- महाराष्ट्र में विवादों से घिरी वधावन बंदरगाह परियोजना के लिए केंद्रीय कैबिनेट की मंजूरी का इंतजार हो रहा है। इस बीच, मछुआरा समुदायों और समुद्री शोधकर्ताओं का कहना है कि इस परियोजना का क्षेत्र में जैव विविधता और समुद्री जीवन पर दुष्प्रभाव पड़ेगा।
- पर्यावरण मंत्रालय ने फरवरी में परियोजना के लिए पर्यावरण मंजूरी दे दी है। इसके बाद बंदरगाह अधिकारियों को उम्मीद है कि अक्टूबर से निर्माण शुरू हो जाएगा।
- अधिकारियों का यह भी कहना है कि बंदरगाह बनने से रोजगार के अवसर पैदा होंगे और मछुआरों को पर्याप्त मुआवजा दिया जाएगा। लेकिन सामाजिक कार्यकर्ता और मछुआरों के गांवों का एक समूह इस परियोजना का विरोध कर रहा है।
- यह क्षेत्र घोल या ब्लैकस्पॉटेड क्रोकर मछली के लिए मशहूर है जिसे ‘समुद्री सोना’ कहा जाता है। यह प्रजाति अपने औषधीय महत्व के लिए बेशकीमती है और आईयूसीएन के रेड लिस्ट में ‘खतरे के करीब’ के रूप में सूचीबद्ध है। यहां समुद्री खरगोश, पोर्सेलेन केकड़ा, तारामीन (स्टारफिश), मुलायम मूंगे, झींगा मछलियां और भी बहुत कुछ पाए जाते हैं।
महाराष्ट्र का वधावन गांव दहानू तालुका में स्थित है। यहां अंतर-ज्वारीय क्षेत्र पांच वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है। यह क्षेत्र हरे समुद्री शैवाल या उलवा और नरम मैरून और नीले कोरल के टुकड़ों और घनी चट्टानों और छोटे पुलों से घिरा हुआ है। यहां मैंग्रोव भी समुद्र तट के साथ सीमा बनाते हैं। साल 2022 में शोधकर्ताओं ने प्रस्तावित बंदरगाह क्षेत्र के आसपास 98.3 एकड़ मैंग्रोव की पहचान की, जिसे तटीय विनियमन क्षेत्र (सीआरजेड) के रूप में वर्गीकृत किया गया है। इसे पारिस्थितिकी के तौर पर संवेदनशील बताया गया है। मैंग्रोव के ठीक बगल में एक तीर्थ स्थान है, जिसे कुछ स्तंभों से चिन्हित किया गया है और यहां समारोह आयोजित किए जाते हैं। जिन लोगों का अंतिम संस्कार किया जाता है, उनकी राख यहीं बिखेरी जाती है।
वधावन के तट से दूर शंकोधर पॉइंट पर एक द्वीप भी है। यह जगह बार्नाकल, मोलस्क, हाइड्राइड और कोरल सहित अलग-अलग प्रकार के जीवों के प्रजनन स्थल के रूप में भी काम करता है। राष्ट्रीय समुद्र विज्ञान संस्थान की ओर से किए गए सर्वेक्षण के दौरान कुछ डॉल्फ़िन भी देखी गईं। यहां जीवों की कम से कम 12 प्रजातियों का दस्तावेजीकरण किया गया था। वन्यजीव संरक्षण अधिनियम (1972) की अनुसूची I के तहत सूचीबद्ध सॉलिटरी कप कोरल (पैरासायथस प्रोफंडस) की मौजूदगी भी यहां देखी गई थी।
अंतर-ज्वारीय क्षेत्र मछली पकड़ने के पारंपरिक तरीकों का समर्थन करता है। पालघर जिले के वधावन से सटे गांव वरोर के परेश विन्दे के अनुसार, यहां मछुआरे हर रोज तीन सौ से चार सौ रुपये कमा लेते हैं। सोने के आभूषण बनाने में मदद करने वाला गोल्ड-डाई भी यहां बनता है। यह इस क्षेत्र का एक और महत्वपूर्ण व्यवसाय है और इससे मछुआरों की आय बढ़ती है।
