- तमिलनाडु के देवीपट्टिनम के पास समुद्री जल में हाल ही में तिलापिया मछली के देखे जाने के बाद से उनके रहन-सहन और बसेरा बनाने के तरीकों की पड़ताल शुरू हो गई है।
- पर्यवेक्षणों से मिली जानकरी के अनुसार यहां विभिन्न आकारों की मछलियां पाई गईं हैं। उन इलाकों में भी इन मछलियों की आबादी दिखी है जहां वे आमतौर पर नहीं पाई जाती थीं। ये मछलियां पाक खाड़ी के समुद्री जल में अपने आहार और प्रजनन व्यवहार को बदल रही हैं।
- कम रोग दर और उच्च प्रजनन क्षमता के चलते तिलापिया मछली को 1950 के दशक से भारत में कृत्रिम रूप से पाला जाता रहा है। इसका आर्थिक महत्व भी काफी ज्यादा है।
तिलापिया मछली पाक खाड़ी के तटीय जल में अपने लिए नई जगह बना रही हैं। वो न सिर्फ इस नए क्षेत्र में बस रही हैं बल्कि प्रजनन भी कर रही हैं। इसका अंदाजा यहां मिली विभिन्न आकारों की मछलियां से लगाया जा सकता है जिनमें युवा और बड़ी मछलियां शामिल हैं। इन मछलियों की आबादी उन क्षेत्रों में भी मिली हैं जहां वे आमतौर पर नहीं पाई जाती थीं।
मदुरै कामराज यूनिवर्सिटी के समुद्री और तटीय अध्ययन विभाग के मुथुसामी आनंद कहते हैं, “इस खोज ने उनकी जनसंख्या की विभिन्न विशेषताओं का अध्ययन करने के लिए प्रेरित किया है।” आनंद तमिलनाडु के पाक खाड़ी क्षेत्र में जुलाई 2023 में किए गए अध्ययन के प्रमुख लेखक भी है। यह अध्ययन तेजी से अपनी आबादी बढ़ाने वाली तिलापिया मछली के परिवेश बदलने की क्षमता और उनके जीन में होने वाले परिवर्तन के बारे में बताता है। आनंद ने कहा, इस अध्ययन में पाक खाड़ी क्षेत्र में समुद्री जल में प्राकृतिक रूप से प्रवेश करने वाली मछलियों की उपस्थिति पर प्रकाश डालने के लिए उनकी बढ़ती संख्या, उनके आहार (GaSI), नर और मादा का अनुपात, आकार में भिन्नता और परिपक्वता स्तर का विश्लेषण किया गया है।
तिलापिया मछली, जो पहले सिर्फ मछली पालन के लिए मीठे जलाशयों में पाई जाती थी, अब समुद्र में भी फैल रही है। इससे समुद्री जीवन और मछली पालन व्यवसाय को नुकसान हो सकता है। इस स्थिति को समझने और इसका समाधान खोजने के लिए जरूरी हो जाता है कि इनके लिए अध्ययन और प्रबंधन योजनाएं बनाई जाएं।
अनुकूलनशीलता, बढ़ती आबादी और आर्थिक महत्व
तिलापिया में उष्णकटिबंधीय मीठे पानी की मछली की कई प्रजातियां शामिल हैं जो सिक्लिडे परिवार से संबंधित हैं। ये मूल रूप से अफ्रीका और दक्षिण-पश्चिमी मध्य पूर्व से हैं। इनमें से कुछ प्रजातियों की कम रोग दर और उच्च प्रजनन क्षमता के चलते मत्स्य पालन उद्योग में इनकी काफी मांग है। उदाहरण के लिए ‘मोजाम्बिक तिलापिया’ को लें, ये 1950 के दशक में भारत में मत्स्य पालन के लिए शुरू की गई पहली प्रजातियों में से एक थी। इसकी खासियत इससे मिलने वाला प्रोटीन है। तब से लेकर आज तक, अलग अलग तरह की कई तिलापिया प्रजातियों का औद्योगिक स्तर पर पालन किया जाता रहा है। वर्ल्ड फिश और भारतीय उद्योग परिसंघ की ओर से किए गए एक संयुक्त अध्ययन के मुताबिक, 2022 में कुल तिलापिया उत्पादन लगभग 70,000 टन होने का अनुमान है। इसमें से मत्स्य पालन से 30,000 टन का उत्पादन है। भारत ने 2027 तक 0.766 मिलियन मीट्रिक टन तिलापिया उत्पादन का महत्वाकांक्षी लक्ष्य भी निर्धारित किया है।
