- सुप्रीम कोर्ट ने खनिजों पर पिछली तारीख से टैक्स लगाने का अधिकार राज्यों को दे दिया है। कंपनियों को 12 साल में किस्तों में बकाया का भुगतान करना होगा। बकाये टैक्स पर राज्य ब्याज या पेनाल्टी नहीं वसूल सकेंगे।
- सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में राज्यों को खनिज भूमि पर टैक्स लगाने का अधिकार दिया था। केंद्र सरकार ने इसे फैसले की तारीख से लागू करने की मांग की थी। लेकिन, झारखंड और ओडिशा की सरकारों ने इसे पिछली तारीख से प्रभावी बनाने की मांग की थी।
- इस बीच, झारखंड सरकार ने खनिज भूमि पर उपकर लगाने वाला विधेयक भी पारित किया है। इसमें सभी तरह के खनिजों पर भार के हिसाब से उपकर लगाने का प्रावधान है।
- उद्योग जगत ने इन सभी फैसलों पर निराशा जाहिर की है। उनका मानना है कि इससे खनन उद्योग को नुकसान उठाना पड़ेगा और उपभोक्ताओं पर भी इसका असर होगा।
अब खनिज-बहुल राज्य पिछली तारीख यानी 1 अप्रैल, 2005 से खनिज भूमि पर टैक्स वसूल सकेंगे। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और राज्यों के टैक्स से जुड़े अधिकारों के आलोक में बुधवार को यह ऐतिहासिक फैसला सुनाया। दरअसल, सुप्रीम कोर्ट की नौ जजों वाली संविधान पीठ ने 25 जुलाई को खनिजों पर राज्यों की ओर से टैक्स लगाने की शक्ति पर दूरगामी असर वाला अहम फैसला सुनाया था। इस मसले पर साल 1999 से अदालत में सुनवाई चल रही थी।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि राज्यों के पास खनन भूमि पर टैक्स लगाने का पूरा अधिकार है। चीफ जस्टिम डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पीठ ने कहा कि खनन भूमि और खदानों पर टैक्स लगाने की राज्य विधानसभाओं की शक्ति पर संसद के खान और खनिज (विकास और विनियमन) अधिनियम, 1957 से सीमित नहीं होती है।
इस फैसले के बाद ओडिशा और झारखंड जैसे राज्यों ने पिछली तारीख से टैक्स भुगतान की मांग की थी। कोर्ट ने आदेश दिया कि कंपनियों को 1 अप्रैल 2005 से बकाया टैक्स का भुगतान 1 अप्रैल, 2026 से शुरू करके 12 सालों में किश्तों में करना होगा। 1 अप्रैल 2005 से 25 जुलाई, 2024 तक के बकाया टैक्स पर राज्य कोई भी पेनाल्टी या ब्याज की मांग नहीं कर सकेंगे।
सुप्रीम कोर्ट के अहम फैसले
- 1999 से टैक्स की मांग खारिज की
- 1 अप्रैल, 2005 से पहले के खनन पर टैक्स नहीं
- राज्य 1 अप्रैल, 2005 से टैक्स वसूल सकेंगे
- बकाये टैक्स का भुगतान 1 अप्रैल, 2026 से शुरू होगा
- 12 साल में किस्तों में बकाया का करना होगा भुगतान
- बकाया टैक्स पर ब्याज का पेनाल्टी नहीं वसूलेंगे राज्य
इस मामले में झारखंड सरकार का पक्ष रखने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी ने इसे ऐतिहासिक फैसला बताया। उन्होंने मोंगाबे-हिंदी को फोन पर बताया, “मध्यम मार्ग ही सबसे अच्छा होता है। इसलिए, सुप्रीम कोर्ट ने बीच का रास्ता अपनाया है। आप यह नहीं कह सकते कि टैक्स तो ठीक है लेकिन इसे वसूलिए मत। आप यह नहीं कह सकते कि राज्य वसूल ना करें। ना ही आप यह कह सकते हैं कि वो (कंपनी) कुछ भी टैक्स ना दें। यही मांग हम लोगों ने की थी।”
