- कोरोना काल में अपने गृह जिले लौटने वाले झारखंड के बिनोद कुमार महतो आज 20 एकड़ पर आधुनिक तरीके से खेती कर रहे हैं। उनका बागान पूरी तरह मॉर्डन है जहां आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) की मदद से ऑटोमेटेड सिंचाई की जाती है।
- महतो का कहना है कि ऐसा करने वाले वे झारखंड में पहले किसान हैं। उनके खेत पर मौसम की जानकारी देने वाला सिस्टम भी लगा हुआ है जो 10 दिनों का का पूर्वानुमान बताता है। यह सिस्टम उनकी फसलों को कीड़ों से बचाने में भी मदद करता है।
- जानकारों का कहना है कि एआई और सेंसर से बीमारी का पता लगाने, सही पटवन करने और मिट्टी के पोषक तत्वों की सटीक जानकारी मिलती है।
बात साल 2020 की है, जब दुनिया कोरोना महामारी से जूझ रही थी और काम-धंधे बंद हो रहे थे। इन सबके बीच 10 साल से पुणे में बैंक मार्केटिंग का काम कर रहे हजारीबाग जिले के बिनोद कुमार महतो अपने गांव लौटने का फैसला करते हैं।
लेकिन, उनके सामने सबसे बड़ा सवाल था कमाई का स्थायी जरिया खोजना। जिले के चुरचू ब्लॉक के रहने वाले और किसान परिवार से ताल्लुक रखने वाले महतो कहते हैं, “हमने कुछ ऐसा करने का सोचा जिसमें गैर-कुशल कामगारों की जरूरत हो। यहां (झारखंड) पर जो मैंने बेरोजगारी देखी वो गैर-कुशल कामगारों की है। पूरे देश की तरह ही झारखंड में भी मुख्य पेशा खेती-बाड़ी ही है। इस तरह हमने कृषि में ही आगे बढ़ने का सोचा।”
बिनोद भौतिक शास्त्र में ऑनर्स और एमबीए की पढाई कर चुके हैं। उन्होंने मोंगाबे-हिंदी को बताया, “घर के आस-पास मुझे इतनी बड़ी जमीन नहीं मिल पाई। फिर हमें दाड़ी ब्लॉक में जमीन दिखी। हमने जमीन लीज पर ली और आधुनिक तरीके से खेती शुरू की। सितंबर 2020 से हमने अपने फार्म में काम चालू किया। चूंकि मैं मॉर्डन सिटी से आया था, तो सोच में भी आधुनिक था। सोचा कि खेती पुराने तरीके से क्यों करूं?”
इस तरह उन्होंने सब्जियों उगानी शुरू की। आज वह 20 एकड़ जमीन पर खेती कर रहे हैं।
एआई, ऐप और डिजिटल तौर-तरीके से खेती
महतो के पास आज तीन बागान हैं। इनके नाम सुंदरबन कृषि वाटिका (10 एकड़), वृंदावन कृषि वाटिका और मधुबन कृषि वाटिका (दोनों 5-5 एकड़) हैं। उन्होंने इन बागानों को मॉर्डन फार्म में बदलने के लिए यहां लाइट, कैमरा, पानी की व्यवस्था को सोलर ऊर्जा से चलाया। तीनों बागानों में मिट्टी की नमी का पता लगाने वाला टूल लगा हुआ है। वहीं, सुंदरबन में तो सिंचाई की पूरी व्यवस्था ऑटोमेटेड है, यानी उसे डिजिटल ऐप के जरिए निर्देश दिया जाता है और सिस्टम उसी हिसाब से काम करता है।
महतो अपने बागानों में मल्चिंग के तरीके से सब्जियां उगाते हैं। इस विधि में ड्रिप सिंचाई जरूरी है। इसमें खेत को ऊपरी मिट्टी को किसी चीज से ढक दिया जाता है। इससे कई तरह के फायदे होते हैं जैसे पानी की बचत, ज्यादा बारिश के दौरान कटाव से सुरक्षा और मिट्टी की उर्वरा शक्ति में बढ़ोतरी। उन्होंने ड्रिप सिंचाई को अर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) से जोड़ा है। इस तरह, सिंचाई का पूरा सिस्टम ऑटोमेट हो गया है।
