- कॉप-29 के अध्यक्ष ने जलवायु सम्मेलन में अनुच्छेद 6.4 को अपनाकर शुरुआती सफलता की घोषणा की है, जो केंद्रीकृत कार्बन ट्रेडिंग के लिए ढांचा बनाने से जुड़ा है।
- जानकारों का कहना है कि आम सहमति के बिना जल्दबाजी में लिया गया फैसला यूनाइटेड नेशन फ्रेमवर्क कन्वेंशन ऑन क्लाइमेट चेंज (यूएनएफसीसीसी) की प्रक्रिया को कमजोर करता है।
- कार्बन बाजार को पूरी तरह से चालू करने से पहले कॉप-29 में हिस्सा लेने वाले सभी पक्षों को अभी भी कई अनसुलझे मुद्दों पर आम सहमति बनाने की जरूरत है।
अजरबैजान की राजधानी बाकू में चल रहे जलवायु सम्मेलन के पहले दिन कार्बन ट्रेडिंग को आसान बनाने से जुड़ा पेरिस समझौते का अनुच्छेद 6.4 अपनाया गया। यह सम्मेलन के शुरुआत में ही सफलताओं को दिखाने की हालिया प्रवृत्ति की ओर इशारा करता है। पिछले साल दुबई में आयोजित कॉप-28 में, पहले दिन तालियों की गड़गड़ाहट के बीच नुकसान और क्षति (लॉस एंड डैमेज) फंड शुरू किया गया था।
कॉप-29 के अध्यक्ष मुख्तार बाबायेव ने अपने उद्घाटन भाषण में कार्बन बाजार की अहमियत पर रोशनी डाली। उनके मुताबिक यह “राष्ट्रीय स्तर पर तय योगदान (एनडीसी) को लागू करने की लागत को हर साल 250 अरब डॉलर तक कम कर सकता है।” उन्होंने अनुच्छेद 6.4 पर मसौदे से जुड़ा फैसला पेश किया था, जिसे स्वीकार कर लिया गया।
कॉप-29 के मुख्य वार्ताकार याल्चिन राफियेव ने कहा, “यह अनुच्छेद 6 पर बातचीत को पूरी करने की दिशा में अहम कदम है।” अनुच्छेद 6 को पेरिस समझौते में पेश किया गया था, लेकिन यह अभी तक अमल में नहीं आया है। यह तय करता है कि देश अंतरराष्ट्रीय सहयोग के जरिए अपने जलवायु लक्ष्यों को किस तरह किफायती तरीके से हासिल कर सकते हैं। इसके तीन मुख्य घटक हैं, जिनमें अनुच्छेद 6.4 सहित बाजार से जुड़े दो ढांचे हैं जो कार्बन ट्रेडिंग में मदद करते हैं।
हालांकि, शुरुआती पूर्ण अधिवेशन में अनुच्छेद 6.4 के मसौदे को जल्दबाजी में अपनाए जाने की आलोचना की गई है। पश्चिमी-मध्य प्रशांत महासागर में स्थित देश तुवालु ने चिंता जताई है कि शासी निकायों से बातचीत किए बिना लिया गया यह फैसला पेरिस समझौते की आमराय से चलने वाली प्रक्रिया के मुताबिक नहीं है।
अनुच्छेद 6 की प्रगति पर नजर रखने वाले जानकार भी इसे तुरंत अपनाए जाने को पारदर्शिता और अन्य मोर्चों पर समझौता मानते हैं।
कार्बन मार्केट वॉच (सीएमडब्ल्यू) में वैश्विक कार्बन बाजार की विशेषज्ञ ईसा मुल्डर ने कहा, “अनुच्छेद 6.4 पर पिछले दरवाजे से समझौते के साथ कॉप-29 की शुरुआती पारदर्शिता और उचित प्रशासन के लिए खराब मिसाल कायम करती है।” उन्होंने कहा कि सम्मेलन के पहले दिन पूर्ण अधिवेशन के दौरान बहुत ज्यादा संवेदनशील और विवादास्पद मुद्दों पर इन नियमों को अपनाने से देशों और पर्यवेक्षकों के लिए मुद्दों की जांच और बहस करने के लिए जरूरी समय कम हो जाता है, जिससे जलवायु परिवर्तन पर यूएनफसीसीसी की फैसला लेने की प्रक्रिया में भरोसा कम होता है।
नई दिल्ली स्थित थिंक टैंक सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (सीएसई) में जलवायु परिवर्तन के कार्यक्रम अधिकारी त्रिशांत देव ने कहा, “सुझाव इतने अहम थे कि सभी पक्षों की ओर से इस पर चर्चा की जानी चाहिए थी और कुछ ने तो पहले ही इस कदम पर नाराजगी जता दी है।”
