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पैदावार बढ़ाने, संसाधनों के कुशल इस्तेमाल और कीट से बचने के लिए ड्रोन और डिजिटल तकनीक से खेती

  • ड्रोन, सटीक खेती के लिए स्मार्ट उपकरण और कीट की पहचान करने के लिए मोबाइल ऐप्लीकेशन (ऐप) कुछ सामान्य रूप से इस्तेमाल की जाने वाली कृषि तकनीक हैं जो फसल बढ़ने के दौरान भारतीय किसानों की मदद करती हैं।
  • केरला, कर्नाटका और तेलंगाना में तकनीक का इस्तेमाल करने वाले किसान जलवायु के हिसाब से खेती, कीटों के प्रबंधन और बदले में अपना मुनाफा बढ़ाने के लिए खेती से जुड़ी तकनीक अपना रहे हैं।`
  • खेती से जुड़ी तकनीक का फायदा उठाने और ज्यादा किसानों तक प्रौद्योगिकी की पहुंच बढ़ाने के लिए जानकार डिजिटल कृषि ढांचे तथा हितधारकों के बीच जानकारी साझा करने पर जोर देते हैं।
  • यह स्टोरी भारत में कृषि तकनीक में प्रगति के बारे में तीन  हिस्सों की सीरीज का दूसरा हिस्सा है। इसमें फसलों के बढ़ने के दौरान आमतौर पर इस्तेमाल की जाने वाली कृषि तकनीक पर चर्चा की गई है। भाग 1 में बुवाई से पहले और और भाग 3 में कटाई के बाद के चरण में इस्तेमाल की जाने वाली तकनीक पर रोशनी डाली गई है।

ड्रोन पायलट अजित बाबू सुबह-सुबह केरला के अथानी में केरला एग्रो मशीनरी कॉर्पोरेशन लिमिटेड (KAMCO/ केमको) के धान के खेत में पहुंचते हैं। वे अपने साथ खेती में काम आने वाला ड्रोन और उसका कंट्रोलर लेकर आए हैं। वो सबसे पहले जीपीएस कैलिब्रेशन प्रक्रिया पूरी करते हैं। इससे उन्हें ड्रोन के सेंसर और कंट्रोलर को इस धान के खेत के मूल आकार और भौतिक स्थितियों के साथ मिलान करने में मदद मिलती है। बाबू ड्रोन पर लगे 10 लीटर के टैंक में जैव उर्वरक डालते हैं। फिर वे अपने कंट्रोलर पर उस क्षेत्र को चिह्नित करते हैं जहां ड्रोन को उड़ना है और मशीन के आसमान में उड़ते समय उसकी निगरानी करते हैं।

ड्रोन पूरे खेत को रूलर-लाइन वाले अंदाज में ट्रेस करता है और धान की फसल पर जैव उर्वरक का सटीक छिड़काव करता है। जैव उर्वरक सूक्ष्मजीवों से तैयार होते हैं और वे पौधों में पोषण बढ़ाते हैं। साथ ही, उनके विकास को बढ़ावा देते हैं। धान के खेत में पक्षियों ने ड्रोन प्रोपेलर से होने वाली आवाज को बिना किसी आपत्ति के स्वीकार कर लिया है। हालांकि, इसके उड़ान वाले रास्ते से बचते हैं। दोपहर से पहले, बाबू पूरे खेत में छिड़काव पूरा कर लेते हैं। वह ड्रोन उतारते हैं और सामान पैक करना शुरू कर देते हैं।

केमको के किसान और कर्मचारी मनोज मैथ्यू ने बताया कि ड्रोन से मजदूरी पर आने वाला खर्च कम हो गया है। उन्होंने बताया, “इस पूरे क्षेत्र (छह एकड़ खेत) को ड्रोन की मदद से दो-तीन घंटे में कवर किया जा सकता है, जबकि पहले हमें मजदूरों की मदद से खेतों में छिड़काव करने में तीन-चार दिन लगते थे।” उन्होंने बताया कि पानी के मामले में मैन्युअल तौर पर छिड़काव करते समय मुझे एक एकड़ के लिए 50 लीटर पानी चाहिए होता था। अब ड्रोन का इस्तेमाल करते समय 20 लीटर पानी से दो एकड़ को कवर किया जा सकता है।”