इस सिस्टम के बारे में महतो बताते हैं, “हमारे यहां ऑटोमेटेड सिंचाई सिस्टम लगा हुआ है। यहां एक टावर लगा हुआ है। मोबाइल में एक ऐप है। मैं जो भी डायरेक्शन देता हूं, वो टावर के थ्रू नेटवर्क शेयर कर देता है।”
वे बताते हैं, “सुंदरबन बागान चार प्लॉट में बंटा हुआ है। इन चारों में पानी के लिए अलग-अलग वॉल्व लगे हुए हैं। मिट्टी की नमी बताने वाले सिस्टम से मुझे ऐप के जरिए पता चल जाता है कि उस प्लॉट में कितनी नमी है या सूखापन है। मान लें कि प्लॉट नंबर 2 में पानी की कमी है, तो मैं प्लॉट नंबर 2 में ऑटोमेटिक तरीके से वॉल्व ऑन करता हूं और वहां सिंचाई शुरू हो जाती है। यही नहीं, मोटर भी मोबाइल से ही चालू या बंद किया जा सकती है।”
सुंदरबन में लगा ऑटोमेटिक सिंचाई सिस्टम कल्टीवेट (Cultyvate) कंपनी का है। बेंगलुरु से काम करने वाली यह कंपनी किसानों को कई तरह की सुविधाएं उपलब्ध कराती है। कंपनी का दावा है कि सिंचाई से जुड़े उसके सिस्टम का इस्तेमाल करने से उपज में 20 फीसदी तक इजाफ़ा और सिंचाई के लिए पानी का इस्तेमाल 50 फीसदी तक कम हो जाता है।
वाराणसी स्थित भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान में सब्जी उत्पादन डिवीजन के प्रधान वैज्ञानिक अनंत बहादुर कहते हैं कि एआई सिस्टम से कई तरह के फायदे मिलते हैं। उन्होंने मोंगाबे हिंदी को बताया, “इसके तीन बड़े फायदे हैं। एक तो आप बीमारी का पहले ही पता लगा सकते हैं और उन्हें कंट्रोल कर सकते हैं। दूसरा फायदा यह कि सेंसर या आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से जितनी जरूरत है फसलों में उतना ही पानी दे सकते हैं। इसमें भी जमीन के भीतर वाले सेंसर 100 फीसदी तक सटीक पूर्वानुमान लगा लेते हैं। तीसरा फायदा यह है कि मिट्टी के पोषक तत्वों के बारे में सटीक जानकारी मिल जाती है। विकसित देशों में एआई का इस्तेमाल ऊंचे स्तर पर चला गया है। हमारे यहां भी इस्तेमाल बढ़ रहा है। आने वाले समय में सेंसर और एआई से ही सबकुछ होगा।”
अनंत बहादुर कहते हैं, “मौसम में बदलाव के चलते कई तरह की बीमारियां आती हैं। मान लीजिए ठंड में बारिश हो गई, तो खास तरह की बीमारियां हो सकती हैं। इसकी जानकारी एआई आपको पहले ही दे देगा।”
महतो का कहना है कि शुरुआती दिनों में इंटरनेट पर काफी चीजें सर्च करने के दौरान उन्हें नाबार्ड की योजनाओं के बारे में पता चला। “जब मुझे ऑटोमेटेड सिंचाई टेक्नोलॉजी के बारे में पता चला, तो मैंने नाबार्ड से संपर्क किया।”
हजारीबाग जिले में नाबार्ड की डिस्ट्रिक्ट डेवलपमेंट मैनेजर रिचा भारती ने मोंगाबे हिंदी से कहा, “हमारा प्रोजेक्ट था जिसके तहत IoT के लिए इफको के जरिए उन्हें (महतो) मदद मिली थी।” उन्होंने कहा कि इस तरह की टेक्नोलॉजी से पहले ही मौसम का पूर्वानुमान मिल जाता है जिससे किसानों को फायदा होता है। साथ ही, मिट्टी के न्यूट्रिशन के बारे में पता चल जाता है।“
वहीं इफको-किसान में सीनियर मैनेजर सूरज सिन्हा ने मोंगाबे हिंदी को बताया, “हमने पाया कि ड्रिप तो लग रहा था, लेकिन सिंचाई पर किसानों का कोई नियंत्रण नहीं था। हर दिन चार से पांच घंटे सिंचाई करनी पड़ती थी। इसलिए हम लोगों ने पायलट प्रोजेक्ट किया, तो पाया दो या तीन दिन में एक बार सिंचाई की जरूरत है। इससे पानी के साथ-साथ बिजली की भी बचत हुई है।“
