- उत्तर प्रदेश के गोरखपुर स्थित कैम्पियरगंज का जटायु संरक्षण एवं प्रजनन केंद्र एशियाई राज गिद्धों के संरक्षण और प्रजनन के लिए स्थापित किया गया है।
- एशियाई राज गिद्धों की आबादी घट रही है इस वजह से इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर (IUCN) ने राज गिद्ध को अपनी रेड लिस्ट में गंभीर रूप से लुप्तप्राय की सूची में रखा है।
- इस केंद्र के आसपास कुछ ऐसी समस्याएं हैं जो केंद्र में रहने वाले गिद्धों के प्रजनन को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकते हैं।
विलुप्त होते एशियाई राज गिद्धों (रेड हेडड वल्चर) को बचाने की मुहिम के तहत सितम्बर 2024 में उत्तर प्रदेश के गोरखपुर स्थित कैम्पियरगंज में जटायु संरक्षण एवं प्रजनन केंद्र का उद्घाटन किया गया था। इस केंद्र का लक्ष्य एशियाई राज गिद्धों की घटती संख्या को काबू में लाने के लिए उनके प्रजनन को बढ़ावा देना था। हालांकि, इस संरक्षण केंद्र के खुलते ही इसकी खामियां सामने आने लगी हैं। केंद्र सरकार की ओर से दिए गए 2.80 करोड़ रुपए से स्थापित हुए इस संरक्षण केंद्र के निर्माण के लिए जगह का चुनाव, भविष्य में पास में ही बनाई जाने वाली फॉरेस्ट यूनिवर्सिटी और जटायु केंद्र के ठीक किनारे गुजरने वाला राष्ट्रीय राजमार्ग इन एकांत प्रिय पक्षियों के संरक्षण के लिए बाधा साबित हो रहे हैं।
एशियाई राज गिद्ध ‘रेड हेडेड वल्चर’ या लाल सिर वाले गिद्ध के नाम से मशहूर है। इसका वैज्ञानिक नाम ‘सरकोगिप्स कैल्वस‘ है। इसे भारतीय काला गिद्ध या पांडिचेरी गिद्ध के रूप में भी जाना जाता है। इसकी घटती आबादी के चलते इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन आफ नेचर (IUCN) ने राज गिद्ध को अपनी रेड लिस्ट में गंभीर रूप से लुप्तप्राय की सूची में रखा है।
छोटे बाड़ों में कैसे होगा संरक्षण?
जटायु संरक्षण केंद्र के लक्ष्यों के बारे में बात करते हुए केंद्र के संरक्षक और गोरखपुर वन प्रभाग के जिला वन अधिकारी (डीएफओ) विकास यादव ने बताया, “आमतौर पर मादा गिद्ध साल में एक बार एक ही अंडा देती है। फिर ये भी जरूरी नहीं कि हर अंडे से चूजे निकलें। जटायु केन्द्र की योजना मादा गिद्ध से एक साल में दो अंडे निकलवाने की है। इससे इनकी जनसंख्या तेजी से बढ़ेगी। केंद्र का मकसद अगले 8-10 सालों में यहां गिद्धों के करीब 40 जोड़े बनाकर कर उन्हें उनके प्राकृतिक आवास में छोड़ना है।”
जाहिर है पहली नजर में यह योजना बेहद प्रभावशाली लगती है। लेकिन हकीकत में इस केंद्र के आसपास कई ऐसे कारक हैं जो इन गिद्धों के प्रजनन को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकते हैं। गोरखपुर जिला मुख्यालय से करीब 30 किलोमीटर दूर 1.5 हेक्टेयर में फैला यह केन्द्र किसी छोटे से सरकारी दफ्तर सा लगता है। पहले इस केंद्र को 5 हेक्टेयर जमीन में बनाने का प्रस्ताव दिया गया था लेकिन इसका निर्माण केवल 1.5 हेक्टेयर में सीमित कर दिया गया।
पांच हेक्टेयर के बजाए केवल 1.5 हेक्टेयर जमीन पर केंद्र बनाने पर वे कहते हैं, “स्वीकृत बजट में जितना निर्माण कार्य हो सकता था किया गया। और बजट आने पर बाकी बची जमीन पर केंद्र का विस्तार किया जाएगा।”
