- शोधकर्ताओं ने मेघालय के दक्षिण गारो हिल्स और री भोई जिलों में पाई गई सिकाडा की एक नई प्रजाति ‘बेक्वार्टिना बाइकलर’ की जानकारी प्रकाशित की है।
- बेक्वार्टिना बाइकलर, जिसे आमतौर पर बाइकलर बटरफ्लाई सिकाडा के रूप में जाना जाता है, भारत से रिपोर्ट की जाने वाली बेक्वार्टिना जीनस की पहली सिकाडा है। यह हर साल गर्मियों के मौसम में मेघालय में दिखाई देती है।
- आदिवासी गारो समुदाय पहले से ही बाइकलर बटरफ्लाई सिकाडा से परिचित है। उनका पारंपरिक ज्ञान पर्यावरणीय समस्याओं के समाधान में महत्वपूर्ण साबित हो सकता है।
साल 2017 की गर्मी की दोपहर में मेघालय के दक्षिण गारो हिल्स के बालपक्रम नेशनल पार्क में फील्ड एंटोमोलॉजिस्ट विवेक सरकार और उनके सहयोगी तुषार संगमा सिकाडा का अध्ययन करने निकले थे। विवेक अपनी पीएचडी के लिए इस क्षेत्र में शोध कर रहे थे। रास्ता बेहद खराब था। कीचड़ से भरे रास्ते में उनकी मोटरसाइकिल बार-बार फंसती और वो किसी तरह आगे बढ़ते रहते। आखिरकार दोनों जंगल के अंदर तक पहुंच गए। विवेक ने एक ऑडियो रिकॉर्डर को एक छोटे पैराबोलिक माइक्रोफोन से जोड़ा और सिकाडा की आवाजें (कॉल) रिकॉर्ड करने लगे। तभी, एक अजीब सी आवाज उनकी कानों तक पहुंची, एक ऐसी आवाज जो उन्होंने पहले कभी नहीं सुनी थी। यह सिकाडा की किसी भी ज्ञात आवाज से अलग थी।
सरकार ने बताया, “दूरबीन और लेजर रेंजफाइंडर से देखा तो उन्हें जमीन से 30 मीटर ऊपर एक पेड़ की टहनियों पर एक सिकाडा बैठा दिखा।” सूर्यास्त का समय था, अचानक एक चमगादड़ उड़ता हुआ आया और तेजी से सिकाडा पर झपटा। सिकाडा चमगादड़ के पंजों से बचकर एक पत्ते पर गिर गया और रेंगने लगा। कीटविज्ञानी ने फौरन उसकी कुछ तस्वीरें खींच लीं। यह सिकाडा आम सिकाडा की तरह नहीं था। यह एक खास तरह का दो रंगो वाला बटरफ्लाई सिकाडा (बेक्वार्टिना बाइकलर) था, जिसके पंख तितली की तरह मोटे और रंगीन थे। यह कीट आमतौर पर मिलने वाले पतले और चमकदार पंखो वाले सिकाडा से अलग था।
अंगूठे के आकार के इस बाइकलर बटरफ्लाई सिकाडा के भूरे रंग के पंखों पर केसर के रंग के निशान और सफेद धब्बे हैं। वैसे ये काफी धीमी गति से उड़ता है। लेकिन सरकार ने दक्षिण गारो हिल्स के बालपक्रम पठार में इन्हें हवा के साथ दूर तक उड़ते हुए देखा है।
इसे मेघालय में मई और जून में गर्मियों के मौसम देखा जा सकता है। शुरू में तो यह कम समय के लिए तेज और कर्कश आवाज निकालता है, उसके बाद इसकी आवाज धीमी और लंबी हो जाती है।
बेक्वार्टिना या बटरफ्लाई सिकाडा जीनस को पहले थाईलैंड, वियतनाम और चीन से रिपोर्ट किया गया था। लेकिन भारत के पड़ोसी देशों नेपाल, भूटान, बांग्लादेश, म्यांमार और श्रीलंका में इस प्रजाति का कोई रिकॉर्ड नहीं है।