खेती में ड्रोन क्रांति

वहीं, उर्वरक छिड़काव के लिए ड्रोन का इस्तेमाल करना अब कई भारतीय किसानों के लिए आसान कृषि तकनीक बन गई है। हाल के सालों में, देश भर में राज्य सरकारों, स्टार्टअप और शैक्षणिक संस्थानों ने कीटनाशक छिड़काव के लिए कृषि ड्रोन का इस्तेमाल करने के लिए किसानों को किराये की योजनाएं और प्रशिक्षण कार्यक्रम ऑफर करना शुरू कर दिया है। केंद्र सरकार ने खेती में काम आने वाले ड्रोन खरीदने के इच्छुक किसानों के लिए सब्सिडी देने की भी घोषणा की है।

बाबू कोच्चि स्थित एग्रीटेक स्टार्टअप फ्यूजलेज इनोवेशन में काम करते हैं। धान के खेतों के अलावा, उन्होंने केरल, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक में अनानास के खेतों, काजू और चाय के बागानों में भी काम किया है। स्टार्टअप के संस्थापक देवन चंद्रशेखरन ने मोंगाबे इंडिया को बताया, “पौधों का तय माइक्रोसाइज होता है जिसके जरिए वे जैव उर्वरकों को सोख सकते हैं। हमारे ड्रोन में हमने पौधों के सोखने की दर के आधार पर छिड़काव के लिए नोजल डिजाइन किए हैं। इससे सटीक छिड़काव में मदद मिलती है, जिससे जरूरी संसाधनों (पानी, कीटनाशक) की मात्रा कम हो जाती है।”

कई अध्ययनों से फसलों पर लगने वाले कीटों और कीड़ों पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव सामने आया है। फसलों के बढ़ने के दौरान यह किसानों के लिए सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक है। खाद्य और कृषि संगठन (एफएओ) का अनुमान है कि पौधों में लगने वाले कीटों और रोगों से हर साल दुनिया भर में 20 से 40% फसलों का नुकसान होता है। इसलिए, खाने-पीने की चीजों की बढ़ती मांग को देखते हुए किसानों के लिए कीटों की पहचान करना और कीटों से उपज को होने वाले नुकसान से बचने के लिए कीटनाशकों या सूक्ष्म पोषक तत्वों का मौके पर ही छिड़काव/सटीक छिड़काव करना अहम हो जाता है।

कोच्चि में कंपनी की आर एंड डी लैब के अंदर सटीक छिड़काव कृषि ड्रोन को असेंबल करता हुए फ्यूज़लेज का कर्मचारी। तस्वीर: नारायण स्वामी सुब्बारामन/मोंगाबे।
कोच्चि में कंपनी की आर एंड डी लैब के अंदर सटीक छिड़काव कृषि ड्रोन को असेंबल करता हुए फ्यूज़लेज का कर्मचारी। तस्वीर: नारायण स्वामी सुब्बारामन/मोंगाबे।

आने वाले सालों में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग की उम्मीद रख रहे चंद्रशेखरन कहते हैं, “शुरू में किसानों को लगा कि ड्रोन का इस्तेमाल जोखिम भरा है। फिर, हमने अपनी तकनीक को प्रमाणित किया। इससे उपज में 30-35% की बढ़ोतरी का वादा किया गया है और उन्हें संसाधन (पानी और उर्वरक) की खपत में 70% तक की कमी देखने को मिली है। दक्षिण भारत में श्रमिकों की भी कमी है। इसलिए, उन्होंने (किसानों ने) इस तकनीक को अपनाना शुरू कर दिया।”