आनंद कहते हैं, “ये मछलियां प्रदूषण, तापमान में उतार-चढ़ाव और पानी में कम ऑक्सीजन के स्तर को बर्दाश्त कर सकती हैं।” यह अनुकूलनशीलता तिलापिया को तमिलनाडु के खारे पानी से लेकर हिमालय के मीठे पानी वाले क्षेत्रों तक पूरे भारत में मछली पालन के लिए आदर्श बनाती है।
इन लक्षणों का मतलब यह भी है कि वे नए आवासों में आसानी से अपनी आबादी बढ़ा सकती हैं। मत्स्य पालन के बाड़ों से अनजाने में छोड़ा जाना और वहां से बचकर निकल जाना, देश के मीठे पानी के जलाशयो, नदियों, झीलों और बैकवाटर में उनके व्यापक प्रसार का कारण बना है। तिलापिया गंगा और यमुना नदियों जैसे जलमार्गों में भी काफी बड़ी संख्या में पाई जाती हैं, यहां तक कि जैव विविधता से समृद्ध अंडमान द्वीप समूह और पश्चिमी घाट में भी इन्हें देखा जा सकता है।
लखनऊ के आईसीएआर-नेशनल ब्यूरो ऑफ फिश जेनेटिक रिसोर्सेज के एमेरिटस साइंटिस्ट ए.के. सिंह कहते हैं, “अधिकांश आक्रामक प्रजातियां प्लास्टिसिटी यानी अपने आस-पास के वातावरण के अनुसार खुद को ढालने की क्षमता रखती है और बदलती जलवायु परिस्थितियों के अनुकूल होने में सक्षम हैं।” एक बार जब तिलापिया किसी जगह पर अपने आवास बना लेती हैं तो ये देसी प्रजातियों और पारिस्थितिक तंत्र के लिए खतरा बन जाती हैं। यही वजह है कि अपने आर्थिक महत्व के बावजूद, उसे राष्ट्रीय जैव विविधता प्राधिकरण ने भारत की आक्रामक विदेशी प्रजातियों की सूची में शामिल किया है।
इससे पहले तिलापिया के नए क्षेत्र में आने पर उनके भोजन और रहन-सहन की आदतों के बारे में बहुत कम जानकारी उपलब्ध थी।
देवीपट्टिनम में तटीय जल में प्रजनन
साल 2023 का अध्ययन तमिलनाडु के एक प्राचीन बंदरगाह शहर देवीपट्टिनम के पास, वैगई नदी के मुहाने के पास किया गया था। यह क्षेत्र समुद्री प्रजातियों से समृद्ध है। इस क्षेत्र में काफी सारे मछुआरे हैं। इसके आसपास के क्षेत्र में मशीनीकृत और गैर-मशीनीकृत दोनों प्रकार की नावें चलती हैं। अध्ययन ने निष्कर्ष निकाला कि तिलापिया अब पाक खाड़ी के भीतर पूरी तरह से समुद्री वातावरण में पनप रही हैं।
देवीपट्टिनम तट से एकत्र किए गए नमूनों के विश्लेषण से तिलापिया के विकास पैटर्न, आहार और प्रजनन के बारे में जानकारी मिली है। जनवरी 2023 में किए गए एक हालिया सर्वेक्षण में, उपजाऊ गोनाड (प्रजनन अंग) वाले वयस्क नमूनों का दस्तावेजीकरण भी किया गया था। हालांकि, पाए गए अधिकांश नमूने किशोर और यौन रूप से अपरिपक्व थे। इसका मतलब है कि तिलापिया के विकास पैटर्न, आहार और प्रजनन जीव विज्ञान के बारे में जानकारी मिली है। पाक खाड़ी क्षेत्र का तटीय जल युवा तिलापिया के लिए प्रजनन और नर्सरी ग्राउंड के रूप में काम कर रहा है।
एक सर्वेक्षण के मुताबिक, तिलापिया अधिकतर तटीय पानी में पाई जाती है जहां पानी की गहराई दो से पांच मीटर के बीच और समुद्री घास बहुत होती है। उनके पेट के अंदर का विश्लेषण करने से पता चलता है कि उन्हें क्रस्टेशियन, मोलस्क और प्लैंकटन खाना पसंद है, वे मौके पर मिलने वाला भोजन खाने वाली अनुकूलनशील मछली हैं।
