- मध्य प्रदेश के बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व से सटे इलाकों में एक के बाद एक 11 हाथियों (एक शावक सहित) की मौत हो चुकी है। इतने हाथियों की एक साथ मौत का यह देश में सबसे बड़ा मामला बन गया है।
- हाथियों की मौत पर शुरुआती जांच में उनके पेट में एक प्रकार का जहर पाया गया। कई प्रयोगशाला की रिपोर्ट से सामने आया कि यह जहर कोदो की फसल पर पनपे फंगस की वजह से हाथियों के भीतर गया।
- मध्य प्रदेश के आदिवासी बाहुल्य क्षेत्रों में मोटा अनाज (मिलेट्स) प्रमुख फसल है जिसमें कोदो, कुटकी आदि शामिल हैं। हाथियों को कोदो खाने से बचाने की कोशिश हो रही है और इलाके में कोदो की फसल को जल्दी काटा जा रहा है।
- मध्य प्रदेश में हाथी छत्तीसगढ़ के जंगलों से आए हैं और राज्य सरकार छत्तीसगढ़ के साथ मिलकर हाथियों के संरक्षण और इंसान और हाथी के बीच टकराव रोकने की कोशिश कर रही है।
मध्य प्रदेश के उमरिया जिले में स्थित बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व में 29 अक्टूबर की सुबह एक सूचना ने इलाके में हलचल मचा दी। सूचना थी कि खितौली और पतौर रेंज में 13 हाथियों का एक झुंड अजीब व्यवहार कर रहा है। ये हाथी बेहोशी की हालत में इधर-उधर पड़े हुए हैं। आनन-फानन में वन विभाग की टीम मौके पर पहुंची और इलाज का इंतजाम शुरू किया गया। हालांकि, कुछ ही घंटों में एक-एक कर के 10 हाथियों की मौत हो गई। इस घटना के एक सप्ताह बाद 8 नवंबर को पनपथा बफर के बीट खारीबड़ी टोला में हाथियों के समूह से भटका एक बच्चा मिला, जिसकी इलाज के दौरान 10 नवंबर को मौत हो गई। टाइगर स्टेट मध्य प्रदेश में बांधवगढ़ का जंगल बाघों के साथ बीते कुछ वर्षों से हाथियों की उपस्थिति के लिए भी जाना जाता है। यहां कुछ साल पहले छत्तीसगढ़ से कुछ जंगली हाथी आए और वापस नहीं गए।
हाथियों की इतनी बड़ी संख्या में मौत के बाद कई तरह की जांच हुई और अब लगभग यह स्पष्ट हो गया है कि मौत की वजह कोदो की फसल खाने से हुई। अपर प्रधान मुख्य वन संरक्षक वन्यजीव एल. कृष्णमूर्ति ने बताया कि केन्द्र एवं राज्य शासन की तीन प्रयोगशाला की रिपोर्ट के मुताबिक हाथियों की मृत्यु अत्यधिक मात्रा में फंगस लगी कोदो फसल खाने से हुई। 5 नवम्बर को केन्द्र सरकार के भारतीय पशु-चिकित्सा अनुसन्धान संस्थान (आयवीआरआई), बरेली, उत्तर प्रदेश की रिपोर्ट के अनुसार, मृत हाथियों के विसरा सैम्पल में साइक्लोपियाज़ोनिक एसिड पाया गया है। इससे यह पता चलता है कि हाथियों ने बड़ी मात्रा में कोदो की संक्रमित फसल खाई थी।
हाथी को कोदो से दूर रखने की कोशिश
आईवीआरआई की रिपोर्ट नाइट्रेट-नाइट्राइट, भारी धातुओं के साथ-साथ ऑर्गनों-फॉस्फेट ऑर्गनो-क्लोरीन, पाइरेथ्रोइड और कीटनाशकों के कार्बामेट समूह की उपस्थिति के लिये नकारात्मक पाई गई है। यह किसी भी रासायनिक जहर की अनुपस्थिति को दर्शाता है जिससे हाथियों को जहर देने या उनके कीटनाशक के सेवन की सम्भावना खत्म हो जाती है।
