- भागलपुर का जर्दालू आम अपने स्वाद के लिए मशहूर है। भागलपुर जिले के लिए यह ओडीओपी के तहत आता है और इसे जीआइ टैग भी हासिल है। इसके बावजूद बेहतर बाजार सपोर्ट, हवाई व ट्रेन मार्ग की सुविधानजक कनेक्टिविटी नहीं होने से किसान अपनी मेहनत का भरपूर लाभ नहीं हासिल कर पाते हैं।
- 2010 में बिहार सरकार ने जर्दालू आम को स्पेशल क्रॉप के रूप में चिह्नित किया और इसकी बागवानी को प्रोत्साहित किया। अब किसानों के लिए जर्दालू किसी अन्य प्रकार के आम की खेती से दोगुणा से ढाई गुणा अधिक मुनाफा देने वाली फसल है।
- तीव्र गर्मी और मौसम में तेज बदलाव से आम की फसलों को नुकसान होता है। इस साल तापमान के लगातार 40 डिग्री के पार बने रहने से आम की कुछ किस्मों के जल्दी पकने के मामले देखे गये हैं। हालांकि किसान बगीचे में नमी बनाये रख कर उसका बचाव कर सकते हैं, लेकिन हर किसान इतने साधन संपन्न नहीं होते कि वे ऐसा कर सकें।
बिहार के भागलपुर जिले के कहलगांव प्रखंड के सिमरो गांव के 50 वर्षीय कृष्णानंद सिंह एक ऐसे किसान हैं जिन्होंने खुद को परंपरागत खेती से आम की खेती की ओर शिफ्ट किया। सिंह 17 साल पहले तक एक मेडिकल कंपनी में नौकरी करते थे, लेकिन बाद में उन्होंने अपने गांव में खेती को ही पूरा समय देने का फैसला किया और धीरे–धीरे वे आम की खेती पर केंद्रित हो गये। अपनी मेहनत, कृषि वैज्ञानिकों के मार्गदर्शन और सरकारी योजनाओं का लाभ हासिल कर आज वे आम के एक स्थापित किसान हैं। वे कुछ प्रमुख प्रकार के आम की खेती करते हैं, लेकिन उनका जोर जर्दालू आम पर होता है।
वर्ष 2018 से यहां के जर्दालू आम को जीआई टैग हासिल हुआ जिसके बाद इसकी प्रसिद्धि देश–विदेश में होने लगी। वर्ष 2007-08 से बिहार सरकार भागलपुर के जर्दालू आम को राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री सहित राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में कई विशिष्ट हस्तियों को बिहार की सौगात के रूप में भेजती है। जानकारों का मानना है कि इससे इसकी ब्रांडिंग मजबूत हुई है। भागलपुर का जर्दालू आम भारत सरकार के वन डिस्ट्रिक्ट, वन प्रोडक्ट (ओडीओपी) के रूप में भी चिह्नित है।
इतनी खूबियों के बावजूद जर्दालू आम के किसानों के सामने मार्केटिंग, पैकेजिंग और ट्रांसपोर्टेशन जैसी कई मुश्किलें हैं। सिंह ऐसी मुश्किलों की चर्चा करते हुए कहते हैं, “हमारा जर्दालू आम अल्फांज़ो से कहीं कम नहीं है, बस हमें वैसा सपोर्ट नहीं मिल पाता, अगर वह मिल जाये तो हम अंतरराष्ट्रीय बाजार में लोकप्रियता व कीमत में उसके स्तर तक पहुंच जाएंगे और एक किसान के रूप में हम इसके लिए मेहनत कर रहे हैं।”
वे कहते हैं कि अगर जर्दालू आम को अलग से एचएसएन (Harmonized System of Nomenclature) कोड मिल जाये तो इसे पश्चिमी देशों में भेज पाना आसान होगा।
इसके साथ ही बेहतर व स्थानीय स्तर पर पैकेजिंग सेंटर की भी जरूरत है, पटना के बिहटा में बिहार सरकार द्वारा बनवाया गया पैकेजिंग सेंटर हमारे लिए बहुत उपयोगी नहीं है, यह स्थानीय स्तर पर होना चाहिए। उल्लेखनीय है कि भारतीय आमों की दुनिया के कई देशों में अच्छी मांग है।
