- अधिकांश भारतीय खाना बनाने के लिए बायोमास या तरलीकृत पेट्रोलियम गैस (एलपीजी) पर निर्भर हैं, जो भारत के उत्सर्जन बोझ को बढ़ा रहा है। सौर ऊर्जा से खाना पकाना एक बेहतर विकल्प हो सकता है।
- मौजूदा समय में घरेलू या सामुदायिक सौर ऊर्जा से खाना पकाने को बढ़ावा देने के लिए किसी तरह की सब्सिडी या प्रोत्साहन नहीं दिया जाता है।
- नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय का कहना है कि सौर ऊर्जा से खाना पकाने के लिए सब्सिडी न देने का कारण “व्यावसायिक मॉडल” का अभाव है।
- वहीं उद्यमी मानते हैं कि सौर ऊर्जा से खाना पकाने को बढ़ावा देने के लिए सब्सिडी की जरूरत है। सब्सिडी से बाजार में यह तकनीक फैलेगी, इसे लोग स्वीकार करेंगे और आगे नवाचार होगा।
बेंगलुरु में रहने वाली रेवा मलिक की दिनचर्या थोड़ी अलग है। वह हर दिन सुबह 9 बजे अपने घर की छत पर जाती हैं, एक सौर कुकर लगाती हैं और ट्रे में तीन तरह का खाना बनाने के लिए रखकर नीचे चली आती है। उन्हें खाना बनाने के लिए सब्जियों को चलाने या फिर बीच-बीच में मसाले डालने की जरूरत नहीं है। धूप को देखते हुए मलिक एक टाइमर भी सेट करती हैं और फिर घर के दूसरे कामों में लग जाती हैं। डेढ़ घंटे बाद नाश्ते की प्लेट उनके परिवार के सामने होती है। पिछले चार सालों से वह ऐसा ही करती आ रही है।
कंसल्टिंग फर्म चलाने वाली मलिक को सौर ऊर्जा की तरफ जाने का ख्याल अपने अपने माता-पिता के सोलर कुकर को देखकर आया था, जो पिछले एक दशक से कोने में पड़ा धूल फांक रहा था। सोलर कुकर के जरिए मलिक के परिवार ने न सिर्फ कार्बन फुटप्रिंट को कम किया है, बल्कि अपने खर्चों से भी काफी हद निजात पाई है। सोलर कुकर खरीदने के लिए उन्हें एक बार में 18,000 रुपए खर्च करने पड़े थे, लेकिन उसके बाद से गैस सिलेंडर पर होने वाला खर्च न के बराबर हो गया। सोलर पर जाने से पहले हर साल कम से कम छह सिलेंडर लग जाया करते थे। लेकिन पिछले चार सालों में उन्होंने एक भी सिलेंडर नहीं खरीदा है। उनके मुताबिक, गैस सिलेंडर पर वह अब तक कम से कम 28,000 रुपये की बचत कर चुकी हैं।
लेकिन क्या ये सब इतना आसान था, शायद, नहीं! सोलर पर जाने के लिए उन्हें अपनी खान-पान की आदतों और खाना पकाने के तरीकों को बदलना पड़ा। सोलर कुकर पर आप चपाती नहीं बना सकते हैं और न ही सब्जियों को फ्राई कर सकते हो। उन्होंने कहा, “हमने खुशी-खुशी अपनी खाने की आदतों को बदल दिया। चपाती के बजाय हम गेहूं को दूसरे रूपों में खाते हैं जैसे कि दलिया या लिट्टी। इन्हें बड़ी आसानी से सोलर कुकर में पकाया जा सकता है।”
जहां एक ओर सोलर कुकिंग के कई फायदे हैं, तो वहीं कुछ दिक्कतें भी हैं, मसलन खाना पकाने में लगने वाला ज्यादा समय और बाहर खाना बनाने के लिए धूप की जरूरत।
इन चुनौतियों से निपटने के लिए ओडिशा के पुरी में रहने वाले शाश्वत सौरव पांडा ने एक बेहतरीन तरीका निकाला है। वह अलग-अलग समय में खाना बनाने के लिए अपने घर में तीन सोलर-आधारित कुकिंग सिस्टम का इस्तेमाल कर रहे हैं। धीमी गति से खाना पकाने के लिए सोलर बॉक्स कुकिंग सिस्टम, ज्यादा खाना पकाने के लिए पैराबोलिक कंसंट्रेटर और बिना सूरज की रोशनी के खाना पकाने के लिए सोलर ग्लास ट्यूब-आधारित सिस्टम। कुल 31,000 रुपये के निवेश के साथ पांडा गैस सिलेंडर की अपनी वार्षिक खपत को बारह से घटाकर चार पर ले आए हैं।
उन्होंने मोंगाबे इंडिया को बताया, “हमें सौर ऊर्जा से पके हुए खाने का प्राकृतिक स्वाद बेहतर लगने लगा, तो हमने इसे पूरी तरह अपना लिया। अगर आज उतने लंबे समय तक हमारा परिवार सौर ऊर्जा से खाना पकाने पर टिका हुआ है, तो इसकी कई वजहें हैं। इससे न सिर्फ हमारे खर्च में कमी आई है बल्कि ये सुरक्षित भी है।” उन्होंने अपने परिवार की कम उत्सर्जन वाली तकनीक का इस्तेमाल करने के संकल्प के बारे में भी बताया।
