- परागण में बीटल्स की भूमिका के बारे में बहुत कम जानकारी है, हालांकि उन्हें दुनियाभर में प्राचीन फूलों के शुरुआती परागणकर्ता के रूप में पहचाना जाता है।
- एक रिव्यू पेपर 34 अलग-अलग पौधों के परिवारों में 184 से ज्यादा प्रजातियों के प्रमुख परागण करने वाले कीटों के रूप में उनकी भूमिका को रेखांकित करता है। इसमें से 17 बीटल्स फैमिली ने परागण करने में विशेषज्ञता हासिल कर ली है।
- बीटल्स ने ऐतिहासिक रूप से कई पर्यावरणीय परिवर्तनों का सामना किया हैं, इसलिए यह पेपर जलवायु परिवर्तन और आवासों के नुकसान के इस समय में उनके संरक्षण के महत्व पर प्रकाश डालता है।
परागण का जिक्र आते ही हमारे दिमाग में नेक्टर की तलाश में सुगंधित फूलों के ईर्द-गिर्द मंडराती मधुमक्खियां, तितलियां और लंबी चोंच वाले सनबर्ड घूमने लग जाते हैं। लेकिन एक बड़ी बात, जिसके बारे में बहुत कम लोग जानते हैं, वो है परागण में छोटे-छोटे बीटल्स की भूमिका। हाल ही में प्रकाशित रिव्यू पेपर उनके महत्व पर प्रकाश डालता है। पेपर के मुताबिक, बीटल्स पूरी दुनिया में महत्वपूर्ण कीट परागणकर्ता माने जाते हैं और पारिस्थितिक तंत्र पर उनका गहरा प्रभाव है।
1999 के एक अध्ययन का हवाला देते हुए पेपर बताता है कि बीटल्स 34 अलग-अलग पौधों के परिवारों में 184 से ज्यादा प्रजातियों के प्रमुख परागणकर्ता हैं। इसमें से 17 बीटल्स फैमिली इस भूमिका में विशेषज्ञ हैं। कई स्रोतों का हवाला देते हुए पेपर ने कहा, बीटल्स सिर्फ फूलों को परागित नहीं करते, बल्कि हमारे लिए बहुत जरूरी खाद्य पदार्थों को पैदा करने वाले पौधों को भी परागित करते हैं। ये फसलों को परागित करने में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। यह पारिस्थितिक तंत्र के लिए बेहद जरूरी है। उन्हें मैग्नोलिया, ताड़, जायफल, चीनी और कस्टर्ड एप्पल जैसे आर्थिक महत्व के पौधों का मुख्य परागणकर्ता माना जाता है।
बीटल्स बहुत ही विविध जीव हैं, जो “कॉलीओप्टेरा” नामक जीवों के सबसे बड़े वर्ग में आते हैं। नाम सुनने में भले ही मिस्र की राजकुमारी जैसा लगता हो, लेकिन इन जीवों को वैज्ञानिक अध्ययनों में कभी भी शाही दर्जा नहीं मिला है। दुनिया भर में, ये सबसे कम अध्ययन किए जाने वाले जीवों में से एक हैं। इसका एक कारण उनकी विविधता है – 400,000 से ज़्यादा पहचानी गई प्रजातियों के साथ, वे पूरे कीट आबादी का 40% हिस्सा हैं। लेकिन परागण में बीटल्स की भूमिका पर बहुत कम जानकारी है, क्योंकि परागण का श्रेय आमतौर पर मधुमक्खियों, तितलियों और पक्षियों के हिस्से में चला जाता है।
अनगिनत फूलों पर मंडराने वाले
बीटल्स को बेसल एंजियोस्पर्मों के प्रारंभिक परागणकों में से एक माना जाता रहा है। यह मैग्नोलाइड्स जैसे प्राचीन पौधों का एक समूह है, जो परागण के लिए लगभग पूरी तरह से बीटल्स पर निर्भर हैं। समय के साथ, बीटल्स और फूलों के बीच एक खास रिश्ता विकसित हुआ और इस वजह से, फूलों की कई नई प्रजातियां बनी और उनमें ऐसे खास गुण विकसित हुए, जिन्हें परागण सिंड्रोम कहते हैं। ये गुण बीटल्स को आकर्षित करने के लिए होते हैं। इन सिंड्रोमों में, फूलों की संरचना बहुत खास होती है और इनसे कम पराग ले जाया जा सकता है।
