- उत्तरी गोवा के स्थानीय निवासी पिछले कुछ समय से पानी की कमी से जूझ रहे हैं। उनके मुताबिक, इसकी वजह गोवा के बाराजान पठार पर बन रहा हवाई अड्डा है।
- पठार की भूगर्भीय संरचना में जमीन के नीचे लैटेराइट चट्टानें हैं, जो भूमिगत जल पुनर्भरण को आसान बनाती हैं। बारहमासी झरनों और नालों के एक जटिल नेटवर्क के जरिए पास के छह गांवों के 7,000 से ज्यादा लोगों को साल भर पीने का पानी उपलब्ध रहता था। लेकिन अब इन जल स्रोतों के करीब हवाई अड्डे का भी निर्माण किया जा रहा है।
- हवाई अड्डे के लिए स्थानीय जलाशयों से पानी का अधिक इस्तेमाल करने से नागरिकों की जल सुरक्षा को खतरा है।
पिछले कई दिनों से, हर सुबह उदय महाले एक उम्मीद के साथ अपने बाथरूम का नल खोलते हैं कि शायद आज उसमें पानी आ जाए। लेकिन ऐसा होता नहीं है। पेशे से किसान और टैक्सी चालक उदय उत्तरी गोवा जिले के सबसे उत्तरी पेरनेम तालुका (उप-विभाग) में स्थित मोपा गांव में पले-बढ़े हैं। वह कहते हैं, ”हम कई पीढ़ियों से यहां रह रहे हैं लेकिन कभी पानी की कोई समस्या नहीं हुई। अब स्थिति बदल गई है। हमें लगातार कई दिनों तक पानी नहीं मिलता है।” उनकी नजर में इस समस्या की वजह मोपा हवाई अड्डे का निर्माण है।
पेरनेम के छह गांवों में फैले बाराजान पठार के 9.19 वर्ग किलोमीटर (2,271 एकड़) में बन रहा ‘मनोहर अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा’ साल 2000 में पहली बार प्रस्तावित होने के बाद से ही चर्चा में रहा है। स्थानीय निवासी पश्चिमी घाट के घने जंगलों के विनाश के डर के कारण इसके निर्माण का लगातार विरोध करते आए हैं। ये घाट यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल और दुनिया के 36 जैव विविधता हॉटस्पॉट में से एक है।
पर्यावरण के लिए कथित खतरों के अलावा, भूमि अधिग्रहण प्रक्रिया में अनियमितता के आरोपों के चलते 2008 से स्थानीय समुदायों ने कई आंदोलन किए। गोवा के विभिन्न सामाजिक हित समूहों को एक साथ लाने वाले संगठन फेडरेशन ऑफ रेनबो वॉरियर्स से जुड़े कार्यकर्ता अभिजीत प्रभुदेसाई ने कहा, “परियोजना के लिए तैयार की गई पहली एनवायर्नमेंटल इम्पैक्ट अस्सेस्मेंट (ईआईए) रिपोर्ट में कहा गया था कि इस इलाके में एक भी पेड़ नहीं है और यहां कोई नहीं रहता है।” इस रिपोर्ट में हुई चूक को देखते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने हवाई अड्डे को दी गई पर्यावरण मंजूरी को रद्द कर दिया और 2019 में पुनर्मूल्यांकन का आदेश दिया। इसके बाद तैयार की गई दूसरी ईआईए रिपोर्ट में कस्तूरीरंगन समिति के अनुसार, चार नदियां, 42 आरक्षित वन, दो आर्द्रभूमि, मैंग्रोव और 10 पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्र शामिल थे, जिन्हें पर्यावरण और वन मंत्रालय और सीसी ने अधिसूचित किया था। 2020 में इसे फिर से अनुशंसित पर्यावरण मंजूरी दी गई और 5 जनवरी, 2023 को हवाई अड्डे का उद्घाटन भी कर दिया गया।
