- कर्नाटका के कोडगु में एक नए अध्ययन में अलग-अलग खुली जगहों वाले तीन आवासों में सिवेट के मल-स्थलों की जांच की गई और इस आम धारणा को चुनौती दी कि सिवेट खुले में मल करना पसंद करते हैं।
- सिवेट के पसंदीदा फलों के पकने के समय में किए गए इस अध्ययन में पाया गया कि जहां पेड़ों की छाया ज्यादा थी, वहां सिवेट के मल के ढेर भी ज्यादा थे। समतल जमीन की तुलना में जमीन से ऊपर किसी ऊंची जगह पर मल के ज्यादा ढेर मिले।
- बीज फैलाने वाले एजेंट के रूप में सिवेट की दक्षता के बारे में संदेह के बावजूद, शोधकर्ता इस बात पर सहमत हैं कि उन उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में पौधों के प्रसार में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका है, जहां अन्य जीव (जो बीज फैलाने में मदद करते हैं) कम हो रहे हैं।
विज्ञान को लंबे समय से सिवेट और उनके मल में रुचि रही है, क्योंकि वे प्राकृतिक दुनिया में सबसे कुशल बीज वितरकों में से एक माने जाते हैं। उनके मल के माध्यम से जंगल पनपने में मदद मिलती है। कर्नाटका के कोडगु में हुए एक नए अध्ययन में तीन अलग-अलग आवासों – कॉफी के बागान, संरक्षित वन और घर के बगीचे – में सिवेट के मल-स्थलों की जांच की गई और सिवेट के खुले में मल त्याग करने की आम धारणा को चुनौती दी गई।
अध्ययन हमेशा से पाम सिवेट (पैराडॉक्सुरस हेर्मैफ्रोडिटस) की बीजों को फैलाने की क्षमता का प्रमाण देते आए हैं। म्यांमार के एक पुराने अध्ययन में पाया गया था कि यह प्रजाति साल भर में दो महीने की अवधि के दौरान आठ से इक्कीस प्रकार के फल खा सकती है। जबकि नए अध्ययन में 105 मल के नमूनों में 4,234 बीज पाए गए हैं।
इन आंकड़ों को देखते हुए हम कह सकते हैं कि सिवेट सबसे पहले “वेस्ट टू वेल्थ” यानी वेस्ट को वेल्थ में बदलने वाले जीव हैं। बीजों से भरा उनका मल देखने में एक ‘नुट्रिशन बार’ जैसा लगता हैं, जिसका वो प्राकृतिक वनस्पतियों को समृद्ध करने के लिए इस्तेमाल करते हैं। सिवेट के मल से निकाले गए कॉफी बीन्स से बनाई जाने वाली ‘कोपी लुवाक’ कॉफी का नाम तो आपने सुना ही होगा। सिवेट चाहे तो मनुष्यों पर मुकदमा कर सकते हैं क्योंकि वे बिना उनकी अनुमति के उनके “अनोखे उत्पाद” (मल) का उपयोग करके मुनाफा कमा रहे हैं!
