- मध्य प्रदेश पर्यटन विभाग ने नर्मदा नदी पर क्रूज परियोजना को मंजूरी दी थी। लेकिन, पर्यावरण पर इसके संभावित दुष्प्रभाव और मछली पकड़ने वाले स्थानीय समुदायों पर पड़ने वाले असर के चलते इसका पुरजोर विरोध हो रहा है।
- पर्यावरणविद और स्थानीय लोग इस परियोजना को लेकर कई तरह की चिंता जताते हैं । इसके चलते कानूनी कार्रवाई की गई और परियोजना को रोक दिया गया। आलोचकों ने पर्यावरण और सामाजिक असर के गहराई से आकलन के अभाव की बात कही।
- परियोजना और उससे जुड़े निर्माण को रोकने के लिए अदालती आदेश के बावजूद काम जारी है। इसलिए, यह देश की नदियों और पर्यावरण की रक्षा करने में कानूनी तंत्र को लेकर इन अधिकारियों की ईमानदारी पर चिंता पैदा करता है।
मध्य प्रदेश के पर्यटन विभाग ने साल 2022 की शुरुआत में नर्मदा नदी पर पर्यटकों के लिए क्रूज शिप सेवा शुरू करने का प्रस्ताव रखा था। ये क्रूज अभी तक चालू नहीं हुए हैं। इन्हें मध्य प्रदेश के बड़वानी से गुजरात के केवड़िया में स्टैच्यू ऑफ यूनिटी तक चलाने की योजना है। इन दोनों जगहों की दूरी करीब 135 किलोमीटर है। हर लग्जरी क्रूज जहाजों में 70 यात्री और बजट वाले क्रूज जहाजों में 56 मुसाफिर सवार होंगे। ये क्रूज खास तौर पर पर्यटकों के लिए होंगे। इनमें बार, स्विमिंग पूल, वाटर स्पोर्ट्स और मनोरजंन की अन्य गतिविधियों जैसी सुविधाएं दी जाएंगी। इस परियोजना के लिए फ्लोटिंग जेटी और अतिरिक्त सुविधाओं जैसे बुनियादी ढांचे का निर्माण शामिल है, ताकि पर्यटकों को मदद मिल सके। इस जलमार्ग में दो अतिरिक्त जगहों हनफेश्वर और सिलारजा में इन क्रूज का ठहराव होगा। यह पहल इस क्षेत्र में लग्जरी पर्यटन को बढ़ावा देने के सरकार के लक्ष्य का हिस्सा है। इसके तहत इस क्षेत्र में निवेश को आकर्षित करने के लिए 15-30% सब्सिडी दी गई है। समय-समय पर, इस परियोजना को स्थानीय समाचार पत्रों और मीडिया में व्यापक रूप से एडवरटाइज़ किया गया। इनमें संभावित पर्यटन आकर्षण और राज्य में आने वाले “विदेशी डॉलर” के जरिए इसके आर्थिक फायदों के बारे में बताया गया।
हालांकि, ऐसा लगता है कि इस परियोजना ने पर्यावरण संरक्षण के लिए जरूरी कानूनों का उल्लंघन किया है। साथ ही, पीने के पानी के स्रोतों के प्रदूषण, मछली पालन और मछुआरे श्रमिकों पर असर, किसानों के लिए सिंचाई और जल स्रोतों पर समुदायों के अधिकारों से संबंधित प्रमुख सामाजिक चिंताओं को नजरअंदाज किया है। ‘अर्थव्यवस्था’ में ऐसे फायदों को पाने का इरादा व्यापार के रूप में पर्यटन गतिविधियों को लाभ पहुंचाने की खोज में पारिस्थितिकी संतुलन और सामुदायिक कल्याण की अनदेखी करने की चिंताजनक प्रवृत्ति है।
