- बेंगलुरु में 1020 विकसित पार्क हैं। ये लगभग चार वर्ग किलोमीटर में फैले हैं। ये पार्क बीबीएमपी के बागवानी विभाग के अधिकार क्षेत्र में आते हैं। उप निदेशक (बागवानी) चंद्रशेखर एमआर के अनुसार, रख-रखाव के लिए पार्क सुबह 10 बजे से दोपहर 1:30 बजे के बीच बंद रहेंगे।
- इस खबर के अंग्रेज़ी में छपने के बाद कर्नाटका के उप मुख्यमंत्री, डी के शिवकुमार ने बगीचों को सुबह 5 बजे से रात 10 बजे तक खुला रखने का आदेश दिया। मगर अभी भी ऐसे कई पार्क हैं जो दोपहर के समय में बंद पाए गए।
- निर्माण काम और सड़कों पर दुकान लगाना ऐसे व्यवसाय हैं जहां लोगों को खुले में काम करने के बाद आराम करने की जरूरत होती है। अगर आप उन जगहों को बंद कर देते हैं जहां वे आराम करते हैं, तो इसका उन पर दुष्प्रभाव पड़ेगा।
- खुली जगहों में काम करने वाले ज़्यादातर मजदूर सामाजिक-आर्थिक रूप से कमजोर समूहों से आते हैं। इसलिए उन्हें गर्मी से संबंधित स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का बहुत ज्यादा खतरा रहता है।
इस साल अप्रैल महीने में बेंगलुरु में तापमान 37.6 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया। फिर भी गार्डन सिटी के नाम से मशहूर इस शहर में कई सार्वजनिक बगीचों को तपती दुपहरी के सबसे ज्यादा व्यस्त घंटों के दौरान बंद रखा गया। इससे शहरवासियों, खासतौर पर खुले में काम करने वाले मजदूरों को कड़ी धूप से बचने की जगह नहीं मिल पाई।
पिछले आठ सालों से बेंगलुरु की महानगर पालिका (बृहत्त बेंगलुरु महानगर पालिका या बीबीएमपी) में सफाई कर्मचारी के तौर पर काम कर रहे 40 साल के भीमा ने बताया, “मेरी वर्दी पसीने से भीगी हुई है, हमारे लिए पानी पीने, दोपहर का खाना खाने या यहां तक कि छाया में पल भर के लिए बैठने की भी जगह नहीं है।” हालांकि, उन्होंने और उनके साथियों ने गर्मी, बारिश और सर्दियों की सुबह में काम किया है, लेकिन उन्होंने कहा कि पिछले कुछ महीनों में सुबह 6 बजे से दोपहर 12 बजे तक की उनकी शिफ्ट के दौरान बहुत ज्यादा मुश्किलें रही हैं।
शहर के बनशंकरी में सड़क पर ठेला लगाने वाली सुशीला एन. व्यस्त सड़क में आंशिक रूप से छायादार हिस्से में सामान बेचती हैं। उनके मुतबाकि यहां ग्राहकों की भीड़ बहुत ज़्यादा है। वह हर रोज़ सुबह 6 बजे से दोपहर तक काम करती हैं। फिर तीन किलोमीटर पैदल चलकर घर आती हैं और शाम 4 बजे फिर से अपनी दुकान लगाती हैं। जिस पार्क के बगल में वह सामान बेचती हैं, वह दोपहर में बंद रहता है। उन्होंने कहा, “अगर पार्क खुला होता, तो मैं अपना दोपहर का खाना वहीं खाती, आराम करती और दोपहर 3 बजे से सामान बेचना जारी रखती।”
बेंगलुरु में 1020 विकसित पार्क हैं। ये लगभग चार वर्ग किलोमीटर में फैले हैं। ये पार्क बीबीएमपी के बागवानी विभाग के अधिकार क्षेत्र में आते हैं। उप निदेशक (बागवानी) चंद्रशेखर एमआर के अनुसार, रख-रखाव के लिए पार्क सुबह 10 बजे से दोपहर 1:30 बजे के बीच बंद रहेंगे। उन्होंने मोंगाबे-इंडिया को बताया, “इस दौरान रास्तों की सफाई की जाएगी, यह काम रात में नहीं किया जा सकता।”
हालांकि, इस खबर के अंग्रेज़ी में छपने के बाद कर्नाटका के उप मुख्यमंत्री, डी के शिवकुमार ने बगीचों को सुबह 5 बजे से रात 10 बजे तक खुला रखने का आदेश दिया। मगर अभी भी ऐसे कई पार्क हैं जो दोपहर के समय में बंद पाए गए।
गर्मी से बचाव करती हरियाली
