- जानकारों का कहना है कि वेड्ज बैंक में तेल खोजने से इस संवेदनशील समुद्री क्षेत्र की जैव विविधता पर असर पड़ेगा। साथ ही, तमिलनाडु तथा केरल में फैले भारत के सुदूर दक्षिणी जिलों के असंख्य मछली श्रमिकों की आजीविका प्रभावित होगी।
- वेड्ज बैंक सुदूर दक्षिण में स्थित बहुत बड़ा समुद्री क्षेत्र है। यह 10,000 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है। यह जगह देश में मछली की किस्मों का सबसे बड़ा स्रोत होने के लिए मशहूर है।
- इस क्षेत्र में अनेक रीफ सिस्टम हैं जो 200 से ज्यादा दुर्लभ मछली प्रजातियों और 60 से ज्यादा अन्य प्रकार के जलीय जीवों के लिए आवास का काम करते हैं।
इस साल की शुरुआत में भारत सरकार ने हाइड्रोकार्बन अन्वेषण एवं लाइसेंसिंग नीति (HELP) 2016 के प्रावधानों के तहत कन्याकुमारी तट पर तीन तेल और गैस ब्लॉकों में खोज और विकास की अनुमति दी है। इस फैसले से तमिलनाडु के कन्याकुमारी व तिरुनेलवेली और केरल के तिरुवनंतपुरम व कोल्लम जिलों के मछली श्रमिक अपनी आजीविका को लेकर चिंतित हो गए हैं।
संवेदनशील समुद्री क्षेत्र का अध्ययन करने वाले जानकारों ने पुष्टि की है कि प्रस्तावित मेगा-तेल खोज से वेड्ज बैंक के पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान हो सकता है। तेल खोज से होने वाली औद्योगिक गतिविधि और प्रदूषण से समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र पर अप्रत्याशित नतीजे हो सकते हैं। केंद्रीय पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय की ओर से जारी किए गए नोटिस आमंत्रण प्रस्ताव (NIO) के अनुसार, कन्याकुमारी तट पर 27,154 वर्ग किलोमीटर के कुल क्षेत्रफल वाले तीन ब्लॉकों को खोज के तहत लाया जाएगा।
तमिलनाडु के सेवानिवृत्त सिविल सेवा अधिकारी और पर्यावरण कार्यकर्ता एम.जी. देवसहायम ने कहा है कि वेड्ज बैंक आजीविका के लिए अहम है और पोषक तत्वों से भरपूर भोजन का स्रोत है और तेल की खोज नाजुक पारिस्थितिकी तंत्र को खत्म कर सकती है, जिससे मछुआरा समुदाय बहुत ज्यादा गरीबी में जा सकता है। देवसहायम ने केंद्रीय मछली विभाग और पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय को चिट्ठी लिखकर अनुरोध किया है कि वे खोज के लिए बोलियों को वापस ले लें।
जैव विविधता से समृद्ध, प्रचुर मछली
समुद्री विज्ञान के जानकारों के अनुसार, वेड्ज बैंक देश के सुदूर दक्षिण में 10,000 वर्ग किलोमीटर का समुद्री पठार है। जैव विविधता से भरपूर यह क्षेत्र भारत में सबसे प्रचुर मछलियों के लिए जाना जाता है।
इसमें लहरों, तरंगों और ज्वार-भाटे के संबंध में कम से कम गति है, जिससे पोषक तत्वों और मछली के भोजन को जमा करने के लिए बेहद अच्छी स्थितियां बनती हैं।
अध्ययनों ने इसकी तुलना भंडारण सुविधा और मछलियों के लिए भोजन घर से की है। इसके अलावा, इस क्षेत्र में कई रीफ सिस्टम मौजूद हैं, जो मछलियों की 200 से ज़्यादा दुर्लभ प्रजातियों और 60 से ज़्यादा दूसरे जलीय जीवों का घर हैं।
चूंकि, यह उत्पादन करने वाला तटीय क्षेत्र है, जहां तीन जल निकाय, हिंद महासागर, अरब सागर और बंगाल की खाड़ी मिलते हैं और हर साल मई से अक्टूबर तक ज्वार-भाटा के कारण मछली पकड़ने का समृद्ध क्षेत्र बनता है। इसलिए, तमिलनाडु और दक्षिणी केरल के मछली श्रमिक पीढ़ियों से इसे अपने खजाने की तरह मानते हैं।
महासागर के पारिस्थितिकी तंत्र पर नकारात्मक प्रभाव की आशंका
केरल विश्वविद्यालय में जलीय जीव विज्ञान और मछली विभाग के प्रमुख और प्रसिद्ध समुद्री वैज्ञानिक ए. बिजुकुमार के अनुसार, वेड्ज बैंक क्षेत्र में तेल खोज से क्षेत्र के मछुआरा समुदायों की आजीविका और संसाधनों पर विनाशकारी प्रभाव पड़ सकता है।