वहीं मिट्टी की निगरानी, ​​वनस्पतियों की देख-रेख और रोगों की पहचान के लिए विशेष कैमरों वाले कृषि ड्रोन उपलब्ध हैं। साथ ही, फसलों पर छिड़काव के लिए ड्रोन का इस्तेमाल भारतीय किसानों द्वारा ज्यादा व्यापक रूप से किया जा रहा है, क्योंकि इससे मजदूरी में आने वाले खर्च, संसाधन और समय की बचत होती है।

एक और तकनीक है जो किसानों का समय बचाती है, क्योंकि इसमें अनुमान लगाने की कोई गुंजाइश नहीं रहती और उन्हें डेटा से मजबूत बनाती है – मौसम, हवा की गति और दिशा, आर्द्रता, पत्तियों की नमी, मिट्टी की नमी वगैरह के बारे में डेटा और वह भी स्मार्टफोन पर।

धान के खेत के ऊपर मंडराता हुआ फ्यूजलेज का कृषि ड्रोन। ड्रोन जैव उर्वरकों का छिड़काव करने के लिए सटीक छिड़काव तकनीक का इस्तेमाल करता है। तस्वीर: नारायण स्वामी सुब्बारामन/मोंगाबे।
धान के खेत के ऊपर मंडराता हुआ फ्यूजलेज का कृषि ड्रोन। ड्रोन जैव उर्वरकों का छिड़काव करने के लिए सटीक छिड़काव तकनीक का इस्तेमाल करता है। तस्वीर: नारायण स्वामी सुब्बारामन/मोंगाबे।

इंटरनेट डिवाइस के साथ स्मार्ट खेती

अथानी से 500 किलोमीटर से भी ज्यादा दूर कर्नाटका के चिकबल्लापुर जिले के एच-क्रॉस गांव में 10 एकड़ के खेत में अनार की खेती करने वाले किसान रंजीत ने सिंचाई के पारंपरिक तरीकों को छोड़ दिया है। अब वह अपनी खेती के सभी फैसलों के लिए फसल आईओटी (Fasal IoT) पर निर्भर हैं। यह एग्रीटेक स्टार्टअप फसल की ओर से बनाया गया आईओटी संचालित डिवाइस है। आईओटी का मतलब है इंटरनेट ऑफ़ थिंग्स‘, यानी सेंसर और सॉफ्टवेयर वाले डिवाइस जो इंटरनेट पर डेटा इकट्ठा करते हैं और इन्हें आपस में बांटते हैं।

आज रंजीत ने खेत की सिंचाई नहीं करने का फैसला किया है, क्योंकि उनके स्मार्टफोन पर अलर्ट आया है। इसमें बताया गया है कि पौधों की प्राथमिक जड़ क्षेत्र के आसपास पर्याप्त नमी है। हालांकि, सतह सूखी दिख सकती है, लेकिन जमीन के नीचे मौजूद आईओटी डिवाइस के मिट्टी सेंसर डेटा इकट्ठा करके इस अलर्ट को सक्रिय करते हैं।

उन्होंने मोंगाबे इंडिया को बताया, “आईओटी डिवाइस लगाने से पहले पानी का प्रबंधन हमारे लिए बड़ा बोझ था। हम हर हफ्ते तीन बार खेत की सिंचाई करते थे। अब, इसे घटाकर हफ्ते में दो बार कर दिया गया है। और स्मार्ट सिंचाई तकनीकों के जरिए बीमारियों को रोकने से हमारी उर्वरक लागत 40% कम हो गई है। रोगों के प्रबंधन की वजह से अब छिड़काव लगभग 30% कम हो गया है। कुल मिलाकर, उत्पादन लागत में 40-50% की कमी आई है।”

कर्नाटका के चिकबल्लापुर के एच-क्रॉस में रंजीत के अनार के खेत में लगाया हुआ फसल का आईओटी उपकरण। तस्वीर: नारायण स्वामी सुब्बारामन/मोंगाबे।
कर्नाटका के चिकबल्लापुर के एच-क्रॉस में रंजीत के अनार के खेत में लगाया हुआ फसल का आईओटी उपकरण। तस्वीर: नारायण स्वामी सुब्बारामन/मोंगाबे।

