- असम के धेमाजी जिले में, मई के महीने में ऊदबिलाव की चार खालें जब्त की गईं। इससे पता चलता है कि पूर्वोत्तर में ऊदबिलाव, खासतौर पर उनके फर का व्यापार बड़े पैमाने पर हो रहा है।
- हालांकि संरक्षित क्षेत्रों में ऊदबिलाव आमतौर पर सुरक्षित हैं, लेकिन संरक्षित क्षेत्रों के बाहर की आबादी पर अवैध व्यापार का साया मंडराता रहा है।
- दुनिया भर में पाई जाने वाली 13 ऊदबिलाव प्रजातियों में से तीन भारत में पाई जाती हैं- यूरेशियन ऑटर, स्मूद-कोटेड ऑटर और स्मॉल क्लॉड ऑटर।
इस साल 23 मई को, वन्यजीव अपराध नियंत्रण ब्यूरो (WCCB) के अधिकारियों और धेमाजी वन विभाग ने असम के धेमाजी जिले के जोनाई में एक व्यक्ति से ऊदबिलाव की चार खालें जब्त की थीं। हालांकि ऊदबिलाव के अंगों की जब्ती बहुत आम नहीं है, लेकिन इस हालिया घटना ने इस तथ्य को उजागर किया है कि पूर्वोत्तर भारत में ऊदबिलाव की खाल और शरीर के अन्य अंगों के लिए तस्करी और अवैध शिकार हो रहा है।
ऑटर यानी ऊदबिलाव मांसाहारी स्तनधारी हैं जो नेवले, सियार, मिंक आदि मस्टेलिडे परिवार से संबंधित हैं। ये देशभर की नदी पारिस्थितिकी प्रणालियों में पाए जाने वाले बड़े शिकारियों में से एक हैं। दुनिया में पाई जाने वाली 13 ऊदबिलाव प्रजातियों में से तीन भारत में पाई जाती हैं – यूरेशियन ऑटर, स्मूद-कोटेड (चिकनी खाल वाले) ऑटर और स्मॉस क्लॉड (छोटे पंजों वाले) ऑटर।
असम में मारे गए छापे के बारे में बात करते हुए, धेमाजी वन विभाग के वन अधिकारी दिबाकर महंत ने मोंगाबे इंडिया को बताया, “हमें अरुणाचल प्रदेश के पूर्वी सियांग जिले के एक व्यक्ति के बारे में सूचना मिली थी, जो कुछ ऊदबिलाव की खालें लेकर जा रहा था। उसी सूचना के आधार पर, हमने उसे धेमाजी के एक उपखंड, जोनई के नेपालीबस्ती इलाके से पकड़ लिया। उसने कहा कि वह सिर्फ एक वाहक है और उसका काम इन खालों को गोगामुख में किसी दूसरे व्यक्ति तक पहुंचाना था। उसे आगे के रास्ते के बारे में पता नहीं था।”
अंतरराष्ट्रीय मांग की वजह से बढ़ता अवैध व्यापार
अधिकारियों के मुताबिक, उन्हें लगता है कि जब्त की गई खालें कम से कम एक साल पुरानी हैं। छापे में शामिल WCCB के एक अधिकारी ने नाम न बताने की शर्त पर मोंगाबे इंडिया से कहा, “खाल की जांच करते समय, हमें एहसास हुआ कि यह एक साल पुरानी हैं। ये ताजा शिकार नहीं थे। त्वचा की बनावट बहुत सख्त लग रही थी। त्वचा की सही उम्र का पता लगाने के लिए फोरेंसिक जांच की जरूरत है।”
अधिकारी ने यह भी कहा कि ऊदबिलाव को जाल या भाले जैसे हथियारों का इस्तेमाल करके मारा जाता है। उन्होंने कहा, “आमतौर पर ऊदबिलाव को मारने के लिए बंदूक का इस्तेमाल नहीं किया जाता है क्योंकि गोली लगने से उनकी स्किन खराब हो जाएगी और उन्हें इसकी कम मिलेगी। तस्करों के बीच ऊदबिलाव की स्किन की भारी मांग है।”
