- धूप में पकाई गई मिट्टी और चूने से बनी ईंटें और ‘कैविटी वाल्स’ एकलव्य फाउंडेशन की इमारत को दूसरी इमारतों के मुकाबले कुछ डिग्री तक ठंडा रखने में कारगर हैं।
- इमारत में हुए कई आर्किटेक्चर इनोवेशन जैसे कि छत के ऊपर का इन्सुलेशन और कैविटी वाली दीवार गर्मी को इमारत में प्रवेश करने से रोकते हैं।
- यह इमारत प्राकृतिक रोशनी का उपयोग कर बिजली की खपत को न्यूनतम रखती है और वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम से पानी बचाने में भी सक्षम है।
मई और जून के महीनों में बाहर पड़ रही भीषण गर्मी के बावजूद भी भोपाल के एकलव्य फाउंडेशन के कर्मचारी एक पंखे के नीचे खुश हैं। उन्हें दूसरे दफ्तरों के जैसे एयर कंडीशनर की ज़रुरत महसूस नहीं होती है। यह सब एकलव्य की ग्रीन बिल्डिंग के कारण संभव हो रहा है।
धूप में पकाई गई मिट्टी और चूने से बनी ईंटें और सुराखों वाली दीवार यानी ‘कैविटी वाल्स’ इस इमारत को दूसरी बिल्डिंग के मुकाबले कुछ डिग्री तक ठंडा रखने में कारगर हैं। इमारत को पर्यावरण को ध्यान में रखकर बनाया गया था, क्योंकि संगठन के संस्थापक पर्यावरण को नुकसान नहीं पहुंचाना चाहते थे। पर इस बिल्डिंग को ईको –फ्रेंडली बनाने में आर्किटेक्ट्स को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा।
इमारत की नींव रखने के लिए शुरूआत में ही खुदाई में काली मिट्टी की एक बड़ी चुनौती थी।
संस्था के एग्जीक्यूटिव अफसर मनोज निगम कहते हैं, “नींव के लिए इस स्थान से लगभग 200 ट्रक काली मिट्टी निकाली गई थी। यह मिट्टी निर्माण के लिए खराब होती है और निर्माण प्रक्रिया में कहीं भी इसके इस्तेमाल का कोई फायदा नहीं है क्योंकि उसमें कीड़े (दीमक) लग जाते हैं जो इमारत को नुकसान पहुंचा सकते हैं। लेकिन हम इस प्राकृतिक संसाधन को बर्बाद नहीं करना चाहते थे और फिर वापस भरने के लिए रेत नहीं मंगवाना चाहते थे, जो हमारी नदियों के क्षरण का एक बड़ा कारण है।“
बेंगलुरु स्थित चित्रा विश्वनाथ की फर्म बायोम एनवायरनमेंटल, जो इकोलॉजिकल आर्किटेक्चर पर काम करती है, के आर्किटेक्ट्स ने काली मिट्टी से कीड़ों को दूर करने के लिए तेलों के मिश्रण का उपयोग करने का फैसला किया। दीमक का उपचार रसायन मुक्त प्राकृतिक तेलों के मिश्रण से किया गया। फिर मिट्टी को नींव भरने के लिए इस्तेमाल करने से पहले चूने से मजबूत किया गया।
काली मिट्टी समय के साथ फैलती है, जिससे इमारत पर बहुत दबाव पड़ता है। “हमने इसे स्थिर करने और नींव के गड्ढों को वापस भरने के लिए उपयोग करने से पहले इसके फैलने की प्रवृत्ति को कम करने के लिए चूने का इस्तेमाल किया। नींव को परत दर परत बनाया गया था, जिसमें काली मिट्टी की एक परत के बाद चूने के पत्थर की परत थी।” अनुराग ताम्हणकर, बायोम एनवायरॉनमेंटल के निदेशक और आर्किटेक्ट, ने बताया।
क्लाइमेट इनोवेशन
प्रकृति को ध्यान में रखकर बनाई जा रही इस ईमारत के निर्माण के दौरान इसके कार्बन फुटप्रिंट को कम करने के साथ ही इसकी मजबूती और टिकाऊपन से समझौता नहीं किया गया। और इसके लिए इसे बनाने वाली टीम को कई प्रयोग करने पड़े।