अपने दोनों पंखों को करीब 6.5 फ़ीट तक फ़ैलाने वाले इन राज गिद्धों को 15×20 फीट की एवियरी यानी बाड़े में रखा गया है। केवल जोड़ों के लिए 20×30 फीट के बाड़े बने हैं। सूत्र बताते हैं कि बीएनएचएस ने शुरू में 60×100 फीट के बाड़े बनाने की सिफारिश की थी। लेकिन बजट की कमी के कारण वन विभाग ने छोटे बाड़े बनाए। हालांकि केन्द्र के निदेशक इससे इंकार करते हैं। बीएनएचएस के अधिकारी भी इस मामले कुछ बोलने को तैयार नहीं। मोंगाबे हिंदी ने बीएनएचएस की तकनीकी टीम के सदस्य रोहन से बात की तो उनका कहना था कि वे अब बीएनएचएस का हिस्सा नहीं है। और वे इस पर कोई टिप्पणी नहीं करेंगे।
हर बाड़े की दीवार में दो बांस बाहर निकले हैं और दो खाटनुमा मचानें बनी हैं। राज गिद्ध अभी अवयस्क हैं तब भी ये जगह इनके लिए किसी पिंजरें जैसी है। बाड़े में ये ठीक से उड़ भी नहीं पाते। कई बार ये लोहे या सीमेंट की दीवारों से टकरा कर जख्मी भी हो जाते हैं।
केन्द्र के प्रभारी और साइंटिफिक ऑफिसर दुर्गेश नंदन बताते हैं, “इसीलिए हमने बाड़ों की लोहे के जाल से बनी छत के नीचे नेटलान की चादर लगा रखी है ताकि उड़ान भरने के उत्साह में वे लोहे की जाली से टकराकर जख्मी न हो जाएं।” बाड़ों के छोटे आकार पर वे कहते हैं, “ये बाड़े वन्यजीव संरक्षण और अनुसंधान के बारे में जानकारी के लिए बने बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी (बीएनएचएस) के मानकों के अनुरूप हैं। उनका तर्क है कि वे लंबी उड़ने नहीं भर सकें इसी लिए छोटे बाड़े बनाए जाते हैं। उन्हें उड़ान भरने के लिए बड़ी जगह मिली तो वे गति पकड़ने पर बाड़े की दीवार से टकरा कर बुरी तरह से जख्मी हो सकते हैं।”
बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी (बीएनएचएस) ने इस केन्द्र और देश में बने अन्य जटायु संरक्षण केंद्रों को अपना टेक्निकल सपोर्ट दिया है। बीएनएचएस दूसरे राज्य सरकारों द्वारा प्रायोजित गिद्ध संरक्षण व प्रजनन केंद्र को संचालित भी कर रही है, हालांकि इस केंद्र का संचालन वन विभाग खुद कर रहा है।
हरियाणा के पिंजौर में बना संरक्षण केंद्र भी बीएनएचएस के मानकों के अनुरूप बना है लेकिन यहां के बाड़ों का आकार 100x40x20 फ़ीट का है जो कि उत्तर प्रदेश के संरक्षण केंद्र से काफी बड़ा है। हरियाणा के केंद्र में अवयस्क पक्षिओं के लिए बने अस्थाई बाड़ों का आकार (100x30x18 फ़ीट) भी उत्तर प्रदेश के केंद्र से कहीं बड़ा था।
शोरगुल के बीच बसाए गए एकांत प्रिय पक्षी
पांच हेक्टेयर जमीन के जिस हिस्से में इस केंद्र का निर्माण किया गया है वह इस भूभाग का आगे का हिस्सा है जो राष्ट्रीय राजमार्ग के किनारे है। इस सड़क पर दिनभर गुजरने वाले भारी वाहनों का शोर रहता है, साथ ही इस सड़क को फोरलेन बनाने का काम भी शुरू हो चुका है जिससे आने वाले समय में शोर और बढ़ेगा। इस निर्माण कार्य के बाद सड़क और केन्द्र के बीच का फासला केवल 20 मीटर ही रह जाएगा।
राज गिद्धों पर शोध पत्र लिखने वाले आगरा की अग्रवन हेरिटेज यूनिवर्सिटी की सहायक प्रोफेसर व जंतु वैज्ञानिक अंकित सिन्हा ने मोंगाबे हिंदी को बताया कि राज गिद्ध एकान्त प्रिय पक्षी हैं इसलिए वह इंसानों की बस्तियों और शोरगुल से दूर जंगलों में रहते हैं। दिनभर शोरगुल के ऐसे माहौल में बेशक राज गिद्धों का सहज विकास प्रभावित होगा और वे बार-बार बीमार पड़ेंगे।
