- देवी प्रसाद अहिरवार एक 54 साल के प्रवासी मजदूर हैं जो दिल्ली में सुरक्षा गार्ड के तौर पर काम करते हैं। वे उन चंद भाग्यशाली लोगों में से हैं जो जानलेवा हीट-स्ट्रोक होने के बावजूद जीवित बच गए।
- भीषण गर्मी से होने वाली समस्या या गर्मी से संबंधित दूसरी बीमारियों के विपरीत, हीट-स्ट्रोक जानलेवा होता है और इसमें समय बहुत कीमती होता है।
- देवी प्रसाद की दयनीय स्थिति के लिए कई कारक जिम्मेदार हैं, जिनमें स्वास्थ्य बीमा नहीं होना, गुजारा करने लायक वेतन नहीं मिलना और सुरक्षित नौकरी नहीं होना शामिल है।
- जानकारों का कहना है कि हीट एक्शन प्लान में महज लिंग जैसी व्यापक श्रेणियों के आधार पर कमजोर समूहों की पहचान करने से काम नहीं चलेगा। इसके लिए जागरूकता लाने के साथ-साथ बचाव के उपायों को बेहतर बनाने के लिए संस्थागत समूहों के साथ जुड़ाव भी जरूरी होगा।
इस साल दिल्ली में गर्मी के दौरान लंबे समय तक चली लू में दिल्ली के अस्पतालों को एक कड़वी सच्चाई का सामना करना पड़ा। जब हीट-स्ट्रोक से गंभीर रूप से पीड़ित एक मरीज को आपातकालीन कक्ष में ले जाया गया, तो उसके बचने की उम्मीद ना के बराबर थी। ज्यादातर मरीज़ पुरुष थे और कुछ दिनों में मृत्यु दर 70% से भी ज्यादा हो गई। देवी प्रसाद अहिरवार के लिए यह समय बहुत मुश्किल था। वे छह दिनों तक बेहोशी में रहे। उन्हें वेंटिलेटर पर रखा गया था। इन विषम परिस्थितियों से गुजरने के बाद उनके परिवार के लिए यह किसी चमत्कार से कम नहीं था। वह होश में आए और सबसे बुरे दौर से सही-सलामत बच निकले।
इस साल गर्मियों में भारत के ज्यादातर हिस्सों में अधिकतम तापमान सामान्य से ऊपर रहा। भारतीय मौसम विज्ञान विभाग के अनुसार देश की राजधानी में पिछले 13 सालों में गर्मी की अवधि सबसे लंबी थी। कम आय वर्ग के मजदूरों और खुले में काम करने वाले कामगारों पर इसका सबसे ज़्यादा बुरा असर पड़ा। जून का आधा महीना खत्म होते-होते अस्पताल हीट-स्ट्रोक के आपातकालीन मामलों से भर गए थे। हालांकि, 20 जून को मौसम बदलने के बाद यह संकट कम हो गया।
दिल्ली में बहुत ज्यादा गर्मी और हीट-स्ट्रोक से होने वाली मौत की संख्या में बढ़ोतरी ने असरदार हीट एक्शन प्लान (HAP) पर चर्चा को तेज कर दी है, ताकि लू के दुष्प्रभावों को कम किया जा सके। लेकिन 54 साल के देवी प्रसाद की कहानी दिखाती है कि हीट स्ट्रेस के दुष्प्रभावों के लिए कई कारक जिम्मेदार हैं और इससे महज केंद्रीय योजना के आधार पर निपटना लगभग नामुमकिन है। इसलिए, कुछ हद तक सबसे गरीब लोगों के लिए जीवित रहना सिर्फ और सिर्फ किस्मत पर निर्भर करता है।
दिल्ली में दो हफ़्तों तक पड़ी भीषण गर्मी के बाद 18 जून को अधिकतम तापमान 44 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया। उस दिन देवी प्रसाद बेहोश हो गए। वे नोएडा सेक्टर 50 के पॉश इलाके में अपनी गार्ड की ड्यूटी पर तैनात थे। दोपहर करीब साढ़े तीन बजे उन्हें पास के नियो सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल ले जाया गया।