उन्होंने कहा कि औद्योगिक गतिविधियों और तेल खोज से पैदा होने वाले प्रदूषण का समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
भारत और श्रीलंका के बीच 1976 के समझौते के अनुसार, वेड्ज बैंक कन्याकुमारी के दक्षिण में, अक्षांश 7°10 व 8°00’N और देशांतर 76°40’E व 78°00’E के बीच है। साथ ही, यह देश के प्रादेशिक जल से बाहर स्थित है। इस क्षेत्र का समुद्र तल रेत से बना है, जिसमें चट्टानी धब्बे हैं तथा यह मछली पालन के अलावा अन्य प्राकृतिक संसाधनों से भरा-पूरा है। यह समझौता भारत की केंद्र सरकार को क्षेत्र के तेल और प्राकृतिक गैस भंडारों का पता लगाने की भी अनुमति देता है।
दोनों देशों के बीच समुद्री सीमा समझौते के अनुसार, वेड्ज बैंक भारत के विशेष आर्थिक क्षेत्र (ईईजेड) में आता है। इससे केंद्र सरकार को इस क्षेत्र और इसके संसाधनों पर संप्रभु अधिकार हासिल है। यह समझौता श्रीलंकाई मछुआरों और जहाजों को वेड्ज बैंक में मछली पकड़ने से रोकता है, जबकि भारत को पेट्रोलियम और अन्य खनिजों के लिए इस क्षेत्र की खोज करने का अधिकार देता है।
हालांकि, नागरकोइल स्थित पर्यावरण अनुसंधान और सामाजिक शिक्षा संस्थान के प्रमुख एस लाजरस जैसे समुद्री वैज्ञानिकों ने समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र पर तेल खोज के प्रभाव के बारे में चिंता जताई है। लाजरस का मानना है कि ऐसे संवेदनशील क्षेत्रों को तेल खोज का काम करने से परंपरा, रोजगार और आजीविका के लिए विनाशकारी नतीजे हो सकते हैं।
तेल की खोज रोकने की कोशिश
कन्याकुमारी और तिरुनेलवेली के मछली श्रमिकों के नेता ए. मारियादासन मानते हैं कि इस तरह की बड़ी परियोजना को चुनौती देना क्षेत्र के वंचित मछली श्रमिकों और संख्या में कम समुद्री वैज्ञानिकों और पर्यावरण कार्यकर्ताओं के लिए मुश्किल होगा।
हालांकि, उन्हें उम्मीद है कि कावेरी डेल्टा क्षेत्र में अवैज्ञानिक तरीके से तेल खोज की कोशिशों के खिलाफ लंबी लड़ाई लड़ने और जीतने वाली तमिलनाडु सरकार वेड्ज बैंक में तेल अन्वेषण की अनुमति नहीं देगी। उन्होंने तमिलनाडु के सभी राजनीतिक दलों को ज्ञापन भेजा है, जिसमें क्षेत्र में तेल खोज रोकने के लिए उनकी तरफ से कोशिश करने की मांग की गई है।
दक्षिणी केरल के मछुआरा समुदाय से आने वाले समुद्री शोधकर्ता कुमार सहयाराजू के अनुसार, वेड्ज बैंक शानदार संरक्षण स्थल है और दुनिया भर में सिर्फ 20 ऐसे अत्यंत अहम क्षेत्रों में से एक है। उन्होंने कहा, “वेड्ज बैंक को किसी भी नुकसान से तमिलनाडु और केरल दोनों की मछली संपदा पर विनाशकारी असर पड़ सकता है।” “इस क्षेत्र में 44 इलास्मोब्रांच प्रजातियों की मौजूदगी की जानकारी मिली है, जिनमें शार्क और रे की दो-दो प्रजातियां शामिल हैं, जो अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (IUCN) की लाल सूची में लुप्तप्राय श्रेणी में शामिल हैं। यह समृद्ध समुद्री जैव विविधता वाला मछली पकड़ने का उपजाऊ मैदान है।”
बिजुकुमार ने आगे कहा कि वेड्ज बैंक जैव विविधता के लिए अहम हॉटस्पॉट और स्थानीय मछली पालन व क्षेत्र के व्यापक समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र दोनों के लिए मददगार प्रणाली के रूप में काम करता है। तेल और गैस ड्रिलिंग के कारण इन संसाधनों में किसी भी तरह की दिक्कत के विनाशकारी आर्थिक नतीजे हो सकते हैं, जिससे स्थानीय आबादी का आय का प्राथमिक स्रोत खत्म हो सकता है और क्षेत्र में गरीबी और खाद्य असुरक्षा बढ़ सकती है।
