- कोच्चि और पणजी में सड़क किनारे लगे पेड़ों पर किए गए अध्ययन में हाल के सालों में इनकी सघनता कम होने और हरित आवरण में गिरावट की बात सामने आई है।
- दुनिया भर में कोच्चि और पणजी जैसे छोटे शहरों में वैश्विक शहरी आबादी का 41% हिस्सा रहता है।
- दोनों शहरों के निवासी शहरी पेड़ों को उनकी सुंदरता, पानी की आपूर्ति और छाया जैसी सेवाओं और धार्मिक महत्व के लिए पहचानते हैं। सड़क के किनारे लगे पेड़ों का इस्तेमाल अक्सर भोजन या दवा जैसी सेवाओं के लिए नहीं किया जाता था।
इस साल की रिकॉर्ड तोड़ गर्मी में किसी भी भारतीय शहर की सड़कों पर चलते हुए आपको चिलचिलाती गर्मी में चक्कर आ सकता है। हालांकि, पेड़ों से भरी सड़क पर जाने से फौरी तौर पर राहत मिल सकती है। असल में, दुनिया भर के कई महानगरों के अध्ययनों से पता चलता है कि बहुत ज्यादा शहरीकृत क्षेत्रों में पेड़ पैदल चलने और साइकिल चलाने जैसे स्थायी व्यवहार को बढ़ावा देते हैं। इन गतिविधियों से मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य बेहतर बना रहता है।
शहरी नियोजन में हरियाली बनाए रखने में पेड़ों की भूमिका के बावजूद ऐसे अध्ययन ग्लोबल नॉर्थ में महानगरों तक ही सीमित हैं। संयुक्त राष्ट्र की 2018 की विश्व शहरीकरण संभावना रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया भर में 41% शहरी आबादी महानगरों के बजाय छोटे शहरों में रहती है। वैसे भारत में आठ महानगर हैं। यहां 200 से ज्यादा छोटे शहर हैं। इन शहरों की प्रकृति और पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं के बारे में बहुत कम जानकारी उपलब्ध है।
वहीं, पिछले महीने प्रकाशित हुए एक अध्ययन में केरल के कोच्चि और गोवा के पंजिम जैसे तेजी से बदलते शहरों में सड़क किनारे पेड़ लगाने वाले समुदायों का मूल्यांकन किया गया। साथ ही, उनकी सेवाओं के बारे में लोगों की सोच का भी पता लगाया गया। उन्होंने दोनों शहरों में सड़क किनारे पेड़ों की कम सघनता और हाल में पेड़ों के आवरण में गिरावट के बारे में जानकारी दी।
यह स्टडी जर्नल ऑफ अर्बन इकोलॉजी में प्रकाशित हुई है। इसमें सड़क किनारे लगे हुए 931 पेड़ों का आकलन करने के लिए फील्ड माप का इस्तेमाल किया गया और 497 निवासियों का साक्षात्कार लिया गया। दोनों शहरों में सबसे ज़्यादा देखे जाने वाले पेड़ आमतौर पर सजावटी एवेन्यू ट्री जैसे कि रेन ट्री (अल्बिजिया समन) और कॉपरपॉड ट्री (पेल्टोफोरम प्टेरोकार्पम) और देशी तटीय प्रजातियां जैसे कि नारियल, भारतीय बादाम (टर्मिनलिया कैटाप्पा) और भारतीय ट्यूलिप ट्री (थेस्पेसिया पॉपुलनेया) का मिश्रण थे। इस अध्ययन में सिर्फ सड़कों के किनारे लगे पेड़ों का विश्लेषण किया गया। पार्क और अन्य हरी-भरी जगहों को इसमें शामिल नहीं किया गया।