यह नया अध्ययन पाम सिवेट के तीन अलग-अलग आवासों में, उनके दो पसंदीदा फलों – कॉफी चेरी और बास्टर्ड सागो पाम – के पकने के समय किया गया था। संरक्षित वन घने और बंद जगहें हैं, तो वहीं कॉफी के बागान थोड़े खुले आवास हैं। लेकिन घर के बगीचे उनके सबसे ज्यादा खुले आवास हैं। इन जगहों से कुल 105 मल के नमूने जमा किए गए – 55 कॉफी बागानों से, 45 संरक्षित वनों से और पांच घर के बगीचों से।
खुले में मल नहीं त्यागते
शोधकर्ताओं ने पाया कि पेड़ों की केनोपी (पेडों की घनी छाया) के बढ़ने के साथ-साथ मल के ढेरों की संख्या भी बढ़ती चली गई। जमीन की तुलना में जमीन से ऊपर की जगहों पर अधिक मल के नमूने मिले। लेख में बताया गया है कि ये निष्कर्ष इस आम धारणा के विपरीत हैं कि सिवेट खुली जगहों में मल त्यागना पसंद करते हैं। शोधकर्ताओं के मुताबिक, चूंकि सिवेट जमीन से ऊपर मल करते हैं, इसलिए हमें बीज प्रसार में उनकी भूमिका पर नए सिरे से विचार करने की जरूरत है।
मांसाहारी गण के जीव होते हुए भी, सिवेट मुख्य रूप से फल खाते हैं और उन पौधों के लिए बेहद महत्वपूर्ण हैं जो बीज प्रसार के लिए जानवरों पर निर्भर हैं। लेकिन सिर्फ बीजों को फैलाना ही काफी नहीं है। बीजों को ऐसे वातावरण में गिराना जरूरी है, जहां उन्हें सूक्ष्म जलवायु मिले, जहां पर्याप्त नमी, धूप और पोषक तत्व हों। साथ ही जहां बीज खाने वाले या शाकाहारी जीव कम हों। पेपर कहता है कि सिवेट की मल त्यागने की आदतों का अध्ययन करके, हम यह समझ सकते हैं कि वे कितने अच्छे बीज प्रसारक हैं और यह भी अनुमान लगा सकते हैं कि इन जानवरों द्वारा फैलाए गए बीजों का भविष्य क्या होगा।
केरला सेंट्रल यूनिवर्सिटी के सहायक प्रोफेसर और अध्ययन के प्रमुख लेखक पलट्टी अल्लेश सिनु बताते हैं, “मल त्यागने का व्यवहार हमें बताता है कि जानवर बीजों को कहां ले जाते हैं। हालांकि, वे फल खाते हैं, लेकिन उनका शौच करने का व्यवहार दूसरे मांसाहारियों जैसा ही है। वे मल त्यागने के लिए खुली जगहों को पसंद करते हैं और अक्सर एक खास जगह पर ही जाते हैं।”
पहले के अध्ययनों में माना गया था कि पाम सिवेट मल त्यागने के लिए खुली (बिना छाया वाली) जगहों को चुनते हैं। वह कहते हैं कि अगर यह सच होता, तो ऐसे पौधे जो छाया में नहीं उग सकते (या पायनियर प्लांट्स), उन्हें सिवेट से ज्यादा फायदा होता। हालांकि, अध्ययन में देखा गया कि सिवेट वास्तव में बीजों को छायादार क्षेत्रों में ले जा रहे थे, जो पिछले अध्ययन पर आधारित इस आम धारणा के विपरीत है कि वे खुली जगहों पर मल त्यागते हैं। यह खोज छाया सहन करने में सक्षम चरम प्रजाति के पौधों के फैलाव एजेंट के रूप में उनके महत्व पर भी प्रकाश डालती है। सिनु कहते हैं, “सिवेट के मल की संख्या घर के बगीचों (जो अपेक्षाकृत खुले आवास हैं) की तुलना में संरक्षित वनों (जो पेड़ों से ढके जंगल हैं) में अधिक थी।
पेड़ों के तनों पर रात में पार्टी
एक और खोज, जो पाम सिवेट पर पहले के अध्ययनों के अनुरूप है, वह है जमीन से थोड़ा ऊपर उठी हुई सतहों पर मल त्यागने की उनकी प्राथमिकता। सिनु कहते हैं, “यह बीजों के लिए एक और चुनौती पेश करता है, जब तक कि उन्हें दूसरे बीज प्रसार एजेंट यानी गोबर वाले बीटल नीचे न धकेल दे।” साल 2015 में चक्रवर्ती और रत्नम के एक पूर्व अध्ययन में पाया गया था कि अधिकांश बीज टूटे तनों और पेड़ों की घनी शाखाओं पर फैले हुए थे।