परागण पर व्यापक शोध करने वाली वैज्ञानिक सुबद्रा देवी ने कहा कि मधुमक्खियों और तितलियों की तरह बीटल्स परागण के बदले में नेक्टर की तलाश नहीं करते हैं। बीटल्स जिन फूलों को परागित करते हैं, उनकी पंखुड़ियां बेहद मुलायम होती हैं ताकि वे उन्हें कुतर सकें और उन पर टिके रह सकें। यहां तक कि ये फूल बीटल्स जोड़ों को कुछ अंतरंग क्षण बिताने के लिए एक मैरिज पैड भी मुहैया कराते हैं। 2003 में पश्चिमी घाट में परागणकर्ताओं पर देवी के रिसर्च ने भी सदाबहार वनों में परागणकर्ता के रूप में बीटल्स की भूमिका को रेखांकित किया था।
फूलों के लिए बीटल्स को खुश करने का मतलब है बहुत सारी गंदगी को सहन करना। और सचमुच इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है क्योंकि बीटल्स को “गंदगी और मिट्टी” वाले परागणकर्ता के रूप में वर्गीकृत किया गया है। वे परागण के दौरान फूलों पर मल त्याग करते हैं और उनकी पंखुड़ियों को चबाकर उन्हें खराब कर देते हैं। देवी कहती हैं कि चंपा या मैग्नोलिया चंपका के फूलों की नरम पंखुड़ियां परागण के लिए बीटल्स को लुभाती हैं।
गंध के संकेत देकर अपनी ओर आकर्षित करना
पेपर बताता है कि फूल परागण करने वाले कीटों को आकर्षित करने के लिए दृश्य संकेतों के अलावा, गंध के संकेत भी भेजते हैं। अलग-अलग पौधों की प्रजातियां अलग-अलग गंध और खुशबू पैदा करती हैं जो परागण करने वाले उनके लक्षित बीट्लस (विशेषज्ञों) के लिए काफी अनुकूल होते हैं। बीटल्स गंध के जरिए अंधेरे में भी फूलों का पता लगा लेते हैं। एक अध्ययन कहता है, अब आप एमोर्फोफैलस जॉनसन का ही उदाहरण ले लें, जिसे “कॉर्प्स फ्लावर” कहते हैं। फेओक्रोस एम्प्लस बीटल इस पौधे की प्रजाति का परागण करने वाला प्रमुख कीट है और ये बीटल को आकर्षित करने के लिए सड़े हुए मांस और गोबर जैसी गंध पैदा करता है। वहीं दूसरी तरफ एनोनेसी या कस्टर्ड एप्पल फलों की गंध छोड़ते हुए बीटल्स को अपनी ओर खींचते हैं।
ATREE में सीनियर फेलो प्रियदर्शनन धर्म राजन ने पश्चिमी घाट में एक ऐसे यम फूल एमोर्फोफैलस कम्यूटेटस को देखा जो कुत्ते या बिल्ली के मल की गंध उत्पन्न करता है। यह गंध विशेष रूप से ऑन्थोफैगस नामक बीटल्स की विभिन्न प्रजातियों को आकर्षित करने के लिए होती है। जब ये बीटल परागण के लिए फूलों पर जाते हैं, तो वे गलती से फूलों पर मौजूद मस्सों या ग्रंथियों पर ठोकर खाकर गिर जाते हैं और मर जाते हैं। रिव्यू पेपर बताता है कि अधिकांश बीटल द्वारा परागित होने वाले फूल दिन और रात के समय अलग-अलग व्यवहार प्रदर्शित करते हैं। कहने का मतलब है कि दिन में फूल खुलते हैं और बीटल को अपनी ओर आकर्षित करते हैं। रात में यही फूल बंद हो जाते हैं और बीटल को अंदर फंसा लेते हैं। फंसा हुआ बीटल रात भर फूल के अंदर पराग और पंखुड़ियों पर भोजन करता है। साथ ही ये संबंध भी बनाते हैं। सुबह होते ही फूल फिर से खुलते हैं और बीटल अपने शरीर पर पराग लेकर बाहर निकल जाता है और दूसरे फूलों को परागित करने के लिए उड़ान भरने लगता है।
