- भारत के सुंदरबन क्षेत्र में अनिश्चित मौसम और झींगा की बढ़ती वैश्विक मांग के कारण पारंपरिक कृषि से झींगा जलीय कृषि की ओर एक महत्वपूर्ण बदलाव आया है।
- झींगा पालन में इस उछाल ने स्थानीय समुदायों को बाधित कर दिया है, जिससे वे अपनी पारंपरिक आजीविका – कृषि से विस्थापित हो गए हैं।
- सुंदरबन में झींगा पालन का तेजी से विस्तार अक्सर उचित वैज्ञानिक ज्ञान या तकनीकी प्रशिक्षण के बिना किया जाता है। वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि इसके दीर्घकालिक दुष्परिणाम होंगे।
पश्चिम बंगाल के सुंदरबन बायोस्फीयर रिजर्व (एसबीआर) में स्थित नागेंद्रपुर गांव में एक संकरी, छह फुट चौड़ी गली एक बड़ी आद्रभूमि (वेटलैंड), जिसका इस्तेमाल जलकृषि के लिए किया जाता है, को झुग्गियों के समूह से अलग करती है। इनमें से एक झुग्गी में रोशनारा पियादा, उनके पति सैदुल्ला पियादा और उनके तीन बच्चे रहते हैं।
इकत्तीस वर्षीय रोशनारा ने मत्स्य पालन क्षेत्र के बगल में मीठे पानी के तालाब में बर्तन धोते हुए कहा, “हर बार बारिश होने पर, मत्स्य पालन से खारा पानी बह जाता है और हमारे घर में बाढ़ आ जाती है।” उस जगह से लगभग 600-700 मीटर (1,970-2,300 फीट) दूर दूसरे छोर पर हरियाली की एक पतली रेखा के साथ जलकृषि तालाबों की ओर इशारा करते हुए, सैदुल्ला कहते हैं, “हम इस जमीन पर जलकृषि शुरू होने से पहले खेतिहर मजदूर के रूप में काम करते थे। परंतु अब गुजारा करना मुश्किल हो गया है। “वह मैंग्रोव है। वे करीब थे, लेकिन ये जलकृषि वाले हर साल उन्हें नष्ट करते रहते हैं।”
जिस ज़मीन पर वे काम करते थे, उसे एक दशक पहले मत्स्य पालन क्षेत्र में बदल दिया गया, जो इस क्षेत्र में एक बढ़ती हुई प्रवृत्ति है। ज़मीन के मालिकों ने ज़मीन को एक जलकृषि संचालक को पट्टे पर दे दिया, जो अब अपने ही कर्मचारियों को काम पर रखता है, जिससे सैदुल्ला, रोशनआरा और उनके पड़ोसी बेरोज़गार हो गए हैं।
सैदुल्ला (48) ने कहा, “हमें हर मौसम की शुरुआत में मत्स्य पालन क्षेत्र में पानी भरने से पहले ज़मीन जोतने या तटबंध बनाने के लिए कहा जाता है।” रोशनआरा कहती हैं, “लेकिन अब वह काम भी खत्म हो रहा है, क्योंकि मत्स्य पालन करने वाले लोग भारी मशीनरी का इस्तेमाल करते हैं।”
गाँव में और राज्य के सुंदरबन के दूसरे हिस्सों में उनके पड़ोसी भी ऐसी ही कहानियाँ साझा करते हैं। पश्चिम बंगाल और पड़ोसी देश बांग्लादेश में फैला एसबीआर दुनिया के सबसे बड़े मैंग्रोव वनों में से एक है। यह गंगा, ब्रह्मपुत्र और मेघना नदियों के संगम पर स्थित है, जो बंगाल की खाड़ी के किनारे दुनिया का सबसे बड़ा नदी डेल्टा बनाता है।
कृषि से जलीय कृषि की ओर बदलाव
पश्चिम बंगाल के सुंदरबन क्षेत्र में कृषि और खारे पानी की जलीय कृषि पारंपरिक आजीविका थी। हालांकि, बेमौसम बारिश, बढ़ते तापमान और समुद्र के स्तर और लगातार उष्णकटिबंधीय चक्रवातों ने कृषि को प्रतिकूल रूप से प्रभावित किया है, जिससे खारे पानी की जलीय कृषि प्रमुख आजीविका बन गई है।