समुद्री शोधकर्ता भूषण भोईर समुद्र तट पर छोटे खजाने की ओर इशारा करते हैं। इनमें समुद्री खरगोश, पोर्सेलेन केकड़ा, तारामीन (स्टारफिश), मुलायम मूंगे के साथ ही उल्वा के बड़े विस्तार और मूंगों के टूटे हुए टुकड़े शामिल हैं। समुद्र की ओर गहराई में, उन्हें रिफॉर्मिंग मूंगा या गोनियोपोरा के लाल रंग के बाहर वाले हिस्से के साथ एक छोटी–सी चोटी मिलती है। यह पानी घोल या ब्लैकस्पॉटेड क्रॉकर मछली के लिए भी मशहूर है, जो पूर्वी एशिया में अपने औषधीय और अन्य गुणों के लिए बेशकीमती है। इसे ‘समुद्री सोना‘ भी कहा जाता है।
समुद्री बंदरगाह को मंजूरी
इस साल फरवरी में, पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (एमओईएफसीसी) ने बंदरगाह परियोजना के लिए पर्यावरण मंजूरी (ईसी) दी। यह बंदरगाह शंकोधर से आगे समुद्र तट से 6.5 किलोमीटर दूर नए अपतटीय स्थल पर प्रस्तावित है। यह ऐसी जगह है जो पहले समुद्र के अंदर थी। इसे केंद्रीय कैबिनेट की भी मंजूरी मिलने की उम्मीद है। बंदरगाह के अधिकारियों ने अक्टूबर से निर्माण का काम शुरू होने की उम्मीद जताई है।
प्रस्तावित बंदरगाह वधावन पोर्ट प्राइवेट लिमिटेड द्वारा बनाया जाना है। यह जवाहरलाल नेहरू पोर्ट ट्रस्ट (जेएनपीटी) और महाराष्ट्र मैरीटाइम बोर्ड (एमएमबी) के बीच साझा उद्यम है। इस पर 76,220 करोड़ रुपये खर्च होने की उम्मीद है।
परियोजना का कुल क्षेत्र 17,471 हेक्टेयर में है। यह मुंबई के आकार का लगभग एक-चौथाई है। जिसमें से 16,900 हेक्टेयर बंदरगाह की सीमा है। वहीं बंदरगाह तक रेल और सड़क से जोड़ने के लिए 571 हेक्टेयर जमीन अधिग्रहित की जाएगी। जमीन को ठीक करने के लिए दमन तट से 50 किलोमीटर दूर स्थित समुद्री गड्ढे से लगभग 200 मिलियन क्यूबिक मीटर रेत (एमसीयूएम) का उत्खनन किया जाएगा। पालघर तालुका में खदानों से पत्थरों और दमन के तट पर रेत से क्षेत्र को भरकर इस पर बंदरगाह बनाया जाएगा।
बंदरगाह के लिए पर्यावरण प्रभाव आकलन (ईआईए) रिपोर्ट में बताया गया है कि इस परियोजना का निर्माण इस तरह से किया जाना प्रस्तावित है। इसे मुताबिक इसका निर्माण इस तरह किया जाएगा कि इसका पर्यावरण, मछली पालन गतिविधियों, मैंग्रोव और स्थानीय लोगों पर बहुत कम असर पड़ेगा। हालांकि, मछुआरा समुदाय भूमि, आजीविका और पर्यावरण पर व्यापक दुष्प्रभाव की आशंका जताते हुए इस दावे का विरोध करता है। आम चुनाव शुरू होने के साथ, मतदान का बहिष्कार करने और प्रचार करने वाले नेताओं को प्रवेश देने से इनकार करने के फैसले के साथ हाल के दिनों में बंदरगाह का विरोध तेज हो गया है। क्षेत्र में मछली पकड़ने वाले समुदायों और किसानों ने बंदरगाह के खिलाफ विरोध-प्रदर्शन भी किया है। वधावन और वरोर में बंदरगाह के विरोध के संकेत देखे जा सकते हैं।
