- देश में भेड़ियों की संख्या बाघ से भी कम है लेकिन उनके संरक्षण की कोशिशें तुलनात्मक रूप से कम होती हैं। इस वजह से आए दिन भेड़िया और मानव संघर्ष की घटनाएं होती रहती हैं।
- भारतीय ग्रे भेड़िया देशभर में अपने संभावित आवासों के 40% से भी कम में पाया गया। भेड़ियों की आबादी कम होती जा रही है। उनके आवास, जो मुख्य रूप से घास के मैदान हैं, गायब हो रहे हैं।
- देश में भेड़िया संरक्षण के कम ही उदाहरण देखने को मिलते हैं। ऐसा एक उदाहरण झारखंड में महुआडानर भेड़िया अभयारण्य है । यह अभयारण्य भेड़ियों के संरक्षण के लिए स्थापित किया गया है।
- लोगों में सियार और भेड़िया को लेकर कई भ्रांतियां हैं जिससे इंसान के साथ संघर्ष बढ़ रहा है। संरक्षण और जागरुकता के द्वारा मानव-वन्यजीव संघर्ष को कम किया जा सकता है।
क्या भेड़िया सियार से अलग दिखता है? क्या सियार डरावने होते हैं? क्या भेड़िये खून के प्यासे होते हैं?
उत्तर प्रदेश के बहराइच में ग्रामीणों पर जंगली जानवरों के हमले के बाद टीवी समाचारों द्वारा फैलाई गई व्यापक गलत सूचना के बीच ये सवाल उठ सकते हैं। भेड़ियों और सियार पर अवैज्ञानिक सूचनाओं की बाढ़ ने पूरे उत्तर भारत में लोगों में भय और दहशत पैदा कर दी। हमलों के दौरान भेड़ियों और सियारों की पहचान को लेकर भ्रम की स्थिति बनी रही। कुछ अख़बारों और समाचार वेबसाइट ने सियारों की इंटरनेट से ली हुई तस्वीरें इस्तेमाल कर उन्हें भेड़िया बताया। परिणामस्वरूप, बिहार में कुछ ग्रामीणों द्वारा एक सियार को मार डाला गया। भारत और नेपाल की सीमा के पास बसे बहराइच के इस मामले से यह स्पष्ट है कि भेड़िये और सियार अभी भी हमारे संरक्षण प्रयासों में हाशिये पर हैं। भेड़ियों के साथ मानवीय संघर्षों से निपटने के तरीके या उन स्थितियों की समझ की कमी है, जिनके कारण भेड़िये और सियार लोगों पर हमला कर सकते हैं।
भेड़ियों और सियारों के बीच मुख्य अंतर क्या हैं?
भारत में कई जंगली कैनिड (wild canid) प्रजातियाँ पाई जाती हैं, जिनमें लोमड़ी, सियार, भेड़िये और ढोल (dhole) या एशियाई जंगली कुत्ते शामिल हैं। हमारे पास लकड़बग्घे की भी एक प्रजाति है जिसे अंग्रेजी में स्ट्राइप्ड हायना के नाम से जाना जाता है। भारत में भेड़ियों की दो प्रजातियाँ हैं: भारतीय ग्रे वुल्फ या भारतीय भेड़िया (कैनिस ल्यूपस पैलिप्स) और हिमालयी भेड़िया (कैनिस ल्यूपस चान्को)। भारतीय भेड़िया, भेड़ियों की एक प्राचीन वंशावली से हैं जो केवल भारत और पाकिस्तान में पाए जाते हैं। वे घास के मैदानों, काटे वाले जंगलों और कृषि क्षेत्रों में रहते हैं। वे घने जंगलों में नहीं रहते। वैज्ञानिकों के अनुसार, भारतीय भेड़िया एक लुप्तप्राय प्रजाति है, क्योंकि उनकी आबादी बहुत कम है। दिलचस्प बात यह है कि हमारे देश में भेड़ियों की संख्या बाघों की संख्या से कम है।
