- भारत में एयर कंडीशनर या एसी का बाजार तेजी से बढ़ रहा है। खास बात यह है कि खरीददारों में 95% लोग पहली बार एसी खरीद रहे हैं। बिक्री का करीब दो-तिहाई हिस्सा छोटे शहरों से आ रहा है।
- मार्च से जून के बीच असहनीय गर्मी, लोगों के हाथ में खर्च करने के लिए ज्यादा पैसा, शहरीकरण की तेज होती रफ्तार और बेहतर होती तकनीक से भारत का एसी मार्केट दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ता हुआ मार्केट बन गया है।
- मौसम विभाग (आईएमडी) के एक अध्ययन में आशंका जताई गई है कि हिमालय और उत्तर-पूर्वी पहाड़ियों को छोड़कर भारत के ज्यादातर क्षेत्रों में इस सदी के आखिर तक लू की आवृत्ति दोगुनी से ज्यादा हो जाएगी। देश के अधिकतर हिस्सों में लू की अवधि बढ़कर 8 से 12 दिन होने की भी आशंका है।
- डॉक्टरों का कहना है कि तापमान 40 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा होने पर शरीर के भीतर प्रोटीन का फंक्शन बिगड़ने लगता है। इसलिए बहुत ज्यादा गर्मी में गर्मी से जुड़ी बीमारियों के अलावा डीहाइड्रेशन होने और प्रोटीन का फंक्शन बिगड़ने से दूसरी समस्याएं होने का भी खतरा रहता है।
चंदन कुमार रांची में रहते हैं। एक साल पहले ही वह परिवार के साथ दिल्ली से झारखंड की राजधानी में शिफ्ट हुए हैं। चंदन रांची के जिस नामकुम इलाके में रहते हैं, वह शहर की आपाधापी से थोड़ा दूर, हरा-भरा और शांत है। लेकिन, इस साल अप्रैल में रांची में कुछ दिनों तक पड़ी भीषण गर्मी ने उन्हें अपने फ्लैट में एयरकंडीशनर या एसी लगवाने पर मजबूर कर दिया। चंदन नहीं चाहते थे कि वो एसी लगवाएं, लेकिन भीषण लू को देखते हुए उन्हें अपना विचार बदलना पड़ा। चंदन ने मोंगाबे-हिन्दी को बताया, “वैसे तो दिल्ली के मुकाबले रांची का मौसम बहुत ज्यादा खुशनुमा है, लेकिन अप्रैल में चली लू के बाद मैंने एसी लगवा ही लिया। “
चंदन की तरह ही गोपाल को भी मई में एसी लगवाना पड़ा। गोपाल रांची के मोहराबादी इलाके में रहते हैं जो खुला-खुला और हरियाली से भरपूर है। रांची में ही जन्मे और पले-बढ़े गोपाल ने मोंगाबे-हिन्दी से कहा, “कुछ साल पहले तक रांची में तापमान सहन करने वाली सीमा में होता था। लेकिन अब गर्मी सहन करना मुश्किल होता जा रहा है। भीषण लू के चलते कई बार रात में नींद तक नहीं आती है। हारकर मुझे भी एसी लगवाना ही पड़ा।”
दरअसल, मई के आखिरी चार दिन रांची का अधिकतम तापमान 42 डिग्री सेल्सियस से ऊपर रहा जो सामान्य से 5 डिग्री अधिक था। इस दौरान पूरे राज्य में डाल्टनगंज का तापमान 47 डिग्री सेल्सियस या इससे ज्यादा रहा। स्थानीय अखबारों के मुताबिक मई के आखिरी दिनों में चली लू के चलते राज्य भर में करीब 27 लोगों की मौत हो गई।
वहीं, अप्रैल में रांची में 30 दिन में से 21 दिन अधिकतम तापमान सामान्य से ज्यादा रहा। यह बढ़ोतरी 0.5 डिग्री सेल्सियस से लेकर 3.4 डिग्री सेल्सियस तक रही। 30 अप्रैल को तापमान 40 डिग्री को पार कर गया। ऐसे में चारों तरफ पहाड़ियों से घिरे और पूर्वी भारत में अपने शानदार मौसम के लिए पहचाने जाने वाले रांची में लोगों को जीना मुहाल हो गया।

चंदन और गोपाल की तरह भारत में पहली बार एयरकंडीशनर लगवाने वालों की संख्या हैरान करने वाली है। एसी बनाने वाली कंपनी ब्लू स्टार के मैनेजिंग डायरेक्टर बी त्यागराजन की मानें तो एसी खरीदने वाले 95% लोग पहली बार ऐसा कर रहे हैं। इनमें भी 65% हिस्सा भारत के टियर 3, 4 और 5 शहरों से आ रहा है।