हाईवे के शोरगुल के बारे में पूछे जाने पर यादव कहते हैं, “धीरे-धीरे ये राज गिद्ध शोरगुल और इस नए माहौल के अभ्यस्त हो जाएंगे। जगह का चयन शासन स्तर पर हुआ जिसे केन्द्र सरकार ने भी मंजूरी दे दी है।” उन्होंने कहा कि बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी (बीएनएचएस) की टीम ने भी सर्वे के बाद इस स्थान को मंजूरी दी है।
वाहनों के शोरगुल के आलावा इस केंद्र के करीब आने वाले समय में निर्माण कार्यों के चलते भी शोर बढ़ने की आशंका है। हाल में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने उत्तर भारत का पहला और पूरे देश का दूसरा वानिकी विश्वविद्यालय (फॉरेस्ट्री यूनिवर्सिटी) खोलने का ऐलान किया। इसके लिए गोरखपुर वन प्रभाग ने जटायु संरक्षण केंद्र के समीप ही 50 हेक्टेयर भूमि भी चिह्नित की है। विशेषज्ञ कहते हैं कि राज गिद्धों के लिए ये घातक फैसला है।
यादव मानते हैं कि पड़ोस में फॉरेस्ट यूनिवर्सिटी बनने से इस केंद्र का फायदा ही होगा।
एक विवाही राज गिद्ध
केंद्र के सामने सबसे बड़ी चुनौती गिद्धों के प्रजनन की है। अंकित सिन्हा ने बताया राज गिद्ध एकविवाही होते हैं यानी एक नर और एक मादा जीवन भर एक जोड़े के रूप में साथ रहते हैं। नर मादा मिलकर अपना घर बसाते हैं और दोनों मिलकर अंडे को सेते हैं। दिन में घोंसले की रखवाली और अंडे को सेने की जिम्मेदारी नर गिद्ध की होती है और रात में मादा गिद्ध की। राज गिद्धों का यही खास चरित्र उनकी संख्या में कमी का एक कारण बन रहा है।
जैसा कि केंद्र के प्रभारी दुर्गेश नंदन कहते हैं कि उनकी इसी विशिष्टिता के कारण व्यस्क राज गिद्ध यहां नहीं लाए जाते क्योंकि वे नया जोड़ा नहीं बनाते। जोड़ा बनाना एक चुनौती से भरा काम है। अपने बाड़े में दूसरा गिद्ध इन्हें बर्दाश्त नहीं। एक बाड़े में रखने से यह एक दूसरे के प्रति हिंसात्मक हो जाते हैं। नर मादा गिद्ध एक दूसरे के प्रति तभी सहज होते हैं जब उनकी केमेस्ट्री मेल खाती है। इसलिए प्रजनन केन्द्र में लाए गए सभी 5 मादा और एक नर राज गिद्ध किशोरावस्था में हैं जिनकी उम्र दो से चार साल तक है।
उनके अनुसार, एक औसत राज गिद्ध 25 से 30 साल तक जीता है। उनका यौवन काल 5 साल की उम्र में शुरू हो जाता है जब वह प्रजनन के लिए तैयार हो जाता है। कोई और जीव जन्तु होता तो एक नर, पांच मादाओं को आसानी गर्भवती कर सकता था। लेकिन राज गिद्धों के साथ ऐसा संभव नहीं है। इसलिए अभी एक नर राज गिद्ध के बाड़े में एक मादा के साथ जोड़ा बनाया गया है। लेकिन बदकिस्मती से नर राज गिद्ध जोड़ा बनने के तुरंत बाद से ही इलाज के लिए अलग हो गया।
बाकी चार मादाओं के जोड़ों के लिए नर राज गिद्धों की तलाश में एक टीम जंगल की ओर निकल चुकी है लेकिन टीम को एक महीने में नाकामी ही हासिल हुई। खोजी टीम को केवल एक मादा राज गिद्ध मिली है, उन्होंने बताया।
उन्हें अपना घरौंदा चाहिए