शोध से पता चला है कि पश्चिम में गुजरात, राजस्थान, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र भेड़ियों के लिए महत्वपूर्ण निवास स्थान हैं। उत्तर में, वे बहराइच जिले के तराई क्षेत्र में और पूर्व में पश्चिम बंगाल तक पाए जाते हैं। दक्षिण में, वे दक्कन के पठार में और कभी-कभी इसके दक्षिण में सूखे जंगलों में पाए जाते हैं। यह ध्यान रखना बहुत महत्वपूर्ण है कि भारतीय भेड़ियों का लगभग पूरा वितरण संरक्षित क्षेत्रों से बाहर है। झारखंड में महुआडानर भेड़िया अभयारण्य उन मुट्ठी भर संरक्षित क्षेत्रों में से एक है जो भेड़ियों के संरक्षण के लिए स्थापित किए गए हैं। असुरक्षित घास के मैदान और कंटीले जंगल, जिनका उपयोग पशुपालक समुदायों द्वारा चराई के लिए किया जाता है, भेड़िया आबादी के अंतिम बचे हुए निवास स्थान हैं।
सियार भेड़ियों की तुलना में बहुत ज्यादा आम हैं। वे मुंबई जैसे महानगरों सहित कई राज्यों में देखे जाते हैं। सियार ऐसे जानवर हैं जो शहरों से लेकर तटीय आवासों और जंगलों तक के विविध आवासों में सहस्राब्दियों से लोगों के साथ रहते आए हैं। सियार कई स्थानीय लोक कथाओं और गीतों का हिस्सा हैं। गोवा में, कई बच्चे ‘सियार चाचा’ और ‘सियार चाची’ के बारे में कहानियां सुनते हुए बड़े होते हैं जो उन्हें बड़ों द्वारा सुनाई जाती हैं या जो उनकी स्कूली पाठ्यपुस्तकों में शामिल होती हैं। सियार गोवा के आज भी गाए जाने वाले पारंपरिक गीतों में भी शामिल हैं।
सुनहरा सियार (golden jackal) भारतीय उपमहाद्वीप में पाए जाने वाले सियारों की एकमात्र प्रजाति है। सियार की अन्य दो प्रजातियाँ, काली पीठ वाला सियार और साइड-स्ट्राइप्ड सियार केवल अफ्रीका में पाई जाती हैं। सियारों को अक्सर लोमड़ी समझ लिया जाता है। कुछ भारतीय भाषाओं में लोमड़ी और सियार के लिए शब्द समान हैं।
साल 2018 में, मैंने वाइल्ड कैनिड्स-इंडिया प्रोजेक्ट के एक सदस्य के रूप में जंगली कैनिड्स और लकड़बग्घों के वितरण के मानचित्रण में योगदान दिया। हमने सामाजिक विज्ञान डेटा और अन्य रिकॉर्ड का उपयोग किया और पाया कि सियार भारत भर में अपने संभावित आवासों में से लगभग 75% में पाए जाते हैं। सभी कैनिड और लकड़बग्घे के बीच सियारों का वितरण सबसे व्यापक है। इसके विपरीत, भारतीय ग्रे भेड़िया देशभर में अपने संभावित आवासों के 40% से भी कम में पाया गया। भेड़ियों की आबादी कम होती जा रही है। उनके आवास, जो मुख्य रूप से घास के मैदान हैं, गायब हो रहे हैं।
सियार और भेड़िये अपनी शारीरिक बनावट में भी भिन्न होते हैं। लोग सियार और भेड़ियों के आकार को देखकर उन्हें पहचान सकते हैं। सियार भेड़ियों से छोटे होते हैं। सियार के बाल भूरे रंग के होते हैं, जबकि भेड़ियों के बाल स्लेटी रंग के होते हैं। इन उल्लेखनीय अंतरों के बावजूद, घरेलू कुत्तों के साथ संकरण के कारण, भेड़ियों और सियारों दोनों के शरीर के रंग असामान्य देखे जा सकते हैं। संकरण, जो सियार-कुत्ते और भेड़िया-कुत्ते संकर पैदा करता है, दोनों कैनिड्स के लिए एक खतरा है।
भेड़ियों और सियारों का आहार भी कुछ हद तक अलग-अलग होता है। सियार कई तरह के छोटे जानवरों और पौधों को खाते हैं, जिनमें कृंतक, कीड़े, फल, सब्जियाँ, मछलियाँ, सरीसृप, पक्षी, खरगोश, जंगली खुर वाले जानवर और मवेशियों के शव शामिल हैं। सियार अपने आवास के हिसाब से खुद को ढ़ाल (adapt) लेते हैं। जैसे कि मुंबई के मैंग्रोव में रहने वाले सियार मछली और केकड़े भी खाते हैं। कुछ कस्बों और शहरों में, कूड़ा डालने वाली जगहों पर सियारों को देखा जा सकता है।