डिवाइस के काम करने के तरीके के बारे में फसल के संस्थापक आनंद वर्मा ने अपने बेंगलुरु कार्यालय से बताया, “फसल आईओटी बारिश, हवा की गति, हवा की दिशा, सौर तीव्रता और कैनोपी का तापमान, आर्द्रता और पत्ती की नमी जैसे मैक्रोक्लाइमैटिक डेटा कैप्चर करता है। हम मिट्टी की नमी और मिट्टी के तापमान जैसे मिट्टी के नीचे के मापदंडों को भी कैप्चर करते हैं। यह सारा डेटा हमारे पास मौजूद क्लाउड सर्वर पर जाता है, जहां हम एग्रोनॉमी मॉडल चलाते हैं। ये मॉडल बताते हैं कि फसल का आदर्श व्यवहार क्या है और क्या मौजूदा जलवायु परिस्थितियां व्यवहार के पक्ष में हैं या उससे अलग हैं। इस हिसाब से हम किसानों को सलाह देते हैं कि उन्हें क्या कदम उठाने चाहिए।”

भारत मीठे पानी का सबसे बड़ा उपभोक्ता है। इसका ज्यादातर हिस्सा खेती के लिए इस्तेमाल होता है। अनार का निर्यात भी करने वाले रंजीत कहते हैं, “जलवायु परिवर्तन के इस युग में, यह (आईओटी डिवाइस) किसी प्रगतिशील किसान के लिए बहुत जरूरी है। पानी की कमी है और तापमान बढ़ रहा है। इन स्मार्ट सिंचाई उपकरणों का इस्तेमाल करके हम उत्पादन लागत कम कर सकते हैं। पानी की खपत कम कर सकते हैं और उपज की गुणवत्ता बेहतर कर सकते हैं।” 

फसल का दावा है कि स्मार्ट सिंचाई उपकरणों की मदद से वे करीब 8,000 करोड़ लीटर पानी बचा पाए हैं। वर्मा कहते हैं, “हम अब तक 75 हजार एकड़ से ज़्यादा जमीन पर मौजूद हैं। बागवानी हमारा प्राथमिक लक्ष्य है क्योंकि बागवानी खेती का वह हिस्सा है, जहां फसलों का प्रबंधन बहुत अहम है। ऐसा तब होता है जब मौसम, बीमारियों और कीटों की बात आती है।”

भारतीय बागवानी क्षेत्र कृषि सकल मूल्य वर्धित (GVA) में लगभग 33% का योगदान देता है। यह भारतीय अर्थव्यवस्था में बहुत अहम योगदान है। फलों और सब्जियों के उत्पादन में देश दुनिया में दूसरे पायदान पर है। लेकिन जलवायु परिवर्तन से बागवानी फसलों के लिए कई जोखिम पैदा हो गए हैं, खासकर कीटों के हमले। तकनीक का इस्तेमाल करने वाले कुछ किसान कीट पहचान ऐप के साथ इस चुनौती का सामना कर रहे हैं जो शुरुआती पहचान में मदद करते हैं, ताकि फैलाव को रोका जा सके।

एग्रीटेक स्टार्टअप फसल के आईओटी डिवाइस का मृदा सेंसर का हिस्सा जो प्राथमिक और द्वितीयक जड़ क्षेत्रों में मिट्टी की नमी को मापता है, ताकि किसानों को सिंचाई से जुड़ा बेहतर फैसला लेने में मदद मिल सके। तस्वीर: नारायण स्वामी सुब्बारामन/मोंगाबे।
एग्रीटेक स्टार्टअप फसल के आईओटी डिवाइस का मृदा सेंसर का हिस्सा जो प्राथमिक और द्वितीयक जड़ क्षेत्रों में मिट्टी की नमी को मापता है, ताकि किसानों को सिंचाई से जुड़ा बेहतर फैसला लेने में मदद मिल सके। तस्वीर: नारायण स्वामी सुब्बारामन/मोंगाबे।