इस बीच, प्रधानमंत्री कार्यालय ने परियोजना के लिए हाइब्रिड एन्युटी मॉडल (एचएएम) का प्रस्ताव रखा। इसने केंद्रीय कैबिनेट की मंजूरी को रोक दिया है। मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, एचएएम मॉडल में कोई निजी ऑपरेटर परियोजना की 60% तक की लागत का भुगतान करेगा और इस आधार पर परियोजना को आगे बढ़ाया जाएगा।
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जेएनपीटी के अध्यक्ष उन्मेश शरद वाघ ने मोंगाबे इंडिया को बताया कि समुद्र के बढ़ते स्तर और जलवायु परिवर्तन के असर को ध्यान में रखते हुए सभी जरूरी अध्ययन किए गए हैं। उन्होंने कहा कि बंदरगाह “उद्योग नहीं है और यह अपने यहां आने वाले जहाजों को सेवा देता है।” वाघ ने कहा कि संचयी प्रभाव मूल्यांकन से पता चलता है कि बंदरगाह से प्रदूषण नहीं बढ़ेगा, क्योंकि यह ‘ग्रीन नॉर्म्स और स्मार्ट पोर्ट‘ के तहत काम करेगा, जिसमें ज्यादातर संचालन बिजली से होगा। चूंकि, यह कंटेनर बंदरगाह है, इसलिए कार्गो की खुली ढुलाई नहीं की जाएगी। तट और बंदरगाह के बुनियादी ढांचे पर जलवायु परिवर्तन के असर के संबंध में वाघ ने कहा कि इस पर पर्यावरण मंत्रालय की ओर से विचार-विमर्श किया गया है। वाघ ने स्पष्ट किया, “बंदरगाह को जलवायु परिवर्तन के असर को ध्यान में रखते हुए डिजाइन किया गया है और बर्थ स्तर के डिजाइन में लगभग 0.2 मीटर बढ़ते पानी की ऊंचाई को ध्यान में रखा गया है।” उन्होंने कहा कि बंदरगाह के पहले चरण का निर्माण अक्टूबर 2024 से शुरू होगा, जबकि दूसरे चरण का निर्माण 2030 से शुरू होने की उम्मीद है।
परियोजना से जुड़े दावों में कई झोल
सामाजिक कार्यकर्ताओं ने एक अप्रैल को पर्यावरणीय मंजूरी को अदालत में चुनौती देने की योजना बनाई थी। हालांकि, अखिल महाराष्ट्र मच्छीमार कृति समिति के अध्यक्ष देवेन्द्र टंडेल ने सूचना छुपाने के आधार पर पर्यावरणीय मंजूरी को रद्द करने की मांग की थी। समिति महाराष्ट्र के मछुआरों का प्रतिनिधित्व करती है। दलील दी गई कि मंजूरी में कहा गया है कि प्रस्तावित बंदरगाह सीमा क्षेत्र में कोई मूंगा नहीं था, जो स्थानीय मछुआरों की टिप्पणियों और भोईर के दस्तावेजीकरण के विपरीत था। इसके अलावा, पर्यावरण प्रभाव आकलन (ईआईए) की दलील है कि आईयूसीएन लाल सूची के तहत सूचीबद्ध कोई प्रजाति नहीं है, जबकि असल में, घोल को ‘खतरे के करीब‘ के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