भेड़ और बकरियाँ भेड़ियों के लिए महत्वपूर्ण खाद्य स्रोत हैं। ऐतिहासिक समय से ही भेड़ियों और चरवाहों के समुदायों ने एक दूसरे के साथ संबंध साझा किए हैं। दक्कन या डेक्कन क्षेत्र में भेड़ियों और चरवाहों के सह-अस्तित्व के बारे में एक निबंध में, नित्या घोटगे और सागरी रामदास लिखते हैं, “जहाँ भेड़िये हैं, वहाँ भेड़ें भी होंगी…”। वास्तव में, भेड़ें भेड़ियों के लिए एक प्रमुख शिकार प्रजाति हैं। ‘काली भेड़ और स्लेटी भेड़िये’ शीर्षक वाले अपने लेख में, नित्या और सागरी घुमंतू चरवाहों और भेड़ियों के बारे में उनकी मान्यताओं के बारे में बात करते हैं। वे चरवाहों, भेड़ों और वन्यजीवों को प्रभावित करने वाली विभिन्न समस्याओं पर भी चर्चा करते हैं। पर्यावरणविदों के बीच एक प्रमुख कथा रही है कि पशुओं का चरना वन्य जीवों और उनके आवासों के लिए हानिकारक है। हालांकि, नित्या और सागरी का तर्क है कि डेक्कन पठार के कई हिस्सों में, भेड़िया भोजन के लिए पशुओं पर बहुत अधिक निर्भर करता है क्योंकि भेड़ और बकरी की तुलना में काले हिरण और चिंकारा जैसे जंगली खुर वाले जानवर कम घनत्व में पाए जाते हैं। भेड़ियों को इन जंगली खुर वाले जानवरों की तुलना में घरेलू शिकार आसानी से उपलब्ध है। भेड़िये कृंतक, खरगोश, नीलगाय और जंगली फल को भी खाते हैं।
भेड़िये और सियार कब लोगों पर हमला करते हैं?
सियार और भेड़िये बहुत कम ही लोगों पर हमला करते हैं। ये दोनों जंगली जानवर इंसानों से सावधानीपूर्वक दूरी बनाए रखते हैं। पालतू कुत्ते रेबीज और कैनाइन डिस्टेंपर जैसी बीमारियों को सियार, भेड़ियों और दूसरे जंगली कैनिड्स में फैला सकते हैं। रेबीज से संक्रमित सियार और भेड़िये इंसानों के प्रति आक्रामक व्यवहार विकसित कर लेते हैं। इस स्थिति में, वे उन्हें काटने और नुकसान पहुँचाने की संभावना रखते हैं। सियार या भेड़िये द्वारा काटे गए व्यक्ति को अपने घावों को पानी और साबुन से धोना चाहिए और रेबीज के टीके के लिए तुरंत नज़दीकी अस्पताल जाना चाहिए। बहराइच जैसी जगहों पर लोगों को असुरक्षित आवास और अक्सर बिजली कटौती का सामना करना पड़ता है। इसलिए वे जंगली जानवरों के साथ संघर्ष के लिए अधिक संवेदनशील होते हैं।
घास के मैदानों के लिए खतरा
हमारे देश में घास के मैदानों के विशाल क्षेत्र हैं। ये चरवाहे समुदायों की जीवन रेखा हैं। ये घास के मैदान भारतीय भेड़िया और भारतीय लोमड़ी के लिए भी महत्वपूर्ण हैं। देशभर के कई घास के मैदानों में, पवन और सौर ऊर्जा परियोजनाओं जैसी नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाएँ मिलेंगी। इन परियोजनाओं ने घास के मैदानों के बड़े विस्तार पर कब्ज़ा कर लिया है। चरागाह भूमि की गुणवत्ता जो ऐतिहासिक रूप से चरवाहों द्वारा प्रबंधित और संरक्षित की जाती थी, अब घट रही है। यह इन भूमियों में औद्योगिक दबाव और कृषि विस्तार का परिणाम है। कई घास के मैदान कभी वनस्पतियों और जीवों की विविधता का समर्थन करने वाले संपन्न पारिस्थितिकी तंत्र थे। लेकिन अब वे ऐसे आवास हैं जिन पर प्रोसोपिस जूलीफ्लोरा (Prosopis julifora), लैंटाना कैमरा (Lantana camara) और सेन्ना यूनिफ्लोरा (Senna uniflora) जैसी आक्रामक प्रजातियों ने कब्ज़ा कर लिया है।
