ज्यादा समय के बाद, टीम ने तेंदुए को सफलतापूर्वक पकड़ लिया। लेकिन इस अभियान में दो कर्मचारियों को गंभीर चोटें आईं।
अहमद अफसोस जताते हुए कहते हैं, “हर बार जब हम ऐसी स्थितियों से निपटते हैं, तो चोट लगना लगभग पक्का होता है। हमारे पास हेलमेट और हैंड शील्ड जैसे जरूरी सुरक्षात्मक गियर की कमी है। बेकाबू भीड़ को समझाना दूसरी बड़ी समस्या है। अक्सर, स्थानीय लोग जानवरों को उकसाते हैं और इससे हमारी कोशिशों पर पानी फिर जाता है। इसके चलते हमारी टीम के सदस्यों और कभी-कभी आसपास खड़े लोगों को चोटें आती हैं।”
अहमद और कश्मीर में वन्यजीव विभाग के उनके साथी कर्मचारियों के लिए, जानवरों को बचाना चुनौतियों से भरी नियमित जिम्मेदारी बन गई है।
तेंदुओं को बचाने के लिए वैज्ञानिक और सुरक्षा सहायता जरूरी
अप्रैल महीने की शुरुआत में मध्य कश्मीर के गांदरबल जिले में एक वन्यजीव अधिकारी को महज एक छड़ी के सहारे तेंदुए को नियंत्रित करने और पकड़ने की कोशिश करते देखा गया था। तेंदुआ अधिकारी पर हावी होने में कामयाब रहा और उन पर हमला कर उन्हें घायल कर दिया। स्थानीय लोगों और उनके सहयोगियों ने तेंदुए पर तुरंत लाठियां बरसाईं। इसके बाद ही वन्यजीव अधिकारियों को तेंदुए को शांत करने और पकड़ने में सफलता मिली।
ऐसा ही एक और बचाव अभियान दक्षिण कश्मीर के शोपियां में हुआ था। यहां एक तेंदुए को शांत किया जा रहा था। तभी अचानक आसपास खड़े लोगों ने पथराव और शोर मचाना शुरू कर दिया। उन्हें इसमें खूब मजा आ रहा था। इस वजह से चार लोग घायल हो गए।
मार्च में, मध्य कश्मीर के बडगाम जिले में एक तेंदुए ने दो बच्चों को मार डाला। इसके बाद “आदमखोर” जानवर को गोली मार दी गई।
दरअसल, पिछले कुछ सालों से ऐसी घटनाएं बढ़ रही है। इसके चलते लोग हताहत हुए हैं। जम्मू और कश्मीर के वन्यजीव संरक्षण विभाग के अनुमान के अनुसार, 2006 से मार्च 2024 तक करीब 18 सालों में कश्मीर में जंगली जानवरों के चलते 264 लोगों की जान गई। वहीं 3,164 लोग घायल हुए। आंकड़ों से पता चलता है कि पिछले पांच सालों में ये घटनाएं बढ़ी हैं। 2020-21 के दौरान, पांच लोगों की मौत हुईं। 2021-22 में यह आंकड़ा दोगुना होकर 10 हो गया। फिर अगले दो सालों में यह आंकड़ा और बढ़कर 14 और 16 हो गया। इसी तरह, 2020-21 और 2021-22 के बीच घायल होने वालों की तादाद 87 से बढ़कर 89 हो गई। फिर 2022-23 में यह घटकर 65 रह गई और 2023-24 में तेजी से बढ़कर 181 हो गई।
भोजन की तलाश में भालू और तेंदुओं के जंगलों से बाहर निकलने की खबरें लगभग हर दिन आती हैं। इस वजह से इंसानों और वन्यजीवों में संघर्ष होता है। इसका नतीजा अक्सर हमलों के रूप में सामने आता है। इस संबंध में वन्यजीव संरक्षण विभाग ने कई बार एडवारइजरी जारी की हैं और लोगों से बचाव के उपाय करने को कहा है।
हालांकि, बचाव के कामों के लिए जिम्मेदार वन्यजीव अधिकारियों को इन अभियानों के दौरान सुरक्षा के लिए ढाल, चेस्ट प्लेट, हेलमेट, पिंडली गार्ड जैसे बचाव उपकरणों की जरूरत होती है।
कश्मीर में इंसानी-वन्यजीव संघर्ष की वजहें