हालांकि, कर्नाटका कोर हीटवेव जोन (सीएचजेड) में नहीं आता है। सीएचजेड में हीटवेव से सबसे ज़्यादा प्रभावित राज्य शामिल हैं। लेकिन भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) ने 4 अप्रैल, 2024 को सर्कुलर जारी कर चेतावनी दी थी कि कर्नाटका में अगले कुछ दिनों तक हीटवेव जैसी स्थिति रहेगी। इसके कुछ ही समय बाद, बेंगलुरु शहर में तापमान 36.5 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया। हालांकि, तकनीकी रूप से यह हीटवेव नहीं था। लेकिन तापमान अप्रैल के लिए शहर के औसत रोजाना अधिकतम तापमान 34 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा था।
तापमान में बढ़ोतरी का असंगठित क्षेत्र के मजदूरों पर अलग तरीके से असर पड़ता है। खासतौर पर उन लोगों पर जो खुले में काम करते हैं। बेंगलुरु स्थित भारतीय प्रबंधन संस्थान के प्रोफेसर अर्पित शाह ने कहा, “निर्माण काम और सड़कों पर दुकान लगाना ऐसे व्यवसाय हैं जहां लोगों को खुले में काम करने के बाद आराम करने की जरूरत होती है। अगर आप उन जगहों को बंद कर देते हैं जहां वे आराम करते हैं, तो इसका उन पर दुष्प्रभाव पड़ेगा।” शाह जाति-आधारित काम करने वाले मजदूरों पर गर्मी के चलते आने वाले जोखिम पर शोध कर रहे हैं। कई अध्ययनों से पता चला है कि पेड़ों से ढके बाहरी स्थान खुले स्थानों की तुलना में काफी ठंडे होते हैं।
भारत में वर्ल्ड रिसोर्सेज इंस्टीट्यूट के सस्टेनेबल सिटीज की कार्यकारी कार्यक्रम निदेशक जया ढिंडाव ने कहा, “जिन सड़कों पर पेड़ होते हैं और जिन पर पेड़ नहीं हैं, उनके बीच तापमान में 10 डिग्री सेल्सियस तक का अंतर देखा गया है।”
अशोका ट्रस्ट फॉर रिसर्च इन इकोलॉजी एंड एनवायरनमेंट (एट्री) के शोधकर्ताओं की ओर से किए गए अध्ययन में पाया गया कि औसतन, पेड़ों की छाया वाली सड़कों के खंडों में “दोपहर के समय परिवेशी हवा का तापमान 5.6 डिग्री सेल्सियस तक कम और सड़क की सतह का तापमान 27.5 डिग्री सेल्सियस तक कम होता है।”
अजीम प्रेमजी विश्वविद्यालय की प्राध्यापक सीमा मुंडोली ने कहा, “पेड़ों का आवरण नहीं होने से यह दोपहर के समय गर्म तवे पर चलने के बराबर है।” मुंडोली ने पहले शहरी क्षेत्रों में पेड़ों के आवरण की अहमियत पर काम किया है।
एट्री में रेजिडेंस फेलो मनन भान ने निवासियों और सर्विस प्रोवाइडर के तौर पर काम करने वाले लोगों का साक्षात्कार लिया। ये लोग मुख्य रूप से खुले में काम करते थे। उन्होंने कहा, “जिन लोगों से हमने बात की, वे बढ़ती गर्मी और पेड़ों के आवरण में कमी के बीच सीधा संबंध देख पा रहे थे।” उनकी टीम उत्तर-पश्चिमी बेंगलुरु के मरप्पनपाल्या वार्ड में गर्मी की मैपिंग कर रही है।
टीम ने रिमोट सेंसिंग इमेज के जरिए वार्ड का हीट मैप भी तैयार किया है। इसमें उन्होंने पाया कि हरियाली के अभाव में “महसूस किया गया तापमान” ज्यादा था।
गांधीनगर स्थित भारतीय जन स्वास्थ्य संस्थान (IIPH) के पूर्व निदेशक दिलीप मावलंकर ने बताया, “जब पेड़ पानी को वाष्पित करते हैं, तो आस-पास के इलाकों में ठंडक पैदा होती है। इस प्रकार, ज्यादा पेड़ों का मतलब है ज्यादा ठंडक।” उन्होंने कहा कि ज्यादा पेड़ लगाना और शहरी हरियाली को बनाए रखना गर्मी को कम करने के दीर्घकालिक उपायों का हिस्सा होना चाहिए।
सामाजिक-आर्थिक स्थिति से होने वाली परेशानियां
हाल ही में हुए एक अध्ययन में पाया गया है कि 1990 और 2019 के बीच दुनिया भर में औसत लू से संबंधित अतिरिक्त मौत (‘सामान्य’ स्थितियों से ज्यादा होने वाली मौत की संख्या) 1.53 लाख (153,078) थीं। इनमें से पांचवां हिस्सा भारत से था।
लू से बचाव के लिए आईएमडी ने “दोपहर 12 बजे से 3 बजे के बीच धूप में बाहर जाने से बचने” की सलाह दी है। लेकिन भीमा और सुशीला जैसे कामगारों के लिए यह कोई विकल्प नहीं है।
