- एक नए शोधपत्र में गिद्धों द्वारा शव निपटान के रूप में दी जाने वाली सेवाओं के मूल्य को दर्शाया गया है तथा मानव निगरानी में उनके प्रजनन तथा गिद्ध सुरक्षित क्षेत्रों में निवेश के लाभों पर प्रकाश डाला गया है।
- शोधकर्ताओं ने गिद्धों के शव निपटान के मूल्य का पता लगाने के लिए सरकार द्वारा संचालित शव निपटान संयंत्रों की लागत की तुलना मानव निगरानी में उनके प्रजनन तथा उसके बाद गिद्धों को छोड़ने की लागत से की।
- पशुओं की दवाओं, जैसे डाइक्लोफेनाक विषाक्तता संरक्षित क्षेत्रों में भी गिद्धों के प्रजनन तथा संरक्षण के लिए एक चुनौती बनी हुई है।
भारत में गिद्ध संरक्षण की आर्थिक व्यवहार्यता का मूल्यांकन करने वाले एक नए शोधपत्र में पाया गया है कि पशुओं के शवों के निपटान के प्राकृतिक और किफायती समाधान के लिए मानव निगरानी में जिप्स गिद्धों के प्रजनन तथा उन्हें सुरक्षित क्षेत्रों में छोड़ने की पैरवी की गई है। भारत में ऐसे प्रजनन केंद्रों ने 2021 में गिद्धों को जंगल में छोड़ना शुरू किया।
भारत में गिद्धों की आबादी मवेशियों पर इस्तेमाल होने वाली दवा डाइक्लोफेनाक के व्यापक उपयोग के बाद घट गई। यह एक गैर-स्टेरायडल सूजनरोधी दवा है जो मवेशियों को खाने वाले गिद्धों के लिए जहरीली साबित हुई। गिद्धों की संख्या में कमी के कारण मवेशियों के शवों के निपटान में कठिनाइयों के कारण स्वास्थ्य सेवा का संकट पैदा हो गया। नई जनसंख्या अनुमानों से पता चलता है कि डाइक्लोफेनाक पर प्रतिबंध के बाद से गिद्धों की आबादी कुछ हद तक स्थिर हुई है, लेकिन रिकवरी का स्तर अभी भी कम है।
हाल ही में प्रकाशित शोधपत्र में सरकार द्वारा संचालित शव निपटान सयंत्र की लागत की तुलना मानव निगरानी में गिद्धों के प्रजनन और उसके बाद उन्हें छोड़ने की लागत से करके गिद्धों द्वारा प्रदान की जाने वाली शव निपटान सेवाओं के मूल्य को दर्शाया गया है। शोधपत्र में कहा गया है, “संरक्षित क्षेत्रों और शहरी परिदृश्यों में जंगली गिद्धों की आबादी बढ़ाने में इस तरह के निवेश से सरकार को लाखों रुपए की बचत होगी, साथ ही पारिस्थितिकी तंत्र, वन्यजीवों, पशुधन और स्थानीय समुदायों के समग्र स्वास्थ्य को भी बनाए रखा जा सकेगा।”

सफाई का महत्व
अपनी आबादी में गिरावट से पहले, गिद्ध सालाना 5 से 10 मिलियन गायों, ऊँटों और भैंसों के शवों को खाते थे। 1990 के दशक में डाइक्लोफेनाक के व्यापक उपयोग के बाद गिद्धों की आबादी में तेज गिरावट के कारण शवों को खाने वाले अन्य जानवरों की संख्या में वृद्धि हुई, जिन्होंने अनजाने में बीमारियों को फ़ैलाने में मदद की। साल 2008 में किए गए एक अध्ययन के अनुसार, समाज से गिद्धों के लगभग समाप्त हो जाने के कारण 1992 से 2006 तक 5.5 मिलियन जंगली कुत्तों की संख्या में वृद्धि हुई, कुत्तों के काटने की 38.5 मिलियन अतिरिक्त घटनाएं हुईं और रेबीज से 47,300 से अधिक लोगों की मृत्यु हुई। भारत सरकार ने 2006 में पशु चिकित्सा के लिए डाइक्लोफेनाक पर प्रतिबंध लगा दिया। गिद्धों की कमी के कारण पारसी जोरास्ट्रियन समुदाय को भी झटका लगा, जो पारम्परिक तौर पर मानव शवों के निपटान के लिए भी पक्षियों पर निर्भर है।
शोधकर्ताओं ने गिद्ध प्रजनन कार्यक्रम का लागत-लाभ विश्लेषण किया, जिसमें लागतों में सुविधाएं स्थापित करना, गिद्धों के लिए सुरक्षित क्षेत्र स्थापित करना और संरक्षण कार्यक्रम चलाना शामिल था। लाभों में गिद्धों द्वारा एक बार छोड़े जाने के बाद प्रदान की जाने वाली सफाई सेवाओं का मूल्य शामिल था। इस सेवा का मूल्य मशीनीकृत शव प्रत्युत्तर संयंत्रों के माध्यम से गिद्धों की सफाई सेवाओं को फिर से बनाने में कितना खर्च आएगा, इसकी तुलना करके निर्धारित किया गया था। रेंडरिंग प्लांट अपशिष्ट पशु ऊतक को अन्य उत्पादों जैसे कि पुनर्नवीनीकृत मांस, अस्थि चूर्ण और पशु वसा में परिवर्तित करते हैं।