तेज गर्मी में बिना एयर कंडीशनर के इस्तेमाल के भी यहाँ के कर्मचारी काम कर सकें इसलिए इसकी छत के ऊपर किया गया इन्सुलेशन और इसकी कैविटी वाली दीवारें एक क्लाइमेट इनोवेशन के रूप में सामने आती हैं, जो गर्मी को इमारत में प्रवेश करने से रोकती हैं।
“घरों में, अधिक गर्मी दीवारों के माध्यम से अवशोषित हो जाती है, बड़े कार्यालयों में, छत से अधिकतम गर्मी का अवशोषण होता है। गर्मी के अवशोषण को कम करने के लिए हमने ऊपरी–डेक इन्सुलेशन के लिए एक्सट्रूडेड पॉलीस्टाइरिन का इस्तेमाल किया,” ताम्हणकर ने आगे कहा।
इमारत का निर्माण भी इस तरह से किया गया है कि सीधी धूप दीवारों पर कम से कम पड़े। यह शुरू से ही स्पष्ट था कि इमारत को बिना प्लास्टर या पेंट के ‘एक्सपोज्ड बिल्डिंग’ के रूप में रखा जाएगा। ऐसे में फ्लाई–एश ईंटों को नमी से बचाने जैसी चुनौतियां थीं जिन पर आर्किटेक्ट्स को काफी सोच विचार करना पड़ा।
“मध्य प्रदेश में एक नियम है कि अगर फ्लाई ऐश ईंटें स्थानीय रूप से उपलब्ध हों तो निर्माण के लिए उनका इस्तेमाल किया जाना चाहिए। लेकिन चूंकि हम एक एक्सपोज्ड बिल्डिंग बना रहे थे, तो ये फ्लाई ऐश ईंटें हमारे लिए चुनौती बन गईं, क्योंकि ये बहुत ज्यादा नमी सोख लेती हैं,” ताम्हणकर ने समझाया ।
मिट्टी, चूने के पाउडर, जिप्सम, फ्लाई ऐश और सिर्फ 4% सीमेंट को मिलाकर बनाई गईं धूप में पकी ईंटें पारंपरिक ज्ञान और जलवायु नवाचार (क्लाइमेट इनोवेशन) का एक साथ प्रयोग थीं । इन ईंटों को बनाने का तरीका इनकी नमी सोखने की क्षमता को कम करता है और साथ ही इमारत को ठंडा रखने में भी कारगर है। ताम्हणकर ने आगे बताया, “इन मॉडिफाइड फ्लाई ऐश ईंटों की वजह से नमी सोखने की मात्रा 22% से घटकर 12% हो गई।“
निगम ने ये भी बताया कि वैसे तो फ्लाई ऐश ईंटें खुद पर्यावरण के अनुकूल मानी जाती हैं, लेकिन इन ईंटों में मिट्टी और चूना पाउडर इस्तेमाल करने से इमारत सामान्य लाल ईंटों से बनी इमारतों के मुकाबले ज्यादा ठंडी रहती है।
उन्होंने मोंगाबे-हिंदी को बताया, “दो लाख से ज्यादा धूप में पकी ईंटों का इस्तेमाल कई मामलों में फायदेमंद रहा। इससे ईंटों को पकाने वाली भट्टी जलाने के लिए ईंधन की बचत हुई, प्रदूषण कम हुआ और सूर्य से निकलने वाली नवीकरणीय ऊर्जा का इस्तेमाल भी हुआ। इन फायदों ने हमें विश्वास दिला दिया कि हम सही दिशा में जा रहे हैं।“
लेकिन एक एक्सपोज्ड बिल्डिंग की देखभाल, खासकर मानसून के दौरान, उनके लिए एक चुनौती बनी रही । बारिश से दीवारों को बचाने के लिए उन्होंने इमारत के उत्तर और पश्चिम दिशा में एक फुट चौड़े फसाड (बाहरी हिस्सा) लगाया।
“इन फसाड को बनाने के लिए हमने किसी नए सामान का इस्तेमाल नहीं किया, बल्कि स्थानीय कबाड़ी वाले से फर्स्ट रीइंपोज्ड प्लास्टिक (FRP) से बने 400 पुराने रेलवे के शटर लिए । चूंकि यह चीज़ पुराने लोहे के शटरों के जैसे रीसायकल नहीं की जा सकती, हमने इनको एक नए रूप में इस्तेमाल किया,” आर्किटेक्ट ने आगे बताया।
इमारत बनाने में इस्तेमाल किया गया सामान स्थानीय स्तर पर ही लिया गया है, जिससे परिवहन लागत और पत्थर खनन से होने वाले पर्यावरणीय नुकसान को कम किया गया ।
