- समुद्र में हीट वेव या लू ऐसी घटनाएं हैं जिनसे समुद्र का तापमान बहुत ज्यादा बढ़ जाता है और कम से कम पांच दिनों तक इसी स्तर पर बना रहता है।
- नए अध्ययन में यह चेतावनी दी गई है कि महासागर के ऊपर आने वाली ये गर्म लहरें साल 2050 तक हर साल 220-250 दिनों तक रहने की संभावना है।
- समुद्र में गर्म लहरों के बढ़ने से तूफानों की तीव्रता बढ़ सकती है। इससे मछली पकड़ने का काम मुश्किल हो सकता है। साथ ही, समुद्र तट के किनारे रहने वाले लोगों के लिए खतरा बढ़ सकता है।
देश में गर्मी के मौसम में कई हिस्सों में भीषण लू का प्रभाव रहा। दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में अप्रैल और मई के दौरान आम चुनाव करवाने का काम पूरा हुआ। इस दौरान मौसम विभाग और सरकारी एजेंसियों ने नियमित रूप से अलर्ट और चेतावनियां जारी की, ताकि मतदान करने के लिए बाहर निकलने वाले नागरिकों की सुरक्षा पक्की की जा सके। तापमान बढ़ने और लू के घातक होने से हीट स्ट्रोक और गर्मी से संबंधित बीमारियों का डर बना रहता है।
लेकिन लू सिर्फ़ ज़मीन पर ही नहीं बढ़ रही है। दुनिया भर में, समुद्र के गर्म होने की प्रवृत्ति देखी जा रही है। उष्णकटिबंधीय हिंद महासागर के लिए भविष्य के अनुमान नामक हालिया अध्ययन में पाया गया है कि हिंद महासागर तेजी से गर्म हो रहा है और यह स्थिति लगभग स्थायी हो रही है। साल 2050 तक एक साल में 220-250 दिन ऐसी स्थिति रहने का अनुमान है।
यह नया शोध पुणे स्थित भारतीय उष्णकटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान (आईआईटीएम) के जलवायु अनुसंधान प्रयोगशाला के वैज्ञानिक रॉक्सी मैथ्यू कोल की अगुवाई किया गया है। इसके नतीजे 26 अप्रैल को जारी हालिया किताब, द इंडियन ओशन एंड इट्स रोल इन द ग्लोबल क्लाइमेट सिस्टम में प्रकाशित हुए हैं।
हिंद महासागर में लंबे समय तक गर्मी की लहरों के असर के बारे में बात करते हुए कोल ने मोंगाबे-इंडिया से कहा, “मौजूदा जलवायु परिदृश्य में हम 1.2 डिग्री सेल्सियस ज्यादा गर्मी का अनुभव कर रहे हैं। हिंद महासागर में समुद्री गर्म लहरें पहले से ही दिखाई दे रही हैं और ये तेज हो रही हैं। फिलहाल ये स्थिति साल में 20 दिनों तक रहती है।” उन्होंने कहा, “लेकिन, 2050 तक हम 2 डिग्री सेल्सियस को पार करने की आशंका जता रहे हैं। साथ ही, गर्मी की लहरें 220-250 दिनों तक बने रहने की संभावना है। यह एक साल का दो-तिहाई हिस्सा है। हम इसे हिंद महासागर के लिए स्थायी गर्मी की स्थिति कह रहे हैं।”
कोल ने चेतावनी वाले लहजे में कहा, “ये लंबे समय तक चलने वाली गर्म लहरें ना सिर्फ चक्रवातों को तीव्र करेंगी, बल्कि मछलियों के प्रवास, प्रवाल भित्तियों, फाइटोप्लांकटन और समुद्री जैव विविधता पर भी असर डालेंगी।” कोल बदलती जलवायु में महासागर और क्रायोस्फीयर पर जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल (आईपीसीसी) की विशेष रिपोर्ट के मुख्य लेखक भी हैं।
हिंद महासागर में आने वाली संभावित गर्म लहरें चिंता का विषय हैं। भारत में करीब 25 करोड़ लोग (दुनिया की कुल आबादी का 3.5%) समुद्र तटों के 50 किलोमीटर के दायरे में रहते हैं। 8,118 किलोमीटर लंबी तटरेखा पर 70 लाख से ज्यादा लोग ऐसे हैं जो अपनी आजीविका के लिए मछली पकड़ने पर निर्भर हैं।
हिंद महासागर में बढ़ती गर्म लहरें
जलवायु परिवर्तन के चलते महासागरों में तेजी से गर्मी बढ़ रही है। अनुमान है कि इन विशालकाय महासागरों में पृथ्वी की जलवायु प्रणाली में अतिरिक्त ग्रीन हाउस गैसों में समाई अतिरिक्त गर्म ऊर्जा का 91% संग्रहित है।