झींगे की बढ़ती वैश्विक मांग ने जलीय कृषि की ओर बदलाव को और बढ़ावा दिया है। भारत दुनिया के सबसे बड़े झींगा निर्यातकों में से एक है। जबकि आंध्र प्रदेश भारत में सबसे बड़ा झींगा उत्पादक राज्य है, पश्चिम बंगाल, विशेष रूप से सुंदरबन, “टाइगर झींगा” की खेती और उत्पादन के क्षेत्र में सबसे आगे है।
स्प्रिंगर के पर्यावरण, विकास और स्थिरता जर्नल में 2021 के एक पेपर के अनुसार, सुंदरबन में कुल जलीय कृषि क्षेत्र 1999 में 31,794 हेक्टेयर (78,564 एकड़ या पूरे एसबीआर का 3.59%) से बढ़कर 2019 में 51,587 हेक्टेयर (127,474 एकड़ या पूरे एसबीआर का 5.82%) हो गया। पेपर में कृषि से जलीय कृषि में भूमि उपयोग में महत्वपूर्ण परिवर्तन का भी उल्लेख है, जिसमें 1999 और 2009 के बीच 10,536 हेक्टेयर (एसबीआर की कृषि भूमि का 3.71%) और 2009 और 2019 के बीच अतिरिक्त 13,471 हेक्टेयर (एसबीआर की कृषि भूमि का 6.02%) का परिवर्तन हुआ।
इसके अतिरिक्त 1999 और 2019 के बीच, मडफ्लैट्स और कुछ मैंग्रोव वन क्षेत्रों का परिवर्तन हुआ, जिसका कुल क्षेत्रफल लगभग 3,320 हेक्टेयर (8,203 एकड़) था।
कोलकाता स्थित जादवपुर विश्वविद्यालय में स्कूल ऑफ ओशनोग्राफिक स्टडीज में सहायक प्रोफेसर और 2021 के पेपर के सह-लेखक अभ्रा चंदा ने कहा, “मिट्टी और भूजल में बढ़ती नमक की परत ने भारत और बांग्लादेश दोनों में सुंदरबन में कृषि को अलाभकारी बना दिया है।”
उन्होंने कहा, “ताजे पानी के बहाव पैटर्न में निरंतर परिवर्तन, जलवायु परिवर्तन, समुद्र के बढ़ते स्तर और लगातार उष्णकटिबंधीय चक्रवातों ने सुंदरबन के सामाजिक-पारिस्थितिक परिदृश्य को बदल दिया है।” “मिट्टी की विशेषताओं में बदलाव आया है, जिससे फसल उत्पादन और फसल पैटर्न प्रभावित हुए हैं।”
इंटरनेशनल जर्नल ऑफ बायोरिसोर्स साइंस में 2023 के पेपर के अनुसार, 2009 के ‘आइला’ चक्रवात के बाद सुंदरबन में कृषि प्रणाली बुरी तरह से बाधित हुई थी। माना जाता है कि 2020 के सुपर साइक्लोन ‘अम्फान’ ने भी कई वर्षों तक लगभग 17,800 हेक्टेयर कृषि भूमि को अनुपयोगी बना दिया था।
आज, खारे पानी में झींगा और पंखदार मछलियों का पालन, एसबीआर में सबसे प्रचलित जलीय कृषि पद्धति है। हालांकि, प्राकृतिक शक्तियों के बावजूद, खारे पानी में जलकृषि की ओर यह बदलाव सुंदरबन के स्थानीय लोगों के लिए पूरी तरह से स्वायत्त नहीं था।
झींगा पालन का काला पक्ष
रोशनारा, उनके पति और उनके पड़ोसी जिस ज़मीन पर खेती करते थे, वह सरकारी स्वामित्व में है और निवासियों को पट्टे पर दी गई है। स्थानीय पर्यावरण कार्यकर्ता अपूर्व दास ने पिछले प्रशासन का हवाला देते हुए कहा, “उस ज़मीन के तथाकथित मालिक को सत्तारूढ़ राजनीतिक दल के स्थानीय नेताओं के आशीर्वाद से उस पर खेती करने की अनुमति दी गई थी।”
दास ने कहा, “2011 में सरकार बदलने के बाद और जलीय कृषि के बढ़ते चलन के साथ, सत्तारूढ़ दल के स्थानीय नेताओं ने इस ज़मीन को झींगा पालन के लिए आर्द्रभूमि में बदल दिया। चूंकि रोशनारा और उनके पति जैसे मौजूदा कृषि मज़दूर जलीय कृषि में कुशल नहीं थे, इसलिए झींगा पालन करने वालों ने बाहर से मज़दूरों को बुलाया।”