जहां एक ओर जलवायु परिवर्तन, आवास क्षरण, कीटनाशक के इस्तेमाल और अन्य कारणों से कीट परागण में वैश्विक गिरावट की बात कही जा रही है, तो वहीं दूसरी ओर परागण करने वाले कीटों की संख्या में भी कमी आने लगी है। रिव्यू पेपर इस स्थिति में परागण करने वाले कीटों के रूप में बीटल्स के महत्व की ओर इशारा करता है। जीवाश्म साक्ष्य बताते हैं कि बीटल्स ने अपने लंबे विकासवादी इतिहास के कारण अधिक पर्यावरणीय और जलवायु परिवर्तनों का सामना किया है और वे आज की चुनौतियों का भी सामना करने में सक्षम हो सकते हैं।
बीटल गोबर को रिसाइकिल करने में बेहद कुशल होते हैं। यह मिट्टी को समृद्ध करने और पोषक तत्वों को बनाए रखने में मदद करता है। धर्मा राजन ने बताया है कि बीटल्स गोबर को रिसाइकल करके गोबर से उत्पन्न होने वाली ग्रीन हाउस गैसों को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। बीटल्स शाकाहारी होते हैं और पत्तियों, फूलों, बीजों व अन्य पौधों के भागों को खाते हैं। इस तरह से जब वे खाना पचाते हैं, तो कार्बनिक पदार्थों को तोड़ते हैं और मिट्टी में पोषक तत्व वापस लौटा देते है। इससे पौधों को विकसित होने के लिए आवश्यक पोषक तत्व मिल जाते हैं। इसके अलावा वे किसानों के लिए प्राकृतिक कीट नियंत्रण एजेंट के रूप में काफी उपयोगी हैं, जिनका उपयोग किसान टिकाऊ कृषि के लिए कर सकते हैं।
देवी का मानना है कि भारत में बीटल्स की संरक्षण स्थिति के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है क्योंकि उन पर काफी कम शोध किया गया है। वह कहती हैं, हालांकि बीटल्स हर जगह पाए जाते हैं, लेकिन उनके बारे में जानकारी की कमी के कारण वे हमारे लिए अभी तक रहस्य बने हुए हैं।
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रिव्यू पेपर बीटल्स पर किए जा रहे अध्ययनों में कुछ खामियों की ओर इशारा करता है और भविष्य में इन खामियों को दूर करने के लिए कुछ सुझाव भी देता है। पेपर के मुताबिक, बीटल्स को आकर्षित करने वाले फूलों के रसायनों का पता लगाने के लिए रासायनिक परीक्षण किए जाने चाहिए। इससे हमें यह समझने में मदद मिलेगी कि बीटल्स किस तरह के फूलों को पसंद करते हैं। साथ ही फूलों के अंदर और बाहर के तापमान में बदलाव का बीटल्स पर क्या प्रभाव पड़ता है, इसका अध्ययन करना होगा। इसके अलावा नियमित रूप से डेटा एकत्र करके और बीटल्स की विविधता पर नजर रखकर हम यह पता लगा सकते हैं कि विभिन्न क्षेत्रों में बीटल्स द्वारा किया जाने वाला परागण कितना महत्वपूर्ण है और इसका आर्थिक मूल्य क्या है।
यह खबर मोंगाबे-इंडिया टीम द्वारा रिपोर्ट की गई थी और पहली बार हमारी अंग्रेजी वेबसाइट पर 25 मार्च 2024 को प्रकाशित हुई थी।
बैनर तस्वीर: कॉर्नवाल, यूके में थिक-लेग्ड फ्लावर बीटल। कीट जगत में अपनी अविश्वसनीय विविधता और प्रभुत्व के बावजूद, बीटल्स को अक्सर परागण में उनके योगदान के लिए नहीं पहचाना जाता है। तस्वीर– फ्लैपी पिजन/विकिमीडिया कॉमन्स