मध्य प्रदेश के पर्यटन विभाग ने परियोजना के लिए व्यवहार्यता अध्ययन करने के लिए सरकारी स्वामित्व वाली परामर्श फर्म WAPCOS लिमिटेड को नियुक्त किया। WAPCOS की ओर से तैयार की गई बड़ी-बड़ी रिपोर्टों के बावजूद, किसी भी पर्यावरणीय या सामाजिक प्रभाव आकलन की गैर-मौजूदगी कुछ ऐसी चीजें हैं, जिस पर हमारा ध्यान जाना चाहिए। इस तरह की अनदेखी नर्मदा नदी और उस पर निर्भर समुदायों के जीवन और आजीविका की रक्षा के लिए पारिस्थितिक को बनाए रखने की स्पष्ट उपेक्षा की ओर इशारा करती है।
परियोजना की पर्यावरणीय और सामाजिक मिसालें
सरदार सरोवर में तब्दील हो चुकी नर्मदा नदी में क्रूज जहाजों को चलाने से इसकी पारिस्थितिकी को गंभीर ख़तरा है। ईंधन और कचरे से पानी में बढ़ता प्रदूषण, जलीय जीवन में व्यवधान और दुर्घटनाओं की संभावना, ये सभी नदी की सेहत के लिए खतरा हैं। स्थानीय मछली पालन और कुछ हजार परिवारों के लिए आजीविका का अहम स्रोत है , खास तौर पर कमज़ोर वर्गों के लिए पारंपरिक रूप से मछली पकड़ना जरूरी है। ऐसी परियोजनाओं में अक्सर सामाजिक-आर्थिक लागतों की अनदेखी की जाती है जिसमें प्रदूषण शामिल है। इससे पानी पीने योग्य नहीं रह पाता है। साथ ही, हवा भी प्रदूषित होती है। इसके अलावा, पारंपरिक आजीविका और उनकी संस्कृति को नुकसान के कारण विस्थापन भी होता है।
केरल के कुट्टानाड में हाउसबोट परियोजनाओं पर किए गए शोध के जरिए इस तरह की परियोजना के दुष्प्रभावों का पता लगाया जा सकता है। कोट्टायन के सीएमएस कॉलेज के लेक्चरर मीबिल मैथ्यूज की ओर से किए गए अध्ययन से पता चलता है कि इस तरह की परियोजनाओं से पर्यावरण को गंभीर नुकसान होता है और प्रदूषण बढ़ता है। इनमें प्लास्टिक की डंपिंग, पानी में इंसानी मल का जाना और डीजल, तेल और ईंधन का पानी में रिसाव शामिल है। जैसा कि जानकार शोधकर्ताओं ने नतीजा निकाला है, इन स्थितियों में पानी में पॉलीसाइक्लिक हाइड्रोकार्बन प्रदूषण होता है। आर्थिक रूप से, इन नुकसानों की लागत ऐसी पर्यटन परियोजनाओं से होने वाली आमदनी से कहीं ज्यादा है।
नर्मदा नदी पर क्रूज परियोजना के मामले में भी ऐसी ही चिंताएं जताई गई थीं। अगर पर्यटकों द्वारा इस्तेमाल किए गए प्लास्टिक और दूसरे कचरे और मल को नदी में फेंका जाता है, तो इसे रोकना चुनौतीपूर्ण होगा। क्रूज के संचालन से नदी के पारिस्थितिकी तंत्र में गड़बड़ी पैदा होती है, जिससे ध्वनि प्रदूषण होता है और ध्वनि तरंगें गहरे पानी वाले क्षेत्रों में अवशोषित हो जाती हैं। ये क्रूज संचालन के दौरान प्रदूषक भी छोड़ सकते हैं और रिसाव भी हो सकता है। खास तौर पर मानसून और बाढ़ के समय, किसी भी दुर्घटना से भारी मात्रा में तेल रिसाव हो सकता है और ऐसा नुकसान हो सकता है जिसे कम नहीं किया जा सकता। हाल ही में बड़वानी में एक क्रूज के कुछ हिस्से पानी में डूब जाने से भी ऐसी ही दुर्घटना की खबर मिली थी।