हालांकि, केंद्र सरकार ने पिछली सुनवाई में 1989 से टैक्स लगाने की राज्यों की मांग का विरोध किया था। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कोर्ट में कहा था कि इस फैसले से सरकारी कंपनियों पर 70 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा का भार पड़ेगा। उन्होंने कहा कि लगभग सभी इंडस्ट्री खनिजों पर निर्भर हैं और ऐसा करने से आम आदमी को भी इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा।
सुप्रीम कोर्ट का फैसला
सर्वोच्च अदालत ने 25 जुलाई को अपना फैसला आठ-एक के बहुमत से सुनाया था। आदेश में पीठ ने कहा, “छत्तीसगढ़, झारखंड और ओडिशा जैसे राज्यों में खनिजों का ज्यादा भंडार है। इस तरह, इन राज्यों के घेरलू विकास में खनन सेक्टर की भूमिका ज्यादा है। खनिजों से समृद्ध होने के बावजूद इनमें से कई राज्य आर्थिक विकास में पीछे हैं और अर्थशास्त्री इसे ‘संसाधनों का श्राप’ कहते हैं। उदाहरण के लिए झारखंड, छत्तीसगढ़ और ओडिशा में प्रति व्यक्ति आय राष्ट्रीय औसत से कम है। इसलिए, कराधान इन राज्यों के लिए राजस्व के महत्वपूर्ण स्रोतों में से एक है, जो लोगों को कल्याणकारी योजनाएं और सेवाएं प्रदान करने की उनकी (राज्यों की) क्षमता पर असर डालता है।”
कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया था कि रॉयल्टी टैक्स नहीं है। मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने कहा, “रॉयल्टी संविदात्मक मूल्य है जो खनन पट्टेदार की ओर से खनिज अधिकारों के उपभोग के लिए पट्टादाता को दी जाती है।”
द्विवेदी ने कहा, “इस फैसले से हिंदुस्तान का संघीय ढांचा मजबूत होता है और उसमें स्पष्टता आती है, क्योंकि ये तो सब जानते हैं कि संविधान के तहत मूल शक्तियां ज्यादातर केंद्र के पास हैं। राज्य जो हैं वैसे भी उनकी शक्तियां कम हैं। लिहाजा, कोई भी ऐसी व्याख्या संविधान की ना हो जो कि उसे (राज्य के अधिकारों) और कम कर दे। इस तरह यह राजकोषीय संघवाद का मसला था। राज्यों की शक्ति भी अहम है यह संदेश भी इस फैसले से जाता है और राज्य की जो वित्तीय शक्तियां हैं उन्हें कमजोर नहीं करना चाहिए।“
वहीं, फेडरेशन ऑफ इंडियन माइनर्स इंडस्ट्रीज ने फैसले पर चिंता जताई। संगठन के एडिशनल सेक्रेटरी जनरल बीके भाटिया ने कहा कि भारतीय माइनिंग सेक्टर पर दुनिया भर में सबसे ज्यादा टैक्स है और इस फैसले से ओडिशा और झारखंड में खनन पर सबसे ज्यादा असर पड़ेगा।
मामले की शुरुआत
यह मामला तमिलनाडु सरकार और इंडिया सीमेंट से जुड़ा था। इंडिया सीमेंट को राज्य में खनन का पट्टा मिला था और वह राज्य सरकार को रॉयल्टी दे रहा था। राज्य सरकार ने रॉयल्टी के अलावा उपकर भी लगा दिया। कंपनी ने इसे पहले मद्रास हाईकोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। शीर्ष अदालत की सात जजों की खंडपीठ ने 1989 में इंडिया सीमेंट के पक्ष में फैसला सुनाते हुए कहा कि कानून के तहत खान और खनिज को रेगुलेट करने की शक्ति केंद्र के पास है।