कीटों के हमलों और बीमारियों से बचाना वाला ऐप

तेलंगाना की राजधानी हैदराबाद से करीब 55 किलोमीटर दूर शादनगर में किसान श्रीनिवास बाबू और अनीता मूर्ति अपने आम के बगीचे में शाम की सैर पर हैं। खेत मोरों की चहचहाहट से गुलजार है। आम कुछ ही हफ्तों में पकने के लिए तैयार हैं। यहां गर्मी अपने चरम पर है। हालांकि, कुछ पेड़ों पर दोनों ने पत्तियों पर एक काली परत देखी। उन्हें संदेह है कि यह बीमारी है, लेकिन उन्हें नाम की पुष्टि करने और यह जानने की जरूरत है कि इसके बारे में क्या करना है।

वे अपने स्मार्टफोन पर प्लांटिक्स नामक ऐप खोलते हैं। प्रभावित पत्ती की तस्वीर लेते हैं और उसे अपलोड कर देते हैं। कुछ ही सेकंड में ऐप यह पता लगा लेता है कि यह सूटी मोल्डहै, जो एक फफूंद है। इसने पेड़ को प्रभावित किया है और किसान को पौधे का उपचार करने के तरीके के बारे में सुझाव देता है।

मूर्ति ने बताया, “‘ट्रीटमेंटनाम का टैब भी है। जब आप इस पर क्लिक करेंगे, तो मुझे जैविक नियंत्रण और रासायनिक नियंत्रण के बारे में पता चल जाएगा। अगर मुझे लगता है कि बीमारी बहुत कम है, तो मैं सबसे पहले जैविक नियंत्रण तरीकों का इस्तेमाल करता हूं, जो आमतौर पर नीम के तेल और लहसुन अदरक के पेस्ट को नीम के तेल के साथ मिलाकर इस्तेमाल किया जाता है। साथ ही, जैविक नियंत्रण का इस्तेमाल करने का तरीका और पानी के अनुपात में इसकी मात्रा जैसी सभी जानकारियां बहुत स्पष्ट हैं।” बाबू कहते हैं, “निदान तुरंत होता है। इसलिए, फलों या फूलों को नुकसान बहुत कम होता है, जो बागवानी फसलों के लिए बहुत अहम है।”

प्लांटिक्स लगभग 31 बड़ी फसलों में कीटों और बीमारियों का इलाज कर सकता है। इनमें धान, मक्का, कपास और कुछ फल और सब्जियां शामिल हैं। चूंकि, देश के अलग-अलग हिस्सों में बीमारियों को अलग-अलग तरीके से जाना जाता है, इसलिए ऐप को 18 भारतीय भाषाओं में उपलब्ध कराया गया है। इससे किसानों के लिए पहुंच आसान हो गई है।

प्लांटिक्स के हैदराबाद कार्यालय से मोंगाबे इंडिया से बात करते हुए प्लांटिक्स की बिजनेस मैनेजर पद्मजा गोका ने बताया, “ऐप की अहम खासियत रोग के बारे में चेतावनी देने वाला फीचर है।” गोका ने बताया, “अगर किसी क्षेत्र में कोई कीट या बीमारी फैल रही है, तो ऐप का इस्तेमाल करने वाले किसानों को अलर्ट मिलता है। इस प्रकार खेती में होने वाले बड़े नुकसान को रोका जा सकता है।” 

किसान अनीता मूर्ति अपने बगीचे में आम के पेड़ की पत्तियों को स्कैन करके प्लांटिक्स ऐप दिखाती हुई। इससे बीमारी की पहचान और उसका इलाज करने में मदद मिलती है। तस्वीर: नारायण स्वामी सुब्बारामन/मोंगाबे।
किसान अनीता मूर्ति अपने बगीचे में आम के पेड़ की पत्तियों को स्कैन करके प्लांटिक्स ऐप दिखाती हुई। इससे बीमारी की पहचान और उसका इलाज करने में मदद मिलती है। तस्वीर: नारायण स्वामी सुब्बारामन/मोंगाबे।