घास के मैदान पारिस्थितिक तंत्र हैं जिनमें प्राकृतिक रूप से बहुत कम या कोई पेड़ नहीं होते हैं। हालांकि, औपनिवेशिक काल से ही यह गलत धारणा बनी हुई है कि केवल पेड़ों से आच्छादित पारिस्थितिकी तंत्र ही “उत्पादक” होते हैं। परिणामस्वरूप, घास के मैदानों सहित लगभग 70% खुली भूमि को भारत के बंजर भूमि एटलस में वर्गीकृत किया गया है, जिससे इन क्षेत्रों को कृषि, खनन और अन्य औद्योगिक गतिविधियों के लिए मोड़ना आसान हो गया है।
कैनिड्स के संरक्षण पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए
जंगली कैनिड्स, जैसे सियार और लोमड़ियों, को शोध या पर्यावरण शिक्षा जैसे संरक्षण प्रयासों में कम शामिल किया जाता है। शायद इसी का परिणाम है कि कई लोग सियार और लोमड़ियों के बीच अंतर नहीं कर पाते हैं। हालांकि, भेड़ियों को उनके क्षेत्र के कुछ हिस्सों में शोध का ध्यान मिलता है, लेकिन भेड़ियों के संरक्षण प्रयासों में पशुपालन और अन्य आजीविका के बारे में ज्ञान को शामिल करना महत्वपूर्ण है। भेड़ियों द्वारा किए गए पशुधन के नुकसान के लिए चरवाहों को समय पर मुआवजा दिया जाना चाहिए। चरवाहे और अन्य स्थानीय घास के मैदान उपयोगकर्ता इन पारिस्थितिकी प्रणालियों के संरक्षक हैं। पर्यावरणविदों और वन विभाग के लिए इसे पहचानना महत्वपूर्ण है। उनके दृष्टिकोण और ज्ञान को घास के मैदानों के संरक्षण प्रयासों में शामिल किया जाना चाहिए, न कि उन्हें बाहर रखा जाना चाहिए।
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बहराइच जैसे क्षेत्रों में, अधिकारियों को जंगली जानवरों द्वारा मानव मृत्यु के एक और मामले को रोकने के लिए एक महत्वपूर्ण हस्तक्षेप पर विचार करना चाहिए। ग्रामीणों को सुरक्षित आवास प्रदान करना अत्यंत महत्वपूर्ण होगा। वन विभाग के पास संघर्ष को कम करने के लिए वैज्ञानिक दिशा निर्देश होने चाहिए। इनमें सियार और भेड़िये शामिल होने चाहिए। जंगली कैनिड्स पर काम करने वाले शोधकर्ताओं को वन विभागों और पत्रकारों के साथ वैज्ञानिक और विश्वसनीय जानकारी साझा करनी चाहिए। यह विशेष रूप से संघर्ष-ग्रस्त क्षेत्रों में किया जाना चाहिए। भेड़ियों और सियारों के बीच अंतर करने के बारे में जानकारी भी साझा की जानी चाहिए। आवारा कुत्तों का टीकाकरण और नसबंदी जरूरी है। यह जंगली कैनिड्स और लोगों को सुरक्षित रखने में भी काफी मददगार साबित होगा। अब समय आ गया है कि हम सियारों और भेड़ियों पर गंभीरता से ध्यान दें। उन्हें लोगों के साथ रहने का अधिकार है।
इस कमेंट्री की लेखिका मलायका मैथ्यू चावला एक वन्यजीव शोधकर्ता हैं, जो जंगली कैनिड प्रजातियों के संरक्षण में रुचि रखती हैं। वह चोटिला, गुजरात में रहती हैं, जहाँ वह सहजीवन के साथ काम करती हैं।
बैनर तस्वीरः महाराष्ट्र के पुणे जिले स्थित मयूरेश्वर वन्यजीव अभयारण्य में भारतीय भेड़िया। तस्वीर– रुद्राक्ष चोडनकर/विकिमीडिया कॉमन्स