खबरों के मुताबिक मई में एयर कंडीशनर की बिक्री बढ़कर दोगुनी हो गई। हालत यहां तक आ पहुंची कि बड़े मैन्युफैक्चरर को इंस्टॉलेशन और इन्वेंट्री बनाए रखने के लिए मुश्किलों का सामना करना पड़ा। इस वजह से पिछले साल के मुकाबले इस साल बिक्री में 30 से 35 फीसदी का इजाफा होने का अनुमान है।
दरअसल, जलवायु परिवर्तन में तेजी के साथ ही भारत का एसी मार्केट भी गर्म हो गया है। सालाना आधार पर इसकी ग्रोथ रेट 15 फीसदी के आसापस बताई जा रही है। माना जा रहा है कि आगे बढ़ने की यह दर साल 2028 तक बनी रहेगी। पैनासोनिक इंडिया के बिजनेस हेड (एयर कंडीशनर ग्रुप) अभिषेक वर्मा के अनुसार, भारत में फिलहाल महज सात फीसदी घरों में ही एसी है। ऐसे में, हाथ में खर्च करने लायक पैसा, शहरीकरण की बढ़ती गति और बेहतर तकनीक जैसे चीजें मांग बढ़ा रहे हैं।

इस साल एसी मार्केट में ग्रोथ रेट 30-40 फीसदी रहने की उम्मीद है। जानकार कहते हैं कि 2011 के बाद एसी की बिक्री में पहली बार इतना बड़ा उछाल देखा गया है। दुनिया भर में भारत का एसी बाजार सबसे तेजी से आगे बढ़ रहा है। साथ ही गर्मी के सीजन के अलावा भी मांग बन रही है। अनुमान है कि 2040 से 2050 के बीच एसी के मामले में भारत चीन से आगे निकल जाएगा।
बढ़ती गर्मी और ज़रूरत बनता एयर कंडीशनर
दरअसल, एयर कंडीशनर की मांग में बेतहाशा बढ़ोतरी का सीधा संबंध मौसम में हो रहे बदलाव से है। भारत के ज्यादातर इलाकों में अब अप्रैल से जून के बीच असहनीय गर्मी पड़ने लगी है। दक्षिण के राज्यों में तो ये सिलसिला मार्च से ही शुरू हो जाता है।
जैसे, अगर हम नौ मई की बात करें, तो उस दिन भारत के सबसे गर्म शहरों में राजस्थान का फलौदी, पश्चिम उत्तर प्रदेश का झांसी, मध्य प्रदेश का शिवपुरी, गुजरात का सुरेंद्रनगर, मध्य महाराष्ट्र का मालेगांव और तेलंगाना का निजामाबाद शामिल थे। ये सभी शहर भारत के मध्यम और छोटे शहर हैं। साल 2011 की जनगणना के मुताबिक फलौदी की आबादी 50 हजार से भी कम थी। उस दिन इन सभी शहरों का तापमान 41.9 डिग्री सेल्सियस से लेकर 46.2 डिग्री सेल्सियस के बीच रहा।
इसी तरह, अगर 27 अप्रैल की बात की जाए, तो उस दिन पश्चिम बंगाल का कलाईकुंडा सबसे गर्म था। वहां का तापमान 45.8 डिग्री सेल्सियस था। इसके बाद आंध्र प्रदेश का नांदयाल, ओडिशा का आंगुल, पश्चिम बंगाल का आसनसोल और ओडिशा का भुवनेश्वर शामिल थे। इसी दिन देश के 112 शहर ऐसे भी थे, जहां तापमान 40 डिग्री से ऊपर था।
ऐसे में रांची जैसे शहरों में एसी के बढ़ते बाजार को समझने के लिए मोंगाबे-हिन्दी ने भारत रेफ़्रिजरेशन के संचालक शब्बीर से बात की। उन्होंने कहा, “एक साल में हमलोग लगभग 500 यूनिट बेच लेते हैं। 10 साल पहले ये आंकड़ा महज 150 से 200 के करीब था। वह कहते हैं कि पहले लोग शौकिया एसी लगाते थे और ऐसे परिवार हाई-क्लास वाले थे। लेकिन अब मिडिल क्लास भी एसी खरीद रहा है और इस क्लास के लिए मार्केटिंग करने की ज़रूरत भी अब नहीं रही। मध्यम वर्ग खुद आगे बढ़कर एसी खरीद रहा है।“ वो कहते हैं एसी अब ज़रूरत बन गई है और जो इसका खर्च उठा सकता है वह एसी लगा रहा है। शब्बीर एक रोचक ट्रेंड की ओर भी इशारा करते हैं। वो कहते हैं कि पहले रांची में बड़े-बड़े काउंटर नहीं थे। अब यहां कई बड़े-बड़े काउंटर हैं।