ऐसी ही कहानियाँ सुंदरबन में भी मिलती हैं, जहाँ कई लोग शिकायत करते हैं कि उन्होंने अपनी आजीविका के पारंपरिक स्रोतों पर नियंत्रण खो दिया है और उनकी ज़मीन झींगा पालन के लिए ले ली गई है।
हाल ही में, ज़मीन हड़पने से जुड़े एक स्थानीय सत्ताधारी पार्टी के नेता के दो सहयोगियों की गिरफ़्तारी ने एसबीआर की स्थिति को उजागर किया, जहाँ शक्तिशाली भूमि माफियाओं ने झींगा की खेती पर अवैध रूप से नियंत्रण हासिल कर लिया है, जो इस क्षेत्र की अर्थव्यवस्था और राजनीति से जुड़ा हुआ है।
मोंगाबे ने कई किसानों से बात की जिन्होंने दावा किया कि स्थानीय भू-माफियाओं ने उनकी ज़मीन हड़प ली है। उदाहरण के लिए, बोयरमारी गाँव में 0.2 हेक्टेयर (0.5 एकड़) ज़मीन के मालिक 56 वर्षीय जगन्नाथ सिंह धान की खेती करते थे। उन्होंने और उनके पड़ोसियों ने अपनी छोटी-छोटी ज़मीनें एक साथ मिलाकर कुल 0.9 हेक्टेयर ज़मीन एक ऐसे व्यक्ति को पट्टे पर दे दी जो झींगा की खेती में निवेश करना चाहता था। उन्हें पहले दो वर्षों के लिए 75,187 रुपये प्रति हेक्टेयर की दर से पैसे मिले। “लेकिन दो साल बाद, निवेशक ने हमें बताया कि उस 0.9 हेक्टेयर (2.2 एकड़) ज़मीन का स्वामित्व बदल गया है। वह सही था, क्योंकि सरकारी कार्यालय के रिकॉर्ड से पता चला कि एक स्थानीय सत्ताधारी पार्टी का नेता हमारी ज़मीन का मालिक बन गया था।” उन्होंने आरोप लगाया, “बार-बार अपील के बावजूद, मुझे अभी तक अपनी जमीन नहीं मिली है और न ही पिछले दो वर्षों से जमीन का किराया मिला है।”
जब उनसे पूछा गया कि उन्होंने खुद झींगा पालन क्यों नहीं चुना, तो उन्होंने कहा, “झींगा पालन के लिए बड़े निवेश की ज़रूरत होती है। एक छोटा किसान होने के नाते, मेरे पास इतनी पूंजी नहीं थी।”
सिंह के पड़ोसी अमर सिंह का भी यही हश्र हुआ है। अमर एक बटाईदार हैं, स्थानीय भूमि सुधार के कारण उन्हें किसी और के स्वामित्व वाली ज़मीन पर वंशानुगत अधिकार मिल जाता है। उन्हें ज़मीन पर काम करने और उपज का हिस्सा पाने का अधिकार है। लेकिन अब, उन्हें कुछ नहीं मिलता, क्योंकि एक दिन उन्हें पता चला कि ज़मीन का स्वामित्व बदल गया है।
और पढ़ेंः [वीडियो] सुंदरबनः तटीय कटाव और मवेशियों की वजह से मुश्किल में मैंग्रोव के नए पौधे
कुछ किसान जिन्होंने मुनाफ़े की संभावना को देखते हुए और स्थानीय डीलरों से आश्वासन मिलने के बाद झींगा पालन शुरू किया, उन्होंने कहा कि अब उन्हें अपने फ़ैसले पर पछतावा है। कोलपोना माल और उनके पति नोनी गोपाल माल के पास लगभग 2 हेक्टेयर (4.9 एकड़) ज़मीन है। “हमने पाँच साल के अनुबंध के तहत इस ज़मीन के 1.46 हेक्टेयर (3.6 एकड़) हिस्से को झींगा पालन के लिए बदल दिया। हमने एक स्थानीय डीलर के साथ एक अनुबंध पर हस्ताक्षर किए, जो झींगा लार्वा, भोजन और दवाइयाँ बेचता है। उसने हमारे आस-पास की कई ज़मीनें सुरक्षित कर लीं और एक बड़ा मत्स्य पालन शुरू कर दिया,” 36 वर्षीय कोलपोना ने कहा। “डीलर अपने कर्मचारियों और मशीनरी को लेकर आया। उसने हमें 1.1 लाख रुपये प्रति हेक्टेयर की दर से पैसे दिए। यह पाँच साल तक जारी रहने वाला था, और फिर कंपनी के डीलर ने हमें आश्वासन दिया कि वह हमारी ज़मीन को कृषि के लिए बहाल कर देगा।”