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बेंगलुरु के नेशनल सेंटर फॉर बायोलॉजिकल साइंसेज (NCBS) में वाइल्ड लाइफ बायोलॉजी एंड कंजर्वेशन की निदेशक जयश्री रत्नम 2015 में किए गए अध्ययन में शामिल थीं। उन्होंने कहा, “ऊंची सतहों पर सिवेट द्वारा फैलाए गए बीजों का भविष्य बहुत ही अनिश्चित (अस्थिर) होता है।” उन्होंने उष्णकटिबंधीय वर्षावन में किए गए अपने अध्ययन में लकड़ी के तनों पर मल देखा था। ये तने समय के साथ सड़ते-गलते जाते हैं और पोषक व अन्य आवश्यक तत्व छोड़ते हैं जो उनमें मौजूद बीजों के अंकुरण में मदद करते हैं। वह आगे कहती है, “तो, लॉग (पेड़ों के तने) बीज के अंकुरित होने के लिए एक बुरी जगह नहीं हो सकती हैं। लेकिन यह काफी परिवर्तनशील है। हो सकता है कि एक लॉग बहुत धूप वाली या बहुत शुष्क जगह पर हो। इसलिए, निष्कर्ष यह है कि ऐसे बीजों का भविष्य काफी अनिश्चित होता है।”
शोधकर्ता इस बात से भी सहमत हैं कि घर के बगीचे सिवेट के मल के माध्यम से बीज अंकुरण के लिए आदर्श वातावरण नहीं हो सकते हैं। शोधकर्ताओं के अनुसार, हाल के अध्ययन में घर के बगीचों से बहुत कम मल एकत्र किए गए थे, जिनमें से अधिकांश जमीन से दूर पाए गए, इससे उनके अंकुरण की क्षमता काफी कम हो गई थी।
सिनू बताते हैं, “हमें जंगलों और कॉफी के बागानों में सिवेट के मल की लगभग बराबर संख्या मिली। मुझे समझ नहीं आ रहा कि घर के बगीचों में ये संख्या कम क्यों थी। हालांकि हमने अध्ययन को कई बार दोहराया, फिर भी हो सकता है कि सर्वेक्षण के दौरान हम उनके आने-जाने के रास्तों को नोटिस न कर पाए हों। सिवेट के शिकार होने की संभावना से भी इनकार नहीं किया जा सकता है।”
सिनू कहते हैं कि अध्ययन के निष्कर्षों के बावजूद, शोधकर्ता इस बात पर कायम हैं कि उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में सिवेट बीजों को फैलाने वाले महत्वपूर्ण जीव बने हुए हैं। इन क्षेत्रों में जलवायु परिवर्तन या मानवीय दबाव के कारण बड़े कशेरुकी जीवों की संख्या लगातार घट रही है या वे अपने आवासों से विस्थापित हो रहे हैं। सिवेट की रात में सक्रिय रहने की आदत उन्हें दिन में फल खाने वाले जीवों से प्रतिस्पर्धा से बचाती है और चमगादड़ों की तरह, वे इंसानों के आसपास होने से कम डरते हैं, जिससे बीजों का फैलाव आसान हो जाता है। रत्नम भी इस बात से सहमत हैं। वह सिवेट को दुर्लभ और महत्वपूर्ण प्रजाति बताती हैं। वे दृढ़ता से कहती हैं, “दुनिया भर में, बीजों को फैलाने वाले कई प्रमुख जीव विलुप्त होते जा रहे हैं। ऐसे समय में, सिवेट चुपचाप एक महत्वपूर्ण पारिस्थितिक कार्य कर रहे हैं।”
यह खबर मोंगाबे-इंडिया टीम द्वारा रिपोर्ट की गई थी और पहली बार हमारी अंग्रेजी वेबसाइट पर 25 जून 2024 को प्रकाशित हुई थी।
बैनर तस्वीर: थाईलैंड में एक एशियाई पाम सिवेट। एक नए अध्ययन ने इस प्रचलित धारणा को तोड़ दिया है कि सिवेट खुले में मल करना पसंद करते हैं। तस्वीर- फ्रांस से बर्नार्ड ड्यूपॉंट, विकिमीडिया कॉमन्स (CC BY-SA 2.0)