80 के दशक में सौर ऊर्जा से खाना पकाने को मिला था बढ़ावा
भारत के गैर-परंपरागत ऊर्जा स्रोत मंत्रालय (MNES) ने 1980 के दशक की शुरुआत में 30% की सब्सिडी के साथ सोलर बॉक्स कुकिंग को बढ़ावा देना शुरू किया था। लेकिन बाद में सब्सिडी को घटाकर 15% कर दिया गया। अमेरिका की एक गैर-लाभकारी संस्था ‘सोलर कुकर इंटरनेशनल’ के मुताबिक, बॉक्स कुकिंग के लिए सब्सिडी 1994 तक मिलती रही और उन 12 सालों में भारत में 3.4 लाख सौर कुकरों की बिक्री हुई थी। हालांकि सरकार ने 1994 में सौर कुकरों के लिए सब्सिडी बंद कर दी, लेकिन राज्य के नवीकरणीय ऊर्जा एजेंसियों को सौर कुकर के बारे में लोगों को शिक्षित करने और प्रचार करने के लिए पैसे देना जारी रखा।
दरअसल 80 के दशक में जब दुनिया पर तेल संकट गहराया, तो सौर कुकर को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने सब्सिडी देने की ओर अपने कदम बढ़ाए थे। लेकिन जैसे ही तेल संकट कम हुआ, सौर कुकर के प्रति लोगों का उत्साह भी कम हो गया। सौर उपकरण बनाने वाली स्टार्टअप कंपनी सिंपलीफाइड टेक्नोलॉजीज फॉर लाइफ (एसटीएफएल) के संस्थापक विवेक काबरा ने कहा, “इसलिए भारत में सौर कुकर के क्षेत्र में तेजी से खाना पकाने वाले पैराबोलिक कुकर जैसे उत्पादों को विकसित करने में 20 साल से भी ज्यादा का समय लग गया।”
1990 के दशक में, विदेशी पैराबोलिक सोलर कुकर, SK-14 पैराबोलिक डिश बाजार में आया था, जिसकी कीमत 11,500 रुपये थी। हालांकि इससे खाना पकाने में समय कम लगता है, लेकिन यह बाहर खाना पकाने की समस्या का समाधान नहीं कर सका। भारत में सोलर थर्मल कंसन्ट्रेटर बनाने वाली कंपनी सनराइज सीएसपी इंडिया प्राइवेट लिमिटेड के चेयरमैन दीपक गादिया ने कहा, “जो सौर कुकर खरीद सकते थे, वो अमीर लोग थे, लेकिन वो बाहर खाना बनाने में झिझकते थे। वहीं गरीब लोग धूप में खाना बनाने को तैयार थे, लेकिन ये उनकी पहुंच से बाहर था। वो इसे खरीद नहीं सकते थे।”
शेफलर कंसन्ट्रेटर जैसे सौर कुकर बड़ी मात्रा और कम समय में घर के अंदर खाना पका सकते हैं। लेकिन, ये सिर्फ बड़े परिवारों या समुदाय के लिए ही उपयुक्त हैं। इसकी कीमत को देखते हुए इन्हें किसी भी आम परिवार के लिए इस्तेमाल कर पाना थोड़ा मुश्किल है। इस प्रोडेक्ट को बनाने वाले गादिया ने कहा, “इस की कीमत 3.5 लाख रुपये है और यह बड़े पैमाने पर खाना पकाने के लिए एक बेहतरीन विकल्प हो सकता है।”
मांग बढ़ने पर ही सब्सिडी
जो खाना पकाने में कम समय ले और जिसे घर के अंदर भी इस्तेमाल किया जा सके, बाजार में अभी तक ऐसा कोई सोलर कुकर नहीं आया है। विशेषज्ञों का कहना है कि सोलर कुकिंग उपकरणों के लिए फिर से सब्सिडी शुरू करना तकनीकी अंतर को पाटने में एक बड़ा बदलाव ला सकता है। हालांकि, नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (एमएनआरई) के संयुक्त सचिव, दिनेश दयानंद जगदाले ने मोंगाबे इंडिया को बताया कि सौर ऊर्जा से खाना पकाने के लिए सब्सिडी न देने का कारण “व्यावसायिक मॉडल” का अभाव है। उन्होंने कहा, “हमारे पास ऐसी तकनीक नहीं है जो घरों में स्वीकार्य हो। अगर कोई तकनीक है, तो हम उसका मूल्यांकन करने और सब्सिडी शुरू करने के लिए तैयार हैं।”
हालांकि, काबरा एक अलग नजरिया पेश करते हैं। उन्होंने कहा, “सब्सिडी से मांग पैदा होगी जिससे बड़े पैमाने पर उत्पादन होगा, अधिक नवाचार होगा और उसे बाजार में स्वीकृति मिलेगी। पिछले दशक में सौर वॉटर हीटर और फोटोवोल्टिक पैनल के साथ ऐसा ही हुआ है।” काबरा ने कहा, “घरेलू और सामुदायिक दोनों तरह के सौर खाना पकाने के लिए, सब्सिडी लोगों को इस इनोवेटिव खाना पकाने के तरीके की ओर आकर्षित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी।”