भागलपुर में बिहार बागवानी मिशन के सहायक निदेशक के रूप में तैनात अभय कुमार मंडल ने किसानों की इन चिंताओं से जुड़े सवाल पर मोंगाबे हिन्दी से कहा, “एचएसएन कोड एक्सपोर्ट एजेंसियों के द्वारा दिया जाता है और वह कोड किसी विशिष्ट उत्पाद की मात्रा और उसके निर्यात की संभावनाओं को देख कर दिया जाता है, जैसे लंगड़ा आम को यह हासिल है, क्योंकि उसकी पैदावार काफी अधिक है, लेकिन जर्दालू हर जगह होता नहीं है और भागलपुर में भी कुल उत्पादन में इसका हिस्सा अब भी काफी कम है।”
मंडल कहते हैं कि भागलपुर में आम का रकबा करीब नौ हजार हेक्टेयर जमीन पर है, जिसमें जर्दालू का रकबा 650 से 700 हेक्टेयर भूमि पर है। पुराने बगीचों में जर्दालू के पेड़ बहुत कम हैं और इसके बगीचे ज्यादातर नये हैं। पैकेजिंग के सवाल पर उनका कहना है कि पटना के बिहटा में इसी साल ई रेडिएशन सेंटर एवं एक्सपोर्ट पैक हाउस शुरू हुआ है, जहां इस साल भागलपुर के कुछ आम उत्पादकों ने संपर्क किया। एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि अलग–अलग किस्म के आम की पैकिंग में रहने की अलग–अलग समय सीमा होती है, जर्दालू आम चार से पांच दिन पैक रह सकता है, दशहरी आम 15 दिन तक रह सकता है ।
किसानों का जर्दालू की ओर कैसे बढ़ा रुझान
इस इलाके में आम के बगीचों की बहुलता की वजह कृष्णानंद के पास पहले से आम के बगीचे थे, लेकिन 2011 में उन्होंने व्यवस्थित तरीके से आम की खेती शुरू की। अब उनके द्वारा लगाये गये करीब तीन एकड़ (1.21 हेक्टेयर) जमीन में 100 पेड़ हैं, जिसमें जर्दालू की बहुलता है।
कृष्णानंद अपने बचपन के दिनों को याद करते हुए कहते हैं कि पहले भी भागलपुर जिले में जर्दालू आम के पेड़ होते थे, लेकिन 100 में इसके दो–तीन पेड़ होते थे और खूबियों के बावजूद इसे बहुत महत्व नहीं दिया जाता था। उस समय मालदह आम की ही चर्चा होती थी। वर्ष 2010 में सबौर में बिहार कृषि विश्वविद्यालय की स्थापना से भी किसानों को लाभ मिला। वर्ष 2011-12 में सरकार की ओर से प्रस्ताव आया कि कि जर्दालू आम को बढावा देना है, फिर आत्मा की ओर से नया बाग लगाओ कार्यक्रम चला जिसमें आम के पौधे लगाने के लिए और तीन साल तक उसके रख-रखाव के लिए 100 प्रतिशत सब्सिडी मिलती थी।
बिहार बागवानी मिशन में फलदार पौधों के नोडल ऑफिसर राजीव रंजन कहते हैं, “मुख्यमंत्री बागवानी मिशन के तहत अभी भी नये बगीचे लगाने के लिए किसानों को प्रोत्साहित किया जाता है। इसके तहत किसानों को प्रति हेक्टेयर तीन साल में 50 हजार रुपये का अनुदान दिया जाता है। पहले साल में पौधे लगाने के लिए 30 हजार रुपये, दूसरे साल में 75 प्रतिशत पौधे जीवित रहने पर 10 हजार और तीसरे साल में दूसरे साल के जीवित बचे पौधों का 90 प्रतिशत जीवित रहने पर 10 हजार रुपये की प्रति हेक्टेयर की दर से सहायता दी जाती है”।
प्रोत्साहन से बढ़ा जैविक खेती का चलन
