- समुद्र तल से 4,154 मीटर की ऊँचाई पर लद्दाख में कारगिल जिले के रंगदुम क्षेत्र में यूरेशियन लिंक्स की एक उप-प्रजाति, मध्य एशियाई लिंक्स का एक जीव, की मौजूदगी एक कैमरा ट्रैप में दर्ज की गई।
- जिस रास्ते पर यह वयस्क लिंक्स देखा गया, वह रंगदुम से कांजी और डिबलिंग तक का एक महत्वपूर्ण ट्रेकिंग मार्ग है।
- इस नए साक्ष्य के साथ, लद्दाख के पश्चिमी भाग में इस प्रजाति की उपस्थिति स्थापित हो गई है, लेकिन इस क्षेत्र में अभी भी इसकी आबादी काफी कम है।
मध्य एशियाई लिंक्स का पहला फोटोग्राफिक प्रमाण लद्दाख के कारगिल जिले में दर्ज किया गया है। मध्यम आकार की यह जंगली बिल्ली अब तक केवल केंद्र शासित प्रदेश के लेह जिले में ही दर्ज की गई थी। इस क्षेत्र में हिम तेंदुए जैसी प्रमुख प्रजातियों का अध्ययन करने के लिए शोधकर्ताओं की एक टीम द्वारा किए गए कैमरा ट्रैप अध्ययन के दौरान बिल्ली को रिकॉर्ड किया गया था।
मध्य एशियाई लिंक्स (लिंक्स लिंक्स इसाबेलिनस) यूरेशियन लिंक्स (लिंक्स लिंक्स) की एक उप-प्रजाति है, जिसे भारत के वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 में अनुसूची I प्रजाति के रूप में सूचीबद्ध किया गया है। भले ही यूरेशियन लिंक्स को इंटरनेशनल यूनियन फॉर कन्वेंशन ऑफ नेचर (IUCN) रेड लिस्ट में सबसे कम चिंताजनक प्रजाति के रूप में सूचीबद्ध किया गया है, जो एक स्थिर आबादी को इंगित करता है, भारत में पाई जाने वाली इसकी उप-प्रजाति, मध्य एशियाई लिंक्स की आबादी बहुत कम है। हिमालयन या तिब्बती लिंक्स के नाम से भी जानी जाने वाली इस उप-प्रजाति को हाल ही में ‘वन्यजीवों की प्रवासी प्रजातियों के संरक्षण पर कन्वेंशन‘ (सीएमएस) के परिशिष्ट II में शामिल किया गया है, जिससे इसे अधिक सुरक्षा का दर्जा मिला है।
लद्दाख के पश्चिम में स्थित कारगिल में इसकी स्थिति दर्ज किए जाने से पहले, मध्य एशियाई लिंक्स को हेमिस नेशनल पार्क, चांग चेनमो क्षेत्र, नुब्रा घाटी, चांगथांग, प्रस्तावित ग्या-मीरू वन्यजीव अभयारण्य – से रिपोर्ट किया गया था जो सभी पूर्वी लद्दाख में हैं। यह प्रजाति कृन्तकों के साथ-साथ छोटे और किशोर स्तनधारियों को खाने के लिए जानी जाती है।
कारगिल में आपका स्वागत है
28 अक्टूबर, 2020 को कारगिल जिले के रंगदुम क्षेत्र में एक कैमरा ट्रैप पर मध्य एशियाई लिंक्स का एक जीव कैद हुआ। यह स्थान समुद्र तल से 4,154 मीटर की ऊँचाई पर है।
“हम कानों पर गुच्छे और एक छोटी काली पूंछ जैसी अनूठी विशेषताओं के आधार पर इस प्रजाति को आसानी से यूरेशियन लिंक्स (लिंक्स लिंक्स) के रूप में पहचान सकते हैं। वह घाटी जहां लिंक्स को कैमरे में कैद किया गया था, रंगदुम-कांजी और डिबलिंग गांव के मार्ग पर है,” हाल ही में प्रकाशित शोध पत्र में कहा गया है।
“कैमरा ट्रैप विधि वन्यजीव संरक्षण विभाग, कारगिल की पहली व्यापक परियोजना थी, जिसका उद्देश्य कारगिल में हिम तेंदुए की जनसंख्या का अनुमान लगाना था। रंगदुम हिम तेंदुए के प्रमुख आवासों में से एक है। रंगदुम में यूरेशियन लिंक्स का पहला फोटोग्राफिक रिकॉर्ड पश्चिमी लद्दाख (कारगिल) क्षेत्र में दुर्लभ आकर्षक प्रजातियों के संरक्षण के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण है,” लद्दाख जैव विविधता परिषद के सदस्य और अध्ययन के प्रमुख लेखक नियाजुल खान ने कहा।