इन दो शहरों को इसलिए चुना गया, क्योंकि ये अध्ययन में शामिल दो लेखकों के गृहनगर थे। ये लोग इन दो तटीय शहरों में लोगों की सोच के बारे में जानने के लिए उत्सुक थे, जहां समृद्ध प्राकृतिक और सांस्कृतिक विरासत है और हर साल बड़ी तादाद में पर्यटक आते हैं। चूंकि, दोनों शहरों में पर्यटन अलग-अलग तरीकों से बढ़ रहा है, इसलिए अध्ययन में “शहरी नियोजन में जैव विविधता को प्राथमिकता देने की मजबूत जरूरत” पर जोर दिया गया है।

आस-पास की सड़क के पेड़ों के बारे में लोगों की जानकारी
अध्ययन में कहा गया है, “हमने पाया कि दोनों शहरों में सड़क पर पेड़ों का औसत घनत्व कम है और यह पेड़ों के आवरण में हाल ही में हुए बदलाव (कोच्चि में -28%, पंजिम में -11%) की धारणाओं से मेल खाता है।” पेड़ों के आवरण में यह गिरावट उन लोगों की ओर से देखी गई जो कम से कम एक दशक से शहरों में रह रहे थे। साक्षात्कार सेक्रेड हार्ट कॉलेज, कोच्चि और गोवा विश्वविद्यालय, डोना पाउला में शोध सहायकों की ओर से लिए गए थे।
अध्ययन में पाया गया कि “पंजिम को सड़क किनारे पेड़ों की बहुतायत और विविधता के मामले में कोच्चि से बेहतर पाया गया है। सर्वेक्षण किए गए कई ट्रांसेक्ट में पेड़ नहीं थे। इनमें कोच्चि के 101 ट्रांसेक्ट और पणजी के 20 ट्रांसेक्ट शामिल थे।” पणजी में जवाब देने वाले सिर्फ 72 (39%) और कोच्चि में 105 (33%) लोग एक साल या उससे कम समय में किसी पार्क या हरित क्षेत्र में गए थे। हालांकि, वन्यजीव विज्ञानी और स्वतंत्र शोधकर्ता नंदिनी वेल्हो का मानना है कि इस आंकड़े को पूरी तरह सही नहीं माना जा सकता है। वेल्हो अध्ययन की सह-लेखिका भी हैं।
“यह अध्ययन छोटे शहरों में धारणाओं को समझने की लंबी यात्रा में सबसे पहला है। हमें पेड़ों से आगे बढ़कर बगीचों और समुद्र तटों जैसे अन्य सार्वजनिक प्राकृतिक जगहों पर जाने की ज़रूरत है।” वेल्हो एक नागरिक आंदोलन आमचे मोलेम को आगे बढ़ाने वालों में शामिल थीं। इसमें गोवा के वन्यजीवों के प्राकृतिक आवासों के जरिए प्रस्तावित संभावित विनाशकारी परियोजनाओं का विरोध किया था।
पेड़ों के आवरण में कमी के संबंध में कोच्चि में जवाब देने वाले 67 (21%) और पंजिम में 22 (12%) लोगों ने बताया कि उनके क्षेत्रों में पेड़ों को अक्सर काटा जाता है। साथ ही, इमारतों के लिए पेड़ों की कटाई को सबसे संभावित कारण बताया गया।

अजीम प्रेमजी विश्वविद्यालय के जलवायु परिवर्तन और स्थिरता केंद्र की प्रमुख और अध्ययन की सह-लेखिका हरिनी नागेंद्र और फैकल्टी सीमा मुंडोली शहरी पारिस्थितिकी पर कई पुस्तकों की सह-लेखिका हैं। उनमें से एक है ‘चेसिंग सोप्पू’ जो बेंगलुरु के जंगली खाद्य पौधों के लिए गाइड है। इनकी शहर भर में छोटे पैमाने पर कटाई की जाती है। मुंडोली ने मोंगाबे-इंडिया को बताया, “कोच्चि और पंजिम जैसे छोटे शहर आने वाले सालों में बहुत तेजी से शहरीकरण देखने जा रहे हैं। इनमें अभी भी बेंगलुरु की तुलना में बहुत अधिक हरियाली हो सकती है।” “यह इन जगहों को समझने और लोग उनके साथ किस तरह व्यवहार करते हैं, यह जानने के लिए बहुत सारे क्षेत्र में अनुसंधान करने का समय है। देशी वनस्पतियों का अध्ययन करना और उन्हें किस तरह संरक्षित किया जा सकता है, यह सबसे बड़ी प्राथमिकता है।”