‘समुद्री गर्म लहरें’ शब्द अपेक्षाकृत नया है। इसका पहली बार इस्तेमाल 2010-11 की ऑस्ट्रेलियाई गर्मियों के दौरान ऑस्ट्रेलिया के पश्चिमी तट पर सतह के बहुत ज्यादा गर्म होने की घटना के बारे में बताने के लिए किया गया था। इसके बाद, इसे पहली बार 2013 में तब पहचाना गया जब इसके चलते समुद्री स्तनधारियों और पक्षियों की सामूहिक मौत हुई। इसके अलावा,कोरिया और अमेरिका में मछली पकड़ने का काम और जलीय खेती खत्म हो गई।
समुद्री गर्म लहरों को ऐसी घटनाओं के रूप में परिभाषित किया जाता है, जिसमें समुद्र का तापमान चरम स्तर तक बढ़ जाता है और कम से कम पांच दिनों तक इसी स्तर पर रहता है। कोल के नेतृत्व में हाल ही में किए गए अध्ययन में समुद्री गर्म लहरों को बहुत ज्यादा तापमान की अवधि के रूप में परिभाषित किया गया है। इसका मतलब है कि समुद्र की सतह का तापमान (एसएसटी) 1970-1999 के संदर्भ अवधि के आधार पर मौसमी रूप से भिन्न 90वें प्रतिशत सीमा से ज्यादा या हर मौसम के लिए सामान्य तापमान के 90% से ज्यादा गर्म होता है।
हाल के दशकों में, उष्णकटिबंधीय हिंद महासागर में समुद्री तापमान में तेजी से बढ़ोतरी देखी गई है। 1951-2015 की अवधि में समुद्र के तापमान में औसतन लगभग एक डिग्री सेल्सियस की बढ़ोतरी हुई है। यह हर दशक के लिए 0.15 डिग्री सेल्सियस की दर से है। शोध से पता चलता है कि पश्चिमी हिंद महासागर में गर्म लहरें कुल 66 बार आईं। वहीं, बंगाल की खाड़ी में 1982-2018 की अवधि के दौरान ये आंकड़ा 94 रहा।
इसके अलावा, पश्चिमी हिंद महासागर क्षेत्र में समुद्री गर्म लहरों में चार गुना (हर दशक 1.5 बार की दर से) और बंगाल की खाड़ी के उत्तरी हिस्से में दो से तीन गुना बढ़ोतरी (हर दशक 0.5 बार की दर से) का अनुभव हुआ। साल 2022 में राज्य सभा में एक सवाल के लिखित जवाब में तत्कालीन पृथ्वी विज्ञान राज्य मंत्री जितेंद्र सिंह ने यह जानकारी दी थी।
जलवायु वैज्ञानिक हिंद महासागर में ‘लगभग स्थायी समुद्री गर्म लहरों’ को लेकर चिंतित हैं।
भारत के चोटी के जलवायु वैज्ञानिकों में से एक पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के पूर्व सचिव एम. राजीवन ने मोंगाबे-इंडिया को बताया, “जलवायु परिवर्तन के चलते दुनिया भर के सभी महासागर बेसिन गर्म हो रहे हैं। हिंद महासागर अन्य बेसिनों की तुलना में बहुत तेजी से गर्म हो रहा है। उष्णकटिबंधीय चक्रवातों की तीव्रता में महासागर अहम भूमिका निभाते हैं।”
उन्होंने समझाया, “महासागर को गर्म करने वाली कई चीजें होती हैं। ये चीजें समुद्र के पानी में 100 मीटर या उससे ज्यादा ऊपर गर्मी पैदा करती हैं। यह स्थिति वायुमंडल की अन्य परिस्थितियों के साथ मिलकर चक्रवात की तीव्रता को प्रभावित करती है। समुद्र की सतह के तापमान और महासागर को गर्म करने वाली चीजों में बढ़ोतरी के साथ तूफान के बनने के बाद चक्रवातों के तेजी से तीव्र होने की प्रवृत्ति होती है। ये परिस्थितियां सभी महासागर बेसिनों में देखी जाती हैं। भविष्य के अनुमानों के अनुसार, यह प्रवृत्ति भविष्य में और बढ़ेगी।”
कोल के अनुसार, बंगाल की खाड़ी में समुद्र की सतह का औसत तापमान 28 से 30 डिग्री सेल्सियस के बीच रहता है। समुद्री गर्म लहरों के दौरान यह तापमान 31-32 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच सकता है। उन्होंने कहा, “इन-सीटू महासागर माप के जरिए हमने बंगाल की खाड़ी में तापमान 34 डिग्री सेल्सियस तक पहुंचते देखा, जो खुले महासागरों में कहीं भी दर्ज किया गया सबसे ज्यादा तापमान है।”
उन्होंने कहा, “मई 2020 में चक्रवात अम्फान से पहले 33-34 डिग्री सेल्सियस की समुद्री गर्मी की लहर आई थी। यह बंगाल की खाड़ी के इतिहास में सबसे शक्तिशाली तूफानों में से एक है।”