लेकिन पिछले कुछ समय से पेरनेम में रहने वाले लोग आए दिन पानी की समस्या से जूझ रहे हैं। उनके मुताबिक, इसका मुख्य कारण बाराजान पठार पर चल रहा निर्माण कार्य है। इन पठारों की भूगर्भीय संरचना ऐसी है जो भूमिगत जल को रिचार्ज करने और झरनों को बनाए रखने में मदद करती है। यह क्षेत्र स्थानीय लोगों के लिए पानी का मुख्य स्रोत है। स्थानीय लोगों का आरोप है कि सरकार हवाई अड्डे के लिए स्थानीय जल संसाधनों का अधिक इस्तेमाल कर रही है, जिससे पानी की कमी और बढ़ गई है।
बाराजान पठार पर निर्माण
उत्तरी गोवा के अधिकांश इलाके पहाड़ी हैं, लेकिन बाराजान पठार में विशाल समतल भूमि है। इसी वजह से बाराजान पठार को हवाई अड्डे के लिए चुना गया था।
हवाई अड्डे के निर्माण से पहले पठार भूमिगत जल को रिचार्ज करने का काम करता था। इस क्षेत्र में हर साल औसतन 2,932 मिलीमीटर बारिश होती है। पठारी क्षेत्र में जमीन की सतह के नीचे लैटेराइट चट्टान के पर्याप्त जमाव की वजह से वर्षा जल के रिसने के लिए जरूरी छिद्र हैं। क्षेत्र का यह अनूठा भूविज्ञान नीचे जलभृत में जल स्तर को रिचार्ज करने का बड़ा काम करता आया है। चालीस से अधिक बारहमासी झरनों और नालों के एक जटिल नेटवर्क के जरिए ये पठार छह गांवों के 7,000 से अधिक निवासियों को साल भर पीने का पानी मुहैया कराता था। इसी पानी से घने बागों, धान के खेतों और डाउनस्ट्रीम में लगी सब्जी के बगीचों को भी सींचा जा रहा था।
2.2 मिलियन क्यूबिक मीटर के अनुमानित वार्षिक जल निर्वहन से स्थानीय कृषि समुदायों को साल भर पर्याप्त पानी मिलता था। मोपा गांव के पूर्व सरपंच विनायक काशीनाथ महाले क्षेत्र में हवाई अड्डे के प्रतिकूल परिणामों पर चर्चा करते हुए कहते हैं, “पेरनेम इतने सालों तक फलता-फूलता रहा, इसका कारण इसके प्रचुर जल संसाधन थे।”
विनायक की चिंताओं को वैज्ञानिक रिसर्च से भी समर्थन मिला जो हवाई अड्डे के लिए पर्यावरण मंजूरी (ईसी) देने से पहले किया गया था। नवंबर 2015 में एडवांस्ड सेंटर फॉर वाटर रिसोर्सेज डेवलपमेंट एंड मैनेजमेंट द्वारा प्रकाशित एक रिपोर्ट में बाराज़ान पठार पर किए गए हाइड्रो जियोलॉजिकल अध्ययनों का विस्तृत विवरण दिया गया है। रिपोर्ट में पाया गया कि हवाई अड्डे जैसी बड़ी बुनियादी ढांचा परियोजनाओं से “बारजान पठार के प्राकृतिक झरनों को पानी देने वाले भूजल प्रणाली के रिचार्ज ज़ोन को बाधित करने की संभावना है”, जिससे प्राकृतिक सार्वजनिक पेयजल स्रोतों को खतरा हो सकता है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि हवाई अड्डे जैसी परियोजनाओं के निर्माण से डाउनस्ट्रीम पारिस्थितिकी और लंबी अवधि में डाउनस्ट्रीम आबादी की आजीविका के लिए गंभीर खतरा पैदा हो सकता है। जनवरी 2023 में हवाई अड्डे के डाउनस्ट्रीम में स्थित कोरगाओ गांव के लोगों को आठ दिनों तक पानी की आपूर्ति नहीं हुई। उन्हें संदेह था कि पानी को हवाई अड्डे की ओर मोड़ दिया गया है।