वहीं रांची में जालान इलेक्ट्रॉनिक्स के मालिक अभिषेक जालान कहते हैं कि एसी मार्केट में उछाल की वजह गर्मी बढ़ने के साथ-साथ उसका ज्यादा लंबे समय तक बने रहना भी है। वो कहते हैं, “अगर आप पावरफुल कूलर खरीदना चाहेंगे, तो उसकी कीमत 15 से 20 हजार रुपए है। तो लोगों को लगता है कि 10 से 12 हजार रुपया ज्यादा खर्च करने पर एसी ही आ जाएगा। हमारे यहां से पांच साल पहले जो परिवार कूलर लेकर गए थे, वे आज एसी लेकर जा रहे हैं।“
पिछले साल आई इंटरनेशनल एनर्जी एजेंसी की रिपोर्ट के मुताबिक साल 2010 के मुकाबले भारत में एसी का कवेरज तीन गुना हो गया है। अब ये संख्या हर 100 घरों पर 24 यूनिट है। इस वजह से, घरों को ठंडा रखने के लिए बिजली की मांग 2019 से 2022 के बीच 21 फीसदी बढ़ गई। यही नहीं, एसी का इस्तेमाल साल 2050 तक नौ गुना बढ़ जाएगा और इससे बिजली की खपत में भी इजाफा होगा।
मई में गर्मी का असर बिजली की मांग पर भी दिखा। मई में बिजली की खपत पिछले साल के इसी महीने के मुकाबले 15 फीसदी बढ़कर 156.31 अरब यूनिट पर पहुंच गई। इसकी वजह एसी और दूसरे कूलिंग अप्लाएंस को माना जा रहा है। वहीं, 30 मई को बिजली की मांग रिकॉर्ड 250 गीगावॉट से ज्यादा हो गई थी। माना जा रहा कि इस गर्मी में बिजली की पीक मांग 260 गीगावॉट पर पहुंच सकती है।
इंटरनेशनल एनर्जी एजेंसी के अनुसार मई और जून में औसत तापमान 24 डिग्री सेल्सियस में 1 डिग्री की बढ़ोतरी से बिजली की मांग दो फीसदी तक बढ़ जाती है। 2019 से 2023 के बीच जून में तापमान 32 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा रहने पर बिजली की औसत खपत में 28 फीसदी की बढ़ोतरी हुई। आज भारत में बिजली की 10% मांग घरों या ऑफिस स्पेस को ठंडा रखने के लिए होती है।

रिपोर्ट कहती है, “भारत में कई ऐसे समूह हैं जो तपती दुपहरी में भी घरों में नहीं रह सकते और उनके लिए एसी लक्जरी है। भारत की श्रम शक्ति का लगभग आधा खेती-बाड़ी, खनन और निर्माण जैसे सेक्टर में लगा हुआ है, जहां गर्मी से बचना मुश्किल है।“
तो ऐसे में काम-धंधे के लिए आदर्श तापमान क्या होना चाहिए? रांची में पल्स हॉस्पिटल में पल्मोनोलॉजिस्ट डॉ अत्री गंगोपाध्याय ने मोंगाबे-हिंदी को बताया कि यह इस आधार पर तय होता है कि आप कहां हैं। अगर आप कमरे में हैं, तो 27 डिग्री सेल्सियस तापमान सही है। वहीं, इंसान के शरीर का आदर्श औसत तापमान 35 से 37 डिग्री के बीच होता है। अगर तापमान 42 डिग्री तक चला जाता है, तो वह जानलेवा हो सकता है। जब पारा इससे ऊपर चला जाता है, तो मानव शरीर को नुकसान होना शुरू हो जाता है।
वहीं पटना में कंसल्टेंट फीजिशियन और इंडियन डॉक्टर्स फॉर पीस एंड डेवलपमेंट के अखिल भारतीय महासचिव डॉ शकील ने मोंगाबे-हिंदी से कहा है कि 40 डिग्री से ज्यादा का तापमान इंसानी शरीर के लिए हानिकारक है। उम्र बहुत ज्यादा होने या बहुत कम होने पर लू में हीट स्ट्रोक, डीहाइड्रेशन कुछ भी हो सकता है। वो कहते हैं, “लू का सबसे बड़ा दुष्प्रभाव यह है कि इसमें शरीर में पानी और नमक की कमी होने लगती है। इसमें बुजुर्गों की मस्तिष्क की नलियां फैलने का खतरा होता है और इससे ब्रेन हेमरेज हो सकता है।”
मौसम में बदलाव हुआ तेज