विभिन्न जगहों से लिए गए नमूनों के अंडाशय की जांच से पता चला कि इस प्रजाति की हर उम्र की मछलियों की आबादी यहां उपस्थित है, युवा से लेकर परिपक्व तिलापिया मछली तक। परिपक्व मादा मछलियों की संख्या यहां काफी ज्यादा थी। इसके अलावा, तिलापिया की आबादी की गतिशीलता को समझने के लिए लंबाई-वजन संबंधों को लेकर किए गए अध्ययन से पता चलता है कि नर और मादा दोनों प्रकार की तिलापिया में सममित विकास होता है। इसका मतलब है कि मछली का वजन उसकी लंबाई के घन के समानुपाती होता है, यानी अगर लंबाई तीन गुना बढ़े तो वजन नौ गुना बढ़ेगा।
आनंद कहते हैं, “नर-मादा का लगातार समान अनुपात यह भी बताता है कि समुद्री वातावरण में प्रजनन गतिविधि हो रही है, जो अप्रत्याशित थी। आबादी इस क्षेत्र में बड़ी आसानी से स्थापित हो रही है।”
फायदे और नुकसान
यह भी चिंताजनक है कि स्थानीय मछुआरे इन आक्रामक प्रजातियों की उपस्थिति के बारे में जानते हैं और नियमित रूप से उन्हें तटीय जल से पकड़ रहे हैं। स्थानीय मछुआरे कार्तिक अरुमुगन ने कहा, “पुरानी पीढ़ी के मछुआरे ने अपने समय में इस मछली को नहीं देखा था, लेकिन अब इसकी मांग तेजी से बढ़ रही है। नई पीढ़ी सिर्फ़ तिलापिया मछली को ही पकड़ रही है। खासकर शनिवार को पकड़ी गई इन मछलियों की संख्या काफी बढ़ जाती है। रविवार को एक ऐसा बाजार लगता है जहां इसके काफी खरीदार होते हैं, जो इस मछली की बढ़ती मांग का संकेत है।”
और पढ़ेंः पारिस्थितिकी तंत्र के लिए वैश्विक खतरा हैं जैव आक्रमण
आनंद के मुताबिक, पाक खाड़ी में तिलापिया मछली स्थानीय मछलियों और मत्स्य पालन के लिए बड़ा खतरा हैं। उन्होंने कहा, “उनकी मौजूदगी से खाने के लिए देशी प्रजातियों के साथ प्रतिस्पर्धा हो सकती है, जिससे उन्हें आवश्यक संसाधनों से वंचित होना पड़ सकता है। तिलापिया निवास स्थान को बदल या खराब कर सकती हैं। इससे उन पारिस्थितिकी तंत्रों की जैव विविधता प्रभावित हो सकती है जहां उन्हें लाया जाता है। समय के साथ, तिलापिया की आबादी काफी बढ़ जाएगी। इससे देशी मछलियां कम हो जाएंगी और मछुआरे कम पैसा कमा पाएंगे।”
2020 में, मत्स्य विभाग ने भारत में तिलापिया के जिम्मेदार पालन के लिए दिशानिर्देश जारी किए थे। उन्होंने कुछ खास तिलापिया प्रजातियों की सूची दी जिन्हें पाला जा सकता है और यह भी कहा कि मछली पालन करने वाले यह सुनिश्चित करें कि ये मछलियां पानी के स्रोतों में न भाग पाएं, भले ही बाढ़ जैसी स्थिति क्यों न हो। ऐसा इसलिए क्योंकि ये मछलियां देशी मछलियों के लिए खतरा पैदा करती हैं। आनंद कहते हैं, “हालांकि, इन नियमों को और सख्ती से लागू करने की ज़रूरत है।”
साथ ही, प्रभावी संरक्षण रणनीतियों को विकसित करने के लिए तिलापिया के पारिस्थितिक प्रभावों और जनसंख्या गतिशीलता की और समझ महत्वपूर्ण है। इसे प्राप्त करने के लिए, अध्ययन के लेखक पूरे पाक खाड़ी क्षेत्र में तिलापिया के प्रसार का व्यापक रूप से आकलन करने के लिए आगे रिसर्च करने की सलाह देते हैं। आनंद कहते हैं, “तिलपिया के प्रसार और इसके प्रभावों को कम करने के लिए विशिष्ट प्रबंधन योजनाओं को बनाने के लिए इस जानकारी का इस्तेमाल किया जा सकता है।”
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बैनर तस्वीर: बर्लिन के एक चिड़ियाघर में तिलापिया मछली। जब इन्हें जंगली इलाकों में छोड़ा जाता है, तो समय के साथ तिलापिया की आबादी तेजी से बढ़ती जाती है, जो संभावित रूप से देशी मछली प्रजातियों को विस्थापित कर देती है। तस्वीर: उडो श्रोटर/विकिमीडिया कॉमन्स।