यह माल दंपत्ति और उनके ज़मीन-मालिक पड़ोसियों के लिए कुछ अच्छा पैसा बनाने का एक त्वरित तरीका लग रहा था, जब तक कि तीसरे वर्ष में एक वायरस ने हमला नहीं किया, जिससे सभी जलीय कृषि उत्पाद नष्ट हो गए। कोलपोना ने कहा “उन्होंने हमें भुगतान करना बंद कर दिया और 2022 में इसे बहाल किए बिना हमारी ज़मीन छोड़ दी। हमें बाद में पता चला कि वे उचित वैज्ञानिक दिशा-निर्देशों का पालन नहीं कर रहे थे। उनके जाने के बाद, हमने धान को फिर से उगाने की कोशिश की, लेकिन पैदावार कम रही।”
डीलर के बारे में पूछताछ करने पर स्थानीय ग्राम पंचायत (ग्राम परिषद) ने स्वीकार किया कि कुछ साल पहले तक जलीय कृषि का गोरखधंधा बड़े पैमाने पर चल रहा था। ग्राम पंचायत के उप प्रधान आलोकेश पुरकैत कहते हैं, “लेकिन अब हमें ग्रामीणों की ओर से कोई शिकायत नहीं मिली है। यह दुखद है कि जिन लोगों ने पैसे खो दिए हैं, वे अभी भी अपनी रकम वापस नहीं पा सके हैं।”
आर्थिक प्रेरणा, पारिस्थितिकी प्रभाव
जादवपुर विश्वविद्यालय के समुद्र विज्ञान अध्ययन विद्यालय के प्रोफेसर और निदेशक तुहिन दास ने सुंदरबन में जलीय कृषि व्यवसाय में एक बड़ी कमी को उजागर किया: तकनीकी ज्ञान और उचित वैज्ञानिक प्रशिक्षण की कमी।
दास ने समझाया, “उदाहरण के लिए, खेती करने वालों के पास अक्सर मिट्टी और पानी की गुणवत्ता के साथ-साथ रसायनों के उपयोग के बारे में तकनीकी जानकारी की कमी होती है। प्रायः, मापन उपकरणों का उपयोग किए बिना, वह पीढ़ियों से चले आ रहे पारंपरिक ज्ञान पर भरोसा करते हैं। कभी-कभी, वायरस के संक्रमण के कारण उन्हें नुकसान उठाना पड़ता है, जिससे मिट्टी और पानी कई वर्षों तक खेती के लायक नहीं रह जाते।”
दास ने यह भी कहा कि उच्च वैश्विक मांग ने भारत में कई कंपनियों को झींगा लार्वा, खाद्य पदार्थ और दवाइयों को बेचने के व्यवसाय में उतरने के लिए प्रेरित किया है। इस दबाव तथा स्थानीय व्यक्तियों की त्वरित लाभ कमाने के अवसरों को जब्त करने की उत्सुकता दोनों ने साथ मिलकर, खारे पानी की जलीय कृषि के अनियंत्रित और अवैज्ञानिक रूपों को जन्म दिया है।
लवणता से परे, आर्थिक कारक मुख्य रूप से जलीय कृषि में इस तीव्र रूपांतरण को प्रेरित करते हैं। साल 2022 में, जादवपुर विश्वविद्यालय, स्वीडन और यूनाइटेड किंगडम के शोधकर्ताओं द्वारा किए गए एक सहयोगी अध्ययन में पाया गया कि जलीय कृषि में तेजी से वृद्धि के लिए प्राथमिक प्रेरणा आर्थिक लाभ है, जो सालाना लगभग $2,023-$6,540 प्रति हेक्टेयर है। अध्ययन में यह भी कहा गया है कि अनियंत्रित जलीय कृषि भूमि उपयोग संयुक्त राष्ट्र सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी), विशेष रूप से एसडीजी 15.3 और 15.1, जो मरुस्थलीकरण से निपटने और भूमि और जल पारिस्थितिकी तंत्र को संरक्षित करने पर केंद्रित हैं, को पटरी से उतार सकता है।