इन रिपोर्ट्स के मुताबिक मौत की वजह कोदो की फसल पर लगा फंगस ही है। कृष्णमूर्ति ने बताया कि आईवीआरआई ने अपनी रिपोर्ट में आसपास के क्षेत्रों में ध्यान रखने के लिए एडवाइजरी भी जारी की है, जिसमें ग्रामीणों में जागरूकता, खराब फसल वाले खेतों में मवेशियों को न चराने जैसे बिन्दु दिये गये हैं, जिसे प्रबंधन द्वारा पालन कराया जायेगा।
बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व के उप-संचालक पीके वर्मा ने मोंगाबे हिन्दी से बातचीत में बताया कि अब पूरी कोशिश हाथी की मॉनिटरिंग और उन्हें कोदो की फसल से दूर रखने की है। “हमने सबसे पहले इलाके में कोदो की फसल की मैपिंग की। सभी रेंज को मिलाकर लगभग 3,500 एकड़ में यह फसल लगी हुई थी। यह फसल तैयार हो चुकी है इसलिए किसानों से बात कर फसलों को काटने का अनुरोध किया गया। अब तक 99 प्रतिशत फसल कट गई है। जिन फसलों को काटा नहीं जा सका है वहां हाथियों को पहुंचने से रोकने की कोशिश हो रही है,” उन्होंने बताया।
पोषण से भरा कोदो कैसे बन गया घातक
आदिवासी बाहुल्य राज्य मध्य प्रदेश के लिए कोदो खरीफ की एक प्रमुख फसल रहा है। यह मिलेट यानी मोटे अनाज की श्रेणी का एक प्रमुख अनाज है जिसमें ज्वार, बाजरा, कुटकी, सामा आदि शामिल हैं। इसमें प्रोटीन, फाइबर, कैल्शियम, आयरन, मैग्नीशियम, पोटेशियम, ज़िंक, विटामिन बी3, विटामिन बी5, विटामिन बी1, विटामिन बी2, और फ़ोलेट जैसे तत्व होते हैं। मध्य प्रदेश में मिलेट मिशन के तहत मोटे अनाजों को बढ़ावा दिया जा रहा है, जिससे इसके रकबे में लगातार वृद्धि हो रही है। राज्य कृषि विभाग के अनुसार, वर्ष 2020-21 में जहाँ इसका रकबा 67 हजार हेक्टेयर था, वह वर्ष 2023-24 में बढ़कर 1.35 लाख हेक्टेयर रिकॉर्ड किया गया है।
प्रदेश में मिलेट फसलें जैसे कोदो-कुटकी, ज्वार-बाजरा, रागी आदि किसानों द्वारा उगाई जाती हैं। इनमें कोदो-कुटकी की खेती मुख्य रूप से अनुसूचित जनजाति बहुल क्षेत्रों जैसे मंडला, डिंडोरी, शहडोल, अनूपपुर, उमरिया, छिंदवाड़ा आदि जिलों में की जाती है।
वन विभाग के अधिकारी मानते हैं कि अधिक मात्रा में फंगस लगे कोदो की उपलब्धता की वजह से विषाक्तता बढ़ गई। “कोदो इस इलाके में उगाया जाता रहा है लेकिन मात्रा कम होती थी। इस बार जिन खेतों में हाथियों ने कोदो खाया वह 12 एकड़ में फैला हुआ था और चार-पांच किसानों ने मिलकर कोदो लगाया था। एक साथ इतनी मात्रा में फंगस वाली कोदो हाथियों के लिए नुकसानदायक हो गई,” वर्मा कहते हैं।
कोदो में नहीं होता कोई जहर
बांधवगढ़ में हाथियों की मृत्यु के बाद कोदो की फसल को संदेह की नजर से देखा जा रहा है, लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि कोदो में कोई विषाक्तता नहीं होती। हाथियों की मौत का कारण कोदो की फसल पर पनपा फंगस है ना कि कोदो की फसल।
कोदो के विषाक्त होने को लेकर कम वैज्ञानिक शोध मौजूद हैं। भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मिलेट रिसर्च से जुड़े प्रधान वैज्ञानिक हरिप्रसन्ना के. ने मोंगाबे हिन्दी को बताया कि कोदो मिलेट के भीतर किसी तरह की विषाक्तता नहीं होती लेकिन एक फंगस उसकी फसल पर पनपता है। “यह फंगस तब पनपता है जब फसल को समय से काटा न जाए और उस पर नमी जम जाए। फसल को सही समय पर काटकर उसे तुरंत न सुखाया जाए तो यह खतरा रहता है। इस फंगल इंफेक्शन की वजह से माइकोटॉक्सिन पैदा होता है,” वह कहते हैं।
नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन में प्रकाशित एक शोध के मुताबिक इस पहलू पर सीमित शोध अध्ययनों ने निष्कर्ष निकाला है कि यह विषाक्तता माइकोटॉक्सिन के निर्माण से होती है जो कि फंगस की वजह से बनते हैं। अब तक किसी भी अध्ययन ने यह नहीं दिखाया है कि कोदो मिलेट के अंदर कोई विषाक्तता होती है।
आखिर क्या है समाधान
वन विभाग तात्कालिक समाधान के तौर पर कोदो किसानों को समय से फसल काटने की सलाह दे रहा है। “कुछ किसान ऐसे हैं जिनके पास समय से फसल काटने की गुंजाइश नहीं थी। हमने उनको सहयोग देकर फसल कटवाई। कुछ किसान खेत से फसल हटा नहीं पा रहे थे तो उन्हें ट्रेक्टर की व्यवस्था करके दी गई,” वर्मा कहते हैं। हालांकि, वर्मा लंबे वक्त के लिए समाधान एक नीतिगत निर्णय मानते हैं। वह कहते हैं कि राज्य और केंद्र सरकार इस मामले से अवगत हैं और अगले साल कोदो की फसल को लेकर क्या योजना बनेगी उस पर विचार कर रहे हैं।
वाइल्डलाइफ कंजर्वेशन ट्रस्ट के अध्यक्ष अनिश अंधेरिया ने मोंगाबे हिन्दी से इस समस्या के समाधानों को लेकर बातचीत की। उन्होंने बताया कि किसानों को पिछले वर्ष की उपज के आधार पर संभावित पैदावार की गणना करने के बाद बाजार दर के आधार पर नकद मुआवजा दिया जाना चाहिए और बांधवगढ़ के आसपास कोदो मिलेट की फसल को काट दिया जाना चाहिए ताकि फिर कोई दुर्घटना न हो।
लंबे समय के समाधान पर उन्होंने बताया, “दीर्घकालिक समाधान तभी मिल सकते हैं जब स्थानीय समुदायों और वन्यजीवों, दोनों के हितों को वह महत्व दिया जाए जिसके वे हकदार हैं। मैं कोदो फसल के खेतों के चारों ओर बिजली की बाड़ लगाने का सुझाव नहीं दे रहा क्योंकि यह स्थायी समाधान नहीं है। हाथी इतने बुद्धिमान होते हैं कि वे ऐसी बाड़ों को तोड़ सकते हैं। इसके अलावा, ग्रामीण इन बाड़ों की देखभाल ठीक से नहीं कर पाते।”
समाधान को लेकर हरिप्रसन्ना का मानना है कि कोदो अनाज की कटाई के बाद उचित प्रबंधन से माइकोटॉक्सिन के विकास को रोका जा सकता है। “अगर फसल को सही समय पर काटा जाए और तुरंत सुखाकर ठीक से संग्रहीत किया जाए तो माइकोटॉक्सिन का विकास नहीं होता है,” उन्होंने बताया।
वह कहते हैं, “अभी तक मेरी जानकारी में इंसानों में इसका जानलेवा नुकसान नहीं देखा गया है। लेकिन कोदो विषाक्तता के हल्के लक्षण पहले भी रिपोर्ट किए गए हैं।”
मध्य प्रदेश में बढ़ता हाथी-मानव संघर्ष, निगरानी में समाधान
बाघों की संख्या के मामले में देश में अव्वल मध्य प्रदेश के जंगलों में हाथी न के बराबर पाए जाते हैं। साल 2019 में जारी सरकारी आंकड़ों के मुताबिक मध्य प्रदेश में सात हाथी थे। हालांकि, खाने की तलाश में हाथी छत्तीसगढ़ के जंगलों से मध्य प्रदेश के जंगलों का रुख करते हैं और फिर वापस चले जाते रहे हैं। लेकिन बीते कुछ वर्षों में मध्य प्रदेश में छत्तीसगढ़ से आए हाथी रहने लगे और इस वक्त यहां 100 हाथी होने का अनुमान है। मध्य प्रदेश के पास हाथियों को संभालने का कोई अनुभव नहीं है। मध्य प्रदेश में इंसानों और हाथियों के बीच टकराव में पहली बार 2018 में दो लोगों की मौत हुई थी। इसके बाद 2020 में चार लोगों की जान गईं। साल 2021 में टकराव में छः लोगों की मौत हो गई थी।