शहरी पेड़ों को लेकर सांस्कृतिक और पारिस्थितिकी धारणाएं
महानगरों में पेड़ अर्बन हीट आइलैंड के असर से निपटने और बाढ़ को कम करने के लिए लागत प्रभावी समाधान हैं। इकोलॉजिकल मॉडलिंग जर्नल में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार, यह अनुमान लगाया गया है कि शहरी पेड़ सार्वजनिक स्वास्थ्य, तूफानी जल प्रबंधन और जलवायु शमन में सालाना 500 मिलियन डॉलर तक बचा सकते हैं।
अध्ययन के लिए जवाब देने वालों ने पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं की तीन श्रेणियों के बारे में अपनी धारणाएं साझा कीं – प्रावधान (भोजन, दवा, जलाऊ लकड़ी, इमारती लकड़ी, चारा और पेड़ों के अन्य हिस्से जिनका इस्तेमाल किया जाता है); विनियमन (छाया, पानी, खेती) और सांस्कृतिक (सौंदर्यात्मक अपील, धार्मिक इस्तेमाल)।

स्वतंत्र शोधकर्ता और अध्ययन की मुख्य लेखिका कृष्णा अनुरूप ने कहा, “कोच्चि के बाहरी इलाके जहां मैं पली-बढ़ी हूँ, लोग आमतौर पर अपने घर के पीछे या आस-पास के पेड़ों से मिलने वाले प्राकृतिक चीजों का इस्तेमाल करते हैं, लेकिन शहर में ऐसा नहीं है।” “यहां प्रत्यक्ष उपयोगों की तुलना में अमूर्त नज़रिए ज्यादा आम थे। लोगों के पास पेड़ों से जुड़ी कई कहानियां हैं – हमने बचपन में पेड़ों पर चढ़ने की बहुत सारी कहानियां सुनी हैं।” उन्होंने कहा कि पेड़ों का इस्तेमाल करके अपनी उपज बढ़ाने की कहानियां आमतौर पर जवाब देने वाले उन लोगों से आती हैं जो राज्य के गांवों से काम के लिए कोच्चि चले गए थे।
वेल्हो बताते हैं, “सड़क के पेड़ों से मिलने वाले फायदों को जरूरी तौर पर उपयोगितावादी नहीं माना जाता था, खासकर तब जब सड़क के पेड़ों के इस्तेमाल को लेकर स्पष्टता की कमी है।” “इसके बावजूद, लोगों को लगा कि ये पेड़ छाया और पानी के नियमन के लिए शहरों में जरूरी हैं।”
अनुजन ने कोच्चि में आम के दो पेड़ों के बगल में एक रिक्शा स्टैंड देखा, जहां ड्राइवर गर्मियों के दौरान दोपहर में गिरे हुए आमों का आनंद लेते थे। उन्होंने याद किया कि “वह पल और आम दोनों ही मीठे थे।” कटहल, अमरूद और नारियल सड़क के पेड़ों से मिलने वाले अन्य फल थे। इसी तरह, पंजिम के निवासियों को याद है कि जब अमरूद की टहनियों का इस्तेमाल टूथब्रश के रूप में किया जाता था और कोच्चि में, पत्तियों को मिट्टी खाने वाले बच्चों को कृमिनाशक के रूप में खिलाया जाता था। अध्ययन में कुछ ऐसे क्षणों का उल्लेख किया गया है जब नागरिकों ने अपने प्यारे पेड़ों की रक्षा के लिए साथ मिलकर काम किया। जैसे कि जब कोच्चि ने 2017 में फीफा जूनियर विश्व कप की मेजबानी की थी। इस दौरान, फोर्ट कोच्चि में खेल के मैदानों का जीर्णोद्धार किया गया था। निगम ने शुरू में बाड़ लगाने और मैदान के किनारों को पक्का करने के लिए कुछ पुराने पेड़ों को गिराने का फैसला किया था। इसका तब तक तीखा विरोध किया गया, जब तक कि योजना को रद्द नहीं कर दिया गया। जवाब देने वालों ने स्पष्ट रूप से इन पेड़ों के साथ ‘भावनात्मक जुड़ाव‘ बनाए रखा, जिन्हें हर दिसंबर में प्यार से सजाया जाता था।