इस मामले में झारखंड सरकार की याचिका के अलावा 80 से ज्यादा याचिकाएं दायर की गई थीं। चूंकि पहले का फैसला सात जजों की पीठ ने दिया था, इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने नौ जजों की संविधान पीठ का गठन किया। साथ ही, सात जजों के फैसले को इस पीठ के सुपुर्द किया गया। शीर्ष अदालत ने माना कि पुराने फैसले में रॉयल्टी को टैक्स मानने की चूक थी।
खनिज भूमि पर उपकर लगाएगा झारखंड
वहीं सुप्रीम कोर्ट के फैसले को झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने बड़ी जीत बताया। उन्होंने सोशल मीडिया साइट एक्स (पहले ट्विटर) पर लिखा, “अब झारखंड को केंद्र से अपने बकाये का 1 लाख 36 हजार करोड़ रुपए मिल जाएगा। इससे राज्यवासियों के हक सुरक्षित होने के साथ इन पैसों का उपयोग जन कल्याण में होगा और हर झारखंडी को इसका पूरा लाभ मिलेगा।”
सुप्रीम कोर्ट के फैसले और खनिजों के मद में बकाया राशि का भुगतान नहीं होने के आरोप-प्रत्यारोपों के बीच झारखंड विधान सभा ने खनिजों पर उपकर लगाने वाला विधेयक भी पारित किया है। इस विधेयक में अलग-अलग खनिजों पर अलग-अलग दर से उपकर लगाने का प्रावधान है।
खनन विभाग के प्रभारी मंत्री मिथिलेश कुमार ठाकुर ने मॉनसून सत्र के दौरान 2 अगस्त को यह विधेयक पेश किया। इसके बाद विधेयक को ध्वनि मत से पारित कर दिया गया। विधेयक में यह प्रावधान भी है कि उपकर से मिलने वाली रकम किन-किन मदों में खर्च की जा सकेगी।
विधेयक पर मुख्यमंत्री हेमंत सोरेने ने भी अपनी बात रखी। उन्होंने इसे राज्य हित में महत्वपूर्ण विधेयक बताया। मुख्यमंत्री ने कहा, “जो मूल्य निर्धारित है कि किस (खनिज) पर कितना लगेगा, मैं समझता हूं कि समय-समय पर कई चीजों में बदलाव होते रहता है। कभी घटाना पड़ता है, कभी बढ़ाना पड़ता है। राज्य सरकार को यह अधिकार प्राप्त हो कि समय के हिसाब से वह अपने दर को नोटिफिकेशन के द्वारा घटा-बढ़ा सकती है।”
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सरकार ने नोटिफिकेशन के जरिए कानून में बदलाव करने रास्ता खुला रखा है। समय-समय पर दरों में बदलाव या उपकर से मिलने वाली रकम को खर्च करने पर किस मद में खर्च किया जाएगा, इसमें नोटिफिकेशन के जरिए बदलाव किया जा सकेगा।
झारखंड खनिज धारित भूमि उपकर विधेयक, 2024 नाम के इस विधेयक में स्पष्ट किया गया है कि शासकीय राजपत्र में अधिसूचना प्रकाशित होने के बाद से यह प्रभावी होगा। इसमें भार यानी मीट्रिक टन के हिसाब से उपकर लगाने का प्रावधान है। कोयले और लौह-अयस्क के लिए 100 रुपए प्रति मीट्रिक टन के हिसाब से उपकर लगाया जाएगा। वहीं, बॉक्साइट पर यह दर 70 रुपए प्रति मीट्रिक टन, चूना पत्थर और मैगनीज अयस्क पर 50 रुपए प्रति मीट्रिक टन होगी। इसके अलावा अन्य खनिजों के लिए हर टन खनिज पर चुकाई गई रॉयल्टी का 50 प्रतिशत सेस लगेगा।