इसके अलावा, टंडेल बताते हैं कि परियोजना का दायरा संदर्भ की शर्तों में बताई गई शर्तों से अलग था। वहीं जेएनपीटी ने दलील दी कि कोई भूमि अधिग्रहण नहीं हुआ है, जबकि उसने पालघर में 1,176 हेक्टेयर वन भूमि के उत्खनन का प्रस्ताव रखा है। टंडेल ने बंदरगाह के प्रस्तावित स्थल से 12 किलोमीटर दूर स्थित तारापुर परमाणु ऊर्जा स्टेशन (टीएपीएस) पर तेल रिसाव और खतरों के प्रभाव पर भारतीय राष्ट्रीय महासागर सूचना सेवा केंद्र (आईएनसीओआईएस) की 2019 की रिपोर्ट का भी हवाला दिया। इसमें कहा गया है कि “हाइपोथेटिकल स्पिल लोकेशन (एचएसएल) से गिरा हुआ तेल 18 से 36 घंटों के भीतर समाहित किया जाना चाहिए, ताकि टीएपीएस के (समुद्री पानी) इनटेक और आउटफॉल क्षेत्र प्रभावित न हों।”
इस सावधानी के बावजूद, बंदरगाह को जुलाई 2019 में परमाणु ऊर्जा विभाग से ‘अनापत्ति प्रमाणपत्र‘ प्राप्त हुआ और 19 फरवरी, 2020 को भारतीय बंदरगाह कानून के तहत मुख्य बंदरगाह घोषित किया गया।
वाघ ने कहा कि आईएनसीओआईएस (INCOIS) रिपोर्ट के कुछ पहलुओं को संदर्भ से बाहर कर दिया गया था और आपदा न्यूनीकरण की चिंताएं आपदा प्रबंधन योजना का हिस्सा थीं और बंदरगाह तटरक्षक बल [जो तेल रिसाव को संभालता है] के लिए समर्पित बर्थ और उपकरण प्रदान करेगा।
मार्च 2024 में जवाहरलाल नेहरू पोर्ट अथॉरिटी (जेएनपीए) ने 1,176 हेक्टेयर में फैले ब्रेकवाटर, सड़क और रेल के कामों के लिए पालघर तालुका में वन भूमि पर सात स्थानों (ज्यादातर पहाड़ियां) पर 73 मिलियन टन पत्थर निकालने के लिए पर्यावरण मंत्रालय को एक आवेदन दिया था। जबकि ईआईए का अनुमान है कि 8,000 ट्रक दो साल तक हर दिन निर्माण के लिए बंदरगाह स्थल तक पत्थर लाएंगे, यह उत्खनन को “सामाजिक रूप से स्वीकार्य, पर्यावरण की दृष्टि से ठीक और तकनीकी रूप से व्यवहार्य” बताता है। वाघ ने बताया कि पत्थरों की खुदाई के लिए जरूरी क्षेत्र सिर्फ 60 हेक्टेयर है और क्षेत्र के भू-भौतिकीय सर्वेक्षण के बाद इसके हिसाब से खनन की योजना बनाई जाएगी।
इसके अलावा, सड़क और रेल कनेक्टिविटी के लिए 30 फीसदी वन भूमि के साथ 571 हेक्टेयर जमीन की जरूरत होगी। वधावन बंदरगाह के लिए किए गए सामाजिक प्रभाव आकलन (एसआईए) के अनुसार, दहानू तालुका के 10 गांवों और पालघर तालुका के 11 गांवों से बड़े पैमाने पर 201.15 हेक्टेयर खेती की भूमि का अधिग्रहण किया जाएगा। साथ ही करीब 10,179 पेड़ काटे जाएंगे।
कानूनों को कमजोर करना
पालघर जिले में चार प्रमुख परियोजनाएं हैं – बुलेट ट्रेन, वडोदरा-मुंबई एक्सप्रेस-वे, वेस्टर्न डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर और वधावन बंदरगाह। इनके लिए अब तक 150 से ज्यादा गांवों से लगभग 3,000 हेक्टेयर भूमि का अधिग्रहण किया जा चुका है। सामाजिक कार्यकर्ताओं की ओर से की गई संचयी प्रभाव मूल्यांकन की मांग बेकार गई है। कंजर्वेशन ट्रस्ट के कार्यकारी ट्रस्टी देबी गोयनका ने ईआईए की अपनी आलोचना में कहा है कि प्रस्तावित बंदरगाह दहानू तालुका के लिए मंजूर किए गए मास्टर प्लान/क्षेत्रीय योजना के साथ-साथ 31 अक्टूबर, 1996 के सुप्रीम कोर्ट के आदेश का उल्लंघन था, जो भूमि के इस्तेमाल में किसी भी बदलाव पर रोक लगाता है।