शोधकर्ताओं ने शोधपत्र में घास के मैदानों वाले आवास का भी वर्णन किया है, जहाँ प्राथमिक वनस्पति विलो (Salix), जंगली प्याज (Allium), मुड़ी हुई नॉटवीड (Koenigia tortuosa) और वेब्स गुलाब (Rosa webbiana) है। अध्ययन अवधि के दौरान कैमरों में कैद किए गए कुछ अन्य जंगली जानवर लाल लोमड़ी (वल्पेस वल्पेस), हिमालयी भेड़िया (कैनिस ल्यूपस) और घरेलू मवेशी (याक) थे।
जिस रास्ते पर वयस्क लिंक्स को देखा गया, वह रंगदुम से कांजी और डिबलिंग तक का एक महत्वपूर्ण ट्रेकिंग मार्ग है।
इस नए साक्ष्य के साथ, लद्दाख के पश्चिमी भाग में इस प्रजाति की उपस्थिति दर्ज़ हो गई है, लेकिन इस क्षेत्र में अभी भी इसकी आबादी काफी कम है। खान ने कहा, “लिंक्स की उपस्थिति संभवतः कई स्थानों पर हो सकती है, लेकिन कारगिल में तैनात 223 कैमरा ट्रैप में से केवल एक कैमरा ट्रैप ने यूरेशियन लिंक्स की उपस्थिति दर्ज की। यह साक्ष्य कारगिल क्षेत्र में इस प्रजाति की विशिष्टता को दर्शाता है।”
लद्दाख में वन्यजीव संरक्षण पर केंद्रित एक गैर-लाभकारी संस्था स्नो लेपर्ड कंजरवेंसी इंडिया ट्रस्ट के निदेशक और वरिष्ठ वैज्ञानिक सेवांग नामगेल ने सुझाव दिया कि कारगिल में लिंक्स की मौजूदगी के कुछ सबूत मिले हैं, लेकिन लद्दाख के पूर्वी हिस्से की तुलना में घनत्व उतना अधिक नहीं है।
नामगेल, जिन्होंने पेपर की समीक्षा भी की कहते हैं, “रंगदुम क्षेत्र, जहाँ यह विशेष तस्वीर ली गई थी, कई मायनों में लिंक्स के लिए एक बहुत अच्छा आवास है। हम उस क्षेत्र में इसकी उपस्थिति की उम्मीद कर रहे थे और यह दर्शाता है कि यह प्रजाति वहाँ पाई जाती है।”
खान लद्दाख के पश्चिमी क्षेत्र में कम ज्ञात मांसाहारियों के वितरण और आवास उपयोग को समझने की भी योजना बना रहे हैं।
कारगिल में खतरे
यह प्रजाति लद्दाख में पशुधन पर हमलों के लिए जानी जाती है और पहले के अध्ययनों में लद्दाख में जंगली शिकारियों द्वारा पशुधन पर कुल हमलों का 2% भाग का कारण लिंक्स को बताया गया था। इससे ग्रामीणों द्वारा इस जीव की हत्या का संभावित खतरा पैदा होता है। शोधपत्र में पशुधन की सुरक्षा के लिए उपाय सुझाए गए हैं। शोधपत्र में सुझाव दिया गया है, “कारगिल मुख्यालय से दूर स्थित रंगदुम के आस-पास के गांवों में पशुधन की सुरक्षा करना महत्वपूर्ण है।”
इस क्षेत्र में प्रजातियों के लिए आवास की हानि और अवैध शिकार भी प्रमुख खतरे हैं, लेकिन स्वतंत्र रूप से घूमने वाले कुत्तों की बढ़ती आबादी एक बढ़ती चिंता का विषय है।
“लद्दाख के पूर्वी हिस्से, खासकर लेह जिले की तुलना में कारगिल में शिकार का कुछ दबाव है, जो अब सभी को पता है। हम जानते हैं कि कारगिल जिले की कुछ घाटियों में लोग अभी भी भोजन के लिए शिकार करते हैं। अगर लोगों द्वारा शिकार के दबाव के कारण शिकार की आबादी कम हो जाती है, तो निश्चित रूप से इसका लिंक्स की आबादी पर भी असर पड़ेगा,” नामगेल ने कहा।
पहले लेह जिले की तुलना में कारगिल में खुलेआम घूमने वाले कुत्तों की समस्या कम थी। लेकिन अब कारगिल भी खुलेआम घूमने वाले कुत्तों की समस्या का सामना कर रहा है।