विधेयक पर हुई संक्षिप्त चर्चा के दौरान कुछ विधायकों ने अपनी चिंताएं भी सामने रखीं। विधायक लंबोदर महतो और विनोद कुमार सिंह ने विधेयक को प्रवर समिति को भेजने का सुझाव दिया, ताकि इस पर बेहतर ढंग से विचार हो सके। विनोद कुमार सिंह ने मोंगोबे-हिंदी को फोन पर बताया, “विधेयक को तुरंत नहीं लाकर थोड़ा व्यवस्थित करके लाना चाहिए था। टैक्स जो लगाया गया है, वह भार-आधारित है। हमारा यह कहना था कि यह मूल्य-आधारित हो। इससे (भार-आधारित होने से) झारखंड को नुकसान होगा, क्योंकि खनिजों का मूल्य बदलता रहता है।”
इस पर खान विभाग के प्रभारी मंत्री मिथिलेश कुमार ठाकुर ने सरकार का पक्ष रखा। उन्होंने कहा कि हमारा राज्य खनिज संपदाओं से परिपूर्ण है। पूरे देश का 40 प्रतिशत मिनरल हमारे राज्य में उत्पादित होता है। फिर भी हमारा राज्य गरीब है। उन्होंने कहा कि सारी प्रक्रियाएं पूरी करने के बाद ये विधेयक लाया गया है, इसलिए इसे प्रवर समिति को भेजने की जरूरत नहीं है।
विधेयक में यह प्रावधान भी है कि खनिजों पर उपकर लगाने से मिलने वाली रकम किन-किन मदों में खर्च की जाए। इसमें स्वास्थ्य सेवाएं, विद्यालय और उच्च शिक्षा, सामाजिक सुरक्षा सेवाएं, ग्रामीण आधारभूत संरचना का विकास, कृषि और इससे जुड़े क्षेत्रों का विकास और समय-समय पर अधिसूचित किए जाने वाले अन्य काम शामिल हैं।
झारखंड में लंबे समय से पर्यावरण संरक्षण के लिए काम कर रहे विधायक सरयू राय ने चर्चा के दौरान अपना संशोधन पेश किया। उन्होंने उपरोक्त कामों में पर्यावरण संरक्षण एवं संवर्धन तथा प्रदूषण नियंत्रण को भी शामिल करने की मांग की। लेकिन, उसे स्वीकार नहीं किया गया। विधान सभा में रखी बातों को उन्होंने मोंगाबे-हिंदी के साथ साझा की, “कहीं भी खनन होता है, तो उसका प्रतिकूल प्रभाव पर्यावरण पर ही पड़ता है। प्रदूषण होता है। इसका कोई लाभ वहां के लोगों को नहीं मिलता है। जब 10 बिंदुओं पर इसकी आय को खर्च कर रहे हैं, तो पर्यावरण संरक्षण एवं संवर्धन तथा प्रदूषण नियंत्रण के कार्य भी इसमें जोड़ लिए जाए।”
उद्योग जगत ने जताई चिंता
झारखंड में पारित विधेयक को लेकर उद्योग जगत चिंतित दिखाई दे रहा है। माना जा रहा है कि इससे कोल इंडिया लिमिटेड और टाटा स्टील लिमिटेड पर असर पड़ेगा। कोयले और लौह-अयस्क में दरें तो कम हैं, लेकिन इन दोनों में वॉल्यूम यानि आघतन मात्रा बहुत ज़्यादा होता है।
अगर कोल इंडिया की बात करें, तो झारखंड में उसकी कई सहायक कंपनियां काम करती हैं। इनमें सेंट्रल कोल्डफील्डस लिमिटेड और भारत कुकिंग कोल लिमिटेड प्रमुख हैं। दोनों ही कंपनियों ने वित्तीय वर्ष 2023-24 में झारखंड को 13 हजार करोड़ से ज्यादा का भुगतान किया है। इनमें कई तरह की रॉयल्टी, जीएसटी समेत दूसरे कर शामिल हैं।