कोच्चि में ब्लैकबोर्ड पेड़ों (एलस्टोनिया स्कॉलरिस) को अक्सर आत्माओं का घर माना जाता था। दूसरी तरफ, पंजिम में यह पवित्र अंजीर का पेड़ (फ़िकस रिलिजियोसा) था। इन पेड़ों के चारों ओर मंदिर बनाए जाते थे।
वेल्हो ने कहा, “पंजिम में एक पेड़ है जिसके नीचे एक बॉक्स बनाया गया है। इसमें मस्जिद, क्रॉस और तीन हिंदू देवताओं की तस्वीर है। लोग उस छोटे से धर्मनिरपेक्ष स्थान की पूजा करने आते हैं। हर कोई उस बॉक्स को रंगकर या अन्य तरीकों से उसकी देखभाल करके अपना योगदान देता है। हम इस तरह की और भी कहानियां लिखना चाहते हैं।”

छोटे शहरों के लिए हरित भविष्य की कल्पना
इस साल फिर से देश भर में रिकॉर्ड तोड़ गर्मी पड़ी है। जलवायु परिवर्तन के अलावा अर्बन हीट आइलैंड इसका मुख्य कारण है, क्योंकि सीमेंट से भरे शहर उबल रहे हैं। सड़क किनारे लगे पेड़ कम लागत वाला समाधान हैं जो हमारे शहरों को ठंडा रखते हैं, जहरीले प्रदूषकों को छानते हैं, कार्बन को अलग करते हैं, भूजल स्तर में सुधार करते हैं और पैदल चलने वालों को आराम करने की जगह देते हैं। जैसा कि नागेंद्र और मुंडोली की पुस्तक सिटीज एंड कैनोपीज में बताया गया है। यह किताब भारत के शहरी पेड़ों का इतिहास बताती है। लेखकों ने देखा कि जब पेड़ों से भरी सड़कों की तुलना बंजर सड़कों से की जाती है, तो तापमान में तीन से पांच डिग्री सेल्सियस तक की कमी आ सकती है। सड़क की सतहों का तापमान बहुत ज्यादा नाटकीय अंतर दिखा सकता है, जैसा कि किताब में उल्लेख किया गया है।

अनुजन ने कहा, “दोनों शहरों में पुराने पेड़ हैं जो अपने अंदर बहुत सारा इतिहास समेटे हुए हैं, जैसे कि फोर्ट कोच्चि के विरासत क्षेत्रों में।” “हमें उम्मीद है कि शहरी नियोजन पुराने पेड़ों की पहचान करने और उन्हें बचाने पर ध्यान केंद्रित करेगा।” वह यह भी बताती हैं कि वृक्षारोपण अभियान की गति बदलने की जरूरत है। “पौधे आम तौर पर छाया और सौंदर्य प्रदान करने पर केंद्रित होते हैं और अक्सर विदेशी प्रजातियों का इस्तेमाल किया जाता है जो एलर्जी पैदा करने वाले पराग जैसी चीज़ों के जरिए पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान पहुंचा सकते हैं। इसके बजाय, पेड़ लगाने की कोशिशों में देशी और बहुउपयोगी पेड़ों की विविधता शामिल हो सकती है। ये जानवरों के लिए गलियारे के रूप में भी काम कर सकते हैं।”
