- उदयुपर में पक्षियों पर हुए एक अध्ययन के अनुसार स्थानीय पक्षी हर मौसम के हिसाब से पर्यावरण से जुड़ी अपनी खासियतों को काफी हद तक बदल देते हैं।
- अध्ययन से पता चलता है कि जलवायु परिवर्तन को ध्यान में रखकर पारिस्थितिकी तंत्र के लिए योजना बनाते समय पूरे शहर को शामिल करना बेहतर होगा। ऐसा करने से जलवायु परिवर्तन से निपटने में मदद मिलेगी।
- जानकारों का मानना है कि शहर की जैव-विविधता की लंबी अवधि तक निगरानी के लिए प्रवासी पक्षी बहुत ज्यादा उपयोगी हो सकते हैं। अगर प्रवासी पक्षियों की आदतें समय के साथ ज्यादा खास होती जा रही हैं, तो यह शहर की पारिस्थितिकी के खराब होने का संकेत हो सकता है।
भारत में बड़े शहरों की तुलना में उदयपुर जैसे झीलों और भीड़-भाड़ वाले छोटे शहर पक्षियों की बड़ी आबादी और सैकड़ों प्रजातियों को फलने-फूलने में ज्यादा मदद कर सकते हैं। उदयपुर में पक्षियों पर हुए एक नए अध्ययन से पता चलता है कि ये प्रजातियां मौसम के हिसाब से अपने व्यवहार में बड़ा बदलाव लाती हैं, जिससे उन्हें अपनी जरूरतों के लिए दूसरी जगह पलायन नहीं करना पड़ता है।
हालांकि, अध्ययन कहता है कि भारत के छोटे शहरों के लिए विकास की योजना बनाते समय स्थानीय ज़रूरतों के हिसाब से पेड़ों और जैव-विविधता को बनाए रखने पर ध्यान देना होगा और आंख मूंदकर पश्चिम के तौर-तरीकों को लागू करने से बचना होगा। इस अध्ययन से यह सामान्य धारणा भी टूटती दिख रही है कि इंसानों से जुड़ी गतिविधियां पक्षियों पर बहुत ज्यादा नकारात्मक असर डालती हैं।
अध्ययन के मुताबिक उदयपुर में पक्षियों पर सबसे ज़्यादा असर इंसानी गतिविधियों का नहीं बल्कि प्राकृतिक पहलुओं का था, जिनका पक्षियों के साथ बहुत मजबूत सकारात्मक संबंध है। ये नतीजे सामूहिक रूप से दिखाते हैं कि उदयपुर जैसे भारतीय शहरों में पक्षियों की बड़ी आबादी आसानी से रह सकती है।
पूरे छोटे शहर पर पहली बार अध्ययन
इस स्टडी के लिए सलाहकार की भूमिका निभाने वाले इंटरनेशनल यूनियन ऑफ कन्जर्वेशन ऑफ नेचर (आईयूसीएन) के स्टॉर्क, आईबिस और स्पूनबिल स्पेशलिस्ट ग्रुप के को-चेयर गोपी सुंदर ने इसे कई मायनों में खास बताया।

उन्होंने मोंगाबे हिंदी को ईमेल के जरिए भेजे जवाब में बताया, “यह पहली बार है जब भारत में किसी छोटे शहर का एक साल तक और तीनों मौसम (सर्दी, गर्मी और बारिश) में व्यवस्थित तरीके से अध्ययन किया गया। दुनिया में अन्य जगहों पर बहुत कम अध्ययनों में पूरे शहरों को शामिल किया गया है। इसका मकसद यह समझना था कि पक्षी अलग-अलग मौसम में तीन व्यापक वेरिएबल (इंसानी, लैडस्केप और छोटे फ़ीचर) से किस तरह जुड़े हुए हैं।”
“इस अध्ययन से यह तुलना करने में मदद मिली कि पक्षियों से जुड़ी पर्यावरणीय खासियतें या उनसे जुड़ी चीजों का मिला-जुला रूप हर मौसम में प्रत्येक प्रजाति के लिए किस तरह अलग-अलग तरीके से काम करती हैं। साथ ही, ये वेरिएबल पक्षियों (स्थानीय और प्रवासी पक्षी) के दूसरी जगह चले जाने की आदतों पर किस तरह असर डालते हैं। ऐसा माना जाता था कि शहर में जो पक्षी रहते हैं कि उन पर अलग-अलग मौसम का नकारात्मक असर होता होगा, लेकिन उदयुपर में ऐसा कुछ नहीं मिला,” उन्होंने आगे बताया।