पिछले दरवाजे से हासिल कामयाबी
अनुच्छेद 6.4 कार्बन क्रेडिटिंग के लिए केंद्रीकृत ढांचा है जिसमें संयुक्त राष्ट्र निकाय से जुड़े अनुच्छेद 6.4 पर्यवेक्षी निकाय को पूरी प्रक्रिया की देखरेख करनी होती है। यह तंत्र, जिसे पेरिस समझौते का क्रेडिटिंग तंत्र भी कहा जाता है, उत्सर्जन में कमी के अवसरों की पहचान करता है और उन्हें आगे बढ़ाता देता है, कार्यान्वयन के लिए धन जुटाता है और इन गतिविधियों के इर्द-गिर्द देशों और समूहों के बीच सहयोग को सुविधाजनक बनाता है। यह तंत्र विकासशील देशों के लिए जलवायु वित्त का स्रोत भी हो सकता है।
अनुच्छेद 6.4 के लिए 12 सदस्यों वाला पर्यवेक्षी निकाय अनुच्छेद 6 को लागू करने के लिए मानक या मानदंड तैयार कर रहा है। दो मानकों – एक कार्बन उत्सर्जन में कमी की गणना के लिए और दूसरा कार्बन को वातावरण से हटाने की गतिविधियों के लिए – को COP29 में पार्टियों/देशों से मंजूरी मिलने की उम्मीद थी।
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हालांकि, चीजें उस हिसाब से नहीं हुई जैसा सोचा गया था, क्योंकि पर्यवेक्षी निकाय ने पक्षों को दरकिनार कर दिया और कॉप-29 की शुरुआत से पहले मानकों को सीधे अपना लिया। आम सहमति नहीं होने से इस प्रक्रिया की आलोचना की जा रही है।
पेरिस समझौते के कार्यान्वयन और प्रगति की निगरानी के लिए स्थापित यूएनएफसीसीसी के तहत पेरिस समझौते के लिए पार्टियों की बैठक के रूप में काम करने वाले कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टीज ने 2021 में अनुच्छेद 6.4 पर्यवेक्षी निकाय से इन दो मानकों या दिशानिर्देशों पर सुझाव देने का अनुरोध किया था। ये इस ढांचे के तहत कार्बन क्रेडिटिंग को नियंत्रित करेंगे। पर्यवेक्षी निकाय ने सुझाव के दस्तावेज तैयार किए और उन्हें 2022 और 2023 में दो बार पार्टियों को भेजा, जिन्होंने हर बार इन सुझावों को खारिज कर दिया।
फिर अक्टूबर 2024 में, पर्यवेक्षी निकाय ने इन दस्तावेजों की स्थिति को बढ़ाकर “सुझावों” से “मानकों” में बदल दिया। मानकों को अपनाने के लिए पार्टियों को सुझावों को फिर से भेजने के बजाय, पर्यवेक्षी निकाय ने उन्हें सीधे अपना लिया, जिससे प्रक्रिया ही बदल गई। हालांकि दस्तावेजों को अभी भी पार्टियों के अनुमोदन की जरूरत है, लेकिन असल में, उन्हें कॉप-29 से पहले ही अपना लिया गया है।
पर्यावरण के लिए काम करने वाली वैश्विक गैर-लाभकारी संस्था नेचर कंजर्वेंसी (एनसी) की वरिष्ठ नीति सलाहकार बीट्रिज ग्रांजिएरा ने कॉप-29 की शुरुआत से पहले मोंगाबे इंडिया को बताया कि देशों को अभी भी पर्यवेक्षी निकाय के नजरिए का समर्थन करने या इसे अस्वीकार करने के लिए आम सहमति तक पहुंचने की जरूरत होगी।
मुल्डर ने पूछा, “अगर इन पाठों को इस तरह अपनाया जा सकता है, तो हम कहां लाइन खींचेंगे?” “क्या पर्यवेक्षी निकाय किसी भी तरह का नियम अपना सकता है, ऐसा तब हो सकता है जब इसके लिए देशों की ओर से स्पष्ट रूप से अनुमोदन की जरूरत होती है और फिर देशों को बिना किसी असल और समावेशी चर्चा के फैसलों पर मुहर लगानी पड़ती है?”