वैसे एसी की बढ़ती मांग में मौसम में तेजी से हो रहा बदलाव भी जिम्मेदार है। विश्व मौसम विज्ञान संगठन 2023 को अब तक का सबसे गर्म साल बता चुका है। आशंका जताई जा रही है कि अल-नीनो के चलते मौजूदा साल में ये रिकॉर्ड टूट जाएगा। भारत मौसम विज्ञान विभाग ने भी मई में देश के ज्यादातर हिस्सों में अधिकतम और न्यूतनम तापमान सामान्य से अधिक रहने की बात कही है। इससे पहले भी अप्रैल से जून के अपने अनुमान में विभाग ने तापमान सामान्य से अधिक रहने की बात कही थी। जबकि मार्च में देश में औसत अधिकतम तापमान तो सामान्य के करीब था, लेकिन न्यूनतम तापमान सामान्य से करीब आधा डिग्री ज्यादा था। यहीं नहीं, इस साल का अप्रैल अब तक का सबसे गर्म महीना रहा है।

वहीं विश्व मौसम विज्ञान संगठन की ओर से 23 अप्रैल को एशिया के जलवायु पर जारी रिपोर्ट में भयावह तस्वीर पेश की गई है। इसमें कहा गया है, “लंबी अवधि में मौसम को गर्म करने वाली प्रवृत्तियां तेज हो गई हैं। दुनिया के औसत के मुकाबले एशिया तेजी से गर्म हो रहा है। गर्म होने की प्रवृत्ति 1961-1990 की अवधि से दोगुनी हो गई हैं।”
आईएमडी, पुणे ने भी पिछले साल लू पर एक रिपोर्ट जारी की थी। आंकड़ों का विश्लेषण करने के बाद रिपोर्ट में कहा गया कि 1961 से 2020 के बीच भारतीय मौसम विज्ञान विभाग के अधिकतर स्टेशन मार्च से जून के बीच लू की बढ़ती प्रवृत्ति को दिखाते हैं। भारत के लू वाले क्षेत्रों में पिछले 30 सालों में लू की कुल अवधि लगभग 3 दिन बढ़ गई है। इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी) मॉडल अनुमानों से पता चलता है कि साल 2060 तक लू की अवधि बढ़कर 12-18 दिनों तक हो जाएगी जो अभी करीब दो से आठ दिन तक है।
इस अध्ययन में आशंका जताई गई है कि हिमालय और उत्तर-पूर्वी पहाड़ियों को छोड़कर भारत के ज्यादातर क्षेत्रों में इस सदी के आखिर तक लू की आवृत्ति दोगुनी से ज्यादा हो जाएगी। देश के अधिकतर हिस्सों में लू की अवधि 8-12 दिनों तक बढ़ने की भी उम्मीद है।
और पढ़ेंः हिल स्टेशन रांची में पानी के लिए क्यों मच रहा हाहाकार?
भारत मौसम विज्ञान विभाग के पूर्व महानिदेश लक्ष्मण राठौड़ ने मोंगाबे-हिन्दी को बताया कि 1999 से ही दुनिया भर में तापमान लगातार बढ़ रहा है। इसमें हवा से लेकर समुद्र तक का तापमान लगातार बढ़ता ही जा रहा है। इससे लू के साथ-साथ मौसम में अनिश्चितता बढ़ गई है। बंगाल की खाड़ी और अरब सागर लगातार हीटवेव की स्थिति में हैं। उन्होंने कहा कि हिमालय में भी ग्लेशियर पिघल रहे हैं और इसलिए वहां भी एक तरह से बढ़ता हुआ तापमान अपना असर दिखा रहा है।
डॉ अत्री कहते हैं, “हमारे शरीर के अंदर प्रोटीन कम तापमान में सुरक्षित रहता है और ज्यादा तापमान में खराब होने लगता है। प्रोटीन में जो रसायन हैं, उनका आपस में अरेंजमेंट या समन्वय महत्व रखता है। सामान्य तापमान में या ठंड में ये अरेंजमेंट सही तरीके से काम करता है, लेकिन गर्मी में ये अरेंजमेंट बिगड़ जाता है और इसका फंक्शन खराब हो जाता है।“ उनका कहना है कि कोई भी भीषण ठंड को बर्दाश्त कर सकता है, लेकिन भीषण गर्मी को बर्दाश्त करना संभव नहीं है। ऐसे में लू चलने पर लू से जुड़ी समस्याओं के अलावा प्रोटीन का फंक्शन बिगड़ जाता है और शरीर में पानी की कमी होने लगती है।”
बैनर तस्वीरः रांची के एक अस्पताल में लगे एयर कंडीशनर। तस्वीर – विशाल कुमार जैन/मोंगाबे