उनके अनुसार लंबे समय से समुद्र के तापमान पर नजर रखने वाले जानकार इतना ज्यादा तापमान देखकर हैरान हैं।
बढ़ती तूफान की तीव्रता
गर्म लहरों से जुड़े समुद्री जल का ज्यादा तापमान उष्णकटिबंधीय तूफान और चक्रवात जैसी चरम मौसम की घटनाओं का कारण बन सकता है। यही नहीं, ये परिस्थितियां जल चक्र को बाधित कर सकती हैं। इससे सतह पर बाढ़, सूखा और जंगल में आग लगने की आशंका बढ़ जाती है। बहुत ज्यादा गर्म पानी गर्मी और नमी के मजबूत स्रोत के रूप में काम करता है, जिससे तूफानों को तेजी से तीव्र होने में मदद मिलती है।
कोल ने हाल ही में गर्म लहरों पर एक और पेपर लिखा है। इसमें बताया गया है कि 1980 से 2020 के बीच बंगाल की खाड़ी और अरब सागर में आए लगभग 90% चक्रवातों से पहले समुद्री गर्म लहरें आई थीं। कोल ने बताया, “समुद्री गर्म लहरें तीव्र चक्रवात हैं जो तीव्रता के चरण से गुजरती हैं। इन परिस्थितियों में कोई चक्रवात थोड़े ही समय में श्रेणी 1 (कम तीव्रता) चक्रवात से श्रेणी 3 (ज़्यादा तीव्रता) या श्रेणी 5 (भीषण तीव्रता) के चक्रवात में बदल जाता है।”
फिलहाल, सैफिर-सिम्पसन हरिकेन विंड स्केल चक्रवात की ताकत को श्रेणी 1 से श्रेणी 5 तक रेट करता है। श्रेणी 1 के चक्रवातों में हवा की गति 119-153 किमी प्रति घंटे के बीच होती है। श्रेणी 2 में हवा की गति बढ़कर 154-177 किमी प्रति घंटे के बीच हो जाती है। श्रेणी 3 में हवा की गति और बढ़कर 178-208 किमी प्रति घंटे तक पहुंच जाती है। श्रेणी 4 में यह और बढ़कर 209-251 किमी प्रति घंटे के बीच हो जाती है। श्रेणी 5 में हवा की गति 252 किमी प्रति घंटे से ज्यादा या उसके बराबर होती है।
राजीवन के अनुसार, चूंकि उष्णकटिबंधीय चक्रवातों की तीव्रता में बढ़ोतरी की प्रवृत्ति साफ तौर पर दिखाई देती है, इसलिए पांच श्रेणियों का इस्तेमाल करके चक्रवातों का मौजूदा वर्गीकरण उद्देश्य को पूरा नहीं कर सकता है। उन्होंने कहा, “अगर हम इस मुद्दे की गंभीरता को बताना चाहते हैं, तो हमें लोगों को उचित रूप से चेतावनी देने के लिए श्रेणी 6 के चक्रवातों की एक और श्रेणी जोड़ने की जरूरत है।”
मछली पकड़ने के काम पर लटकती तलवार
आंध्र प्रदेश के डेमोक्रेटिक ट्रेडिशनल फिश वर्कर्स फोरम के डी. पॉल ने कहा, “मछुआरे समुदाय पहले से ही हाशिये पर गुजर-बसर कर रहे हैं। तट पर अलग-अलग तरह की विकास परियोजनाएं मछली पकड़ने वाले गांवों और मछुआरों के काम वाली जगहों पर अतिक्रमण कर रही हैं। वे समुद्र को भी प्रदूषित कर रहे हैं। साथ ही, जलवायु परिवर्तन और समुद्री गर्म लहरें उनकी स्थिति को और खराब कर रही हैं।”
पॉल के अनुसार, चक्रवातों की बढ़ती आवृत्ति और तीव्रता मछुआरों की आजीविका के लिए सीधा खतरा है, क्योंकि देश के दोनों तटों पर अंडमान और निकोबार द्वीप समूह और लक्षद्वीप सहित मानसून के आसपास मछली पकड़ने पर साल में 61 दिनों का प्रतिबंध पहले से ही है। इस अवधि के दौरान पारंपरिक गैर-मोटर चालित नौकाओं को छोड़कर सभी मछली पकड़ने की गतिविधियों पर प्रतिबंध लगा दिया जाता है।
देश के पूर्वी तट पर यह प्रतिबंध 15 अप्रैल से 14 जून तक लागू रहता है। वहीं पश्चिमी तट पर यह 1 जून से शुरू होकर 31 जुलाई तक रहता है।
पॉल ने पूछा, “कागज़ों पर मछली पकड़ने पर प्रतिबंध के दौरान कोई मछुआरा परिवार दो महीने के लिए 10,000 रुपये के मुआवजे का हकदार है। लेकिन कई लोगों को यह नहीं मिलता है। चक्रवातों के दौरान, मछुआरे फिर से समुद्र में नहीं जा सकते हैं और चक्रवात बढ़ रहे हैं। मछुआरा समुदाय इन स्थितियों का किस तरह सामना करेगा?”