निगम ने बताया, “चित्रा जी ने सुझाव दिया कि पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने से रोकने के लिए संगमरमर, ग्रेनाइट, कोटा स्टोन या सिरेमिक टाइल्स की जगह भारतीय पेटेंट स्टोन (IPS) फ्लोरिंग का इस्तेमाल किया जाये।” उन्होंने आगे कहा, “कबाड़ के सामानों का इस्तेमाल करने से पैसे बचे और साथ ही पुराने सामानों को नया जीवन देने में भी मदद मिली।“
बिजली और पानी की बचत
बिजली और पानी की बचत और रीसायकल किए गए सामानों का इस्तेमाल प्राकृतिक चीजों से बनाने के अलावा, यह इमारत सूरज की रौशनी का भरपूर उपयोग भी करती है जिस से आर्टिफिशियल लाइट का प्रयोग कम से कम होता है। इसके लिए एक सनरूफ और बड़े–बड़े झरोखे बनाये गए हैं। इसके अलावा यहाँ LED लाइट्स का प्रयोग किया गया है जिस से बिजली की खपत और कम हो जाती है। बाथरूम और कॉरिडोर में लाइट के लिए सेंसर का उपयोग किया गया है जो मोशन डिटेक्टर की मदद से किसी के आने पर खुद-ब-खुद जल जाती हैं।
बिल्डिंग के सर्वर रूम के अलावा कहीं और एयर कंडीशनर लगा है जिससे बिजली की खपत और कम हो जाती है।
“चूंकि (कंप्यूटर) सिस्टम को गर्म होने से बचाने के लिए सर्वर रूम में एयर कंडीशनर लगाना जरूरी था, इसलिए पूरी इमारत में यही एक कमरा है जहां एयर कंडीशनर लगा है । बाकी हर जगह केवल कूलर से ही काम चल जाता है। हालांकि हमने यहां अन्य इमारतों के साथ तापमान के अंतर को नहीं मापा है, जैसा कि हमने बैंगलोर में किया था, लेकिन कर्मचारियों को गर्मियों में बिना एयर कंडीशनर के भी जो आराम मिलता है, वही सब कुछ बयां कर देता है,” ताम्हणकर ने आगे कहा।
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इन खूबियों के अलावा, एकलव्य की ग्रीन बिल्डिंग अपनी जल संचयन प्रणाली के माध्यम से पानी का संरक्षण करती है और अपने बगीचे के लिए रीसाइकल्ड या इस्तेमाल किए हुए पानी का उपयोग करती है।
“छत पर लगी वर्षा जल संचयन प्रणाली (वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम) एक्वीफर को भरती है जो फिर धीरे-धीरे भूजल को रिचार्ज करती है। हम परिसर से एक भी बूंद पानी बर्बाद नहीं होने देते हैं,” निगम ने कहा। “यहाँ पर पांच फ़ीट चौड़े और बीस फ़ीट गहरे चार रिचार्ज वेल्स हैं। ये परिसर से पानी को एक्वीफर में पहुंचाते हैं।
“हमारा अनुमान यह कि हम भोपाल में औसत वर्षा के अनुसार हर साल लगभग 50 लाख लीटर पानी रिचार्ज करते हैं, जबकि हमारा वार्षिक उपयोग केवल चार लाख लीटर है,” उन्होंने बताया। इमारत के कैंपस में एक सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) भी है।
“जब शुरुआत में कर्मचारियों को एसटीपी के बारे में पता चला, तो उन्हें परिसर में इसके होने से खुशी नहीं हुई । उन्हें लगा कि यह अस्वच्छ है। लेकिन अब सभी ने इसे स्वीकार कर लिया है। यहां शौचालयों से निकलने वाले पानी को ट्रीट किया जाता है और बगीचों को सींचने के लिए इसका पुन: उपयोग किया जाता है । हमारे पौधे फल-फूल रहे हैं,” उन्होंने आगे कहा।
बैनर तस्वीरः एकलव्य फाउंडेशन की ग्रीन बिल्डिंग धूप में पकाई गई मिट्टी और चूने से बनी ईंटो से बनी है जिस से यह दूसरी इमारतों के मुकाबले ठंडी रहती है। तस्वीर- एकलव्य फाउंडेशन