- भारत के नए भूस्खलन मानचित्र में देश के 4.75% हिस्से को जमीन धंसने के प्रति बहुत ज्यादा संवेदनशील बताया गया है।
- मानचित्र में पूर्वी घाट में पहली बार भूस्खलन वाले संभावित क्षेत्रों की पहचान की गई है, जो पहले सरकारी डेटा में शामिल नहीं थे।
- जानकारों का कहना है कि इस तरह के डेटा से भारत में भूस्खलन प्रबंधन को काफी हद तक बेहतर बनाया जा सकता है, जो अक्सर जमीन धंसने और मौसम से जुड़ी अन्य चरम घटनाओं से तबाह हो जाता है।
भूस्खलन को जमीन पर सबसे विनाशकारी खतरों में से एक माना जाता है। इससे जान-माल का बहुत ज्यादा नुकसान होता है। कई विकासशील देशों में भूस्खलन से होने वाला आर्थिक नुकसान उनके सकल राष्ट्रीय उत्पाद के 1-2% के बीच होने का अनुमान है।
हाल ही में, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान-दिल्ली के सिविल इंजीनियरिंग विभाग और यार्डी स्कूल ऑफ आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के शोधकर्ताओं ने पूरे भारत में भूस्खलन संभावित क्षेत्रों का नक्शा तैयार किया है। इसमें 95.73% सटीकता का दावा किया गया है। हाल ही में बनाए गए भारत भूस्खलन संवेदनशीलता मानचित्र (ILSM) भारत के 4.75% हिस्से को भूस्खलन के लिए बहुत ज्यादा संवेदनशील के रूप में वर्गीकृत करता है। इसमें बहुत कम से बहुत ज्यादा जैसे संवेदनशीलता के पांच बिंदु वाले स्केल का इस्तेमाल किया गया है। भूस्खलन संवेदनशीलता दी गई भू-पर्यावरण वाली स्थितियों के लिए काम नहीं करने की क्षमता का प्रतिनिधित्व करती है। यह नक्शा सार्वजनिक तौर पर उपलब्ध है।
आधिकारिक आंकड़ों से पता चलता है कि भारत में लगभग 4,20,000 वर्ग किलोमीटर या 12.6% भूमि क्षेत्र (बर्फ से ढके क्षेत्रों को छोड़कर) भूस्खलन वाले खतरे में शामिल है। इस संवेदनशील क्षेत्र का लगभग 50% हिस्सा दार्जिलिंग और सिक्किम वाले हिमालय सहित पूर्वोत्तर हिमालय में स्थित है। इस तरह, भूस्खलन की संवेदनशीलता का अनुमान लगाने के लिए यह उपकरण असरदार भूस्खलन प्रबंधन के लिए बेशकीमती है।
मौजूदा अध्ययन में सिक्किम, उत्तराखंड, अरुणाचल प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, मणिपुर, नागालैंड, गोवा, मिजोरम, मेघालय और केरल को भूस्खलन की सबसे ज्यादा संभावना वाले 10 भारतीय राज्यों के तौर पर जगह दी गई है। इसमें पूर्वी घाट को भी भूस्खलन के खतरे वाले क्षेत्र के रूप में पहचाना गया है, जिसे इससे पहले सरकारी भूस्खलन रिकॉर्ड या भारत के आधिकारिक भूस्खलन संवेदनशीलता मानचित्र में शामिल नहीं किया गया था।
दुनिया भर में, मई 2024 तक भूस्खलन से होने वाली मौत की संख्या पहले के सालों की तुलना में ज्यादा रही है। यह जानकारी ब्रिटेन में यूनिवर्सिटी ऑफ हल के कुलपति और भूस्खलन का अध्ययन करने वाले पृथ्वी वैज्ञानिक डेव पेटली के द लैंडस्लाइड ब्लॉग में दी गई है।
हाल के सालों में भारत में बहुत ज्यादा बारिश और उसके बाद बाढ़ जैसी अनियमित मौसमी घटनाएं विनाश का कारण बन रही हैं। 16 जून तक पूरे सिक्किम में भूस्खलन में कम से कम नौ लोग मारे गए हैं। इस साल पूर्वी हिमालय में ऐसी कई घटनाएं हुई हैं। मई में असम और मेघालय में चक्रवात रेमल आया था, जिसके चलते करीमगंज जिले में भूस्खलन हुआ। इसमें पांच लोगों की मौत हो गई। इसी तरह, मिजोरम के आइजोल में पत्थर की खदान ढहने से 29 लोगों की जान चली गई।
