- उत्तर प्रदेश में सौर ऊर्जा के बढ़ते इस्तेमाल के बावजूद इसके कचरे को ठिकाने लगाने संबंधी कोई कारगर योजना नहीं है।
- कम गुणवत्ता वाले सस्ते सोलर उत्पादों की बढ़ती बिक्री से सोलर कचरे की मात्रा कुछ सालों में ज़्यादा बढ़ने की सम्भावना है।
- विशेषज्ञों का मानना है कि सोलर ई-वेस्ट प्रबंधन में अनौपचारिक क्षेत्र की अत्यधिक पैठ है जबकि इससे उत्पन्न होने वाले कचरे की उचित निगरानी, ट्रैकिंग और रिपोर्टिंग का जबरदस्त अभाव है।
भारत ने साल 2050 के अपने ‘नेट जीरो’ लक्ष्य को पूरा करने के लिए पिछले कुछ सालों में अक्षय ऊर्जा के क्षेत्र में बहुत ध्यान दिया है। इसके चलते देश में सौर ऊर्जा के क्षेत्र में तेज प्रगति के साथ साल 2023 में भारत सबसे ज़्यादा सौर ऊर्जा पैदा करने वाले देशों में तीसरे स्थान पर आ गया।
सौर ऊर्जा के क्षेत्र में हो रही इस प्रगति के चलते देश में बड़ी सौर विद्युत परियोजनाओं के साथ-साथ सौर ऊर्जा से चलने वाले छोटे उपकरणों जैसे, सोलर टॉर्च, सोलर लैंप और सजावटी लाइट की मांग देश के ग्रामीण और शहरी इलाकों में बढ़ने लगी है। इन छोटे उपकरणों के बढ़ते उपयोग और इनका उपयोग करने वाले लोगों में इनके निस्तारण की जानकारी का अभाव आने वाले समय में इससे उत्पन्न होने वाले हानिकारक कचरे के कुप्रबंधन की समस्या को बढ़ा सकता है।
उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले के सरानिया गांव के निवासी वारिसी ने बार-बार बिजली जाने की समस्या के समाधान के रूप में सोलर पैनल का सहारा लिया जिससे उनके घर में अब पंखा, कूलर, मोबाइल चार्जर सब आसानी से चलते हैं। वारिसी को सोलर पैनल के फायदों के बारे में जानकारी सरकारी विज्ञापनों के माध्यम से मिली लेकिन उन्हें यह नहीं पता है कि इनके ख़राब हो जाने या टूट जाने पर इनका निस्तारण कैसे किया जाए। वारिसी की तरह ही कई लोग हैं जिन्हें सौर ऊर्जा के इस्तेमाल के बारे में तो जानकारी है, परंतु सौर उपकरणों के खराब होने पर उनके उचित निस्तारण के बारे में उन्हें किसी ने नहीं बताया।
बढ़ता सोलर कचरा
छोटे सौर पैनलों से बने रोजमर्रा के घरेलु उत्पादों की कीमतें कम होती हैं और इस ही वजह से इनकी गुणवत्ता और जीवनकाल भी कम होता है। ऐसे में इनकी वजह से होने वाले कचरे की मात्रा कुछ सालों में ज़्यादा बढ़ने की सम्भावना है।
उत्तर प्रदेश के स्थानीय बाजारों में सोलर टॉर्च 70 रुपये में, सोलर लाइट्स 40-100 रूपये में खरीदी जा सकती हैं और इसलिए यह लोगों के लिए सुलभ हो गए हैं। प्रदेश की राजधानी लखनऊ के नाका बाजार में प्रवेश करते ही सस्ते और कम गुणवत्ता वाले सोलर उत्पादों से भरी दुकानें दिखाई देती हैं। बंटी वर्मा नाका बाजार में ऐसे ही सोलर उत्पादों की दुकान लगाते हैं और हफ्ते में करीब 100 मोबाइल चार्जर बेचते हैं, वे बताते हैं, “सोलर मिनी उत्पादों की कीमत 100 रुपये से शुरू होती हैं। इनमें सिंगल पैनल मोबाइल चार्जर, सोलर स्ट्रीट लाइट्स, ट्री पैनल, मिक्सर, सजावटी मशालें, लाइट, लैंप, कार जैसी फैंसी वस्तुएं शामिल हैं। इनकी गारंटी तीन से छह महीने की ही रहती है। लेकिन सस्ती कीमतों के कारण ग्राहक फिर से इन्हें खरीद लेते हैं।”