पिछले दिनों क्षेत्रीय वन्यजीव वार्डन, कश्मीर का पद संभालने वाले प्रदीप चंद्र वाहुले ने क्षेत्र में मानव-वन्यजीव संघर्ष को बढ़ावा देने वाले अलग-अलग कारकों के बारे में बताया। उन्होंने कहा, “बड़ी वजहों में इंसानी बस्तियों में बढ़ोतरी, वन्यजीवों का प्राकृतिक आवास घट जाना और कुत्तों की बढ़ती आबादी शामिल है। तेंदुओं के लिए कुत्ते आसान शिकार हैं। इसके अलावा, व्यवहार में भी बदलाव आ रहा है, जहां तेंदुए इंसानी बस्तियों के आसपास प्रजनन करते हैं।”
उन्होंने मानव-वन्यजीव संघर्ष की बढ़ती घटनाओं को स्वीकार किया, क्योंकि विभाग से लगभग हर रोज संकट में फंसे लोग सहायता मांगते हैं। उन्होंने मोंगाबे-इंडिया को बताया, “स्थिति के आधार पर जानवरों को या तो पकड़ लिया जाता है, शांत कर दिया जाता है या वापस जंगल में छोड़ दिया जाता है। दुर्भाग्य से, कुछ घटनाओं में इंसान और जानवर दोनों घायल हो जाते हैं या उनकी मौत हो जाती है।”
कश्मीर वाले हिमालय में इंसान और तेंदुओं के बीच संघर्ष पर व्यापक शोध करने वाले वन्यजीव विशेषज्ञ ज़फ़र रईस मीर का मानना है कि कुदरती आवासों पर लोगों का अतिक्रमण और मानव-वन्यजीव संघर्षों में बढ़ोतरी के बीच सीधा संबंध है। मोंगाबे-इंडिया से बात करते हुए, उन्होंने बताया कि इस तरह के संघर्ष अक्सर प्राकृतिक आवास के कम होने से होते हैं। इससे इंसानों और वन्यजीवों के बीच संघर्ष बढ़ जाता है, क्योंकि वे सीमित संसाधनों (भोजन, जगह या पानी) के लिए प्रतिस्पर्धा करते हैं।
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मीर ने कहा, “तेंदुओं में किसी भी हालात से पार पाने की खास क्षमता होती है। ये इंसानों की ओर से बदलाव के साथ तैयार किए गए सभी तरह के आवासों में जी लेते हैं। साथ ही, इंसानी बस्तियों के आसपास की परिधि में निवास करते हैं। इससे इंसानों के साथ संघर्ष होने की आशंका बढ़ जाती है। जब इनके लिए जंगलों में शिकार कम हो जाता है, तो तेंदुए मवेशी या कुत्तों जैसे आसानी से मिलने वाले शिकार के लिए इंसानी बस्तियों के करीब पहुंच जाते हैं। ऐसा करने पर, इंसानों के साथ संघर्ष की घटनाएं नाटकीय रूप से बढ़ जाती है। नतीजा यह होता है कि इंसानों पर हमलों का खतरा बढ़ जाता है। इसी तरह की स्थिति कश्मीर में भी दिखाई दे रह है, जहां जंगलों में शिकार की कमी बनी हुई है। ” मीर फिलहाल सऊदी अरब में राष्ट्रीय वन्यजीव केंद्र में वन्यजीव विशेषज्ञ के रूप में काम कर रहे हैं।
इंसानों का तेंदुओं की बस्तियों में घुसना
जम्मू-कश्मीर में वन्यजीव संरक्षण विभाग के पशु चिकित्सा अधिकारी डॉ. मोहसिन अली गाज़ी ने कहा कि जंगली जानवरों के इंसानी बस्तियों में आने की घटना को हमेशा ‘मानव-वन्यजीव संघर्ष‘ के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए। इसके बजाय, इसे ‘मानव-वन्यजीव संपर्क‘ कहा जा सकता है। ऐसा तब तक हो सकता है जब तक कि इंसानों को चोट ना लगे या फसलों को नुकसान ना हो।
उन्होंने यह भी बताया कि मौसम में हो रहा बदलाव, भूमि के इस्तेमाल में बदलाव और जंगलों या आसपास के क्षेत्रों में इंसानी बस्तियां बसने से मानव-वन्यजीव संघर्ष बढ़ा है। उन्होंने समझाया, “जंगली जानवरों के भी अपने परिवार और आबादी होती है, लेकिन इंसान उनके आवासों पर अतिक्रमण करते हैं। बफर जोन जरूरी हैं और हम अक्सर कश्मीर के शहरों जैसी अप्रत्याशित जगहों से जंगली जानवरों को बचाते हैं।”
