- केरला में अगस्त्यगामा एज के नाम की छिपकली की एक नई प्रजाति की खोज की गई है। इसके साथ ही अगस्त्यगामा जीनस में एक और प्रजाति जुड़ गई है।
- आमतौर पर इन छिपकलियों को कंगारू छिपकली कहा जाता है क्योंकि खतरे के समय ये अपनी पिछली टांगों पर दौड़ती हैं।
- यह नई छिपकली अगस्त्यगामा बेडडोमी से दिखने में ज़्यादा अलग नहीं है। इसे भारतीय और अंतरराष्ट्रीय म्यूजियम में मौजूद नमूनों की जांच करने और आनुवंशिकी और मॉर्फोलॉजी विश्लेषण के बाद पहचाना गया है।
वैज्ञानिकों की एक टीम एक दशक पहले एक नए प्रकार के मेंढक ‘नासिकबाट्रैचस साह्याड्रेंसिस’ के आवासों की तलाश कर रही थी। यह मेंढक साल में सिर्फ एक बार जमीन से ऊपर निकलता है और इसे बैंगनी या महाबली मेंढक के नाम से भी जाना जाता है। इसी तलाश के दौरान उन्हें एक ऐसी छिपकली मिली जो आकार और बनावट में अगस्त्यगामा बेडडोमी के समान ही थी। यह एक नई प्रजाति है और इसका पता लगाने में वैज्ञानिकों को एक दशक का लंबा समय लग गया।
शोधकर्ताओं ने जिस छोटी छिपकली की खोज की है, वह सिर से पूंछ तक लगभग 3 से 4.5 सेमी लंबी है। इसे सबसे पहले 2014-2015 में इडुक्की जिले के कोलमावु क्षेत्र में एक धारा के पास सड़क के किनारे रेंगते हुए पाया गया था।
छिपकली की इस नई प्रजाति को लंदन के जूलॉजिकल सोसाइटी ने एज ऑफ एक्सिस्टेंस कार्यक्रम के सम्मान में अगस्त्यगामा एज नाम दिया है। यह प्रोग्राम दुनिया के विभिन्न क्षेत्रों में उन प्रजातियों को बचाने के लिए काम करता है जो विकासवादी रूप से अलग और वैश्विक रूप से लुप्तप्राय (EDGE) हैं। इसके अलावा यह अपने एज फेलोशिप कार्यक्रम के जरिए भारत जैसे देशों में शुरुआती करियर वाले शोधकर्ताओं के संरक्षण अनुसंधान परियोजनाओं में मदद करता है। इस रिसर्च ग्रुप के दो सदस्यों संदीप दास और राजकुमार के.पी. को इसका फायदा मिला है।
संयोगवश हुई मुलाकात
केरला की कालीकट यूनिवर्सिटी के जूलॉजी डिपार्टमेंट के संदीप दास याद करते हुए बताते हैं, “शुरू में टीम ने छिपकली पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया क्योंकि यह केरला के एक विशेष क्षेत्र में पाई जाने वाली अगस्त्यगामा बेडडोमी जैसी दिखती थी, जिसे हम उत्तरी कंगारू छिपकली के नाम से भी जानते हैं।” वह कहते हैं, “हमने इसे रिकॉर्ड किया और फिर भूल गए।” लेकिन इस खोज की कहानी में तब नया मोड़ आया जब शोधकर्ताओं ने अपने सहकर्मी दीपक वीरप्पन को छिपकली की तस्वीरें दिखाईं।
दीपक वीरप्पन ने उन्हें बताया कि अगस्त्यगामा बेडडोमी केरल के अगस्त्यमलाई क्षेत्र में पाई जाती है, जो खोजी गई नई प्रजाति के स्थान से 100 किलोमीटर से ज्यादा दूर है। वह कहते हैं, “उन्होंने हमें सुझाव दिया कि हम दोनों प्रजातियों के बीच आनुवंशिकी और मॉर्फोलॉजिकल जांच करें।” सबसीक्वेंट जेनेटिक और मॉर्फोलॉजिकल विश्लेषण से इस बात की पुष्टि हो गई कि इडुक्की में खोजी गई छिपकली वाकई में अगस्त्यगामा जीनस की एक नई प्रजाति है। इससे पहले यही माना जाता रहा था कि इस जीनस में सिर्फ एक ही प्रजाति है।