पश्चिमी हिमालय और पश्चिमी घाट में भी इसी तरह की विनाशकारी घटनाएं हुई हैं। मार्च में बर्फबारी के कारण हुए भूस्खलन से उत्तराखंड में गंगोत्री राष्ट्रीय राजमार्ग और अन्य रास्ते बंद हो गए। वहीं, बारिश के कारण केरल के पुलियानमाला में स्टेट हाइवे पर भूस्खलन हुआ।
भूस्खलन का बेहतर प्रबंधन
भूस्खवलन संवेदनशीलता मानचित्र सबसे खतरनाक क्षेत्रों की पहचान करके भूस्खलन प्रबंधन को व्यवस्थित करने में मदद करता है। यह खास मानचित्र देश की स्थलाकृति को भूस्खलन की वजह बनने वाले 16 कारकों के आधार पर संवेदनशीलता के हिसाब से पांच हिस्सों में बांटता है – बहुत कम, कम, मध्यम, ज्यादा और बहुत ज्यादा। इन कारकों में ढलान, मिट्टी की संरचना, मौसम की स्थिति और शहरीकरण और नदियों से नजदीकी के अलग-अलग पहलू शामिल हैं। अध्ययन के लेखकों ने नोट किया कि भूस्खलन संवेदनशीलता पर पिछले मानचित्रों में राज्य की सीमाओं, पर्याप्त डेटा नहीं होना और खराब रिज़ॉल्यूशन जैसी कमियां थी।
आईआईटी-दिल्ली के पीएचडी स्कॉलर और अध्ययन के मुख्य लेखक निर्देश शर्मा पहले से मौजूद भूस्खलन संवेदनशीलता मानचित्रों की कमियों पर बात करते हैं, जो मोटे तौर पर दो प्रकार की होती हैं। इन दोनों कमियों को भारत भूस्खलन संवेदनशीलता मानचित्र में दूर किया गया है। वह बताते हैं, “कुछ मानचित्र, जैसे कि नासा द्वारा बनाए गए दुनिया भर के लिए हैं, लेकिन लगभग एक किलोमीटर के कम रिजॉल्यूशन पर हैं जबकि यह मानचित्र 100 मीटर के रिजॉल्यूशन पर है। हमारे मुकाबले उनके पास सीमित डेटा है। दूसरे प्रकार के क्षेत्रीय मानचित्र 30 मीटर के बेहतर रिजॉल्यूशन पर बने हैं, लेकिन उनमें भी डेटा की कमी है। हमारा भूस्खलन मानचित्र दोनों तरीकों की खूबियों को जोड़ता है। इसे भारतीय एजेंसियों के व्यापक डेटासेट का इस्तेमाल करके बनाया गया है, जिससे हमें पिछले अध्ययनों की तुलना में क्षेत्रीय पैटर्न को बेहतर ढंग से समझने में मदद मिलती है।”
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अध्ययन के लेखकों ने मानचित्र को लेकर 95.73% की सटीकता का दावा किया था। इसे सत्यापित करने के लिए दो परीक्षण किए गए। शर्मा विस्तार से बताते हैं, “पहले परीक्षण में, हमने अपने मॉडल को बेहतर बनाने के लिए डेटा का एक हिस्सा रोक लिया, जिसे फिर उसके प्रदर्शन का आकलन करने के लिए बाकी बचे डेटा पर परीक्षण किया गया। दूसरे परीक्षण में यूके के एक शोध समूह द्वारा बनाए गए वैश्विक घातक भूस्खलन सूची से डेटा का इस्तेमाल करके गुणात्मक विश्लेषण शामिल था। हमारे मॉडल ने उस डेटाबेस के साथ भी अच्छा सह-संबंध दिखाया।”
मानचित्र पर नजदीक से नजर
भारत भूस्खलन संवेदनशीलता मानचित्र से पता चलता है कि भारत का कुल 13.17% हिस्सा अलग-अलग तरह के भूस्खलन के लिए खतरे वाला है। इसमें 4.75% को बहुत संवेदनशील के रूप में वर्गीकृत किया गया है। अध्ययन में बड़े डेटा का इस्तेमाल किया गया, जिसमें भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (जीएसआई) द्वारा सावधानीपूर्वक मैप की गई राष्ट्रीय सूची से 1,54,329 भूस्खलन बिंदु और दुनिया भर के भूस्खलन रिपॉजिटरी से 489 बिंदुओं का इस्तेमाल किया गया।