उन्हें 106 डिग्री फ़ारेनहाइट बुखार था। वे हांफ रहे थे और बेहोशी में थे। अस्पताल के उनके पर्चे के अनुसार उन्हें “कोड ब्लू” घोषित किया। यह चिकित्सा से जुड़ी आपातकाल स्थिति है जो आमतौर पर हृदय के ठीक से काम नहीं करने या ठीक से सांस नहीं आने से बनती है। उन्हें ठंडा सलाइन ड्रिप लगाया गया। उनके शरीर को ठंडा करने के लिए स्पंज किया गया, इंट्यूबेट किया गया। फिर उन्हें गहन चिकित्सा इकाई (ICU) में भेज दिया गया। देवी प्रसाद ने कहा, “असल में मुझे बेहोश होने के बाद से या उस दिन से कुछ भी याद नहीं है।”
बहुत ज्यादा गर्मी से होने वाली मुश्किलों या गर्मी से संबंधित दूसरी बीमारियों के विपरीत, हीट-स्ट्रोक किसी भी जिंदगी के लिए खतरा है। इस स्थिति में समय बहुत कीमती होता है। हीट-स्ट्रोक तब हो सकता है जब गर्मी से होने वाली थकावट का इलाज नहीं हो पाता है और शरीर का थर्मोरेगुलेशन तय सीमा को पार कर जाता है। इससे शरीर की अतिरिक्त गर्मी बाहर नहीं निकल पाती है। यह केंद्रीय तंत्रिका तंत्र को खराब कर सकता है और फिर अंग शिथिल पड़ सकते हैं।
हालांकि, देवी प्रसाद समय रहते अस्पताल पहुंच गए, लेकिन बाकी लोग इतने भाग्यशाली नहीं थे। देवी प्रसाद के दामाद विनोद कुमार ने बताया, “हमने हीट-स्ट्रोक के कारण अस्पताल में भर्ती चार अन्य लोगों को पहुंचने के एक घंटे के भीतर दम तोड़ते देखा।” “हम डरे हुए थे कि हमारे पिता भी नहीं बच सकेंगे।”
इस स्थिति में सबसे पहला इलाज यह है कि बिना किसी देरी के शरीर को तेजी से ठंडा किया जाए। दिल्ली के कुछ अस्पतालों ने मरीजों की बढ़ती तादाद से निपटने के लिए खास हीट यूनिट बनाए गए। राम मनोहर लोहिया अस्पताल में, दो सीमेंट इमर्शन टब और एक बड़े आइस डिस्पेंसर वाली हीट यूनिट डॉ. अजय चौहान की देख-रेख में बनाई गई थी। डॉ चौहान हीट स्पेशलिस्ट हैं। उन्होंने गर्मी से होने वाली बीमारियों के लिए आपातकालीन कूलिंग पर राष्ट्रीय दिशा-निर्देश बनाने में मदद की थी। उन्होंने कहा, “शरीर को जल्द ठंडा करने से जान बच सकती है। लेकिन जब मरीज देरी से आते हैं, तो ऐसा करने के लिए समय बहुत कम होता है। हमारे बेहतरीन तरीकों के बावजूद, हमने 60 से 70 प्रतिशत मृत्यु दर देखी।” “जब कोई हीट-स्ट्रोक से गिर जाता है, तो सबसे अहम बात यह है कि उसके शरीर पर गर्दन से नीचे तक पानी छिड़का जाए।”
देवी प्रसाद को गिरते हुए देखने वाले लोगों ने सूझबूझ दिखाते हुए उन पर पानी छिड़का और जब उन्होंने कोई प्रतिक्रिया नहीं की, तो वे घबरा गए। जिस जगह वे भर्ती थे, वहां के डॉक्टरों ने बताया कि यह छोटा-सा उपाय शायद उनकी जान बचाने में मददगार हुआ।