- जलवायु परिवर्तन की वजह से पिछले 40 सालों में भारत और बांग्लादेश के कुछ हिस्सों में एक दिन में होने वाली चरम बारिश की घटनाएं चार गुना बढ़ गई हैं। एक अध्ययन से ये बात सामने आई है।
- अध्ययन के मुताबिक, 2050 से 2079 तक चरम बारिश की घटनाएं दोगुनी हो जाएंगी।
- विशेषज्ञों का मानना है कि बुनियादी ढांचे के विकास जैसी मानवीय गतिविधियों ने इन क्षेत्रों में बाढ़ के प्रभावों को और बदतर कर दिया है।
1979 के बाद से, चार दशकों में मेघालय राज्य सहित बांग्लादेश और भारत क्षेत्र के पूर्वोत्तर हिस्सों में एक दिन में होने वाली चरम बारिश की घटनाएं चार गुना बढ़ गई हैं और इसकी बड़ी वजह जलवायु परिवर्तन है। भारत, बांग्लादेश और अमेरिका के शोधकर्ताओं के एक नए अध्ययन से यह जानकारी सामने आई है।
रॉयल मेट्रोलॉजिकल सोसाइटी के त्रैमासिक जर्नल में प्रकाशित अध्ययन में पाया गया कि एक दिन में होने वाली चरम बारिश की घटनाओं में चौगुनी वृद्धि मध्यम से लंबी अवधि में दक्षिण-पूर्व बांग्लादेश क्षेत्र में फैल सकती है। नासा गोडार्ड स्पेस फ्लाइट सेंटर में सहायक शोध वैज्ञानिक और पेपर के प्रमुख लेखक अब्दुल्ला अल फहाद ने मोंगाबे-इंडिया को ईमेल पर बताया, “हमने पाया कि जलवायु परिवर्तन के कारण इस क्षेत्र में चरम बारिश की घटनाएं पहले ही होने लगी हैं।” वह आगे कहते हैं, “भले ही हम CO2 उत्सर्जन कम करने का प्रयास करें, फिर भी मौसम को पिछली अवस्था में लाना बहुत चुनौतीपूर्ण होगा।”
भारतीय पूर्वोत्तर क्षेत्र के कुछ हिस्सों में हाल के कुछ सालों में बारिश में कमी, असमान रूप से वितरित वर्षा और लंबे सूखे की अवधि देखी जा रही है। फहाद और उनके सह-शोधकर्ताओं ने इस क्षेत्र में चरम बारिश और बाढ़ पैदा करने में जलवायु परिवर्तन की भूमिका का पता लगाया है।
जून 2022 में, भारत-बांग्लादेश के कई इलाकों में चरम बारिश और बाढ़ की कई घटनाएं सामने आई हैं। इसकी वजह से अकेले असम में 170 से अधिक लोग मारे गए और लाखों लोग विस्थापित हुए। फहाद ने कहा, ” पिछले कई अध्ययनों में सिर्फ एक देश के आंकड़ों पर ध्यान केंद्रित किया जाता रहा है, जबकि मेघालय व असम और बांग्लादेश के उत्तरी भागों का एक-दूसरे से बहुत घनिष्ठ भौगोलिक संबंध है। स्थानीय समुदायों पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव का आकलन करने और आपदाओं से निपटने और रणनीति तैयार करते समय बांग्लादेशी और भारतीय नीति निर्माताओं को दोनों देशों के मौसम संबंधी डेटा पर विचार करना चाहिए।”
बदलती जलवायु प्रणालियां
शोधकर्ता ने पाया कि पूर्वोत्तर बांग्लादेश और भारत क्षेत्र (NEBI), दक्षिण-पूर्व बांग्लादेश (SEB) और उत्तर-पश्चिम बांग्लादेश (NWB) में एक दिन में होने वाली चरम बारिश घटनाओं का काफी ज्यादा थी। इनमें से अधिकांश घटनाएं मई और अक्टूबर के मानसून महीनों के बीच हुई हैं।
मौसमी मानसून वर्षा इसलिए होती है क्योंकि नीची स्तर की हवाएं – वायुमंडल के निचले हिस्से में अपेक्षाकृत तेज हवाओं की धाराएं – बंगाल की खाड़ी से नमी को उत्तरी अंतर्देशीय क्षेत्र में ले जाती हैं। जब ये नमी-भरी हवाएं अचानक 1 से 5 दिनों में एक छोटी सी अवधि में इस क्षेत्र की ऊंची-नीची भूमि से टकराती हैं, तो भारी बारिश होती है।