अधिकारी के मुताबिक, फैशन उद्योग में ऊदबिलाव की खाल की काफी मांग है, वहीं इसके बालों का इस्तेमाल पेंट ब्रश बनाने में भी किया जाता है।
प्रसिद्ध पर्यावरणविद् अनवरुद्दीन चौधरी ने कहा, “तिब्बत कभी ऊदबिलाव की खाल का मुख्य बाजार था। इनका इस्तेमाल रेनकोट बनाने में किया जाता रहा है। दरअसल, तिब्बत में ऊदबिलाव समेत जंगली जानवरों की तस्करी इतनी बढ़ गई कि खुद दलाई लामा को तिब्बती लोगों से फैशन के लिए ऊदबिलाव और दूसरे जानवरों की खाल का इस्तेमाल बंद करने की अपील करनी पड़ी। इससे जरूरी जागरूकता पैदा हुई और तब से तिब्बत में जंगली जानवरों के अंगों की तस्करी में काफी कमी आई है। हालांकि, हाल ही में हुई बरामदगी से पता चलता है कि ऊदबिलाव की तस्करी अभी भी हो रही है। ऊदबिलाव की खाल की तस्करी का एक फायदा यह है कि इसे सुखाया जा सकता है, मोड़ा जा सकता है और जेब में आसानी से रखा जा सकता है। इसलिए पकड़े जाने की संभावना काफी हद तक कम हो जाती है।”
डब्ल्यूडब्ल्यूएफ इंडिया की एक रिपोर्ट में विस्तार से बताया गया है कि कैसे व्यापारी ऊदबिलाव के फर को अपने कारोबार का ‘हीरा’ मानते हैं, क्योंकि यह घनी और लंबे समय तक चलने वाली होती है। इसमें तिब्बत में इसकी मांग का भी जिक्र किया गया है। रिपोर्ट कहती है, “तिब्बत में ऊदबिलाव की खाल का इस्तेमाल पारंपरिक पोशाक ‘चुबा’ में किया जाता है और त्योहारों व खेलों के दौरान पहने जाने वाले सिर के आभूषणों (हेड गियर्स) को इससे सजाया जाता है।”
पश्चिम बंगाल और बांग्लादेश के कुछ स्थानों पर मछुआरे मछली पकड़ने के लिए जीवित ऊदबिलाव का इस्तेमाल करते हैं। चौधरी कहते हैं, “जैसे चीन और जापान में मछुआरे मछलियां पकड़ने के लिए कॉर्मोरेंट पक्षियों का इस्तेमाल करते हैं, बंगाल में ऐसे ही ऊदबिलाव का इस्तेमाल किया जाता है। ऊदबिलाव से मछलियों को जाल की ओर आकर्षित किया जाता है।”
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इस बारे में पूछे जाने पर, WCCB के अधिकारी ने नाम न बताने की शर्त पर कहा, “हम इस पर नजर रख रहे हैं। हालांकि यह निश्चित रूप से वन्यजीव कानून का उल्लंघन है, लेकिन यह कोई बड़ा अपराध नहीं है। जब तक कोई ऊदबिलाव नहीं मारा जाता, तब तक हम इस मामले में कोई गंभीर कार्रवाई नहीं कर सकते हैं।”
संरक्षण के कम प्रयास
इंटेरनेशनल यूनियन फॉर कंज़र्वेशन ऑफ़ नेचर (IUCN) की रेड लिस्ट में, यूरेशियन ऑटर को ‘निकट संकटग्रस्त’ प्रजाति का दर्जा प्राप्त है, जबकि स्मॉल-क्लॉड ऑटर और स्मूद-कोटेड ऑटर ‘संवेदनशील’ लिस्ट में आते हैं। हालांकि काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान (KNP) और मानस राष्ट्रीय उद्यान (MNP) जैसे संरक्षित वनों में ऊदबिलावों को अच्छी सुरक्षा मिलती है, लेकिन संरक्षित क्षेत्रों से बाहर उनकी हालत खराब है।