वहीं, टाटा स्टील मुख्य रूप से झारखंड और ओडिशा में काम करती है। झारखंड में उसके पास कई लौह-अयस्क खदानें हैं। साथ ही कंपनी के पास यहां कैप्टिव कोयला खदानें भी हैं। टाटा स्टील को ओडिशा को खनिजों पर टैक्स के रूप में 17 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा का भुगतान करना पड़ सकता है। कंपनी ने एक्सचेंज फाइलिंग में इसकी जानकारी दी है। दरअसल, ओडिशा ने “ओडिशा ग्रामीण आधारभूत संरचना और सामाजिक-आर्थिक विकास कानून, 2004” पारित किया था। इसे एक फरवरी 2005 से लागू किया गया था। टाटा स्टील ने कानून की संवैधानिकता पर सवाल उठाते हुए इसे ओडिशा हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। लेकिन, बदली परिस्थितियों के बाद कंपनी ने इस रकम का प्रावधान किया है।
इस बीच, टाटा स्टील के मैनेजिंग डायरेक्टर ने कहा कि खनिजों पर उपकर लगाने का असर सभी उद्योगों पर देखने को मिलेगा। इससे कंपनी की लाभप्रदता, और निवेश करने की क्षमताओं पर सवाल उठेंगे। उन्होंने कहा कि दुनिया भर में खनिजों पर टैक्स की दर भारत में सबसे ज्यादा है। अगर टैक्स ज्यादा होगा, तो ज्यादा उत्पादन करने की चाहत खत्म हो जाएगी। अब इस पर केंद्र और राज्य सरकारों को विचार करना होगा।
खनिज बहुल राज्य झारखंड
देश के खनिज नक्शे पर झारखंड की स्थिति बहुत मजबूत है। यहां कई तरह के खनिज प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हैं। अगर कोयले की बात करें, तो राज्य के पास सभी श्रेणियों का 72.2 अरब टन कोयला है। राज्य में 12 मुख्य कोयला क्षेत्र हैं। झारखंड अकेला ऐसा राज्य है जिसके पास प्राइम कोकिंग कोयला है, जिसे धुलाई के साथ या उसके बिना सीधे कोक ओवन में डालकर मेटलर्जिकल कोक बनाया जा सकता है।
राज्य में हेमेटाइट और मैग्नेटाइट दोनों प्रकार के लौह अयस्कों के भंडार हैं। हेमेटाइट भंडार मुख्य रूप से पश्चिमी सिंहभूम जिले में स्थित हैं और इनका संसाधन आधार 3700 मिलियन टन से ज्यादा है। मैग्नेटाइट के भंडार पूर्वी सिंहभूम, लातेहार और पलामू जिलों में स्थित हैं।
झारखंड में बॉक्साइट भी प्रचुर मात्रा में है जो 68.1 मीट्रिक टन के भंडार के बराबर है। वहीं राज्य में खनन के मामले में कोयला के बाद चूना पत्थर का नंबर आता है। यहां चूना पत्थर का कुल भंडार 511.104 मीट्रिक टन है। कोयला भंडार में झारखंड का पहला, लौह में दूसरा, ताम्र अयस्क भंडार में तीसरा, बॉक्साइट भंडार में 7वां स्थान है। राज्य में हर साल अलग-अलग तरह के करीब 160 मिलियन टन खनिजों का उत्पादन होता है। इनका मूल्य 15 हजार करोड़ रूपए है। राज्य को 2022-23 में सभी तरह के खनिजों से 4486.26 करोड़ रुपए की रॉयल्टी मिली। यही नहीं, देश में यूरेनियम और पाइराइट का उत्पादन करने वाला भी झारखंड अकेला राज्य है।
बैनर तस्वीरः कोयला खदान। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि राज्यों के पास खनन भूमि पर टैक्स लगाने का पूरा अधिकार है। तस्वीर- राहुल सिंह