गोयनका इस महत्वपूर्ण बात की ओर इशारा करते हैं कि अंतरिक्ष अनुप्रयोग केंद्र (इसरो) और तटीय कटाव निदेशालय द्वारा तैयार शोरलाइन चेंज एटलस ऑफ इंडिया के दूसरे खंड महाराष्ट्र और गोवा 2014 से पता चलता है कि इस तटीय क्षेत्र में कटाव हो रहा है। इसलिए, सीआरजेड के अनुसार प्रस्तावित बंदरगाह का निर्माण इस स्थान पर नहीं किया जा सकता है।
कई सरकारी फैसलों ने दहानू तालुका को पारिस्थितिकी रूप से नाजुक क्षेत्र के रूप में दी गई सुरक्षा को खत्म कर दिया है। इसमें यह घोषणा भी शामिल है कि बंदरगाह प्रदूषणकारी उद्योगों की ‘लाल‘ श्रेणी के तहत उद्योग नहीं है। शिपिंग मंत्रालय के एक सवाल के जवाब में यह स्पष्ट करने के लिए कि क्या कोई बंदरगाह पर्यावरण के लिए हानिकारक श्रेणी में आता है, पर्यावरण मंत्रालय ने आठ जून, 2020 को कहा कि केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के निर्देशों के अनुसार, कोई बंदरगाह अब लाल श्रेणी में आने वाला उद्योग नहीं है। हालांकि, दुनिया भर में बंदरगाहों को ‘वैश्विक वायु प्रदूषण का अहम स्रोत‘ माना जाता है। लेकिन भारत में बंदरगाह, हार्बर, जेटी संचालन को अब गैर-औद्योगिक संचालन के रूप में सूचीबद्ध किया गया है और लाल श्रेणी से बाहर रखा गया है।
दहानु तालुका पर्यावरण संरक्षण प्राधिकरण (डीटीईपीए) में लंबे वक्त से काम कर रहे तीन स्वतंत्र विशेषज्ञों को भी हटा दिया गया। इन्होंने वधावन बंदरगाह के खिलाफ अपनी राय दी थी और 2023 में ईआईए और अन्य रिपोर्टों की कई कमियों के लिए आलोचना की थी। इसके बाद, डीटीईपीए ने 31 जुलाई, 2023 को लंबे-चौड़े आदेश में बंदरगाह को मंजूरी दे दी। इससे पहले 1998 में डीटीईपीए ने ऑस्ट्रेलियाई कंपनी पी एंड ओ को वधावन में बंदरगाह बनाने के प्रस्ताव को मंजूरी नहीं दी थी। बंदरगाह के लिए 2023 में मिली डीटीईपीए की मंजूरी को कंजर्वेशन एक्शन ट्रस्ट के साथ-साथ अन्य संगठनों ने बॉम्बे उच्च न्यायालय में चुनौती दी है। 18 अप्रैल को, अदालत ने डीटीईपीए के आदेश को बरकरार रखा और इस बात से सहमति जताई कि प्राधिकरण ने “सभी सम्बंधित पहलुओं को ध्यान में रखा है”।
19 जनवरी, 2024 को मछुआरों के गावों और बंदरगाह के आस-पास के निवासियों ने महाराष्ट्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (एमपीसीबी) की ओर से आयोजित सार्वजनिक सुनवाई में हिस्सा लिया। परियोजना से संबंधित दस्तावेज मराठी में उपलब्ध नहीं कराए जाने के चलते सुनवाई रद्द करने की मांग हुई। इस बीच, एमपीसीबी साइट पर अपलोड किए गए सुनवाई के विवरण के अनुसार, 51,991 आपत्तियां और सुझाव आए। वाघ ने दलील दी कि ज्यादातर स्थानीय लोगों ने परियोजना का समर्थन किया, जैसा कि सार्वजनिक सुनवाई के लिए प्रस्तुत प्रतिक्रियाओं से स्पष्ट था और सभी सम्बंधित दस्तावेज और रिपोर्ट प्रभावित ग्राम पंचायतों को प्रस्तुत की गई थीं।