पिछले साल प्रकाशित एक अध्ययन में लद्दाख के चांगथांग वन्यजीव अभयारण्य में 2015 से 2017 तक पशुधन और वन्यजीवों पर खुलेआम घूमने वाले कुत्तों के शिकार के पैटर्न की जांच की गई और पाया गया कि हानले क्षेत्र में प्रति 100 वर्ग किलोमीटर में 310 खुलेआम घूमने वाले कुत्ते हैं और अभयारण्य के त्सो मोरीरी क्षेत्र में प्रति 100 वर्ग किलोमीटर में 61 खुलेआम घूमने वाले कुत्ते हैं।
ये स्थान मध्य एशियाई लिंक्स के निवास स्थान माने जाते हैं और भले ही ये कुत्ते बिल्लियों को नहीं मारते, फिर भी वे संसाधनों को चुराकर और डराकर उन्हें प्रभावित करते हैं।
खान ने कहा, “कुत्तों के प्रति कम सहिष्णुता के कारण कारगिल क्षेत्र में खुलेआम घूमने वाले कुत्तों की संख्या बहुत अधिक नहीं थी। वर्तमान में खाद्य सब्सिडी के कारण सेना के शिविरों के पास कुत्तों की उपस्थिति में वृद्धि हुई है।”
कश्मीर से कोई संबंध नहीं
वर्ष 2019 में, दक्षिण कश्मीर क्षेत्र के शोपियां जिले के डोबजान वन क्षेत्र में वन्यजीव विभाग के अधिकारियों ने एक यूरेशियन लिंक्स को देखा और उसकी तस्वीर ली। शोपियां, कारगिल और लद्दाख के अन्य भागों, जहां बिल्ली पाई जाती है, को जोड़ने वाले गलियारे की संभावना के बारे में पूछे जाने पर नामगेल ने इस संभावना से इनकार किया।
“ये जानवर आमतौर पर लद्दाख के परिदृश्य में पाए जाते हैं जो उनके वितरण का दक्षिणी किनारा है। यह नुबरा घाटी में छरमा (सी बकथॉर्न) की घनी झाड़ियों के इलाकों में पाया जाता है। कश्मीर में जो पाया गया वह अधिक महत्वपूर्ण है क्योंकि इसका मतलब है कि यह दक्षिण की ओर समशीतोष्ण वन क्षेत्र में आगे बढ़ा है। लेकिन मुझे नहीं लगता कि शोपियां क्षेत्र को जोड़ने वाला कोई गलियारा है,” नामगेल ने कहा।
अधिक जागरूकता की आवश्यकता
पशुधन पर हमले, शिकार और प्रसिद्ध ट्रैकिंग मार्ग होने के कारण प्रतिशोधात्मक हत्या जैसे संभावित खतरों के साथ, स्थानीय लोगों और पर्यटकों के बीच इस प्रजाति के संरक्षण के बारे में जागरूकता एक महत्वपूर्ण कदम बन जाती है।
लद्दाख के लेह जिले की तुलना में, कारगिल जिला वन्यजीव और पर्यावरण संरक्षण में पिछड़ा हुआ है। नामगेल इसे ‘लद्दाख का संरक्षण बैकवाटर’ कहते हैं क्योंकि जागरूकता के मामले में वहाँ बहुत कुछ नहीं होता है।
“लद्दाख में बड़ी प्रजातियों के बारे में बहुत कुछ नहीं पता है, पिका और नेवले जैसी छोटी प्रजातियों की तो बात ही छोड़िए। अगर हम इन जैसी बड़ी प्रजातियों के बारे में ज़्यादा नहीं जानते हैं, तो यह दर्शाता है कि हम वास्तव में पिछड़ रहे हैं। यह महत्वपूर्ण है कि सभी संगठन और सरकारें प्रजातियों और उनके वितरण के बारे में कुछ समझ विकसित करने के लिए कुछ प्रयास करें। यह सही समय है कि हम इन जानवरों के वितरण (लिंक्स) को समझने में कुछ समय लगाएं,” नामगेल ने कहा।
यह खबर मोंगाबे इंडिया टीम की ओर से रिपोर्ट की गई थी और पहली बार हमारी अंग्रेजी वेबसाइट पर 7 जून, 2024 को प्रकाशित हुई थी।
बैनर छवि: लद्दाख के हेमिस नेशनल पार्क में यूरेशियन लिंक्स की कैमरा ट्रैप तस्वीर। तस्वीर: वन, पारिस्थितिकी और पर्यावरण विभाग, लद्दाख।