पर्यावरणविद् शेख गुलाम रसूल भी जंगलों में खलल के लिए बढ़ते मानव-वन्यजीव संघर्ष को जिम्मेदार मानते हैं। “पर्यटन कश्मीर की अर्थव्यवस्था में सात प्रतिशत योगदान देता है। हमारी अर्थव्यवस्था काफी हद तक बागवानी और खेती पर निर्भर है। साथ ही, कश्मीर में पर्यटन को लेकर जिम्मेदारी का भाव कम है। संरक्षित क्षेत्रों में भी लोग आसानी से चले जाते हैं। लोग आसानी से जंगलों में भी ट्रैकिंग पर चले जाते हैं।”
वे कई इलाकों में सड़कें बनाने को गैर-जरूरी बताते हैं। उन्होंने कहा, “हमने देखा है कि कुछ गांवों में 10 सड़कें बना दी गई हैं जबकि जरूरत थी सिर्फ एक की थी। इसके अलावा, कुछ लोग कोयले के लिए झाड़ियों और पेड़ों को जलाते हैं, जिससे जंगलों में खलल बढ़ता है।”
उन्होंने कश्मीर के खेती के तरीकों में आ रहे बदलावों पर भी ध्यान खींचा। जैसे धान के खेतों को बागवानी में बदलना। “बगीचों में भालुओं को पर्याप्त भोजन मिलता है और तेंदुओं को छिपने के लिए जगह मिलती है।”
मोंगाबे-इंडिया को उपलब्ध कराए गए आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, धान की खेती का रकबा 2012-2013 में 1,62,309 हेक्टेयर से घटकर 2021-2022 में 1,34,067 हेक्टेयर रह गया। साल 1975 में बागवानी का क्षेत्रफल 82,486 हेक्टेयर था जो 2021 में बढ़कर 3,30,956 हेक्टेयर हो गया।
वन्यजीव विभाग को बेहतर बनाने का तरीका?
रसूल ने दावा किया कि वन्यजीव विभाग मानव-वन्यजीव संघर्ष की बढ़ती घटनाओं से निपटने के लिए वैज्ञानिक उपाय नहीं कर रहा है। वह कहते हैं, “हमें संघर्ष को प्रबंधित करने के तरीके खोजने होंगे। हमारे वन्यजीव विभाग को हमारे गुज्जर समुदाय से सीखना चाहिए जो बिना मौत के वन्यजीवों के साथ संघर्ष का प्रबंधन करते हैं।”
इस स्थिति से निपटने के लिए विभाग के भीतर कमियों के बारे में पूछे जाने पर, क्षेत्रीय वन्यजीव वार्डन वाहुले ने कहा कि विभाग ने इन संघर्षों को कम करने के लिए कई उपाय लागू किए हैं।
उन्होंने मोंगाबे-इंडिया को बताया, “हम चौबीसों घंटे नियंत्रण कक्ष चलाते हैं, जानवरों को शांत करने और पकड़ने के लिए जरूरी उपकरण रखते हैं और लोगों को शिक्षित करने के लिए जागरूकता अभियान चलाते हैं। इसके अलावा, तेंदुए के घटते आवासों को कम करने के लिए वृक्षारोपण के जरिए आवास बहाली जैसे लंबे समय के उपाय चल रहे हैं। हम स्थिति को वैज्ञानिक तरीके से संभालने के लिए प्रतिबद्ध हैं और बाहरी विशेषज्ञों को लाकर अपने फील्ड स्टाफ के कौशल बढ़ा रहे हैं। वन्यजीव विभाग नियमित रूप से मानव-जानवर संघर्ष से संबंधित उपकरणों को बेहत करता है। साथ ही, यह पक्का करता है कि संघर्ष को खत्म करने वाली टीमें पर्याप्त रूप से सुरक्षात्मक गियर से लैस हैं।”
यह पूछे जाने पर कि स्थिति को संभालने के लिए क्या किया जाना चाहिए, मीर ने कहा कि हालांकि मानव-वन्यजीव संघर्ष को पूरी तरह खत्म करना संभव नहीं हो सकता है, लेकिन इसे कम किया जा सकता है, ताकि नुकसान से बचा जा सके।