दास ने चेतावनी दी कि सुंदरबन में इस अवैज्ञानिक जलीय कृषि के परिणाम लंबे समय में महसूस किए जाएंगे। उन्होंने चेतावनी देते हुए कहा, “तालाबों से पार्श्व रिसाव के कारण होने वाले भारी लवणीकरण से कृषि भूमि पर मिट्टी की उर्वरता कम हो जाएगी और वनस्पति कम होने से आम लोगों के जीवन और आजीविका में बाधा उत्पन्न हो सकती है।” “इससे स्थानीय सूक्ष्म जलवायु और क्षेत्र में स्थायी प्रभाव के साथ अनिवार्य रूप से बदलाव आएगा।”
झींगा की भारी वैश्विक मांग और सुंदरबन में झींगा पालन की अपार संभावनाओं को देखते हुए, अवैज्ञानिक और शोषणकारी गतिविधि में वृद्धि होने की संभावना है।
जहाँ कोलपोना माल और जगन्नाथ सिंह जैसे व्यक्ति, जिनके पास ज़मीन है, खेती में वापस लौटने की इच्छा रखते हैं, वहीं रोशनारा और उनके पति सैदुल्ला खारे पानी के तालाब पर काम करने के लिए आवश्यक कौशल हासिल करने की उम्मीद करते हैं।
उद्धरण:
Goodbred, S. L., Paolo, P. M., Ullah, M. S., Pate, R. D., Khan, S. R., Kuehl, S. A., … Rahaman, W. (2014). Piecing together the Ganges-Brahmaputra-Meghna river delta: Use of sediment provenance to reconstruct the history and interaction of multiple fluvial systems during Holocene delta evolution. Geological Society of America Bulletin, 126(11-12), 1495-1510. doi:10.1130/b30965.1
Mitra, A., Zaman, S., & Pramanick, P. (2023). Traditional livelihoods in Sundarban delta. Climate Resilient Innovative Livelihoods in Indian Sundarban Delta, 49-117. doi:10.1007/978-3-031-42633-9_2
Giri, S., Samanta, S., Mondal, P. P., Basu, O., Khorat, S., Chanda, A., & Hazra, S. (2021). A geospatial assessment of growth pattern of aquaculture in the Indian Sundarbans biosphere reserve. Environment, Development and Sustainability, 24(3), 4203-4225. doi:10.1007/s10668-021-01612-9
Mandal, T. K. (2023). Intervention of soil salinity in agriculture of Indian Sundarbans: A review. International Journal of Bioresource Science, 10(1). doi:10.30954/2347-9655.01.2023.12
Giri, S., Daw, T. M., Hazra, S., Troell, M., Samanta, S., Basu, O., … Chanda, A. (2022). Economic incentives drive the conversion of agriculture to aquaculture in the Indian Sundarbans: Livelihood and environmental implications of different aquaculture types. Ambio, 51(9), 1963-1977. doi:10.1007/s13280-022-01720-4
यह खबर मोंगाबे इंडिया टीम द्वारा रिपोर्ट की गई थी और पहली बार हमारी अंग्रेजी वेबसाइट पर 19 जून 2024 को प्रकाशित हुई थी।
बैनर तस्वीर: सुंदरबन में दुर्लभ जलीय कृषि स्थलों में से एक जहां वैज्ञानिक तरीकों का पालन किया जा रहा है। तस्वीर- मोंगाबे के लिए नीलाद्री सरकार।