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जमीन पर कूदने और रेंगने वाली मडस्किपर मछलियां

दुसुमियर का मडस्किपर। बोलेओफथाल्मस दुसुमियरी। तस्वीर-वैथियानाथन कन्नन 

दुसुमियर का मडस्किपर। बोलेओफथाल्मस दुसुमियरी। तस्वीर-वैथियानाथन कन्नन 

  • मडस्किपर एक उभयचर गोबी मछली हैं, जो दलदली इलाकों और मैंग्रोव वनों के अंतर ज्वारीय आवासों में पाई जाती हैं।
  • इन मछलियों की अपने पारिस्थितिकी तंत्र में काफी महत्वपूर्ण भूमिका होती है। ये मिट्टी की संरचना को बदलती हैं और पोषक तत्वों के चक्र को बेहतर बनाती हैं।
  • पर्यावरणीय परिवर्तनों के प्रति अपनी संवेदनशीलता के कारण मडस्किपर संकेतक प्रजातियों के रूप में काम करती हैं। इनकी संख्या को देखकर हम समझ सकते हैं कि अंतर ज्वारीय आवास कितने स्वस्थ हैं।
  • मडस्किपर आबादी की निगरानी से जलवायु परिवर्तन और आवास क्षरण के प्रभावों के बारे में गहराई से जानकारी मिल सकती है।

मडस्किपर एक अनोखे उभयचर मछलियों का समूह है जो इवोल्यूशन के अनुकूलन के एक चमत्कार के रूप में सामने आया है। ये दलदली इलाकों और मैंग्रोव वनों में रहती हैं। इन्होंने खुद को अपने रहने के वातावरण के हिसाब से ढाल लिया है। वे जमीन पर चल सकती है, भोजन कर सकती हैं और फिर पानी में लौटकर प्रजनन कर सकती हैं या शिकारियों से बच सकती हैं। इनके इस तरह के जीवन जीने की क्षमता उन्हें अन्य सभी जीवित और विलुप्त जलीय जीवों से अलग बनाती है। उभयचर जीवन के लिए उनके पास उच्च स्तर की विशेषज्ञता है। 

सब फैमिली ऑक्सुडरसीने में 10 जेनेरा और 40 प्रजातियां शामिल हैं। वे पूर्वी अफ्रीका और मेडागास्कर के मुहाना आवासों और मैंग्रोव दलदलों में अंतर ज्वारीय क्षेत्रों के कीचड़ भरे तटों के साथ-साथ बंगाल के सुंदरबन, दक्षिण-पूर्व एशिया से उत्तरी ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण-पूर्व चीन और दक्षिणी जापान, समोआ और टोंगा द्वीपों तक पाए जाते हैं। ज़प्पा को छोड़कर 10 प्रजातियों में से नौ भारत में, पूर्वी और पश्चिमी तटों पर पाई जाती हैं।

जाहिर है, सभी मडस्किपर अंतर ज्वारीय क्षेत्रों और नदी के मुहानों पर पाई जाती हैं, लेकिन प्रजातियों की पर्यावरण अनुकूलन क्षमता अलग-अलग है, जिस वजह से उनके आवास भी अलग-अलग क्षेत्रों में हैं। उदाहरण के लिए, स्कार्टेलाओस हिस्टोफोरस प्रजाति आम तौर पर निम्न ज्वार रेखा के नीचे पाई जाती है जहां उन्हें अधिक मात्रा में मिट्टी के साथ नरम मिट्टी मिलती है। वहीं पेरीओफथाल्मस मैग्नसपिन्नाटस प्रजाति उच्च ज्वार रेखा वाले क्षेत्रों में नजर आती है। आकड़े बताते हैं कि मडस्किपर की संख्या बरसात के मौसम में, खास तौर पर जून से अक्टूबर तक, में काफी कम हो जाती है।

गुजरात और महाराष्ट्र में लोग मडस्किपर को लेवाटा मछली के नाम से पहचानते हैं। ग्रामीण तटीय समुदाय इसे बड़े शौक से खाते हैं। आमतौर पर माना जाता है कि इस मछली का मांस औषधीय गुणों से भरपूर है और इस मिथक के कारण कोविड-19 महामारी में लेवाटा की मांग अचानक से बढ़ गई थी।

दुसुमियर का मडस्किपर। बोलेओफ्थाल्मस दुसुमियरी। तस्वीर- वैथियानाथन कन्नन 
दुसुमियर का मडस्किपर। बोलेओफ्थाल्मस दुसुमियरी। तस्वीर- वैथियानाथन कन्नन

पानी से दूर होकर भी जिंदा

मुश्किल वातावरण में ढल जाना, इन उभयचर मछलियों की खासियत हैं। इससे हमें जैविक विकास की जटिलताओं के बारे में जानने को मिलता है। इनके पास खास तरह के पेक्टोरल पंख हैं जो पैरों की तरह काम करते हैं। इनसे ये मछलियां दलदली इलाकों और मैंग्रोव पेड़ों की जड़ों पर आसानी से चल पाती हैं। यह अनुकूलन अंतरज्वारीय क्षेत्रों में जीवित रहने के लिए बहुत जरूरी हैं।