शोधकर्ताओं ने भारत और बांग्लादेश दोनों के मौसम विभागों के आंकड़ों का उपयोग करके पिछले 72 साल में हुई चरम बारिश के पैटर्न का अध्ययन किया। उन्होंने पाया कि बेसलाइन पीरियड (1950-1979) की तुलना में, 1979 और 2021 के बीच गर्मियों में मानसून की चरम घटनाओं की आवृत्ति मई से अक्टूबर के महीनों के दौरान मेघालय में चौगुनी हो गई है। इसके लिए उन्होंने निम्न स्तर की हवाओं में बदलाव और समुद्र के तापमान में वृद्धि को जिम्मेदार माना।
फहाद ने कहा, “पिछले अध्ययनों ने सिर्फ चरम वर्षा की घटनाओं पर ध्यान केंद्रित किया था, और उनका विश्लेषण सिर्फ कुछ मुट्ठी भर मौसम केंद्रों के आंकड़ों पर आधारित थे। इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि ये अध्ययन छोटी अवधि (समय सीमा) के आंकड़ों का इस्तेमाल करते रहे, जिससे जलवायु परिवर्तन के कारणों को प्राकृतिक परिवर्तन से अलग करना मुश्किल हो जाता था। हमने कई मौसम केंद्रों के साथ-साथ 1950 के दशक से लेकर वर्तमान तक के आंकड़ों के आधार पर एक बड़े पैमाने पर ग्रिड किए गए डेटा सेट का इस्तेमाल किया, जिससे हम जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को अत्यधिक वर्षा पर सांख्यिकीय रूप से साबित करने में सक्षम हुए।”
अध्ययन में इन इलाकों में भविष्य में होने वाली वर्षा और वर्षा के रुझानों का अनुमान लगाने के लिए एक प्रकार के जलवायु मॉडल, CMIP6 का भी इस्तेमाल किया था। इससे मिली जानकारी के मुताबिक, 2050 से 2079 के बीच NEBI क्षेत्र (बांग्लादेश का सिलहट और भारत का मेघालय पठार) में एक दिन में होने वाली चरम बारिश की घटनाएं लगभग दोगुनी हो जाएंगी। इसकी बड़ी वजह, बंगाल की खाड़ी में नमी की मात्रा में वृद्धि और नीची स्तर की हवाओं का उत्तर की ओर शिफ्ट होना है।
बाढ़ की तैयारी
ऊर्जा, पर्यावरण और जल परिषद (CEEW) के जलवायु सुभेद्यता सूचकांक में पाया गया कि असम देश में जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाली प्राकृतिक आपदाओं के प्रति सबसे अधिक संवेदनशील है। लेकिन चरम घटनाओं की आवृत्ति के अलावा, मानवीय गतिविधियों के कारण भी जलवायु परिवर्तन से होने वाली आपदाओं का प्रभाव और भी बदतर होता जा रहा है।
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पर्यावरण वैज्ञानिक और संरक्षण एवं जलवायु संबंधी मुद्दों पर काम करने वाले असम स्थित पर्यावरण एनजीओ आरण्यक में जल, जलवायु और जोखिम प्रभाग के प्रमुख पार्थ ज्योति दास ने कहा “इस क्षेत्र में बुनियादी ढांचे की परियोजनाओं का अव्यावहारिक विस्तार हुआ है, जिससे बाढ़ का प्रभाव कई गुना बढ़ गया है। पहाड़ों पर वनों की कटाई के कारण ज्यादा पानी नदी में बह जाता है, पानी के साथ बहकर अधिक तलछट भी आती है, जिससे बाढ़ और ज्यादा भयावह हो जाती है।”
आरण्यक एक एकीकृत बाढ़ प्रबंधन योजना पर काम कर रहा है, जो राज्यों के बीच सहयोग और समन्वय पर जोर देती है। यह योजना नदियों के जलग्रहण क्षेत्रों (watersheds) को बचाए रखने और उनके निचले हिस्सों पर होने वाले प्रभावों को ध्यान में रखती है। दास ने कहा, “राज्यों को अपनी पूर्वानुमान और प्रारंभिक चेतावनी प्रणालियों को बेहतर बनाने की दिशा में काम करना चाहिए ताकि वे सबसे अधिक संवेदनशील समूहों तक पहुंच सके।
बैनर तस्वीर: डिब्रूगढ़, असम में बाढ़। तस्वीर– अरुनभ0368/विकिमीडिया कॉमन्स