अंकित सिन्हा बताते हैं कि राज गिद्ध आमतौर पर ऊंचे पेड़ों की चोटी पर अपना घोंसला बनाते हैं। जिन क्षेत्रों में उन्हें कोई ऊंचे पेड़ नहीं मिलता, वे कांटेदार बबूल या झाड़ियों में नर और मादा एक साथ मिलकर अपना घोंसला बनाते हैं। एक बार जब घोंसला तैयार हो जाता है, तो जोड़ा उसे घास, फर, ऊन और अन्य सामान सामग्रियों से ढक देता है। राज गिद्ध प्रजनन के लिए मेटिंग अपने बनाए घोंसले में ही करते हैं। केंद्र में प्रजनन के लिए अलग से ‘ब्रिडिंग एवरी‘ बनाई गई हैं। लेकिन ये प्रजनन के लिए कितनी कारगर होगी कहना मुश्किल है।
“हम राज गिद्धों के घोंसले बनाने की प्रक्रिया का भी गहराई से अध्ययन कर रहे हैं। फिलहाल प्रयोग के तौर पर हम राज गिद्ध के जोड़े के बाड़े में सूखी टहनियां और झाडि़यां डाल कर जोड़ों को अपना घरौंदा बनाने की सामग्री मुहैया करा देंगे। हो सकता है कि ये प्रयोग सफल हो जाए। हम राज गिद्धों के छोड़े हुए पुराने घोंसलों की भी तलाश कर रहे हैं, डीएफओ यादव बताते हैं।
प्राकृतिक आदतें भूलने का खतरा
सिन्हा बताते हैं कि प्रकृति के सफाई दल के रूप में मरे हुए जानवरों के शव को सबसे पहले राज गिद्ध ही अपने तीखे पंजों और तेज नुकीली चोंच से खोलते हैं। इसकी शुरुआत वे शव के गुदाद्वार (एनल रीजन) से करते हैं। प्रजनन केंद्रों में रहने वाले राज गिद्ध इस प्राकृतिक प्रक्रिया से वंचित रह जाते हैं। जटायु केन्द्र में राज गिद्धों को केवल बकरे का कटा हुआ मीट ही मिलता है। जब इन्हे प्राकृतिक आवास में छोड़ा जाएगा तब भी सामान्य गिद्ध की तरह शव को नहीं खोल सकेंगे। देर सबेर इनके बाड़े में जानवर का पूरा शव डालना होगा ताकि ये शव को खोलने के लिए अपने तीखे पंजों और तेज नुकीली चोंच का इस्तेमाल सीख सकें।
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गिद्धों पर कई दशकों से काम कर रहीं लखनऊ विश्वविद्यालय जन्तु विभाग की प्रोफेसर व वरिष्ठ जंतु विशेषज्ञ अमिता कनौजिया ने मोंगाबे हिंदी को बताया, “इसका अब तक कोई डाटा सामने नहीं आया है कि देश में चलाए जा रहे प्रजनन केंद्र से गिद्धों की आबादी में कितना इजाफा हुआ है। सच तो ये है कि वे अपने प्राकृतिक वातावरण में भी प्रजनन कर ही रहे। बस उन्हें उनके प्राकृतिक इलाके में ही संरक्षित करने की जरूरत है। इसमें खर्च भी केंद्र के मुकाबले आधे से बहुत कम है।”
क्या इस कृत्रिम वातावरण का गिद्धों की प्रजनन क्षमता पर कोई असर पड़ेगा? जवाब में दुर्गेश नंदन कहते हैं, “नहीं। अगर हम वयस्क राज गिद्धों को यहां लाएं जो अपना जोड़ा बना चुका हो तो उन पर असर पड़ेगा क्योंकि उनके बारे में हमें अब तक नहीं पता कि वे दूसरा जोड़ा बनाएंगे या नहीं। फिर उन्हें इस नए माहौल में एडजस्ट करने में वक्त लगेगा और इससे उनकी प्रजनन क्षमता प्रभावित हो सकती है। इसीलिए हम शुरू से ही यहां अव्यस्क राज गिद्ध यहां ला रहे हैं ताकि वह इस नए माहौल को एडजस्ट कर लें।”
“राज गिद्धों को प्रजनन केन्द्र में रखने का यह दुनिया में पहला प्रयोग है। बीएनएचएस के साथ मिलकर अन्य राज्यों में चल रहे प्रजनन केंद्रों में गिद्ध की अन्य प्रजातियां रखी गई हैं। लेकिन राज गिद्ध के लिए यह पहला प्रजनन केन्द्र है। देश का यह पहला प्रजनन केन्द्र है जिसे वन विभाग अकेले संचालित कर रहा है। इरादे नेक हैं इसलिए इन शुरुआती चुनौतियों से हम जल्द निपट लेंगे,” यादव कहते हैं।
बैनर तस्वीरः जटायु केन्द्र में बने पहले जोड़े की तस्वीर। तस्वीर- मोंगाबे के लिए दयाशंकर शुक्ल सागर