आईआईटी-रुड़की में रॉक मैकेनिक्स और स्लोप स्टेबिलिटी में महारत रखने वाले सहायक प्रोफेसर एसपी प्रधान कहते हैं, “थोड़े समय में भारी बारिश से ढलान वाली जगह में अस्थिरता पैदा होगी और हाल के दिनों में इस तरह की चरम मौसमी घटनाएं बढ़ी हैं। हालांकि, जलवायु परिवर्तन के संबंध में भूस्खलन की आवृत्ति को समझने के लिए और ज्यादा शोध करने की जरूरत है।”
भारतीय राज्यों में सिक्किम में भूस्खलन को लेकर संवेदनशील भूमि का प्रतिशत सबसे ज्यादा है, जबकि अरुणाचल प्रदेश में सबसे ज्यादा संवेदनशील क्षेत्र है। हिमालयी क्षेत्र के बाहर, केरल में सबसे ज्यादा संवेदनशील क्षेत्र है।
मानचित्र में पश्चिमी घाट (महाराष्ट्र, कर्नाटक और गुजरात) और पूर्वी घाट (ओडिशा, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु) में भूस्खलन की संवेदनशीलता को दिखाया गया है। इसके अलावा छत्तीसगढ़, राजस्थान, मध्य प्रदेश, झारखंड, असम, उत्तरी पश्चिम बंगाल और जम्मू-कश्मीर के कुछ हिस्सों में भी भूस्खलन की संवेदनशीलता के कुछ संकेत दिखाई देते हैं।
भूगतिकी, जलवायु और पर्यावरण अध्ययन में महारत रखने वाले और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एडवांस्ड स्टडीज के सहायक प्रोफेसर सीपी राजेंद्रन ने मानचित्र में बारिश और ढलान जैसे प्राकृतिक और भौतिक मापदंडों पर गहन विचार किया है, लेकिन बांधों और सड़कों जैसे मानव-प्रेरित बदलावों को शामिल करने में इसकी सीमाओं पर बात करते हैं। वे कहते हैं, “मानचित्र बारिश के आंकड़ों, ढलान वगैरह जैसे प्राकृतिक और भौतिक मापदंडों को देखता है, लेकिन बांधों और सड़कों जैसे इंसानी बदलावों को नहीं।” राजेंद्रन चिंता जताते हैं कि मानचित्र भारत में भूस्खलन के जोखिमों की असल सीमा को कम करके आंक सकता है, खासकर उन क्षेत्रों में जहां बुनियादी ढांचा परियोजनाओं का तेजी से असर पड़ता है।
पूर्वी घाट का उल्लेख
यह मानचित्र साल 2004 से 2016 तक घातक भूस्खलन की घटनाओं की वैश्विक सूची के मुताबिक है, जो पूर्वी घाट को भूस्खलन के खतरे वाले क्षेत्र के रूप में पहचानता है। आईएलएसएम पूर्वी घाटों की भूस्खलन के प्रति संवेदनशीलता को सामने लाता है, जो इस क्षेत्र के जोखिमों को समझने में अहम अपडेट को दिखाता है। मानचित्र आगे के शोध की जरूरत को रेखांकित करता है और पूर्वी घाटों में भूस्खलन व्यवहार का व्यापक अध्ययन करने के लिए अपडेट की गई भूस्खलन सूची की जरूरत पर जोर देता है।
प्रधान बताते हैं कि हिमालय, पश्चिमी घाट और पूर्वी घाट जैसे क्षेत्रों में भूस्खलन के कारण अलग-अलग होते हैं, जिसकी कई वजहें होती हैं। इनमें भूजल विज्ञान, भूवैज्ञानिक विशेषताओं (जैसे कि चट्टान का प्रकार और चट्टान के द्रव्यमान में दरारें), भूमि उपयोग और भूमि आवरण में बदलाव, मौसम की घटनाएं और ढलान के कोण का अलग-अलग होना शामिल है।
प्रधान कहते हैं, “पूर्वी घाटों में भूस्खलन अक्सर चक्रवातों के कारण होता है, जिनकी वजह से भारी बारिश होती है।” “दूसरी ओर, हिमालय में भारतीय प्लेट के यूरेशियन प्लेट से टकराने से चट्टानों में दरार आ गई, जिससे तेजी से टूटने के चलते चट्टानों के अस्थिर होने की संभावना बढ़ गई।”