बड़वानी के पिछोड़ी गांव में रहने वाली और मछुआरा समुदाय से ताल्लुक रखने वाली श्यामा जीजी ने अपने समुदाय की चिंता बताई, “ऐसे बड़े क्रूज नदी में हमारे जाल काट देंगे और हमारी मछलियां खत्म हो जाएंगी। यह हमारे पीने के पानी को प्रदूषित करेगा, जिससे वह तैलीय और चिकना हो जाएगा। इसका असर हमारी रोज़ी-रोटी पर पड़ेगा। बड़े क्रूज समुद्र के लिए होते हैं, हमारी पवित्र नदी के लिए नहीं। दिल्ली में बैठे लोग हमारी नदी में क्रूज चलाना चाहते हैं, जो उनके मनोरंजन के लिए हमारी आजीविका को खत्म कर देगा। मछली पकड़ना हमारा अधिकार है और मछुआरों के रूप में हमारा एकमात्र तय काम है। या तो इसके बदले हमें जमीन दे दो या हमारी नदी को छोड़ दो।”
कानूनी लड़ाई और उसका फैसला
भोपाल के जाने-माने पर्यावरणविद सुभाष पांडे ने इस परियोजना के खिलाफ राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) में याचिका दायर की। याचिका में कई कानूनी ढांचों का हवाला दिया गया है, जिसमें वेटलैंड प्रबंधन नियम, 2017; पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986; जल (प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण) अधिनियम, 1974; वायु (प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण) अधिनियम, 1981; और जैविक विविधता अधिनियम, 2002 शामिल हैं। भोज वेटलैंड, अंतरराष्ट्रीय महत्व का रामसर स्थल है, जिसे प्रस्तावित गतिविधियों के लिए खास तौर पर संवेदनशील बताया गया। मामले की कार्यवाही में, एमपी राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने एनजीटी की ओर से मांगी गई रिपोर्ट पेश की, जिसमें नदी को कोई खास नुकसान नहीं दिखाया गया। रिपोर्ट को स्वीकार नहीं किया गया, क्योंकि इसमें कोई तकनीकी आधार नहीं था। इसके अलावा, एनजीटी ने केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) की महारत को देखते हुए उससे रिपोर्ट मांगी और फिर अपील करने वाले के पक्ष में अपना अंतिम फैसला दिया। इसमें भोपाल में भोज झील सहित कई जल निकायों में नियोजित क्रूज परियोजना से संबंधित विकास के सभी कामों को तुरंत रोकने का आदेश दिया गया। फैसले में वाणिज्यिक हितों पर पर्यावरण संरक्षण को प्राथमिकता देने की जरूरत पर प्रकाश डाला गया, जिसने देश भर में इसी तरह के मामलों के लिए महत्वपूर्ण मिसाल कायम की।
एनजीटी के फैसले से घबराए बिना मध्य प्रदेश पर्यटन विभाग ने मूल आवेदक पांडे को कोई सूचना दिए बिना ही सुप्रीम कोर्ट में अपील कर दी। हालांकि, मार्च में एक आदेश के जरिए सुप्रीम कोर्ट ने अपील को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि एनजीटी ने राज्य में अलग-अलग झीलों की सुरक्षा के लिए सही कदम उठाया है और संरक्षित झीलें ज्यादा पर्यटकों को आकर्षित करेंगी। इसमें एनजीटी के रुख की पुष्टि की गई थी।
यह याचिकाकर्ता और स्थानीय समुदायों के लिए कानूनी जीत थी।
अंतर्देशीय जलमार्ग प्राधिकरण का विवादास्पद कदम