काश्तकारी संगठन के ब्रायन लोबो ने बताया कि पर्यावरण से जुड़ी संदर्भ की शर्तों के तहत सभी अध्ययन नहीं हुए थे। उन्होंने कहा कि रेत स्रोत स्थल यानी दमन और बंदरगाह पुनर्ग्रहण क्षेत्र से संबंधित अध्ययन अधूरे थे, क्योंकि स्तनधारियों और उनकी गतिविधियों और मछली इकट्ठा करने के अध्ययन अधूरे थे। हालांकि, ईआईए रिपोर्ट ग्राम पंचायतों को उपलब्ध कराई गई थी, लेकिन इसे मुंबई से पालघर तक 56 मछुआरों की समितियों और संघों को नहीं भेजा गया था। ऐसी चिंताएं थीं कि इतनी बड़ी मात्रा में भूमि भराव से समुद्र का पानी बढ़ जाएगा और गांवों में बाढ़ आ जाएगी।
जैव विविधता, आजीविका और जलवायु परिवर्तन पर असर
टंडेल ने कहा कि वधावन का प्राकृतिक बंदरगाह घोल और झींगा मछली, सीप और मूंगा की कई प्रजातियों का स्थान है, जिनके प्रजनन पर असर पड़ेगा। उन्होंने कहा कि पालघर से वसई तक मछली पकड़ने वाली 3,000 नौकाएं पंजीकृत हैं, जो इतने सारे लोगों को रोजगार देती हैं। छह गांवों धक्ति दहानू, दहानू, चिनचानी, घिवली, गुंगवाड़ा और धुमकेट में 5,333 परिवार मछली पकड़ने पर निर्भर हैं, जबकि बाकी दस गांवों में 7,525 मछुआरे हैं। हालांकि, लगभग 3,537 लोग मछली पकड़ने में शामिल थे, 7,580 सहयोगी कर्मचारी और लगभग 6,500 मछुआरे महिलाएं थीं जो मछली पकड़ने के बाद उनकी छंटाई और बिक्री में शामिल थी।
मछलियों के बारे में सर्वेक्षण करने वाले सेंट्रल मरीन फिशरीज रिसर्च इंस्टीट्यूट (सीएमएफआरआई) ने मछली की 126 प्रजातियों की जानकारी दी। इनमें टेलोस्ट की 86 प्रजातियां, चार शार्क, 20 क्रस्टेशियंस और 13 मोलस्क शामिल हैं। उस क्षेत्र में जहां दमन से रेत निकाली जानी है, स्पैड नोज शार्क और अलग-अलग प्रकार की झींगा मछली, झींगा और शेलफिश के अलावा मछली की 16 प्रजातियां दर्ज की गईं। भोईर ने तर्क दिया कि दमन में अध्ययन के लिए जूलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया द्वारा सेकेंडरी डेटा का उपयोग किया गया था और जिस जगह पर दमन के तट पर लैंडफिल के लिए रेत निकाली जा रही थी, वह मशहूर बॉम्बिल या बॉम्बे डक मछली का प्रजनन स्थल था। उन्होंने कहा कि यह अजीब बात है कि घोल या धारा का कोई उल्लेख नहीं था, और सिर्फ बॉम्बे डक, झींगा, एंकोवी, पॉम्फ्रेट, सीर और लॉबस्टर जैसी आम मछलियों का जिक्र था।