यह अध्ययन उदयपुर में मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय की छात्रा कनिष्का मेहता की पीएचडी थीसिस का हिस्सा है। उन्होंने मोंगाबे हिंदी को बताया, “सबसे पहले, अध्ययन से पता चला कि 17 अलग-अलग वेरिएबल को मापना भी उदयपुर में शहरी पक्षियों के आवास के बारे में पूरी जानकारी पाने के लिए अपर्याप्त थे। यह बहुत ही अहम जानकारी है और भविष्य में किए जाने वाले अध्ययन में यह समझना होगा कि भारतीय परिस्थितियों के हिसाब से किन और वेरिएबल को जोड़ना जरूरी है। हमने शहर की म्युनिसिपल सीमा में 208 पक्षी प्रजातियों को रिकॉर्ड किया, जिनमें से सबसे ज्यादा विविधता सर्दी के मौसम (180 प्रजातियां) में देखी गई।”
अन्य भारतीय शहरों में किए गए अध्ययन के मुकाबले पक्षियों की प्रजातियों की यह संख्या बहुत ज्यादा है। मसलन, दिल्ली में दो सालों में हुए में दो व्यवस्थित सर्वे में 115 प्रजातियां दर्ज की गईं। इसके बाद हुए अध्ययन में, सर्दियों के दौरान पक्षियों की 173 प्रजातियां मिली। इसमें पूरी दिल्ली के शहरी तालाबों को शामिल किया गया था।

ये अध्ययन भीड़-भाड़ वाले भारतीय शहरों में जैव विविधता के बेहतर स्तर को बनाए रखने की क्षमता दिखाते हैं। मौजूदा अध्ययन यह बताता है कि बड़े शहरों की तुलना में छोटे शहरों की शहरी सीमाओं में संभावित रूप से पक्षियों की ज्यादा प्रजातियां पाई जाती हैं। इसमें भी पहली बार कई ऐसी प्रजातियां मिली हैं जो छोटे शहर में व्यापक रूप से फैली हुई हैं। इनमें फ़ैनटेल की दो प्रजातियां (रिपिड्यूरा एसपी) शामिल हैं।
उदयपुर में गौरैया सबसे आम पक्षी प्रजातियों में से एक है, जो भारत के अन्य शहरों में पाए गए नतीजों से मेल खाती है। गोपी सुंदर ने बताया, “हमने सफेद गिद्ध की अच्छी–खासी आबादी की खोज की है, जिसके बारे में माना जाता है कि वह तेजी से घट रही है। उदयपुर जैसे शहर जहां अरावली पर्वत प्राकृतिक चीजों को बेहतर बनाते हैं, इस प्रजाति की अच्छी आबादी को बनाए रख सकते हैं। हमें संदेह है कि इस और अन्य प्रजातियों की मौजूदा आबादी का अनुमान बहुत कम करके आंका जा सकता है। यह खबर इसलिए अच्छी है, क्योंकि यह किसी प्राकृतिक जगह से नहीं बल्कि शहर से आई है। व्हाइट-नेप्ड टिट एक और प्रजाति है जो उदयपुर शहर में हर जगह पाई जाती है, लेकिन पहले यह शहरों में रहने के लिए नहीं जानी जाती थी।”
दरअसल, यह अध्ययन कुछ खास उद्देश्यों के साथ किया गया था। अध्ययन की सलाहकार रहीं और ज्योग्राफिकल इन्फॉर्मेशन सिस्टम (जी.आई.एस.) व डेटाबेस स्पेशलिस्ट स्वाति कित्तूर ने बताया, “हमारी दिलचस्पी यह पता करने में थी कि उदयपुर शहर पक्षियों के लिए आवास के रूप में काम करता है या नहीं और अगर करता है तो किस तरह? हमारा इरादा यह आकलन करना था कि पक्षियों के लिए कौन से वेरिएबल अहम थे (जो सबसे मजबूत जुड़ाव दिखाते हैं, नकारात्मक या सकारात्मक), कौन से वेरिएबल तीनों मौसमों में पक्षियों के साथ मजबूती से जुड़े थे (या मौसम बदलने के साथ इनमें बदलाव आया या फिर ऐसा नहीं हुआ)।”