वर्टेब्रेट जूलॉजी पत्रिका में प्रकाशित एक पेपर में वैज्ञानिकों ने इस नई प्रजाति का वर्णन किया है। वैज्ञानिकों का कहना है कि यह प्रजाति आकार, साइज और रंग में अगस्त्यगामा बेडडोमी से बहुत मिलती-जुलती है, लेकिन कुछ विशिष्ट लक्षण इसे अलग करते हैं। गले में शल्कों की संख्या और नर छिपकलियों के प्रजनन काल में गले के शल्कों का रंग दोनों प्रजातियों में अलग है। दोनों प्रजातियों में आनुवंशिक रूप से भी अंतर है। इसके साथ ही, अगस्त्यगामा एज भारत में कंगारू छिपकलियों की एक और प्रजाति अगस्त्यगामा बेडडोमी में शामिल हो गई है।
कंगारू की तरह दौड़ने वाली
कंगारू छिपकलियों में कई खास विशेषताएं और गुण होते हैं जो उन्हें अन्य एगामिड्स से अलग करते हैं। आम छिपकलियों के विपरीत, कंगारू छिपकलियां पेड़ों पर नहीं रहतीं, बल्कि स्थलीय होती हैं, जो अक्सर मिट्टी और पत्तियों के बीच पाई जाती हैं। दास का सुझाव है, “यह व्यवहार अन्य एगामिड्स के साथ संसाधन विभाजन के रूप में विकसित हुआ हो सकता है।” उनका कंगारू छिपकलियां नाम शायद खतरे के समय अपने पिछले पैरों पर काफी तेजी से दौड़ने के कारण पड़ा हैं। इसके अलावा ये छिपकलियां मांसाहारी होती हैं। छोटे जानवर और कीड़े इनके भोजन का मुख्य हिस्सा हैं।”
प्रजातियों का अधिक विस्तृत अध्ययन करने के लिए, टीम बाद के कुछ सालों में उस स्थान पर वापस लौटी और विश्लेषण के लिए कुछ छिपकलियों को पकड़ा। इसके अलावा, उन्होंने भारत के संग्रहालय में मौजूद नमूनों की भी तलाश की, लेकिन किसी भी निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए वो काफी नहीं थे। उन्हें पता चला कि 1935 और 1980 के दशक के आखिर में अगस्त्यगामा बेडडोमी के इकट्ठा किए गए नमूने शिकागो फील्ड म्यूजियम और लंदन के नेचुरल हिस्ट्री म्यूजियम में रखे गए हैं, टीम ने बड़े ही धैर्य के साथ सही अवसर का इंतजार किया। वीरप्पन ने शिकागो के फील्ड म्यूजियम का दौरा करने के चुनौतीपूर्ण काम को संभाला। वहां उन्हें 1980 के दशक में एकत्र किए गए अगस्त्यगामा बेडडोमी नमूनों का एक बड़ा संग्रह मिला। लेकिन इस पूरी प्रक्रिया में एक दशक लग गया। शोधकर्ताओं का मानना है कि यह इंतजार बेकार नहीं गया।
वीरप्पन ने मोंगाबे इंडिया को बताया, “जब हमें यह जानकारी मिली, तो जाहिर तौर पर हमारे पास नमूनों का आकार बढ़ गया। हमने एक विशिष्ट शारीरिक लक्षण को पहचाना जो सिर्फ इस नई प्रजाति में पाया जाता है। हमारे पास मॉलिक्यूलर अंतर को लेकर काफी मजबूत साक्ष्य था, लेकिन प्रजातियों का नाम रखते समय पूरी तरह से सावधान रहना चाहिए, इसलिए हमने पहले सभी संभावित लक्षणों की जांच की।”
यह खोज पश्चिमी घाट में मौजूद प्रजातियों की विशाल विविधता का एक और प्रमाण है। वीरप्पन कहते हैं, “यह धारणा गलत है कि पश्चिमी घाटों में सरीसृप प्रजातियों का पूर्ण अध्ययन हो चुका है।” उन्होंने आगे कहा, “इस नई प्रजाति की खोज और इसके जेनेटिक डेटा के शामिल होने से दुनिया भर के वैज्ञानिकों को विभिन्न प्रजातियों के विकास और विविधता के बारे में समझने में मदद मिलेगी।”
यह खबर मोंगाबे-इंडिया टीम द्वारा रिपोर्ट की गई थी और पहली बार हमारी अंग्रेजी वेबसाइट पर 5 अप्रैल 2024 को प्रकाशित हुई थी।
बैनर तस्वीर: एक मादा अगस्त्यगामा एज। अगस्त्यगामा छिपकलियों को आमतौर पर खतरे के समय अपने पिछले पैरों पर दौड़ने की खासियत के चलते कंगारू छिपकलियां कहा जाता है। तस्वीर- संदीप दास