दुष्प्रभावों को खत्म करने के उपायों का सुझाव देते हुए, सीएसआईआर-एनआईओ रिपोर्ट ने नतीजा निकाला है कि पुनर्ग्रहण और ड्रेजिंग के गंभीर असर हो सकते हैं जो तटीय जल विज्ञान को बदल सकते हैं। इससे लार्वा फैलाव, खाद्य संसाधनों की उपलब्धता और समुद्री स्तनधारियों का प्रवास प्रभावित हो सकता है। ड्रेजिंग के मामले में, क्षेत्र में मौजूद मछलियों को प्रभावित करने वाली गंदगी में बढ़ोतरी होगी, जिसमें व्यवहार परिवर्तन, कम बढ़ोतरी, सुनने की अस्थायी या स्थायी लाचारी, चारा खोजने के व्यवहार में कमी और शारीरिक परिवर्तन शामिल होंगे।
हालांकि, ईआईए ने नतीजा निकाला है कि प्रस्तावित बंदरगाह का पर्यावरण पर न्यूनतम असर पड़ेगा और एक मीटर रेत ड्रेजिंग से “अहम भौतिक प्रभाव पैदा होने” की उम्मीद नहीं है। इसके विपरीत, अन्य अध्ययनों से पता चलता है कि जहां समुद्र से भूमि फिर से प्राप्त की जाती है वहां समुद्री आवास स्थायी रूप से नष्ट हो जाते हैं और चीन में लगभग 51% तटीय आर्द्रभूमि भूमि पुनर्ग्रहण के चलते खत्म नष्ट हो गई हैं।
मछुआरे रामदास विन्दे ने कहा, “सरकार बंदरगाह के साथ इस क्षेत्र को विकसित करना चाहती है, लेकिन हम पहले ही विकसित हो चुके हैं। हमारा सोना-डाई और मछली पकड़ने का व्यवसाय फलता-फूलता है। हम बहुत सारे लोगों को रोजगार देते हैं। सरकार हमारा विकास करने के बजाय हमें खत्म कर रही है।” भले ही बंदरगाह को विकसित करने वाले समुदाय को भरोसा दिलाते हैं कि गांवों को विस्थापित नहीं किया जाएगा, विन्डे ने कहा कि उन्हें वहां से जाना होगा, क्योंकि इतने बड़े बंदरगाह के बगल में रहने से उनकी आजीविका छिन जाएगी और उन्हें डर है कि वे विस्थापित हो जाएंगे। विजय विन्दे ने कहा कि सरकार ने प्रभावित लोगों की संख्या भी कम आंकी है, क्योंकि प्रस्तावित बंदरगाह के आसपास के सात गांवों में 50,000 से ज्यादा लोग रहते हैं। पिछले साल 39 ग्राम पंचायतों ने बंदरगाह के खिलाफ प्रस्ताव पारित किया था और 2019 में आम चुनावों का क्षेत्र के कई लोगों ने बहिष्कार किया था।
समुद्र के स्तर में बढ़ोतरी का दस्तावेजीकरण के बावजूद, अरब सागर में मुंबई की 111 हेक्टेयर तटीय सड़क का भी पुनर्ग्रहण बेरोकटोक जारी है। आलोचकों ने पुनर्ग्रहण को ‘समुद्र हड़पने‘ के रूप में बताया है और उस परियोजना के लिए ईआईए में तटीय सड़क के प्रभाव को कम करके आंका है। इसके अलावा, 1998 के बाद से अरब सागर में चक्रवातों की संख्या में बढ़ोतरी देखी गई है।
परियोजना के विरोधियों का कहना है कि किसी बंदरगाह को गैर-खतरनाक या गैर-लाल श्रेणी उद्योग घोषित करने पर फिर से विचार करने की जरूरत है। हालांकि, जेएनपीटी की दलील है कि सभी जरूरी रिपोर्ट और अध्ययन किए गए थे और प्रभावित मछुआरों और अन्य निवासियों को पर्याप्त मुआवजा दिया जाएगा। इसके अलावा, बंदरगाह रोजगार प्रदान करेगा और क्षेत्र का विकास करेगा, ऐसा उनका कहना है।
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बैनर तस्वीर: वधावन तट से शैलफिश और मोलस्क इकट्ठा करती मछुआरिन। तस्वीर – मीना मेनन।