एक मध्यम आकार का शव रेंडरिंग प्लांट प्रतिदिन 20-25 शवों को संसाधित करने में सक्षम होता है। शोधकर्ताओं ने अनुमान लगाया कि शवों को इसी दर से निपटाने के लिए 600 गिद्धों की आवश्यकता होगी। जबकि प्लांट को हर 10 साल में बदलने की आवश्यकता होती है, मानवीय निगरानी में पले बढे गिद्ध 14 साल और जंगली नस्ल की आबादी 18-19 साल तक सफाई सेवाएं प्रदान करने में सक्षम होते हैं। इस प्रकार गिद्धों द्वारा शव निपटान सेवाओं का पारिस्थितिकी तंत्र मूल्य शव रेंडरिंग प्लांट स्थापित करने में बचाई गई लागत के समान ही माना जाता है।
अध्ययन के अनुसार, बंदी नस्ल के 600 गिद्धों की उनकी सफाई सेवाओं के लिए जीवन भर की कीमत शहरी क्षेत्रों में 160.46 मिलियन रुपए से 145.71 मिलियन रुपए के बीच तथा ग्रामीण क्षेत्रों में 137.87 मिलियन रुपए से 127.83 मिलियन रुपए के बीच आंकी गई।
यह अध्ययन पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के अनुरोध पर किया गया था, और अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (IUCN) के साथ मिलकर किया गया था।
इंस्टीट्यूट ऑफ इकोनॉमी में प्रोफेसर सौदामिनी दास ने कहती हैं, “जबकि गिद्धों द्वारा प्रदान की जाने वाली सफाई सेवाएं सर्वविदित हैं, मौद्रिक दृष्टि से इस सेवा का सटीक मूल्य ज्ञात नहीं है। मौद्रिक निर्णय लेने के लिए, विशेष रूप से ऐसे कार्यक्रमों में निवेश के लिए, मौद्रिक उत्तर की आवश्यकता होती है। हमें उम्मीद है कि इस प्रकार के अध्ययन से मजबूत नीतिगत कार्रवाई को प्रोत्साहन मिलेगा और गिद्ध संरक्षण के लिए अधिक निवेश आकर्षित होगा।”
गिद्धों के लिए सुरक्षित क्षेत्रों की आवश्यकता
गिद्धों का प्रजनन और संरक्षण एक चुनौती बना हुआ है, क्योंकि संरक्षित क्षेत्रों में भी, उन्हें अभी डाइक्लोफेनाक से खतरा बना रहता है। गिद्ध संरक्षण के लिए सरकार की 2020-2025 की कार्य योजना में अनुमान लगाया गया है कि जहर को रोकने, गिद्ध प्रजनन केंद्रों की स्थापना और संचालन, गिद्धों के लिए सुरक्षित क्षेत्रों को लागू करने और अनुसंधान और निगरानी की संयुक्त लागत 207 करोड़ रुपए होगी।
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बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी (BNHS) के वैज्ञानिक सचिन रानाडे, जो इस अध्ययन से जुड़े नहीं हैं, ने कहा, “गिद्ध धीमी गति से प्रजनन करते हैं। गिद्धों के लिए सुरक्षित क्षेत्र (VSZ) आवश्यक हैं, क्योंकि अभी भी कुछ स्थानों पर जागरूकता की कमी है और जहर भी दिया जाता है। पक्षियों को बिजली के झटके और ट्रेन दुर्घटनाओं जैसे अन्य कारकों से भी खतरा है।” BNHS ने देश भर में पिंजौर (हरियाणा), राजाभटखवा (पश्चिम बंगाल), रानी गुवाहाटी (असम) और भोपाल (मध्य प्रदेश) में गिद्ध संरक्षण और प्रजनन केंद्र स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

कर्नाटक में भारतीय गिद्ध। तस्वीर: वैभवचो/विकिमीडिया कॉमन्स
दास के अनुसार, ग्रीन बॉन्ड जैसे वित्तीय तंत्रों का उपयोग गिद्ध संरक्षण प्रयासों को लागत निधि देने के लिए भी किया जा सकता है।उन्होंने कहा, “सरकार ने जैव विविधता संरक्षण के लिए ग्रीन बॉन्ड के लिए बाजार खोला है, लेकिन इसका अधिकांश हिस्सा जंगली जैव विविधता के लिए है। सरकार निवेशकों से यह भी कह सकती है कि वे अपना पैसा सामाजिक जैव विविधता के संरक्षण के लिए लगाएं, जैसे गिद्ध, जो बहुत सारे लाभ प्रदान करते हैं।”
यह खबर मोंगाबे-इंडिया टीम द्वारा रिपोर्ट की गई थी और पहली बार हमारी अंग्रेजी वेबसाइट पर 25 अप्रैल 2024 को प्रकाशित हुई थी।
बैनर तस्वीरः शिकार खाते हुए लाल सिर वाला गिद्ध। तस्वीर- टिमोथी ए गोंसाल्वेस/विकिमीडिया कॉमन्स