इन कानूनी जीत के बावजूद, भारतीय अंतर्देशीय जलमार्ग प्राधिकरण (आईडब्ल्यूएआई) ने हाल ही में केवड़िया में क्रूज परियोजना के लिए नर्मदा पर दो जेटी के डिजाइन, निर्माण, आपूर्ति, स्थापना, परीक्षण और कमीशनिंग के लिए निविदा जारी की। इसके अलावा, आईडब्ल्यूएआई ने अप्रैल में नदी क्रूज पर्यटन के लिए गुजरात और मध्य प्रदेश की सरकारों के साथ समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए। मध्य प्रदेश में कई स्थलों पर शुरुआती निर्माण कार्य शुरू हो चुका है।
यह गैर-जिम्मेदाराना कदम है और इसमें न्यायालय की अवमानना शामिल है, जिसमें सर्वोच्च न्यायालय के फैसले की खुलेआम अवहेलना की गई है। सरदार सरोवर बांध के जलाशय के लिए अधिग्रहित भूमि पर निर्माण का काम किया जा रहा है, जिसका इस्तेमाल किसी अन्य उद्देश्य के लिए नहीं किया जा सकता है। इसलिए, यह पर्यावरण संरक्षण में शासन, जवाबदेही और कानून के शासन के बारे में IWAI की ईमानदारी पर गंभीर मौलिक सवाल उठाता है।
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नर्मदा पर प्रस्तावित क्रूज परियोजना आर्थिक विकास और पर्यावरण संरक्षण के बीच व्यापक संघर्ष का एक और उदाहरण है। जबकि पर्यटन को आर्थिक विकास के स्रोत के रूप में देखा जाता है, लेकिन यह हमारे प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र की कीमत पर नहीं होना चाहिए और उन समुदायों के साथ अन्याय नहीं होना चाहिए जो उन पर निर्भर हैं। कई बार, ये लागतें बाहरी होती हैं और नुकसान बाद में महसूस किया जाता है। हमें पिछली गलतियों से सीखना चाहिए और छोटी अवधि के आर्थिक लाभों पर लंबी अवधि के पर्यावरण संरक्षण को प्राथमिकता देनी चाहिए।
मध्य प्रदेश सरकार और आईडब्ल्यूएमआई को सभी संबंधित अधिकारियों के साथ कानूनी आदेशों का पालन करना चाहिए। साथ ही नर्मदा, स्थानीय समुदायों और इसके बेसिन में प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण को प्राथमिकता देनी चाहिए। सिर्फ ठोस कोशिश के जरिए ही हम यह पक्का कर सकते हैं कि हमारी प्राकृतिक और सांस्कृतिक विरासत भविष्य की पीढ़ियों के लिए सुरक्षित रहे।
उद्धरण:
मैथ्यू एम. सी., (2021). कुट्टनाड में पर्यावरणीय समस्याओं पर एक अध्ययन: हाउस बोट पर्यटन पर केस स्टडी। इंटरनेशनल जर्नल ऑफ ऑल रिसर्च एजुकेशन एंड साइंटिफिक मेथड, 9(9). https://www.ijaresm.com/a-study-on-the-environmental-problems-in-kuttanad-a-case-study-on-house-boat-tourism से रिट्रीव किया गया।
डॉ सुभाष पांडे बनाम मध्य प्रदेश पर्यटन विभाग और अन्य (आई. ए. संख्या 68/2022) https://indiankanoon.org/doc/20219548/
सर्वोच्च न्यायालय ने खारिज की मध्य प्रेदश पर्यटन निगम की अपील: डायरी संख्या. 664 of 2024
यह खबर मोंगाबे-इंडिया टीम द्वारा रिपोर्ट की गई थी और पहली बार हमारी अंग्रेजी वेबसाइट पर 2 मई 2024 को प्रकाशित हुई थी।
बैनर तस्वीर: मध्य प्रदेश के बड़वानी जिले के आदिवासी गांवों से होकर बहती नर्मदा नदी। तस्वीर – रचित तिवारी।