सरकार ने कहा कि भारत में इस सिकाडा की खोज एक छोटे से डाक टिकट जैसी है, जो आगे चलकर भारत के सिकाडों के एक बड़े कोलाज का हिस्सा बनेगा। 2017 में इस खोज के बाद से, सरकार हर साल इस सिकाडा प्रजाति को देखने के लिए बालपक्रम का दौरा करते रहे। लेकिन कोविड-19 लॉकडाउन की वजह से उन्हें अपने इस सफर को कुछ समय के लिए रोकना पड़ा।
दो बार अलग-अलग जगहों पर खोज
सरकार की खोज से बेखबर, मई 2020 में दक्षिण गारो हिल्स से लगभग 150 किलोमीटर दूर री भोई जिले में एक अन्य वैज्ञानिक रोडेसन थांगख्यू का बाइकलर बटरफ्लाई सिकाडा से सामना हुआ। उस समय थांगख्यू पीएचडी के छात्र थे और राज्य में सिकाडा का अध्ययन कर रहे थे। वर्तमान में वह मेघालय के साइंस और टेक्नोलॉजी यूनिवर्सिटी में जूलॉजी के सहायक प्रोफेसर हैं। वह अपने एक दोस्त के साथ सामुदायिक जंगल में जंगली पौधों की तलाश में निकले थे, जो पहले भोई समुदाय का पवित्र जंगल हुआ करता था। उन्हें एक छोटी सी धारा के पास एक पेड़ से एक अजीबोगरीब सिकाडा की आवाज सुनाई दी। उन्होंने कुछ सिकाडों को उड़ते हुए देखा और उनमें से एक को पकड़ने में कामयाब रहे। इस खोज से उत्साहित होकर उन्होंने एसआर हाजोंग से संपर्क किया, जो मेघालय में नॉर्थ ईस्टर्न हिल यूनिवर्सिटी (एनईएचयू) में जूलॉजी के प्रोफेसर हैं।
2020 से 2022 के बीच, हाजोंग और थांगख्यू ने कई जगहों पर यात्राएं कीं और इस सिकाडा की आवाज और व्यवहार का अध्ययन किया। हाजोंग पिछले 15 सालों से पूर्वोत्तर में सिकाडा का अध्ययन कर रहे हैं। वे भारत के एकमात्र आवधिक सिकाडा ‘करेमिस्टिका रिभोई’ और नागालैंड में पाए जाने वाले सिकाडा ‘प्लेटोमिया कोहिमेंसिस’ के बारे में जानकारी देने वाले पहले व्यक्ति हैं। हाजोंग और थांगख्यू 2016 में री भोई से साल्वाजना मिराबिलिस मिराबिलिस सिकाडा के बारे में बताने वाले पहले व्यक्ति भी थे।
वैज्ञानिकों ने अपने निष्कर्षों को मार्च 2024 में जूटाक्सा में एक पेपर में प्रकाशित किया। इस पेपर में सरकार (जो अब भारतीय वन्यजीव संस्थान में एक वरिष्ठ परियोजना सहयोगी के रूप में काम करते हैं), थांगख्यू, हाजोंग और अन्य ने बताया कि उन्होंने दक्षिण गारो हिल्स और री भोई में बाइकलर बटरफ्लाई सिकाडा को कैसे पाया। यह प्रजाति इन क्षेत्रों के बीच या कहीं और नहीं देखी गई है।
दक्षिण गारो हिल्स और री भोई में वैज्ञानिकों ने सिकाडा की आवाज सुनकर उन्हें ढूंढा और उसके सैंपल लिए। उन्होंने सिकाडों की कुछ तस्वीरें भी लीं, उनकी विडियो बनाई और आवाज रिकॉर्ड कीं। हाजोंग ने कहा, “उनमें से कुछ तो ऊंची शाखाओं पर बैठे थे। हमने उन्हें पकड़ने के लिए लंबे बांस के डंडों का इस्तेमाल किया। बांस के इन डंडों पर स्थानीय लोग (उन्हें पकड़ने के लिए) पेड़ के रस से बने प्राकृतिक चिपकने वाले पदार्थ लगाते हैं।” वैज्ञानिकों ने सॉफ्टवेयर का उपयोग करके सिकाडा की आवाज का बारीकी से विश्लेषण किया। इससे उन्हें सिकाडा की आवाज के बारे में और अधिक जानकारी मिली, जैसे आवाज की पिच (फ्रीक्वेंसी), उसकी वेवलेंथ और एमप्लीट्यूड।