उन्होंने बताया, “हमने शहर की पहचान जैसे झीलों पर ध्यान केंद्रित करने की बजाय पूरे शहर का सर्वेक्षण किया और पूरे साल और तीनों मौसम में उन्होंने शहर का इस्तेमाल किस तरह किया। हम यह भी जानना चाहते थे कि पक्षियों की विविधता के लिए कौन से वेरिएबल अहम थे। इन वेरिएबल को मोटे तौर पर तीन व्यापक कैटेगरी में बांटा गया था। लैंडस्केप (जैसे कि क्षेत्र का कितना हिस्सा पेड़ों से ढका हुआ है) से जुड़ी खासियतें, इंसानों से संबंधित (जैसे वाहनों की संख्या, चराई वाली गायों की संख्या) फीचर और स्मॉल-स्केल वाले फीचर जो दुनिया के अन्य शहरों में पक्षियों पर असर डालने के लिए जाने जाते हैं (जैसे कि उन जगहों पर पेड़ों की संख्या जहां पक्षियों का सर्वे किया गया था)।”
मौसम के हिसाब से आदतों में बदलाव
पहले के पूर्वानुमानों के विपरीत इस स्टडी से पता चला कि अलग-अलग आहार समूहों में बंटे हुए पक्षियों की खासियतें, समूहों में या मौसमों के बीच अहम रूप से अलग-अलग नहीं थी। यह शायद संकेत है कि उदयपुर की मौजूदा स्थिति में अलग-अलग प्राकृतिक आवास और अलग-अलग पक्षी समूह को बनाए रखने के लिए पर्याप्त भोजन मौजूद हैं। यह खोज शायद शहर की सीमा के छोटे-से हिस्से में बहुत सीमित शहरीकरण और ज्यादा पर्यटन के फायदों का भी संकेत है। अगर उदयपुर की भविष्य की योजना इस शहरीकरण और पर्यटन को प्रतिबंधित करने के साथ जारी रह सकती है, तो इससे शहर की सीमाओं में विविध पक्षी समूह का लंबी अवधि में संरक्षण संभव होगा।
गोपी सुंदर कहते हैं, “पहली वाली स्टडी में मिले नतीजों के विपरीत (दूसरे अध्ययनों में नतीजों के आधार पर), पक्षी प्रजातियों की आहार संबंधी आदतों वाली पर्यावरणीय खासियतें अलग-अलग नहीं थी। प्रवासी पक्षियों की खासियतें भी स्थानीय पक्षियों से मेल खाती थी। ये दोनों नतीजे बहुत ही हैरान करने वाले हैं और शायद यह संकेत देते हैं कि उदयपुर शहर में पक्षियों के लिए आवास और संसाधनों की मौजूदा विविधता बहुत ज्यादा है, जिससे इतने सारे पक्षी एक-दूसरे के साथ रह सकते हैं, वह भी बिना किसी ओवर-स्पेशलाइजेशन के।”

बैंगालुरु में किए गए एक अध्ययन में नतीजे एकदम विपरीत आए थे। इससे पता चला था कि प्रवासी पक्षी पहले से ही विविधता वाले शहर में पर्यावरण के लिहाज से ज्यादा खास जगहों का इस्तेमाल करके फिट हो सकते थे।
स्टडी से जुड़े रहे और विश्वविद्यालय में असिस्टेंट प्रोफेसर विजय कोली ने मोंगाबे हिंदी को बताया, “हमने पाया कि स्थानीय पक्षी हर मौसम में पर्यावरण से जुड़ी अपनी खासियतों को बहुत ज़्यादा बदल लेते हैं। यह शायद मौसम के हिसाब से ढलने की तरीका है जो उन्हें मौसमी बदलावों के कारण परिस्थितियों में होने वाले बड़े बदलावों के बावजूद एक ही जगह पर रहने देने में मदद करते हैं। कुछ स्थानीय प्रजातियों की अलग खासियतें थी और इनमें वायर-टेल्ड स्वैलो (कीटभक्षी), शिकरा (मांसाहारी) और इंडियन ग्रे हॉर्नबिल (सर्वाहारी) जैसे पक्षी थे। इन नतीजों से पता चला कि उदयपुर की पक्षी विविधता में अलग-अलग खान-पान वाले पक्षियों का अच्छा मेल-जोल है। ज्यादातर शहरों में, सबकुछ खाने वाले और कई कीटभक्षी पक्षी गायब हो रहे हैं। लेकिन उदयपुर में ऐसे पक्षी आम थे। इस काम ने यह भी दिखाया कि कई प्रजातियां जैसे कि फैन-टेल्ड फ्लाईकैचर की दो प्रजातियां शहरों का इस्तेमाल उस सीमा तक कर रही हैं, जिनके बारे में पहले पता नहीं था।”
शहरी पारिस्थितिकी योजना पर नए सिरे से विचार की जरूरत