“अगर कोई ग्राहक छः महीने के अंदर किसी सामान को वापस भी कर देता हैं तो हम उसे एक नया उपकरण दे देते हैं और खराब हुए सोलर पैनल को बाकी कचरे की तरह फेंक देते है,” उन्होंने बताया।
पर्यावरण के क्षेत्र में काम करने वाले थिंक टैंक, ‘कॉउन्सिल फॉर एनवायरनमेंट, एनर्जी एंड वाटर’ (सीईईडब्ल्यू) के एक अध्ययन के अनुसार, वित्त वर्ष 2023 तक भारत की 66.7 गीगावॉट की स्थापित क्षमता ने लगभग 100 किलो टन सौर पीवी (सोलर पैनल) का कचरा उत्पन्न किया है। इस कचरे के परिवहन के लिए लगभग 10,000 ट्रकों की आवश्यकता होगी। साल 2030 तक यह कचरा तीन गुना से अधिक बढ़कर 334 किलो टन होने का अनुमान है, जिसके लिए 33,000 ट्रकों की जरूरत पड़ेगी। इसमें से 10 किलो टन कचरा अकेले उत्तर प्रदेश के बड़े सौर बिजली संयंत्रों से उत्पन्न होगा।
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यह अध्ययन बड़े पैमाने पर क्षेत्रीय परियोजनाओं पर केंद्रित है और इसमें कम जीवन काल वाले छोटे सौर उत्पाद शामिल नहीं हैं।
सेंटर फॉर स्टडी ऑफ साइंस, टेक्नोलॉजी एंड पॉलिसी (CSTEP) की विशेषज्ञ अंजलि तनेजा आने वाले इस खतरे के प्रति आगाह करते हुए कहती हैं, “सोलर पैनल के आकार की परवाह किए बिना यह एक चुनौती पैदा कर सकते हैं। मिनी सोलर आइटम्स के अनियंत्रित इस्तेमाल से नयी चुनौतियां पैदा हो सकती हैं। सोलर ई-वेस्ट प्रबंधन में अनौपचारिक क्षेत्र की अत्यधिक पैठ है जबकि इससे उत्पन्न होने वाले कचरे की उचित निगरानी, ट्रैकिंग और रिपोर्टिंग का जबरदस्त अभाव है। इसके अलावा, तकनीकी बाधाएं और अनियमित डिस्पोजल भी समस्या को बढ़ाते हैं। फेंके गए पैनलों से मिट्टी और भूजल में सीसा और कैडमियम जैसी जहरीली धातुओं के रिसाव से दीर्घकालिक पर्यावरणीय गिरावट और आस-पास के लोगों में स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं पैदा हो सकती हैं।”
उत्तर प्रदेश नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा विकास अभिकरण के निदेशक अनुपम शुक्ला का कहना है कि सभी आकार के सोलर उत्पादों की रीसाइक्लिंग और डिस्पोजल के लिए नई नीतियों की आवश्यकता है।
उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के सदस्य सचिव संजीव कुमार बताते हैं कि राज्य केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड सोलर वेस्ट प्रबंधन के लिए नयी नीतियां बनाने की दिशा में काम कर रहा है लेकिन अभी भी ये शुरुआती चरण में हैं।
उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के वेस्ट मैनजमेंट समिति के पूर्व सदस्य मेवा लाल ने बताया, “सोलर उत्पाद में आने वाली सबसे बड़ी समस्या हैं कचरे का आकंलन करना और उसे इकठ्ठा करना। छोटे उत्पाद या सिंगल पेनल्स कभी भी टूट सकते हैं और कचरा बन सकते हैं। सरकार को सोलर उत्पादों के प्रचार के साथ-साथ लोगों को इसके कचरे के बारे मैं भी जानकारी देनी चाहिए।”
बैनर तस्वीरः उत्तर प्रदेश में छत पर लगे सोलर पैनल। तस्वीर- रचना वर्मा
यह स्टोरी अर्थ जर्नलिज्म नेटवर्क के सहयोग से रिपोर्ट की गई है।