सरकार को इस प्रजाति की पहचान करने में कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा। सबसे बड़ी चुनौती थी इस प्रजाति के बारे में सीमित शोध का होना। बेक्वार्टिना जीनस का वर्णन करने वाले ज्यादातर शोधपत्र फ्रेंच या मंदारिन भाषा में थे। अंग्रेजी भाषा में उपलब्ध जानकारी की कमी के कारण, सरकार को इस प्रजाति को पहचानने में काफी मुश्किल हुई। इसके अलावा, महामारी ने भी उनके काम को धीमा कर दिया और खोज के प्रकाशन को लंबा खींच दिया।
एशिया भर में सिकाडा की मौजूदगी
पिछले कुछ दशकों में दुनिया भर में कीटों की आबादी में तेजी से गिरावट आई है। कीट पारिस्थितिकी तंत्र, कृषि और मानव स्वास्थ्य में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। सरकार ने कहा, “आर्कटिक क्षेत्रों और रेगिस्तानों को छोड़कर सिकाडा लगभग पूरी दुनिया में पाए जाते हैं। उत्तरी अमेरिका में तो उनका काफी अध्ययन किया गया है। अब तक भारत में सिकाडों की 204 प्रजातियां पाई गई हैं।” अमेरिका और भारत में सिकाडा को गर्मी और मानसून का अग्रदूत माना जाता है। जब सिकाडा निकलना शुरू होते हैं, तो लोग समझ जाते हैं कि गर्मी या मानसून का समय आ गया है। अगर एक प्रजाति को छोड़ दें तो भारत में सभी सिकाडा प्रजातियां हर साल बाहर निकलती हैं।
हाजोंग ने कहा, “यह खोज सिकाडा के वैज्ञानिक वर्गीकरण के लिए बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि यह पहली बार है जब इस जीनस (जीवों के एक समूह) को भारत में खोजा गया है।”
हाल के वर्षों में पश्चिमी घाट और पूर्वोत्तर भारत में वैज्ञानिकों द्वारा सिकाडा की नई प्रजातियों की खोज के बावजूद, इन कीटों पर अभी भी कम अध्ययन किया गया है। 2016 में, नेशनल सेंटर फॉर बायोलॉजिकल साइंसेज (NCBS), बेंगलुरु के वैज्ञानिकों ने भारत, बांग्लादेश, भूटान, म्यांमार, नेपाल और श्रीलंका से 281 सिकाडा प्रजातियों की एक चेकलिस्ट तैयार की।
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भारत में पूर्वोत्तर को वनस्पतियों और जीवों के लिए भौगोलिक प्रवेश द्वार माना जाता है। हाजोंग ने मोंगाबे इंडिया को बताया, “इस खोज से बायोजियोग्राफी या जूजियोग्राफी का अध्ययन करने वाले वैज्ञानिकों को यह समझने में मदद मिलेगी कि जीव पूर्वोत्तर से भारत के अन्य हिस्सों में कैसे फैले हैं और मुख्य भूमि में जीवों का प्रवास और वितरण कैसे हुआ।” सिकाडा अपने जीवन के शुरुआती साल भूमिगत बिताते हैं और कुछ खास पौधों पर निर्भर रहते हैं। सरकार ने कहा, “भारत में सिकाडा के लिए कौन से पौधे खास हैं, इस बारे में अभी तक बहुत कम जानकारी है, इस विषय पर और शोध की जरूरत है।”
दो रंगों की तितली सिकाडा का भविष्य