अध्ययन से यह भी पता चलता है कि पारिस्थितिकी तंत्र के लिए योजना बनाते समय पूरे शहर का किस तरह ध्यान रखा जाना चाहिए। ऐसा करने से पक्षियों और जैव-विविधता पर जलवायु परिवर्तन के असर को कम किया जा सकेगा। उदयपुर के लिए पेड़ बहुत ज्यादा जरूरी हैं जो पक्षियों के अलग-अलग समुदायों के ज्यादातर हिस्से को बनाए रखते हैं। इस तरह, पेड़ों को बचाए रखना और उनकी संख्या बढ़ाना के साथ ही अलग-अलग प्रजातियों के पेड़ लगाए जाने चाहिए। इसके अलावा, उदयपुर में घास के मैदान, आर्द्रभूमि, झाड़ियों जैसी ज्यादा अलग-अलग तरह की जगहें भी पक्षियों की विविधता के लिए अहम है। इस तरह, शहरी नियोजन को इन सभी आवासों के संरक्षण को पक्का करना चाहिए, ना कि सिर्फ पेड़ लगाकर हरी-भरी जगहों को अंधाधुंध तरीके से बढ़ाना चाहिए।
एक अलग स्टडी में इसी टीम ने पाया था कि उदयपुर के पेड़ अलग-अलग प्रजाति की जलपक्षियों को आराम करने और आबादी बढ़ाने में मदद करते हैं जो छोटे शहरों के लिए अप्रत्याशित था। इसलिए, उदयपुर जैसे शहरों में पेड़ों को बचाए रखना और उनकी संख्या बढ़ाना पक्षियों के लिए बहुत फायदेमंद है।

गोपी सुंदर कहते हैं, “ज्यादा व्यापक रूप से, हम देख पाते हैं कि भारतीय शहरों में विकसित देशों के शहरों की जैसी विशेषताएं नहीं हो सकती हैं। इसलिए हमें अपने शहरों का सावधानीपूर्वक अध्ययन करने की जरूरत है, ताकि यह समझा जा सके कि हर शहर में पक्षियों की ज्यादा विविधता को बनाए रखने के लिए कौन-सी विशेषताएं अहम हैं। साथ ही, यह पक्का करें कि उस शहर की योजना में इन खासियतों को शामिल किया जाए। इस तरह का सूक्ष्म नजरिया अपनाने से उन संभावित समस्याओं को रोकने में मदद मिलेगी जो पश्चिम देशों से उधार लिए गए नजरिए से पैदा होती हैं।”
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वहीं कनिष्का मेहता कहती हैं कि शहरी नियोजन में सभी शहरों के लिए एक ही डिजाइन से बचा जाना चाहिए और अलग-अलग शहरों की विशेष जरूरतों को शामिल करने के लिए उनमें लचीलापन होना चाहिए। उन्होंने कहा, “उच्च गुणवत्ता वाली पारिस्थितिकी की जानकारी नहीं होना बहुत बड़ी कमी है और हमारे सभी शहरों में इसी तरह के अध्ययनों को बढ़ावा देने से इस कमी को दूर करने में बहुत मदद मिलेगी। शहरों में इस तरह के काम पूरे शहर में होने चाहिए और साल भर चलने चाहिए, ताकि नई जानकारियां सिटी प्लानिंग में उचित रूप से मदद कर सकें।”
यह अध्ययन प्रवासी पक्षियों के नजरिए से शहर की जैव-विविधता को भी देखता है। भारत में प्रवासी पक्षियों के ज्यादातर अध्ययन जलपक्षियों और प्राकृतिक आवासों पर केंद्रित हैं। उदयपुर शहर बड़ी संख्या में प्रवासी प्रजातियों के आगमन को सुगम बनाता हुआ लगता है, क्योंकि उन्हें अपनी पर्यावरणीय खासियतों में अहम बदलाव करने की जरूरत नहीं होती है। कित्तूर कहती हैं, “यह पहलू किसी शहर की जैव-विविधता की लंबी अवधि तक निगरानी के लिए उपयोगी हो सकता है। अगर प्रवासी पक्षी समय के साथ ज्यादा खास होते जा रहे हैं, तो यह संकेत दे सकता है कि शहर की पारिस्थितिकी खराब हो रही है। पक्षियों को पारिस्थितिक संकेतक के रूप में इस्तेमाल करना शहरों की योजना बनाने और हमारे शहरों को बनाए रखने में मदद करने के लिए बहुत मूल्यवान होगा, ताकि वे सभी बहुत ज्यादा प्रदूषित ना हों।”
बैनर तस्वीरः इजिप्शियन गिद्ध। तस्वीर – के.एस. गोपी सुंदर