केएनपी के पूर्व मंडलीय वन अधिकारी (DFO) रमेश गोगोई ने कहा, “यहां ऊदबिलावों का वास्तव में शिकार नहीं होता है। केएनपी में ऊदबिलावों की अच्छी आबादी है। ज्यादातर आर्द्रभूमियों में ऊदबिलावों का झुंड मिल जाएगा।” इस वर्ष के शुरू में पहली बार केएनपी में ऊदबिलावों की मौजूदगी का फोटोग्राफिक प्रमाण प्राप्त हुआ था। पहले, उद्यान में केवल यूरेशियन और स्मूद-कोटेड ऑटर ही आमतौर पर देखे जाते थे।
यह स्वीकार करते हुए कि ऊदबिलावों को आवश्यक संरक्षण नहीं दिया जाता है, उन्होंने कहा, “हमारी वन्यजीव प्रबंधन प्रणाली ऐसी है कि गैंडे, बाघ और हाथी जैसी प्रमुख प्रजातियों पर तो खूब ध्यान दिया जाता है। लेकिन ऊदबिलाव जैसी प्रजातियों की उपेक्षा की जाती है।”
चौधरी का कहना है कि एक समय था जब एमएनपी में ऊदबिलावों का शिकार बड़े पैमाने पर होता था। वह बताते हैं, “90 के दशक में, एमएनपी में ऊदबिलावों की आबादी वास्तव में कम हो गई थी। मुश्किल से ही कोई ऊदबिलाव नजर आता था। लेकिन अब पिछले कई सालों से, उनकी संख्या में वृद्धि हुई है और अधिकांश जल निकायों में ऊदबिलावों को देखा जा सकता है।”
प्रसिद्ध वन्यजीव कार्यकर्ता मुबीना अख्तर ने ऊदबिलावों से जुड़ी कहानियों के बारे बताया। उन्होंने कहा, “90 के दशक की शुरुआत में, मैं गोलाघाट क्षेत्र में वन्यजीवों के बारे में जागरूकता फैला रही थी। बेहोरा चाय बागान में, कुछ लोग साप्ताहिक हाट (बाजार) में जंगली जानवरों से बनीं वस्तुएं बेचने के लिए आए थे। वहां, तेंदुए, नेवले और ऊदबिलाव के अंग बेचे जा रहे थे। लोगों को ऊदबिलाव के पंजे को खरीदने में दिलचस्पी थी क्योंकि उनका मानना था कि अगर खाना खाते समय किसी व्यक्ति के गले में मछली का कांटा फंस जाए, तो उस व्यक्ति के सिर के पीछे ऊदबिलाव के पंजे से थपकी देने से कांटा निकल जाएगा।” अख्तर तीन दशकों से कार्यकर्ता और पत्रकार रही हैं और मानव-हाथी संघर्ष और तेंदुए के संरक्षण के लिए सामुदायिक परियोजना में अपने काम के लिए जानी जाती हैं।
उन्होंने बताया कि जैसे-जैसे जागरूकता बढ़ी, यह प्रथा कम होती गई। उन्होंने बेहोरा बाजार में वन्यजीव वस्तुओं के व्यापार के बारे में कभी नहीं सुना। हालांकि, ऊदबिलाव का व्यापार अभी भी जारी है।
WWF ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि बाघ और तेंदुए की खाल के लिए छापों के दौरान अक्सर ऊदबिलाव की खालें बड़ी मात्रा में जब्त की जाती हैं। रिपोर्ट चेतावनी देते हुए कहती है, “ऊदबिलावों की संख्या में बदलाव और उनकी स्थिति के बारे में समय के साथ जानकारी इकट्ठा करने का कोई प्रयास नहीं किया जा रहा है। अगर ऊदबिलावों की आबादी पर ध्यान से नजर नहीं रखी गई, तो जल्द ही बहुत कम ऊदबिलाव बचे रह पाएंगे।”
यह खबर मोंगाबे-इंडिया टीम द्वारा रिपोर्ट की गई थी और पहली बार हमारी अंग्रेजी वेबसाइट पर 2 जुलाई 2024 प्रकाशित हुई थी।
बैनर तस्वीर: स्मूद-कोटेड ऑटर की प्रतीकात्मक तस्वीर। तस्वीर- आर. थायनंथ, विकिमीडिया कॉमन्स (CC BY-SA 4.0)