सिन्हा कहते हैं, “हर स्टेज पर फसल के लिए पानी की जरूरत अलग-अलग होती है। पकने के समय पानी की जरूरत सबसे ज्यादा होती है। अगर किसान वाटर मैनेजमेंट कर लेता है, तो उसकी 90 फीसदी फसल स्वस्थ होगी। फसल में संक्रमण का खतरा कम हो जाता है।”
इफको-किसान ने अभी तक 15 राज्यों में 200 से ज्यादा खेतों में IoT सेंसर लगाए हैं। वहीं 50 से ज्यादा खेतों में ऑटोमेट सिंचाई सिस्टम के लिए मदद की है।
साल 2007 से काम कर रहे इस संगठन के मुताबिक उसने छोटे और सीमांत किसानों को सटीक या स्मार्ट खेती शुरू करने के लिए प्रेरित करने की पहल शुरू की है, जो फसलों को जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभाव से बचाने में मदद करती है।
ऑटोमेटिक वेदर सिस्टम
सुंदरबन में मौसम का हाल बताने वाला सिस्टम भी लगा हुआ है। इस सिस्टम से बिनोद को मौसम का 10 दिन का पूर्वानुमान मिल जाता है। इससे उन्हें खाद-पानी से लेकर हर तरह के सही फैसले करने में मदद मिलती है।
यह सिस्टम Fyllo कंपनी का है, जो साल 2019 से किसानों को कई तरह की सुविधाएं दे रही हैं। कंपनी का दावा है कि उसके पास 20 से ज्यादा फसलों के लिए 100 से अधिक एग्रोनॉमी मॉडल हैं।
कंपनी ने मोंगाबे-हिंदी को ईमेल से भेजे जवाब में बताया, “हमारी यूनिटें मिट्टी की नमी, मिट्टी के तापमान, पत्तों की नमी, प्रकाश की तीव्रता, हवा का तापमान, हवा की नमी, हवा का दबाव, हवा की गति, हवा की दिशा और बारिश के बारे में जानकारी देती है। सभी कैप्चर किए गए डेटा को विश्लेषण के लिए कंपनी के क्लाउड सर्वर पर भेजा जाता है और मशीन लर्निंग और एआई एग्रोनॉमी मॉडल का इस्तेमाल करके संसाधित किया जाता है। इस डेटा से हम किसानों को फसलों के हिसाब से सुझाव देते हैं। जैसे कि कितनी सिंचाई करनी है, कब सिंचाई करनी है, उर्वरक और स्प्रे का सटीक शेड्यूल, रोग और कीट पूर्वानुमान, मौसम पूर्वानुमान और जलवायु-आधारित सुझाव।”
कंपनी का कहना है कि Fyllo किसानों को सटीक फैसले लेने और बेहतर गुणवत्ता के साथ उपज में 20% बढ़ोतरी करने में मदद करता है। वहीं, इसकी मदद से निर्यात गुणवत्ता वाले 90% उत्पाद और इस्तेमाल किए जाने वाले संसाधनों में 25% कमी के साथ खेती की उत्पादकता बढ़ाने में मदद करता है।
महतो कहते हैं कि कीटनाशक या दवा का छिड़काव करते समय हवा की दिशा और उसकी गति किसानों के बहुत काम आ सकती है। अगर आपको ये दोनों चीजें पता हैं तो दवा का असर दूर तक होगा और बर्बादी भी कम होगी।
दरअसल, झारखंड में 38 लाख हेक्टेयर भूमि खेती के लायक है। इसमें से 25 से 26 लाख हेक्टेयर भूमि पर खेती होती है। झारखंड में अभी भी खेती बहुत हद तक मौसम पर निर्भर है। यहां बारिश पर निर्भरता इतनी ज्यादा है कि खेती लायक कुल रकबे के 92 फीसदी पर सिंचाई की सुविधा नहीं है। हालांकि, सिंचाई सुविधाएं बढाने पर काम जारी है। झारखंड में सकल सिंचाई (ग्रॉस इरिगेशन) का रकबा 2017-18 में 2.47 लाख हेक्टेयर से बढ़कर 2021-22 में 2.91 लाख पर पहुंच गया है। इससे क्रॉपिंग इंटेंसिटी (cropping intensity) भी बेहतर हुई है और यह 2019-20 में 144.55% से बढ़कर 2022-23 में 171.58% पर पहुंच गई।