मुंडोली ने कहा, “महानगरों में लोगों की सोच से कहीं ज़्यादा काम किया जा सकता है।” “शहर घना और भीड़भाड़ वाला लग सकता है, लेकिन एक या दो पेड़ों के लिए हमेशा जगह होती है, बस आपको इसके लिए कल्पना करने की ज़रूरत है। बहुत ज़्यादा शहरीकृत जगहों में बड़े पैमाने पर पौधे लगाना इसका समाधान नहीं हो सकता है, लेकिन एक पेड़ लगाने और उसकी देखभाल करने से भी बहुत फ़र्क पड़ सकता है। प्रजातियों का चयन जगह के आधार पर किया जाना चाहिए और आदर्श रूप से कम से कम दो इस्तेमाल होने चाहिए। मौजूदा हरित स्थानों का ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल करना भी अहम है।” मुंडोली नियमित रूप से बेंगलुरु की विकास परियोजनाओं के पारिस्थितिकी पर असर का आकलन करने में शामिल रहे हैं। “हम यह सुझाव देते रहे हैं कि अगर विकास परियोजनाओं के लिए पेड़ काटे जाते हैं, तो पेड़ काटे जाने के एक किलोमीटर के भीतर ही पौधे लगाए जाने चाहिए।”
अध्ययन के लेखकों ने बताया कि अध्ययन के दौरान उन्होंने जिन वर्षा वृक्षों के नमूने लिए थे, उनमें से कई वृक्ष पहले ही काट दिए गए थे। वेल्हो ने कहा, “स्मार्ट सिटी प्लानर ने उन्हें उखाड़ दिया है और कुछ को सीमेंट के चौकों में बंद कर दिया है।”
भारत में 100 छोटे शहरों को राष्ट्रीय स्मार्ट सिटी मिशन (एनएससीएम) की ओर से वित्त पोषित किया जा रहा है। आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय की ओर से जारी एनएससीएम योजनाओं पर दिशा-निर्देशों के अनुसार, खाली क्षेत्रों को विकसित किया जाएगा। इसमें यह सिफारिश की गई है कि “कम से कम 80% इमारतें ऊर्जा कुशल और हरित होनी चाहिए।” रिपोर्ट में अर्बन हीट आइलैंड से निपटने की जरूरत को भी पहचाना गया है, जिसमें पार्कों और खेल के मैदानों के जरिए खुली जगहों के संरक्षण का वादा किया गया है, ताकि नियोजित स्मार्ट शहरों में “नागरिकों के जीवन की गुणवत्ता बेहतर हो सके” और “शहरी गर्मी के असर को कम किया जा सके”। एक अन्य सूचीबद्ध विशेषता पैदल चलने योग्य इलाके बनाना है जो साइकिल चालकों और पैदल चलने वालों के लिए कनेक्टिविटी को प्राथमिकता देकर भीड़भाड़ को कम करने में मदद कर सकते हैं।

शहरों को सामाजिक-पारिस्थितिकी रूप से बेहतर बनाए रखना तब तक संभव नहीं है जब तक कि वे शहरीकरण के दौर से नहीं गुजरें। साथ ही साथ बायोफिलिक नियोजन भी न किया जाए। जबकि एनएससीएम में कुछ ऐसी खासियतें तय की गई हैं जो शहरों को ज्यादा टिकाऊ बनाने की कोशिश करती हैं, लेकिन योजनाओं को शहरी पारिस्थितिकी को संरक्षित करने और उसे बहाल करने पर ज्यादा गहराई से ध्यान केंद्रित करने की जरूरत है। भीड़भाड़ वाले क्षेत्रों में देशी पेड़ लगाए जाने चाहिए और सुंदरता वा आर्थिक लाभ बढ़ाने के लिए छोटे पैमाने पर कटाई को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।
संपादक का नोट: अध्ययन के लिए इन दो शहरों को क्यों चुना गया, इसकी जानकारी ज्यादा स्पष्टता के लिए 22 मई, 2024 को जोड़ी गई है।
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बैनर तस्वीर: गोवा के पंजिम में एक पेड़ को मापते शोधकर्ता। तस्वीर: नंदिनी वेल्हो।