मडस्किपर गिल्स और नम त्वचा के दोनों के जरिए सांस ले पाती हैं। अपनी इस क्षमता की वजह से ये ज्वार की अवधि में, जब वे हवा के संपर्क में होती हैं, तो जीवित रह पाती हैं। 

धूप में बैठना

कम ज्वार के दौरान, मडस्किपर मछलियां धूप में बैठती हैं ताकि अपने शरीर का तापमान नियंत्रित कर सकें और निर्जलीकरण से बच सकें। यह उन्हें अपने शारीरिक कार्यों को बनाए रखने और सूखने से बचाने में मदद करता है, जो अंतर ज्वारीय क्षेत्रों में जीवित रहने के लिए बहुत जरूरी है। धूप सेंक कर ये मछलियां अपने आसपास के वातावरण से नमी सोख सकती हैं, खासकर अपनी त्वचा के माध्यम से, जो निर्जलीकरण को रोकने में मदद करता है।

धूप सेंकने के लिए, मडस्किपर मछलियां ऊंची जगहों जैसे चट्टानों या मैंग्रोव पेड़ों की जड़ों की तरफ जाती हैं। ये जगह धूप में रहने और अपने शरीर के तापमान को नियंत्रित करने में मदद करती हैं। धूप सेंकने की जगहें सामाजिक संपर्क के लिए भी इस्तेमाल होती हैं। मडस्किपर इन जगहों पर इकट्ठा होती हैं, अपने क्षेत्र पर कब्जा करने और उसे अपने लिए सुरक्षित करने की कोशिश करने, प्रणय और अपनी मौजूदगी के लिए आवाजें निकालती हैं। धूप सेंकने का समय और अवधि पर्यावरणीय परिस्थितियों के आधार पर अलग-अलग हो सकती है।

मैंग्रोव की जड़ पर एक मडस्किपर। तस्वीर- क्रिस्टा रोहरबाक/फ़्लिकर 
मैंग्रोव की जड़ पर एक मडस्किपर। तस्वीर– क्रिस्टा रोहरबाक/फ़्लिकर

धूप सेंकना एक तरह से आपसी मिलन का हिस्सा भी है, जहां नर संभावित साथियों को ध्यान खींचने के लिए शरीर पर जोरदार रंगों को दिखाते हैं। कुछ मडस्किपर प्रजातियां जटिल संभोग नृत्य करती हैं जिसमें खास हरकतें और पैटर्न शामिल हैं जो संभावित साथियों के बीच रिझाने के लिए किया जाता है। उनकी आवाज़ें जो क्लिक से लेकर चहकने तक हो सकती हैं, नर और मादा के बीच आपसी बातचीत का जरिया है। ध्वनियां संभोग के लिए तैयार होने का संकेत देती हैं या आपस में संबंध स्थापित करने और बनाए रखने में भूमिका निभाती हैं।

मादाएं नर के प्रणय प्रदर्शनों पर प्रतिक्रिया करती हैं। अपना जोड़ीदार चुनना नर के प्रदर्शन की गुणवत्ता, उसके क्षेत्र की स्थिति और दिखाई व सुनाई देने वाले संकेतों से प्रभावित हो सकती है। सफल प्रणय सफल प्रजनन की संभावना को बढ़ाता है और उनका यह साथ अंडे देने की जगहों को चुनने में भी बना रहता है। नर अंडों को रखने के लिए जगह तैयार करते हैं और फिर उसकी सुरक्षा भी करते हैं। मादाएं संभावित जगहों को जाकर देखती हैं और सफल प्रणय के बाद अक्सर मादा चुने हुए मिट्टी के बिलों में अपने अंडे देती हैं। मादा अंडे देने के बाद नर ही इन बिलों की देखभाल करते हैं, जिससे शिकारी उस तक नहीं पहुंच पाते और उनके बच्चों के जीवित रहने की संभावना बढ़ जाती है।

नर अंडों को ऑक्सीजन देने के लिए कई तरह के व्यवहार करते हैं। इसमें अपने पेक्टोरल पंखों से अंडों को हवा देना शामिल है। उसके इन प्रयासों से विकासशील भ्रूण को उचित ऑक्सीजन मिलती रहती है। मिट्टी में रहने वाले मडस्किपर के लिए ऑक्सीजन मिलते रहना बहुत ज़रूरी है। मडस्किपर अंडों को सूखने से बचाने के लिए घोंसले के क्षेत्र में नमी का सही स्तर बनाए रखते हैं। दरअसल जब समुद्र का पानी नीचे जाता है, तो अंडों को सूखने का खतरा होता है। नर मडस्किपर अंडों के आसपास की मिट्टी को गीला रखते हैं ताकि नमी बरकरार रहे और अंडे सूखे नहीं। 