भारत में भूस्खलन का प्रबंधन
राजेंद्रन इस बात पर जोर देते हैं कि पूरे भारत में तेज बारिश की वजह से भूस्खलन की घटनाएं बढ़ रही हैं। वे बताते हैं कि ग्लेशियरों के पिघलने से सिक्किम में झील फटने जैसी घटनाएं इस बात का उदाहरण हैं कि जलवायु पैटर्न में बदलाव की वजह से अचानक बाढ़ आ रही है और पहाड़ी ढलानें खत्म हो रही है, जिससे भूस्खलन हो रहा है। वे कहते हैं, “बाढ़ की आवृत्ति बढ़ रही है, जिससे पहाड़ी ढलानों का आधार क्षरण हो रहा है और भूस्खलन की घटनाएं बढ़ रही हैं। हमारे पास पहले से ही भूस्खलन के आंकड़े हैं; कमी समस्या नहीं है, लेकिन संवेदनशील क्षेत्रों में बुनियादी ढांचा परियोजनाओं की योजना बनाने और उन्हें अनुमति देने वाले अधिकारी इसे अनदेखा करना पसंद कर रहे हैं।”
उत्तराखंड में चार धाम सड़क परियोजना को ऐसे ही मामले के रूप में सामने लाते हुए, जहां पर्वतीय क्षेत्रों में बुनियादी ढांचे के विकास पर सरकारी नीतियों की अनदेखी की गई है। उन्होंने 2021 में प्रकाशित एक कॉलम में लिखा है: “इस परियोजना पर विचार करके, सरकार अपने खुद के नीतिगत ढांचे की अनदेखी कर रही है, जो पर्वतीय क्षेत्रों में बुनियादी ढांचे के विस्तार के लिए ‘बेहतरीन तरीके’ वाले मानदंडों का सुझाव देता है।”
प्रधान ने पहाड़ी क्षेत्रों में इंसानी बस्तियों, निर्माण और बुनियादी ढांचे के विकास के लिए व्यापक दिशा-निर्देशों के महत्व पर जोर दिया। उन्होंने ढलानों के कोणों पर सावधानीपूर्वक विचार करने की वकालत की, ताकि खड़ी ढलानों से बचा जा सके। उन्होंने भूस्खलन के जोखिम को कम करने में असरदार जल निकासी प्रणालियों और ढलानों के नियमित रख-रखाव की महत्वपूर्ण भूमिका पर जोर दिया।
शर्मा कहते हैं कि उनका मानना है कि टिकाऊ विकास और प्राकृतिक आपदाओं से बचने के लिए सक्रिय उपाय बुनियादी ढांचे की योजना में पूरी तरह शामिल होने चाहिए। उनका सुझाव है कि सरकारों को नई परियोजनाओं में निवेश करने से पहले भारत भूस्खलन संवेदनशीलता मानचित्र जैसे संवेदनशीलता मानचित्रों का इस्तेमाल करना चाहिए। उनका प्रस्ताव है कि भूस्खलन की ज्यादा संभावना वाले क्षेत्रों में “सुरक्षा और लचीलापन बढ़ाने के लिए रॉक बोल्टिंग, शॉटक्रीट, बेहतर जल निकासी प्रणाली और रिटेनिंग दीवारों जैसे उचित इंजीनियरिंग समाधानों” के साथ बनाया जाना चाहिए।
जानकार इस बात पर सहमत हैं कि भारत के संवेदनशील क्षेत्रों में भूस्खलन के दुष्प्रभाव को कम करने के लिए बुनियादी ढांचे के विकास में बेहतर फैसले लेना और बेहतरीन तरीकों का पालन करना बहुत जरूरी है।
यह खबर मोंगाबे-इंडिया टीम की ओर से रिपोर्ट की गई थी और पहली बार हमारी अंग्रेजी वेबसाइट पर 26 जून, 2024 को प्रकाशित हुई थी।
बैनर तस्वीर: रुद्रप्रयाग संगम पर मंदाकिनी नदी पर बने फुटब्रिज का टूटा हुआ सिरा। भूस्खलन की संवेदनशीलता का नया नक्शा पूर्वी घाट की भूस्खलन की संवेदनशीलता को दिखाता है, जो इस क्षेत्र के जोखिमों को समझने के लिए अहम जानकारी है। विकिमीडिया कॉमन्स के जरिए मुखर्जी की तस्वीर (CC BY-SA 3.0)।