उन्होंने इस तरह के संघर्ष के मूल कारण को समझने के लिए व्यापक दृष्टिकोण की अहमितय पर जोर दिया। उन्होंने कहा, “कश्मीर में इंसान-वन्यजीव संघर्ष के बदलते स्वरूप को समझने के लिए और ज्यादा अध्ययन किए जाने की जरूरत है। यहां किसान धान के खेतों को बगीचों में बदल रहे हैं, जहां जंगली जानवरों को सुरक्षित आशियाना मिलता है। इसलिए, यहां भूमि के इस्तेमाल में बदलाव से बचने की जरूरत है। समस्या के समाधान के लिए एकीकृत दृष्टिकोण भी चाहिए। कुछ जरूरी उपायों में मांसाहारी वन्यजीवों से बचने के लिए समुदाय-आधारित उपायों को लागू करना, तेंदुओं के व्यवहार के बारे में स्थानीय लोगों में जागरूकता बढ़ाना, आवासीय क्षेत्रों और वन्यजीव आवासों के बीच बफर जोन बनाना, वन्यजीव निवारकों के इस्तेमाल जैसे गैर-घातक तरीकों के उपयोग को प्रोत्साहित करना शामिल है। संघर्ष वाले क्षेत्रों में ग्राम प्रतिक्रिया टीमों का गठन, आवारा जानवरों की आबादी को नियंत्रित करना और कचरे के उचित निपटान को प्रोत्साहित करना शामिल है।”
मीर का कहना है कि विभाग के पास मानव-वन्यजीव संघर्ष से जुड़ी स्थितियों से असरदार ढंग से निपटने करने के लिए जरूरी अत्याधुनिक उपकरणों और सुरक्षा गियर का अभाव है। उन्होंने कहा, “कर्मचारियों की क्षमता बढ़ाई जानी चाहिए और किसी भी आपात स्थिति से निपटने के लिए अच्छी तरह से प्रशिक्षित और बेहतर कर्मचारियों की क्विक रिएक्शन टीमें बनाई जानी चाहिए।”
डॉ. गाजी ने वन्यजीवों के बारे में लोगों के बीच जागरूकता बढ़ाने की अहमियत पर जोर दिया। उन्होंने कहा, “हमें जानवरों को भड़काना या उन पर हमला नहीं करना चाहिए। बच्चों और बुजुर्गों को सुबह और शाम के समय बाहर, खासकर जंगलों के पास जाने से बचना चाहिए। कुत्तों को आकर्षित होने से रोकने के लिए कचरे का उचित प्रबंधन जरूरी है, जो तेंदुओं के लिए आसान शिकार हैं। इसके अलावा, जानवरों के छिपने की संभावित जगहों के रूप में छोटे गए भूखंडों और संपत्तियों की निगरानी की जानी चाहिए। सीसीटीवी कैमरे लगाना और स्ट्रीट लाइटें ठीक से काम करें यह भी पक्का करना चाहिए।”
इसके अलावा, उन्होंने वन्यजीव विभाग में कुछ कमियों का भी जिक्र किया जिन पर ध्यान देने की जरूरत है। “कर्मचारियों की कमी है। मैंने हमारी कमियों को उजागर करते हुए सरकार को व्यापक रिपोर्ट सौंपी है।”
मध्य कश्मीर के गांदरबल जिले में एक तेंदुए को लोगों द्वारा पीटे जाने की हालिया घटना के बारे में उन्होंने कहा, “तेंदुए को रीढ़ की हड्डी में चोट और मानसिक आघात लगा। हमने तेंदुए का बेहतरीन इलाज किया है।”
उन्होंने लोगों से जानवरों को बचाते समय वन्यजीव अधिकारियों को अपने कर्तव्यों का पालन करने की अनुमति देने की अपील की। उन्होंने कहा, “ऐसी घटनाएं हुई हैं जहां हमारे कर्मचारियों पर लोगों ने हमला किया। जानवर और भीड़ दोनों से निपटना चुनौतीपूर्ण हो जाता है। जब जानवर भीड़ से उत्तेजित हो जाते हैं, तो एनेस्थीसिया असरदार तरीके से काम नहीं कर पाता है।”
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बैनर तस्वीर: कश्मीर का दाचीगाम राष्ट्रीय उद्यान कई वन्यजीवों का घर है। तस्वीर – मुदस्सिर कुलू।