बिहार कृषि विश्वविद्यालय, आत्मा व अन्य माध्यमों से प्रोत्साहन मिलने से किसानों का रुझान न सिर्फ तेजी से जर्दालू आम की बागवानी की ओर बढ़ा, बल्कि किसानों ने रासायनिक क जगह जैविक खेती को अपनाना भी शुरू किया। 2018 में भागलपुर के जर्दालू आम को जीआई टैग मिलने के बाद किसानों ने इसकी गुणवत्ता को बरकरार रखने के लिए प्रयास किये हैं।
भागलपुर जिले के रंगरा चौक प्रखंड के कुमाठपुर गांव के किसान वेदव्यास चौधरी कहते हैं, “जीआई टैग मिलने के बाद जर्दालू आम की लोकप्रियता बढ़ी है, इसका व्यावसायिक महत्व बढ़ गया है और हम किसानों पर इसकी गुणवत्ता को बरकरार रखने की जिम्मेवारी है। नीम खल्ली, गोमूत्र व अन्य जैविक विधियों को हम खेती में अपनाते हैं”।
वहीं, कृष्णानंद कहते हैं, “पहले आम के पेड़ पर रासायनों का छिड़काव नहीं किया जाता था, लेकिन बीच में 1980 में यह दौर चला जब कीटनाशक व अन्य रासायनिक छिड़काव को लोगों ने अपनाया, अब हम जैविक खेती अपना कर इससे फिर दूर जा रहे हैं”।
कृष्णानंद के पिता 85 वर्षीय वासुदेव सिंह कहते हैं, “पहले आम का बगीचा लोग ऐसे ही शौक से खाने के लिए लगाते थे, यह व्यापार नहीं था, उस समय तरह–तरह के पेड़ होते थे, लेकिन अब लोग व्यावसायिक रूप से आम के बगीचे लगा रहे हैं और उससे कमाई कर रहे हैं”।
वैज्ञानिक ढंग से बागवानी ने पैदावार को बढाया है और यह किसानों के लिए मुनाफे के काम हो गया है। आम का एक फलन चक्र होता है, जिसमें एक साल आम की पैदावार कम होती है और अगले साल पूरी फसल होती है। जैसे इस साल कम पैदावार वाला साल है। हालांकि किसान अपनी मेहनत व प्रयोग के जरिये कम फलन वाले साल में भी ठीक–ठाक उत्पादन हासिल कर लेते हैं। जैसा कि कृष्णानंद बताते हैं कि पिछले साल साल हमने अगर पेड़ में 100 पल्हो (छोटी शाखाएं) हैं तो सभी में फल लिया था, इस साल 40 प्रतिशत में फल लिया।
कृष्णानंद सिंह व वेदव्यास चौधरी सहित करीब 250-300 किसान भागलपुरी जर्दालू आम उत्पादक संघ के सदस्य हैं। बिहार में मैंगो मेन के रूप में पहचाने जाने वाले सुल्तानगंज के महेशी तिलकपुर गांव के अशोक चौधरी इसके अध्यक्ष हैं।
बिहार आम उत्पादक संघ व भागलपुरी जर्दालू आम उत्पादक संघ के अध्यक्ष अशोक चौधरी कहते हैं, “हमने काफी कोशिश कर 2018 में जर्दालू का जीआइ टैग हासिल किया, लेकिन सरकारी योजनाओं के लाभ से बहुत सारे वास्तविक किसान अब भी वंचित हैं, ड्रिप इरिगेशन पर पैसे करोड़ों खर्च हो रहे हैं, उसका लाभ भी किसानों को मिलना चाहिए”। वे कहते हैं कि तमाम कोशिशों व आम महोत्सव के आयोजन के बावजूद सरकारी फैसलों में हमारे संगठन को जो महत्व मिलना चाहिए, वह नहीं मिलता।
सुलतानगंज के आभा रतनपुर गांव के 48 वर्षीय आम किसान मनीष कुमार सिंह ने 15 बीघा (3.79 हेक्टेयर) बगीचे में जर्दालू, मालदह व मल्लिका की मिश्रित बागवानी की है। वे कहते हैं, “हमारे साथ सबसे बड़ी दिक्कत आधारभूत संरचना की है, आम की पैदावार के बाद बाहर भेजने के लिए उसकी पैकेजिंग के लिए हमें पटना के बिहटा जाना होगा और विदेश भेजने के लिए वाराणसी एयरपोर्ट क्योंकि पटना एयरपोर्ट पर इसके लिए कार्गो सुविधा उपलब्ध नहीं है”। वे कहते हैं कि अगर यहां पिकल (अचार) व पल्प इंडस्ट्री हो तो हमारा आम कम बर्बाद होगा।