ढिंडाव ने बताया, ”भारत खासतौर पर असुरक्षित है, क्योंकि हमारे ज्यादातर मजदूर असंगठित क्षेत्र में काम करते हैं। इसका मतलब है कि वे खुले में काम कर रहे हैं।” 2022 के एक अध्ययन के अनुसार, भारत ने 2001 से 2020 के बीच आर्द्र गर्मी के संपर्क में आने के चलते सालाना लगभग 259 अरब श्रम घंटे खो दिए हैं। इससे देश को 624 अरब डॉलर का नुकसान हुआ है।
आईआईएम के शाह ने अपने शोध के जरिए यह भी बताया कि गर्मी का बोझ सामाजिक-आर्थिक समूहों में असमान रूप से बंट जाता है। उन्होंने कहा, “खुले में काम करने वालों में अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) के मजदूर ज्यादा हैं।”
यह बात अनुसूचित जाति के भीमा के बारे में भी सच है। वह तीसरी पीढ़ी के सफाई कर्मचारी हैं। नतीजतन, खुले में काम करने वाले शायद ऐतिहासिक रूप से हाशिए पर पड़ी जातियों से आते हैं। ये लोग ज्यादा गर्मी के संपर्क में आते हैं और इसलिए, गर्मी से जुड़ी बीमारियों का शिकार होते हैं।
शाह ने कहा, “अगर आप तीन घंटे गर्मी में बिताते हैं और दो घंटे छाया में आराम करते हैं, तो आपको हीट स्ट्रोक नहीं हो सकता है। लेकिन अगर आप उन जगहों को बंद कर देते हैं जहां वे [खुले में काम करने वाले श्रमिक] आराम करते हैं, तो यह खतरनाक है और इससे उनकी सेहत पर असर होगा।”
आईआईपीएच के मावलंकर ने कहा, “गर्मी के संपर्क में आने से होने वाले सबसे बड़े खतरों में से एक हीट स्ट्रोक है। अगर समय रहते इसका इलाज न किया जाए, तो इसमें मृत्यु दर लगभग 30% से 40% तक हो सकती है, क्योंकि ज्यादा तापमान के कारण शरीर के अंग काम करना बंद कर देते हैं।” नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो की 2022 की आकस्मिक मृत्यु और आत्महत्या पर रिपोर्ट के अनुसार, प्राकृतिक शक्तियों के कारण होने वाली 8,060 आकस्मिक मौत में से 9.1% या 730 गर्मी या सन स्ट्रोक के कारण हुई थी।
सबको साथ लेकर चलने की नीति
अब यह साबित हो चुका है कि शहरी पार्क अर्बन हीट आईलैंड का असर कम करने में कारगर साबित हुए हैं। ऐसा बेरोकटोक कंक्रीट के ढांचे खड़े करने और जलवायु परिवर्तन से तापमान में होने वाली बढ़ोतरी से होता है।
शाह के शोध से यह भी पता चला कि बेंगलुरु के जिन वार्डों में एससी, एसटी निवासियों की संख्या ज़्यादा है, वे हरियाली से दूर हैं। उन्होंने स्पष्ट किया, “उनके पास हरियाली और झीलों जैसी पर्यावरण से जुड़ी चीजों तक कम पहुंच है और इसलिए वे पर्यावरण से होने वाले नुकसान के सबसे ज़्यादा शिकार हैं।” “यह तथ्य कि आबादी के कुछ वर्गों के लिए पार्क सुलभ नहीं हैं, उसे समस्या के रूप में भी नहीं पहचाना जाता है।”
तत्काल अल्पकालिक उपाय के रूप में, जानकार इस बात पर सहमत हुए कि पार्क के समय में बदलाव किया जाना चाहिए, ताकि जरूरत पड़ने पर वहां आसानी से पहुंचा जा सके।
हाल ही में जारी बेंगलुरु क्लाइमेट एक्शन एंड रेजिलिएशन प्लान (बीसीएपी) में, नीले-हरे स्थानों को लचीलापन और रहने की क्षमता में सुधार के लिए प्रकृति-आधारित समाधान के रूप में पहचाना गया है। अभी ये सुझाव कागज पर हैं, श्रमिकों को इसे लागू करने में बहुत अधिक भरोसा नहीं है। भीमा ने दावा किया, “हम सरकार को दिखाई ही नहीं देते हैं।”
बैनर तस्वीर: बेंगलुरु में दोपहर के समय पार्क आम जनता के लिए बंद रहते हैं, जिससे खुले में काम करने वाले लोग धूप से राहत पाने के लिए इन जगहों का इस्तेमाल नहीं कर पाते। तस्वीर: प्रगति रवि।
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