विशेषज्ञ बताते हैं कि हाथियों की निगरानी उनके प्रबंधन के लिए जरूरी है। “हाथियों का समूह अब बड़ा हो रहा है इसलिए ये अब बंटकर अलग-अलग इलाकों में जा रहे हैं। हाथी खाने के लिए गांवों में आते हैं जिससे टकराव की स्थिति पैदा होती है। इसलिए उनकी निगरानी जरूरी है।” यह कहना है उमरिया के स्थानीय वन्यजीव विशेषज्ञ पुष्पेंद्र द्विवेदी का। वे बीते कई वर्षों से बांधवगढ़ के इलाके में स्थानीय लोगों के साथ काम कर रहे हैं और प्रकृति फाउंडेशन के संस्थापक हैं।
“ग्रामीणों को ट्रेनिंग देनी होगी कि वे हाथियों की सूचना एक तय मापदंड पर दे सकें, जैसे उनका रास्ता, उनका भोजन और झुंड की संख्या आदि। इससे हाथी के रूट की जानकारी मिल पाएगी और टकराव रोकने में मदद मिलेगी।” द्विवेदी ने बताया।
अंधेरिया भी निगरानी को महत्वपूर्ण मानते हैं। वह कहते हैं, “हाथियों के झुंडों की पारिस्थितिकी और आवाजाही पर नजर रखने तथा लोगों और हाथियों के बीच टकराव कम करने के लिए वन कर्मचारियों में क्षमता निर्माण करना होगा। ग्रामीणों को जंगली हाथियों के आसपास लोगों को इकट्ठा होने से रोकने तथा उनके गांवों में और उसके आसपास हाथियों की आवाजाही के बारे में वन विभाग को तुरंत सूचित करने के लिए प्रशिक्षित करना होगा।” “हाथियों से संबंधित मुद्दों को समन्वित तरीके से हल करने के लिए पड़ोसी राज्य छत्तीसगढ़ के साथ काम करना होगा। आखिरकार, जंगली हाथी वहीं से मध्य प्रदेश में आ गए हैं,” उन्होंने आगे कहा।
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मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव ने अपने बयान में बताया कि हाथियों के संरक्षण के लिए कर्नाटका, केरला और असम जैसे राज्यों की बेस्ट प्रेक्टिसेस को शामिल किया जाएगा। इन राज्यों में मध्य प्रदेश के अधिकारियों को भेजा जाएगा, जिससे सह अस्तित्व की भावना के आधार पर हाथियों के साथ बफर एरिया, कोर एरिया में बाकी का जन जीवन प्रभावित न हो, इसका अध्ययन किया जाएगा। यादव ने कहा कि वन क्षेत्र में जो अकेले हाथी घूमते हैं और अपने दल से अलग हो जाते हैं, उनकी रेडियो ट्रेकिंग का निर्णय लिया गया है
मुख्यमंत्री यादव ने बताया कि जंगली जानवरों द्वारा जनहानि पर सहायता राशि को 8 लाख से बढ़ाकर 25 लाख रुपए किया गया है। हाथियों के दलों के आवागमन संबंधी पूर्व सूचना के आदान-प्रदान, आवश्यक सतर्कता और सावधानियां बरतने तथा उनके प्रबंधन के संबंध में छत्तीसगढ़ सरकार से बातचीत की गई है। वह कहते हैं कि उमरिया और बांधवगढ़ के वन क्षेत्र में लगभग 100 से अधिक हाथी स्थाई रूप से बस गए हैं। उनके प्रबंधन के लिए हाथी मित्र योजना लागू करने, टास्क फोर्स बनाए जाएंगे।
बैनर तस्वीरः वन विभाग को हाथियों के बीमार होने की सूचना मिलने के बाद कई चिकित्सकों की टीम मौके पर पहुंची। देर रात तक हाथियों को बचाने की कोशिश हुई लेकिन उन्हें नहीं बचाया जा सका। तस्वीर साभार- पुष्पेंद्र द्विवेदी