हालांकि, अनुच्छेद 6 नियम पुस्तिका को 2021 में ग्लासगो में जलवायु सम्मेलन में अपनाया गया था। इसमें पेरिस समझौते के तहत अंतर्राष्ट्रीय कार्बन बाजारों और सहयोग के ढांचों को लागू करने के लिए दिशा-निर्देश शामिल हैं। कार्बन बाजारों को चालू करने से पहले कई चीजों पर सहमति बनाने की जरूरत है। ग्रैनजिएरा ने कहा कि कम से कम छोटी अवधि में इस पर प्रगति नहीं होने ने अनुच्छेद 6.2 के कार्यान्वयन को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित नहीं किया है, जो अनुच्छेद 6 के ढांचों में से एक है। अनुच्छेद 6.2 देशों को द्विपक्षीय या बहुपक्षीय समझौतों के जरिए उत्सर्जन में कमी लाने या हटाने के लिए व्यापार करने की सुविधा देता है। ऐसे कई समझौतों पर हस्ताक्षर किए गए हैं और ज्यादा से ज्यादा देशों ने खरीदारों और विक्रेताओं के रूप में इसमें हिस्सा लेना शुरू कर दिया है।
हालांकि, उन्होंने कहा कि अनुच्छेद 6.2 की तुलना में, पार्टियों के बीच आम सहमति नहीं बन पाने का अनुच्छेद 6.4 पर कहीं ज्यादा प्रभाव पड़ा, जो इसलिए रुका हुआ है, क्योंकि अतिरिक्त फ्रेमवर्क को अभी तक मंजूरी नहीं मिली है।
मोंगाबे इंडिया से बात करने वाले जानकारों ने बताया कि अनुच्छेद 6.4 और खास तौर पर विचाराधीन दो मानकों को कॉप-29 के पहले दिन अपनाए जाने के साथ ही इसे लागू करने में आने वाली बड़ी बाधा दूर हो गई है।
हालांकि, कॉप-29 में हिस्सा लेने वाले पक्षों को अभी भी प्राधिकरण, पारदर्शिता, रिपोर्टिंग नियमों, अलग-अलग रजिस्ट्री के बीच परस्पर बातचीत और अन्य मुख्य मुद्दों पर सहमति बनाने की जरूरत है, ताकि यह पक्का किया जा सके कि अनुच्छेद 6.4 पूरी तरह से लागू हो।
समझौते के मुद्दों में इस बात पर आम सहमति होनी चाहिए कि क्या कार्बन क्रेडिट के हस्तांतरण के लिए प्राधिकरण को मेजबान देश द्वारा पहले हस्तांतरण के बाद या बाद में किसी भी समय इसमें बदलाव या इसे रद्द किया जा सकता है। विकासशील देश किसी भी समय अनुमोदन को रद्द करने के अधिकार को बनाए रखने की दलील दे रहे हैं, लेकिन अन्य वार्ताकारों ने कहा कि इससे बाजार में अनिश्चितता पैदा हो सकती है।
एक और मुद्दा जिस पर सहमति बनाई जानी है, वह यह है कि देशों को इलेक्ट्रॉनिक फॉर्मेट टेबल पर आमराय बनाने के लिए बातचीत पूरी करने की जरूरत है, जो सरकारों को अनुच्छेद 6 के जरिए लेनदेन पर रिपोर्ट करने के लिए मानकीकृत तरीका प्रदान करता है। रिपोर्टिंग के स्पष्ट नियम पारदर्शिता और जवाबदेही पक्की करेंगे।
देशों को इस बात पर भी सहमत होने की जरूरत है कि अलग-अलग मेजबान देश की रजिस्ट्रियां और संयुक्त राष्ट्र द्वारा प्रबंधित अंतर्राष्ट्रीय रजिस्ट्री किस तरह से मिलकर काम करेंगी। अंतर्राष्ट्रीय रजिस्ट्री उन देशों के लिए डिजाइन की गई थी जिनके पास अपनी खुद की रजिस्ट्री स्थापित करने की सीमित क्षमता थी।
सीएसई के देव ने कहा कि कॉप-29 में आगे का काम लंबित मुद्दों पर आमराय बनाना और अनुच्छेद 6.4 पर्यवेक्षी निकाय के लिए अतिरिक्त मार्गदर्शन प्रदान करना है। यह काम बिना जल्दबाजी में फैसला लेते हुए करना होगा, नहीं तो सुर्खियां बनाने से जरूरी दिशा-निर्देशों कमजोर हो सकते हैं।
यह खबर मोंगाबे इंडिया टीम द्वारा रिपोर्ट की गई थी और पहली बार हमारी अंग्रेजी वेबसाइट पर 15 नवंबर 2024 को प्रकाशित हुई थी।
बैनर तस्वीर: कार्बन बाजारों में पारदर्शिता को आगे बढ़ाने पर सत्र। तस्वीर फ्लिकर (CC BY-NC-SA 2.0) के जरिए UNclimatechange द्वारा ।