कोल के अनुसार, समुद्र में मछली पकड़ने वाले समुदायों की आजीविका खतरे में है। उन्होंने मोंगाबे-इंडिया को बताया, “अरब सागर के पानी के गर्म होने की वजह से शैवाल का विकास हो रहा है। मछलियों का प्रवास भी प्रभावित हो रहा है। मछलियां भूमध्य रेखा से ध्रुव की ओर पलायन करती हैं या वे ठंडे पानी की तलाश में गोता लगाती हैं। चूंकि समुद्र की सतह का तापमान भूमिगत जल की तुलना में ज्यादा गर्म हो जाता है, इसलिए यह पानी के मिश्रण को रोकता है, जो अहम है, क्योंकि सूक्ष्म पौधों के लिए पोषक तत्व भूमिगत जल में होते हैं।”
जियोफिजिकल रिसर्च लेटर्स में प्रकाशित 2015 के एक अध्ययन में बताया गया है कि पिछले छह दशकों में पश्चिमी हिंद महासागर क्षेत्र में फाइटोप्लांकटन (सूक्ष्म समुद्री शैवाल जो समुद्री जीवन के लिए भोजन का काम करता है) में 20% तक की कमी आई है। लेखकों के अनुसार, यह कमी महासागर के गर्म होने की वजह से है।
और पढ़ेंः मुश्किल में समुद्री शैवाल की खेती से जुड़ी महिलाएं
लंबे समय तक समुद्री गर्म लहरें भी कोरल रीफ (कोरल रीफ) के लिए खतरा हैं। कोल ने कहा, “प्रवाल भित्ति समुद्र की सतह के सिर्फ एक प्रतिशत से भी कम हिस्से पर हैं, लेकिन वे एक-चौथाई समुद्री प्रजातियों के अस्तित्व के लिए जरूरी हैं। कोरल में श्लेष्म झिल्ली होती है, जो उन्हें चमकीला रंग देती है और उन्हें बीमारियों से बचाती है। बहुत ज्यादा तापमान होने से यह झिल्ली छिल जाती है और कोरल का कंकाल सामने आ जाता है। इससे वे मर सकते हैं। यह पहले से ही हिंद महासागर में हो रहा है।“
राजीवन के अनुसार, तूफानी लहरों और भारी बारिश, तटीय बाढ़ और तटीय कटाव के जोखिमों को कम करने के लिए अच्छी रणनीति बनाने की जरूरत है। “हमें अपनी शुरुआती चेतावनी प्रणाली में सुधार करने और कई इसमें सामाजिक आयाम जोड़ने की जरूरत है। भले ही गर्मी हो, लोग बाहर नहीं निकलते क्योंकि उन्हें अपनी जीवन भर की कमाई खोने का डर होता है। आपदा प्रबंधन प्रणाली, भले ही सबसे नई तकनीक के साथ अच्छी तरह से विकसित हो, अगर हम मानवीय या सामाजिक आयामों का ध्यान नहीं रखते हैं तो यह उद्देश्य पूरा नहीं करेगी।”
इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।
बैनर तस्वीर: साल 2019 में ओडिशा के पुरी में आए चक्रवाती तूफान फानी से हुए विनाश के बाद फिर से घर बनाते लोग। समुद्री गर्म लहरों के बढ़ने के कारण, चक्रवातों के तेज होने की आशंका है। तस्वीर – निधि जामवाल।