विश्व आर्थिक मंच में चौथे औद्योगिक क्रांति केंद्र के प्रमुख पुरुषोत्तम कौशिक कहते हैं, “किसानों के एक वर्ग ने जलवायु के हिसाब से बेहतर खेती करने के लिए कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई), स्मार्ट उपकरण और इंटरनेट ऑफ थिंग्स सेंसर का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है। लेकिन, इन तकनीकों को अपनाने का काम बंटा हुआ है। भारत में कृषि तकनीकों का फायदा उठाने और सीमांत क्षेत्र से आगे निकलने के लिए, किसानों के बीच बेहतरीन तरीकों के बारे में जागरूकता बढ़ाना और उन्हें जलवायु परिवर्तन के हिसाब से तैयार होने के लिए अलग-अलग तकनीकों के इस्तेमाल के बारे में जानकारी देना अहम है।” 

कौशिक तेलंगाना की एआई फॉर एग्रीकल्चर इनोवेशन पहल का हिस्सा हैं, जिसने सागु बागू नामक पायलट परियोजना शुरू की। इसका लक्ष्य काली मिर्च के सात हजार किसानों तक पहुंचना था। परियोजना से डिजिटल सलाहकार सेवाओं ने प्रति एकड़ मिर्च की उपज में 21% की बढ़ोतरी देखी। इस सफलता से सीखते हुए, कौशिक डिजिटल कृषि ढांचे पर जोर देते हैं जो सरकारों को बेहतर वातावरण बनाने में मदद करेगा।

उन्होंने कहा, “नई तकनीकों को सफलता के साथ जमीन पर उतारने के लिए डेटा जरूरी है। एग्रीटेक कंपनियां छोटे किसानों और महिला किसानों को अप्रत्याशित मौसम पैटर्न/एहतियाती उपायों के बारे में उनकी समझ बढ़ाने के लिए सूचना साझा करने का पैकेज दे सकती हैं। दुनिया भर में, स्टार्टअप को डिजिटल कृषि प्रथाओं के साथ इस दबाव वाली चुनौती से निपटने और भविष्य के लिए स्थायी योजना बनाने के तरीके का खाका बनाने के लिए जानकारों, संबंधित हितधारकों, सरकारी निकायों, बड़े उद्योग भागीदारों के साथ सहयोग और राय-मशविरा करने की जरूरत है।”

कर्नाटका के एच-क्रॉस में अपने अनार के खेत में किसान रंजीत। तेलंगाना, कर्नाटका और केरला के किसान कुशलता को बेहतर बनाने और लाभ बढ़ाने के लिए खेती से जुड़ी तकनीकों को अपना रहे हैं। तस्वीर: नारायण स्वामी सुब्बारामन/मोंगाबे।
कर्नाटका के एच-क्रॉस में अपने अनार के खेत में किसान रंजीत। तेलंगाना, कर्नाटका और केरला के किसान कुशलता को बेहतर बनाने और लाभ बढ़ाने के लिए खेती से जुड़ी तकनीकों को अपना रहे हैं। तस्वीर: नारायण स्वामी सुब्बारामन/मोंगाबे।

 

यह खबर मोंगाबे-इंडिया टीम द्वारा रिपोर्ट की गई थी और पहली बार हमारी अंग्रेजी वेबसाइट पर 19 अप्रैल 2024 को प्रकाशित हुई थी।

बैनर तस्वीर: तेलंगाना में अपने आम के खेत का मुआयना करते हुए किसान अनीता मूर्ति और श्रीनिवास बाबू। तस्वीर: नारायणस्वामी सुब्बारमन/मोंगाबे।

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