उन्होंने कहा, “तेल और प्राकृतिक गैस की ड्रिलिंग में स्वाभाविक रूप से पर्यावरण से जुड़े जोखिम होते हैं, जिसमें तेल रिसाव, आवास का खत्म होना और प्रदूषण शामिल हैं।” इस नाजुक पारिस्थितिकी तंत्र में तेल और प्राकृतिक गैस की ड्रिलिंग करने से पहले वेड्ज बैंक के पारिस्थितिकी तंत्र की संवेदनशील प्रकृति पर विचार किया जाना चाहिए। वेड्ज बैंक में समुद्री जीवन का समृद्ध ताना-बाना है, जिसमें मछली की कई प्रजातियां, कोरल और अन्य समुद्री जीव शामिल हैं। शार्क और कैरांगिड्स की मछलियां खास अहमियत रखती हैं; वे इस क्षेत्र में पारंपरिक मछली श्रमिकों के लिए मछलियों को पालना बनाए रखती हैं। यह क्षेत्र अहम प्रजनन स्थल के तौर पर काम करता है, जो समुद्री जैव विविधता का पोषण करता है और स्थानीय मछली पालन और व्यापक समुद्री खाद्य जाल को बनाए रखता है।”
कन्याकुमारी के संरक्षण कार्यकर्ता एस.पी. उदयकुमार ने कहा कि वेड्ज बैंक में मछली पालन भारत और श्रीलंका के तटीय समुदायों को बनाए रखने के लिए अहम है। उन्होंने कहा, “ये समुदाय अपनी आजीविका और भोजन के लिए मछली सहित समृद्ध समुद्री संसाधनों पर निर्भर हैं।” केंद्रीय समुद्री मत्स्य अनुसंधान संस्थान (सीएमएफआरआई) में सेवानिवृत्त प्रधान वैज्ञानिक और समुद्री जैव प्रौद्योगिकी प्रभाग के प्रमुख ए.पी. लिप्टन ने कहा, “इस क्षेत्र में तेल और गैस की ड्रिलिंग से इन संसाधनों में काफी कमी आ सकती है, जिसके गंभीर आर्थिक नतीजे हो सकते हैं।” उन्होंने कहा कि वेड्ज बैंक में तेल और गैस की ड्रिलिंग की अनुमति देने से हानिकारक ईंधन पर हमारी निर्भरता और खराब हो जाएगी और जलवायु परिवर्तन बढ़ेगा, जिससे समुद्र के बढ़ते स्तर, महासागर के खारापन और अन्य जलवायु-संबंधी प्रभावों के जरिए समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र को और ज्यादा खतरा होगा। उन्होंने कहा, “वेड्ज बैंक सिर्फ दोहन के लिए संसाधन नहीं है, बल्कि जैव विविधता और विरासत का खजाना है जिसे आगे आने वाली पीढ़ियों के लिए बचाकर रखा जाना चाहिए।”
कन्याकुमारी और तिरुनेलवेली में मछली श्रमिकों के समूहों ने पहले ही अभियान शुरू कर दिया है, जिसमें समाचार पत्रों में विज्ञापन देना भी शामिल है, ताकि लोगों को वेड्ज बैंक को तेल खोज से बचाने की जरूरत के बारे में शिक्षित किया जा सके।
चुनावी सरगर्मी
तमिलनाडु में रामेश्वरम के तट पर स्थित कच्चातीवु द्वीप 2024 के लोकसभा चुनाव के पहले चरण से ठीक पहले राजनीतिक विवाद के केंद्र में था। 31 मार्च को, एक्स (इससे पहले ट्विटर) पर एक पोस्ट में, भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि तत्कालीन कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकार ने रणनीतिक रूप से अहम द्वीप कच्चातीवु को “बेरहमी से श्रीलंका को दे दिया”।
हालांकि, विदेश नीति और समुद्री विविधता के जानकारों ने बाद में हुई चर्चाओं में स्पष्ट किया कि तत्कालीन केंद्र सरकार ने कच्चातीवु को श्रीलंकाई क्षेत्र के रूप में तभी मान्यता दी थी, जब उसने नजदीकी संसाधन से भरपूर वेड्ज बैंक के गहरे समुद्र में मछली पकड़ने के मैदानों पर नियंत्रण पक्का कर लिया था।
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साल 1974 में भारत ने कच्चातीवु को श्रीलंका का क्षेत्र माना और इस चट्टानी, निर्जन द्वीप पर अपना दावा छोड़ दिया, जो 1.6 किलोमीटर लंबा और 300 मीटर से थोड़ा ज़्यादा चौड़ा है। अगले दो सालों में श्रीलंका ने मछली पकड़ने वाले समृद्ध क्षेत्र में भारत की संप्रभुता को मान्यता देते हुए द्विपक्षीय समझौते के जरिए वेड्ज बैंक पर अपना लंबे समय से लंबित दावा वापस ले लिया।
यह समझौता उन भारतीय मछली श्रमिकों के लिए लाभदायक साबित हुआ, जो देश के सुदूर दक्षिणी छोर कन्याकुमारी के नजदीक स्थित इस शानदार समुद्री क्षेत्र के संसाधनों का इस्तेमाल करना चाहते थे।
यह खबर मोंगाबे-इंडिया टीम द्वारा रिपोर्ट की गई थी और पहली बार हमारी अंग्रेजी वेबसाइट पर 29 मई 2024 को प्रकाशित हुई थी।
बैनर तस्वीर: कन्याकुमारी तट के पास पर्यटक। तस्वीर: के.ए. शाजी।