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खाद्य और कृषि संगठन के अनुसार क्रॉपिंग इंटेंसिटी से यह पता चलता है कि किसी जमीन पर कितनी बार खेती होती है। वाराणसी स्थित भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान में प्रधान वैज्ञानिक सुदर्शन मौर्या ने मोंगाबे-हिंदी को बताया, “झारखंड में जो क्रॉपिंग इंटेंसिटी है उसका मतलब है कि अभी वहां करीब दो फसलें ली जाती हैं। इस लिहाज से देखें, तो राज्य में तीसरी फसल लेने की पूरी संभावना है। खेती में टेक्नोलॉजी को शामिल करके यह काम किया जा सकता है।”
व्यापक इस्तेमाल में कई चुनौतियां
हालांकि, भारत में इस तरह की तकनीक के व्यापक इस्तेमाल के रास्ते में कई चुनौतियां हैं। इनमें सीमांत किसानों की बहुत बड़ी तादाद, किसानों की माली हालत, डिजिटल तकनीक तक पहुंच, तकनीकी महारत और उससे जुड़े इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी है। मसलन, एक सर्वेक्षण के अनुसार भारत में दो हेक्टेयर से कम जोत वाले कृषि परिवारों का प्रतिशत 89.4% है। भारत में जोत का आकार लगातार घटता जा रहा है। साल 1970-71 में यह आकार 2.28 हेक्टेयर था जो 2015-16 में घटकर आधे से भी कम यानी 1.08 हेक्टेयर पर आ गया। इसका असर किसानों को होने वाली कमाई में भी दिखता है। अगर झारखंड की बात करें, तो यहां के किसानों की महीने-भर में औसत आय 4,895 रुपए है जो राष्ट्रीय औसत के आधे से भी कम है।
मार्च में भारत सरकार के कृषि से जुड़े कई विभागों ने “कृषि में क्रांतिकारी परिवर्तन: खेती का डिजिटल रूपांतरण” पर तकनीकी रिपोर्ट भी जारी की थी। रिपोर्ट में भारत में इस तरह की तकनीक को अपनाने में आ रही चुनौतियों के बारे में भी बताया गया है।
रिपोर्ट कहती है, “मुख्य चुनौतियों में से एक यह पक्का करना है कि खास तौर पर गांवों में किसान एआई और IoT तकनीकों को व्यापक रूप से अपनाएं। सीमित जागरूकता, तकनीक तक पहुंच और तकनीकी महारत को अपनाने में बाधा बन सकती है। कम वित्तीय संसाधानों वाले छोटे किसानों के लिए AI और IoT सिस्टम को लागू करने की लागत बहुत ज़्यादा हो सकती है। लागत-प्रभावी समाधान ढूंढ़ना और सब्सिडी या अनुदान जैसे विकल्पों की खोज करना, इन तकनीकों को ज़्यादा सुलभ बनाने में मदद कर सकता है।”
रिपोर्ट में कहा गया है, “खेती के क्षेत्र को उत्पादकता में बढ़ोतरी, जलवायु परिवर्तन, फसलों की सेहत की निगरानी और जल प्रबंधन के साथ-साथ उर्वरकों के इष्टतम इस्तेमाल से संबंधित कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। इन चुनौतियों का समाधान करने के लिए, IoT तकनीक और AI/ML (मशीन लर्निंग) उम्मीदों के साथ नए रास्ते खोल रहे हैं और खेती के भविष्य को अगले स्तर पर ले जा रहे हैं।”
बैनर तस्वीरः ऑटोमेटिक सिंचाई सिस्टम के पास खड़े हुए बिनोद कुमार महतो। तस्वीर- विशाल कुमार जैन