सरकार प्रतियोगिताओं के जरिए सौर खाना पकाने के समाधानों को लोगों के बीच ले जाने का प्रयास करती रही है। 2018 में, विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) ने घरेलू और सामुदायिक स्तर पर सौर खाना पकाने के समाधान डिजाइन करने के लिए ग्रैंड चैलेंज अवार्ड शुरू किया था। वहीं 2017 में ओएनजीसी एनर्जी सेंटर ने भी इसके लिए एक और प्रतियोगिता आयोजित की थी। हालांकि, ये लोगों में जागरूकता और उत्साह पैदा करने की दिशा में किए गए प्रयास हैं, लेकिन उन प्रतियोगिताओं के बाद कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई।
सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (सीएसई) में नवीकरणीय ऊर्जा कार्यक्रम प्रबंधक, बिनित दास ने कहा, “भारत में सौर कुकिंग को बढ़ावा देने के लिए कोई एक समर्पित नीति नहीं है।” उन्होंने कहा कि एक समर्पित नीति लागू करना सोलर कुकिंग के प्रति स्थायी सरकार की प्रतिबद्धता को दर्शाएगा। इससे निवेश को भी बढ़ावा मिलेगा और क्षेत्रीय प्रगति भी सुनिश्चित होगी।
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विशेषज्ञों का सुझाव है कि सौर ऊर्जा से खाना पकाने को बढ़ावा देने वाली नीतियां भारत को पारंपरिक खाना पकाने के ईंधन से जुड़ी चुनौतियों जैसे कि घर के अंदर प्रदूषण, एलपीजी जैसे गैर-नवीकरणीय स्रोतों का उपयोग और ऊर्जा सुरक्षा को दूर करने में मदद कर सकती हैं। दास ने कहा, ‘सोलर कुकिंग पॉलिसी सस्ती उपलब्धता, जागरूकता बढ़ाने और तकनीकी सुधार जैसी महत्वपूर्ण चुनौतियों का सामना करने के लिए खास तौर पर बनाए गए उपायों के जरिए प्रभावी ढंग से काम कर सकती है। इसके अलावा, यह विभिन्न सरकारी संस्थाओं, गैर-सरकारी संगठनों (NGO) और निजी कंपनियों के बीच सहयोग को आसान बना सकती है। स्पष्ट निर्देश और संसाधनों को अलग करके, एक समर्पित नीति सौर खाना पकाने को बढ़ावा देना और व्यापक रूप से अपनाने को आसान बना सकती है।”
मौजूदा समय में, प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना (पीएमयूवाई) के तहत एलपीजी को बढ़ावा दिया जा रहा है, यह 2016 में शुरू की गई एक सरकारी योजना है, जिसका उद्देश्य लोगों को लकड़ी, गोबर और फसल अवशेष जैसे प्रदूषणकारी खाना पकाने के ईंधन से दूर करने और घर के अंदर वायु प्रदूषण को कम करने के तरीके के रूप में एलपीजी कनेक्शन वितरित करना है। पिछले आठ सालों में सरकार ने 101.5 मिलियन एलपीजी कनेक्शन वितरित किए हैं। हालांकि, लगभग 41% भारतीय आबादी अभी भी खाना पकाने के लिए लकड़ी, गोबर या अन्य बायोमास पर निर्भर है, जो सालाना लगभग 340 मिलियन टन कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जित करती है। इसके अलावा, एलपीजी एक गैर-नवीकरणीय ईंधन है जो खत्म हो रहा है। क्योंकि यह दुनिया में सबसे ज्यादा व्यापार होने वाले ईंधनों में से एक है, इसलिए ऊर्जा सुरक्षा को लेकर चिंताएं बढ़ रही हैं।
गादिया ने कहा, “यह शर्म की बात है कि सरकार ऐसी तकनीक (सोलर कुकिंग) को बढ़ावा नहीं दे रही है जो लाखों लोगों की जान, जंगल और पर्यावरण को बचाएगी, बल्कि फोटोवोल्टिक को बढ़ावा दे रही है क्योंकि इसे आसानी से बड़े पैमाने पर लागू किया जा सकता है।”
यह खबर मोंगाबे-इंडिया टीम द्वारा रिपोर्ट की गई थी और पहली बार हमारी अंग्रेजी वेबसाइट पर 20 मार्च 2024 को प्रकाशित हुई थी।
बैनर तस्वीर: भारत में सोलर थर्मल कंसंट्रेटर बनाने वाली कंपनी सनराइज सीएसपी इंडिया प्राइवेट लिमिटेड के दीपक गादिया सोलर कुकर के साथ खड़े है। तस्वीर- दीपक गादिया