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चरम तापमान (एक्सट्रीम हीट) व अन्य जलवायु चुनौतियां
बिहार बागवानी मिशन के भागलपुर डिवीजन के डिप्टी डायरेक्टर पवन कुमार कहते हैं कि आम एक परेनिअल क्रॉप है यह सिजनल क्रॉप नहीं है, इसलिए इस पर जलवायु परिवर्तन का असर कम होता है, हालांकि इससे फ्रूटिंग पर असर पड़ सकता है। वहीं, आम के किसान अपने अनुभवों के आधार पर कहते हैं कि अत्यधिक तापमान से आम की फसल को कई तरह से नुकसान होता है। आम किसान वेदव्यास चौधरी कहते हैं, “अत्यधिक गर्मी से फल समय से पहले ही पकने लगता है”। वे कहते हैं कि आम्रपाली 15 जुलाई के बाद पकना शुरू होता है लेकिन इस साल तापमान लगातार 40 डिग्री सेल्यिस के पार रहा है, जिससे जून आखिरी सप्ताह में ही आम्रपाली पकने लगा है। वेदव्यास व कृष्णानंद कहते हैं कि 38 से 40 डिग्री तापमान आम की फसल के लिए अच्छी है। इस साल भागलपुर में मई में आठ दिन और जून में 17 दिन अधिकतम तापमान 40 डिग्री सेल्सियस से अधिक दर्ज किया गया। समय पर मानसून पूर्व बारिश नहीं होने व अत्यधिक गर्मी पड़ने से किसान फल के छोटा होने की बात भी बताते हैं।
भागलपुर आत्मा के उप परियोजना निदेशक प्रभात कुमार सिंह कहते हैं, “जलवायु परिवर्तन एक अंतरराष्ट्रीय चुनौती है और जब आम के पेड़ में मंजर आता है तब तापमान में उतार–चढाव से उसके खराब होने व बीमारी लगने का खतरा होता है। वहीं, जब फल लग जाता है और तापमान अधिक होता है और किसान के पास सिंचाई की सुविधा नहीं होती है तो फल के पेड़ पर गिरने या उसकी वृद्धि रूक जाने का खतरा होता है”।
किसान मौसम के इस बदलावों की चुनौतियों का सामना करने के लिए नये प्रयोग कर रहे हैं। कृष्णानंद ने मई–जून के महीने में अपने बगीचे में नमी बनाये रखने के लिए सिंचाई का प्रबंध किया है ताकि पेड़ व फल पर गर्मी का कम असर हो। वे कहते हैं कि उन्होंने बगीचे में नमी बनाये रख कर जर्दालू के फल की आयु एक सप्ताह बढा दी। आम तौर पर यह 15 जून तक टूट जाता है, लेकिन इस बार उन्होंने जून तीसरे सप्ताह तक इस फसल की तोड़ाई करवायी।
आम उत्पादन में बिहार का योगदान
वर्ष 2022-23 के भारत के बागवानी फसलों के किये गये आकलन के अनुसार, बिहार में एक लाख 62 हजार 990 हेक्टेयर जमीन पर आम की खेती हुई और 15 लाख 76 हजार 60 मीट्रिक टन आम की पैदावार हुई। बिहार सरकार ने उत्तर बिहार के दरभंगा, मधुबनी, सीतामढ़ी, समस्तीपुर, पश्चिम चंपारण, मधेपुरा व सुपौल और दक्षिण बिहार के भागलपुर, मुंगेर, पटना, बक्सर को आम उत्पादक जिलों के रूप में चिह्नित किया है। हालांकि अपनी गुणवत्ता व स्वाद की वजह से भागलपुर के आम की विशिष्ट पहचान है और भागलपुरी आम बोलने से उसकी विशिष्टता का बोध होता है।
बैनर तस्वीरः भागलपुर जिले के सबौर प्रखंड क्षेत्र के एक गांव में आम का बगीचा। तस्वीर- राहुल सिंह/मोंगाबे के लिए