और पढ़ेंः [टिप्पणी] मैंग्रोव के बीच एक यात्रा और उससे मिले जीवन के सबक


मडस्किपर प्रजातियों में नर द्वारा अपने बच्चे की देखभाल की अवधि अलग-अलग होती है, लेकिन आम तौर पर यह अंडे सेने तक तो बनी ही रहती है। इस ब्रूडिंग अवधि के दौरान नर सतर्क रहते हैं और विकासशील भ्रूणों की रखवाली और देखभाल करते हैं। संतान के जीवित रहने के लिए ब्रूडिंग अवधि एक महत्वपूर्ण चरण है।

कुछ मडस्किपर नर अपने बच्चों की देखभाल अंडे से निकलने के बाद भी करते हैं। इसमें अपने छोटे बच्चों को खतरे से बचाना, उन्हें खाने की जगह और छिपने की जगह दिखाना शामिल है। 

नर मडस्किपर बिलों को शिकारियों से बचाते हैं, ताकि उनके अंडे और बच्चे सुरक्षित रहें। वह अपने बच्चों की तब तक देखभाल करते हैं जब तक कि वे खुद का ख्याल रखने में लायक नहीं हो जाते। मडस्किपर के इस व्यवहार को समझने से इन उभयचर मछलियों द्वारा अपने बच्चों के जीवित रहने के लिए अपनाई जाने वाली जटिल रणनीतियों पर काफी जानकारी मिलती है। नर के सहयोगी प्रयास उनकी प्रजनन सफलता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

दुसुमियर का मडस्किपर। बोलेओफथाल्मस दुसुमियरी। तस्वीर: वैथियानाथन कन्नन
दुसुमियर का मडस्किपर। बोलेओफथाल्मस दुसुमियरी। तस्वीर: वैथियानाथन कन्नन

क्षेत्रीय व्यवहार

मादा मडस्किपर अक्सर उन नरों की ओर आकर्षित होती हैं जिनके पास अच्छे और सुरक्षित क्षेत्र होते हैं, इसकी वजह से मिट्टी में बिल बनाने और संतान को पालने के लिए सुरक्षित माहौल मिल जाता है। अच्छे क्षेत्रों के लिए नर मडस्किपर के बीच कड़ा मुकाबला होना भी काफी आम है। नर अपने क्षेत्र को बढ़ाने या उसकी रक्षा करने की कोशिश करते हुए अकसर टकराव की स्थिति में आ जाते हैं।

क्षेत्र का आकार मडस्किपर्स के लिए काफी मायने रखता है, बड़ा क्षेत्र होने का मतलब है ज़्यादा खाना और अंडे देने के लिए ज़्यादा जगह। और वैसे भी बड़ा क्षेत्र मादाओं को ज्यादा आकर्षित करता है। प्रजनन के समय मडस्किपर्स को अपने इलाके की रक्षा करने के लिए बहुत ज़्यादा मेहनत करनी पड़ती हैं। लेकिन प्रजनन के समय के अलावा, मडस्किपर्स ज़्यादा लड़ाई नहीं करते, क्योंकि साथियों को आकर्षित करने की आवश्यकता कम हो जाती है। इस तरह, मडस्किपर्स का क्षेत्रीय व्यवहार उनके प्रजनन और सामाजिक जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

पारिस्थितिक महत्व

मडस्किपर पारिस्थितिकी तंत्र इंजीनियर के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, ज्वारीय क्षेत्रों में तलछट संरचना को प्रभावित करते हैं और पोषक चक्र को बढ़ावा देते हैं। वे समुद्र तल पर रहने वाले जीवों और पक्षियों के बीच एक महत्वपूर्ण कड़ी की तरह काम करते हैं। जहां एक तरफ मडस्किपर छोटे जीवों जैसे झींगे और शैवाल को खाते हैं, तो वहीं दूसरी ओर तटीय पक्षी, खास तौर पर प्रवासी पक्षी मडस्किपर को खाते हैं। 

ये मछलियां अपने लिए बिल बनाती हैं, उसमें अंतर ज्वारीय क्षेत्रों में रहने वाले अन्य छोटे जीवों को भी आश्रय मिल जाता हैं। तो वहीं मैंग्रोव आवासों में उनके बिल मैंग्रोव जड़ों को ऑक्सीजन लेने में मदद करते हैं। इस तरह से मडस्किपर अपने बिलों से पूरे इकोसिस्टम को फायदा पहुंचाती हैं।

पर्यावरणीय परिवर्तनों के प्रति अपनी संवेदनशीलता के कारण, मडस्किपर संकेतक प्रजातियों के रूप में काम करते हैं, जो अंतर ज्वारीय आवासों की स्थिति को दर्शाते हैं। मडस्किपर आबादी की निगरानी, ​​परिदृश्य और आवास क्षरण पर जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के बारे में जानकारी दे सकती है। मडस्किपर जीव विज्ञान की बारीकियों को समझना न सिर्फ वैज्ञानिक ज्ञान में योगदान देता है, बल्कि जीवन की विविधता के लिए अंतर ज्वारीय आवासों को संरक्षित करने के महत्व पर भी जोर देता है।

 

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बैनर तस्वीर: दुसुमियर का मडस्किपर। बोलेओफथाल्मस दुसुमियरी। तस्वीर-वैथियानाथन कन्नन

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