NCBS में तितलियों और सिकाडा पर शोध करने वाले किरण मराठे ने जूटाक्सा में प्रकाशित शोध पत्र की समीक्षा की। उन्होंने इसे “अच्छी तरह से किया गया अध्ययन” बताया। मराठे बताते हैं, “ऐसी खोजें लोगों को विकासवादी और पारिस्थितिकी अनुसंधान के लिए नई अध्ययन प्रणालियों की पहचान करने के लिए प्रेरित कर सकती हैं। भारत में अभी भी कई सिकाडा की कई प्रजातियां मौजूद हो सकती हैं जिनके बारे में हमें पता नहीं हैं। इस तरह की खोज एक अच्छी शुरुआत है।”
सरकार और हाजोंग दोनों दोनों मानते हैं कि आगे सिकाडा के ‘संबंधों’ को समझने के लिए एक लंबा जैविक अध्ययन करने की जरूरत है। हमें उनके प्रजनन संबंधों को समझना होगा, यह जानना होगा कि अंडे से व्यस्क होने में कितना समय लगता है, इसके मेजबान पौधों को ढूंढना और साथ ही इसके वितरण पैटर्न को भी समझना होगा। हाजोंग कहते हैं, “अगर हम इन सवालों के जवाब ढूंढ लेते हैं, तो हम उनके बारे में बहुत कुछ जान पाएंगे। इन सवालों के जवाब से हमें यह समझ पाएंगे कि सिकाडा अपने रहने के स्थान व वनस्पतियों के साथ कैसे जुड़े हुए हैं और जलवायु परिवर्तन उन पर कैसे असर डालता है।”
मेघालय में सिकाडा आदिवासी गारो समुदाय को उनकी प्राकृतिक दुनिया से जोड़ते हैं और समुदाय की कृषि, भाषा, पाककला और सांस्कृतिक प्रथाओं को प्रभावित करते हैं। उदाहरण के लिए, दक्षिण और पश्चिम गारो हिल्स के किसान जो झूम या स्थानांतरित खेती करते हैं, उनका मानना है कि फेगोल या डुंडुबिया अन्नानदलेई की आवाज (जो कुछ साल पहले ही रिपोर्ट की गई थी) एक अच्छी फसल का संकेत देती है। पूर्वोत्तर भारत के आदिवासी समुदायों के पास पर्यावरण के बारे में पारंपरिक ज्ञान है, जो पर्यावरणीय समस्याओं के समाधान के लिए महत्वपूर्ण साबित हो सकता है।
सरकार और हाजोंग ने बताया कि दक्षिण गारो हिल्स और री भोई के स्थानीय लोग पहले से ही बाइकलर भटरफ्लाई सिकाडा से परिचित थे। सरकार ने कहा, “हमारी (सिकाडा) कई खोजों का पहले से ही गारो नाम है।” सरकार ने मेघालय में सिकाडा का अध्ययन के दौरान जंगलों के आसपास के गांवों में काफी समय बिताया। सरकार ने बताया कि जब उन्होंने स्थानीय लोगों के साथ सिकाडा की आवाजें साझा की, तो स्थानीय लोग उन सिकाडों को पहचानने में सक्षम थे। इससे पता चलता है कि स्थानीय लोगों के पास पारंपरिक ज्ञान है जो वैज्ञानिकों के लिए उपयोगी हो सकता है। सरकार ने इस बात पर जोर दिया कि वैज्ञानिकों को स्थानीय समुदायों के पारंपरिक ज्ञान को स्वीकारना चाहिए और उसका पता लगाना चाहिए। सरकार और हाजोंग ने मेघालय के सिकाडा पर एक किताब लिखने की योजना बनाई है, जिसमें इस क्षेत्र में पाए जाने वाले सभी सिकाडा प्रजातियों का विवरण होगा।
यह खबर मोंगाबे इंडिया टीम द्वारा रिपोर्ट की गई थी और पहली बार हमारी अंग्रेजी वेबसाइट पर 16 मई 2024 को प्रकाशित हुई थी।
बैनर तस्वीर: मेघालय के साउथ गारो हिल्स में बालपक्रम नेशनल पार्क में एक पत्ते पर बैठा बेक्वार्टिना बाइकलर। इसे 2017 में सरकार ने पहली बार देखा था, जिसे चमगादड़ ने अपना शिकार बनाते हुए घायल कर दिया था। तस्वीर- विवेक सरकार