भूजल की कमी के अलावा, पठार पर निर्माण ने बाढ़ जैसी घटनाओं को भी बढ़ा दिया है। दरअसल पठार से निकलने वाले प्राकृतिक जल चैनल बाधित हो गए हैं। विनायक याद करते हुए बताते हैं, “साल 2022 में बारिश के दौरान पठार से वर्षा जल के साथ बहकर आए बड़े-बड़े पत्थरों ने हमारे गांव को लगभग तबाह ही कर दिया था।”
साल 2019 में एक विशेषज्ञ मूल्यांकन समिति (ईएसी) ने पठार पर निर्माण के प्रभावों पर विचार किया। उन्होंने पाया कि “अगर स्थानीय जल निकायों को भरने वाले प्राकृतिक जल चैनलों को संरक्षित नहीं किया गया, तो गांवों में कृषि, मछली पालन आदि के लिए पानी की कमी हो जाएगी। इसके अलावा, गांवों के भूजल स्तर पर भी प्रभाव पड़ेगा।” हालांकि, परियोजना प्रस्तावकों द्वारा इससे निपटने के लिए कुछ प्रस्तावित उपाय पेश करने के बाद, ईएसी ने हवाई अड्डे की परियोजना के लिए अपनी स्वीकृति दे दी थी।
साल 2020 में इंडियन जर्नल ऑफ एनवायर्नमेंटल साइंसेज में प्रकाशित एक पेपर के अनुसार, भूजल रिचार्ज के लिए वर्षा जल संचयन तरीकों को शामिल करने के जो उपाय पेश किए गए हैं, वे काफी कमजोर हैं। ये उपाय पठार पर मौजूद प्राकृतिक चट्टानों के कारण होने वाले भूजल रिचार्ज के समान प्रभावी नहीं होंगे, क्योंकि चट्टानें पानी को सोखने और धीरे-धीरे भूमिगत जल स्तर में छोड़ने में बेहतर हैं।
स्थानीय जलाशयों से पानी का डायवर्जन
एयरपोर्ट के निर्माण और संचालन के लिए पानी का प्राथमिक स्रोत टिल्लारी सिंचाई नहर है, जिसे महाराष्ट्र और गोवा की प्रांतीय सरकारों के बीच एक संयुक्त उद्यम के हिस्से के रूप में बनाया गया था। इस नहर को उत्तरी गोवा में कृषि के लिए पानी की आपूर्ति के लिए चालू किया गया था। और यही वजह है कि टिल्लारी नहर से पानी को हवाई अड्डे की ओर मोड़ने से स्थानीय किसान नाराज हैं। उनके मुताबिक, जलाशयों का डायवर्जन उनके अधिकारों का हनन है।
उदय महाले कहते हैं, “सरकार ने नहर के लिए किसानों की जमीन अधिग्रहित की और कहा कि यह हमारे लिए बनाई जा रही है, लेकिन अब उनकी दिलचस्पी सिर्फ हवाई अड्डे में है।”
उधर टिल्लारी नहर के अनियमित रखरखाव के कारण हवाई अड्डे को भी पानी की आपूर्ति में समस्याएं पैदा हुई हैं। हालांकि, स्थानीय अधिकारियों ने कथित तौर पर विभिन्न स्थानीय जल निकायों से पानी को हवाई अड्डे की ओर मोड़कर इन कमियों को दूर करने की कोशिश की, लेकिन इससे पेरनेम के विभिन्न गांवों की जल सुरक्षा पर सीधा असर पड़ रहा है।
स्थानीय किसान और मोपा विमानतल पीडित शेतकरी समिति (मोपा अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा प्रभावित किसान समिति) के संयोजक संदीप कांबली याद करते हुए कहते हैं, “हमें पानी के लिए कभी नल की जरूरत नहीं पड़ी, हमेशा धाराएं बहती रहती थीं।” वह आगे कहते हैं, “पानी की कमी के कारण हमारे घर के आस-पास के सभी पेड़ मर रहे हैं। और अब, वे पठार से बहने वाली सभी धाराओं पर बांध बना रहे हैं। हमें जो थोड़ा बहुत पानी मिलता है, ये उसे भी ले लेना चाहते हैं।”
वरकोंडा गांव के किसान कांबली का पारंपरिक घर बाराजान पठार से बहने वाली कई धाराओं में से एक के करीब है। लेकिन इस धारा पर अब स्थानीय सरकार हवाई अड्डे को पानी की आपूर्ति करने के लिए बांध बनाया जा रहा है। कांबली के अनुसार, बाराजान पठार से बहने वाली दर्जनों धाराओं पर छोटे-छोटे बांध बनाए जा रहे हैं। ये धाराएं नीचे की ओर रहने वाली आबादी को पानी दिया करती थीं।
इसके अलावा, अब वाटर ट्रीटमेंट प्रोजेक्ट, पंप-हाउस और पानी से जुड़ी अन्य बुनियादी ढांचे पर सार्वजनिक फंड को खर्च किया जा रहा है। बैलपार नदी पर 27 करोड़ रुपये की लागत से दो पंपहाउस बनाए गए, ताकि बैलपार नदी से हवाई अड्डे तक पानी की आपूर्ति हो सके। लेकिन बैलपार नदी के जल-स्तर में धीरे-धीरे गिरावट देखी गई, इसलिए अब बिचोलिम में चापोरा नदी पर 350 करोड़ रुपये की लागत से एक बैराज परियोजना का निर्माण किया जा रहा है, ताकि चापोरा नदी से पानी बैलपार नदी में स्थानांतरित किया जा सके। आखिर में इससे भी हवाई अड्डे को ही जल आपूर्ति की जाएगी।
हवाई अड्डे का विस्तार
हवाई अड्डे के लिए तैयार की गई ईआईए रिपोर्ट में कहा गया था कि हवाई अड्डे का निर्माण चरणबद्ध तरीके से किया जा रहा है। मौजूदा चरण 1 में हवाई अड्डे से सालाना 44 लाख यात्रियों को फायदा हो रहा है और चरण IV में, जिसके 2045 तक पूरा होने की उम्मीद है, इस हवाई अड्डे को सालाना 13.1 मिलियन यात्री इस्तेमाल कर पाएंगे। लेकिन इसकी वजह से हवाई अड्डे के परिसर में प्रस्तावित होटल, कैसीनो और कर्मचारियों के आवास के बुनियादी ढांचे से हवाई अड्डे की पानी की जरूरतें काफी बढ़ जाएंगी।
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पेरनेम क्षेत्र में पानी की कमी के कारण लोग हवाई अड्डे के विस्तार को लेकर चिंतित हैं। वे मानते हैं कि हवाई अड्डे के विस्तार से पानी की समस्या और बढ़ जाएगी और पठार के प्राकृतिक जल चैनलों को नुकसान पहुंचेगा। कार्यकर्ता और स्थानीय निवासी का मानना है कि हवाई अड्डे के मौजूदा बुनियादी ढांचे में बड़ा बदलाव करना होगा ताकि पठार के प्राकृतिक जल चैनलों को बहाल किया जा सके। वे यह भी मांग कर रहे हैं कि पेरनेम के निवासियों को पानी के अधिकार की गारंटी दी जाए।
लेखक एक स्वतंत्र पर्यावरण लॉ प्रक्टिशनर और लैंड कॉन्फ्लिक्ट वॉच में एक रिपोर्टर/शोधकर्ता हैं।
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बैनर तस्वीर: बाराजान पठार से बहने वाली एक प्राकृतिक जलधारा पर निर्माणाधीन एक छोटा बांध। तस्वीर-मैत्रेय पृथ्वीराज घोरपड़े