- एक नए अध्ययन के मुताबिक, 2020 में भारत के नगर पालिका क्षेत्र के कचरे ने दुनिया की नदियों में बहकर जाने वाले कचरे में 10% का योगदान दिया है।
- अध्ययन में अनुमान लगाया गया है कि 2025 तक, भारत और चीन में नदियों के नजदीक रहने वाली ग्रामीण आबादी में वृद्धि के कारण नदियों में जाने वाले कचरे की मात्रा बढ जाएगी। यह उस स्थिति में होगा, जब आबादी तो तेजी से बढ़ेगी, लेकिन शहरीकरण धीमा रहेगा।
- 2022 में केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने पाया कि भारत की 605 नदियों में से आधे से ज्यादा नदियां प्रदूषित हैं।
भारत में दशकों से चले आ रहे खराब तरीके से कचरे के प्रबंधन के कारण कूड़े के बड़े-बड़े पहाड़ हर जगह दिखाई पड़ जाते हैं। लेकिन इस बढ़ते हुए ‘बिना उपचारित कचरे’ का परिणाम सिर्फ हम तक सीमित नहीं है। जलीय वातावरण में फैलते कचरे का अनुमान लगाने वाले एक नए अध्ययन से पता चलता है कि आने वाले समय में भारत इस वैश्विक समस्या के लिए कुछ बड़े जिम्मेदार देशों में से एक होगा और इसकी वजह शहरों यानी नगरपालिका क्षेत्रों का बिना उपचारित कचरा है।
भारत में लाखों लोग अपने अस्तित्व के लिए विशाल नदी प्रणालियों पर निर्भर रहते आए हैं। भारतीय वन्यजीव संस्थान के मुताबिक, भारत की नदियां दुनिया के अनोखे जलीय जीव-जंतु और पौधों की 18% आबादी का पोषण भी करती हैं। लेकिन 2022 में केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने भारत की 605 नदियों में से आधे से थोड़ी ज्यादा नदियों को प्रदूषित पाया। यह प्रदूषण न सिर्फ लोगों के स्वास्थ्य और जैव विविधता के लिए खतरा है, बल्कि अब यह जल स्रोतों में जाने वाले कचरे के बढ़ते वैश्विक बोझ से भी जुड़ गया है।
इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर एप्लाइड सिस्टम्स एनालिसिस (IIASA) के शोधकर्ताओं ने एक नए अध्ययन में अनुमान लगाया कि 2020 में, भारत के नगरपालिका क्षेत्र के कचरे ने दुनिया की नदियों में बहकर जाने वाले कचरे में 10% का योगदान दिया है। और यह तब है, जब 2018 तक लागू नीतियों को ध्यान में रखा गया था। सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट में रिसर्च एसोसिएट श्रोतिक बोस ने कहा, “यह कोई आश्चर्यजनक या असंभव आंकड़ा नहीं है। ऐसे कई अध्ययन हैं, जो भारत में कचरे के खराब प्रबंधन के बारे में बताते हैं।”
सरकार ने अकेले गंगा नदी को साफ करने पर 13,000 करोड़ रुपये खर्च कर दिए, लेकिन ये प्रयास काफी हद तक बेकार साबित हुए। 2019 के एक आकलन में क्वालिटी काउंसिल ऑफ इंडिया ने पाया कि गंगा के किनारे बसे 70% से ज्यादा शहर सीधे अपना कचरा नदी में डाल रहे थे क्योंकि उनके पास कचरे से निपटने वाले संयंत्र नहीं थे। बिना सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट और कचरे के सही तरीके से प्रबंधन न होने के कारण 38,000 मिलियन लीटर से ज्यादा अपशिष्ट जल भारतीय नदियों में मिल रहा है।
IIASA अध्ययन के अनुसार, मौजूदा समय में भारत में दुनियाभर के नगर पालिका क्षेत्र के कचरे का 17% हिस्सा है। अगर सर्कुलर अपशिष्ट प्रबंधन प्रणाली को अमल में नहीं लाया गया, तो नदियों में कचरे के जाने की समस्या बढ़ती रहेगी।
रिसर्च पेपर में सुझाव दिया गया है कि नगरपालिका क्षेत्र के ठोस कचरे के निपटान के लिए मानकीकृत ढांचे वाली एक वैश्विक संधि बनाई जाए। IIASA की शोधकर्ता और इस लेख की प्रमुख लेखक एड्रियाना गोमेज़ सनाब्रिया ने मोंगबे इंडिया को बताया, “एक वैश्विक संधि यह सुनिश्चित कर सकती है कि सभी देश समान नियमों का पालन करें, जिससे एक देश से दूसरे देश में कचरा आने का जोखिम कम हो जाएगा” गोमेज़ सनाब्रिया ने आगे कहा, “हालांकि देशों की अपनी क्षमता में सुधार करना जरूरी है और राष्ट्रीय स्तर पर इसका महत्वपूर्ण प्रभाव भी पड़ेगा। लेकिन कचरे के फैलने की समस्या पूरे विश्व से जुड़ी हुई है, इसलिए एक वैश्विक समझौता ज्यादा कारगर और व्यापक समाधान होगा।”
नगरपालिका क्षेत्रों के कचरे से होने वाले प्रदूषण का अनुमान
इस अध्ययन में, नगर पालिका क्षेत्र के कचरे से होने वाले प्रदूषण का अनुमान लगाने के लिए पहली बार “शेयर्ड सोशो-इकोनॉमिक पाथवे” (SSPs) का इस्तेमाल किया गया है। 2018 तक की नीतियों को ध्यान में रखते हुए आधारभूत रेखा पर, अध्ययन का अनुमान है कि 2020 में 78 मिलियन टन बिखरा हुआ नगर पालिका कचरा नदियों में चला गया। इस प्रदूषण में 80% योगदान भारत, अफ्रीका, चीन, दक्षिण एशिया, लैटिन अमेरिका और कैरेबियन जैसे देशों का है। इसमें से अकेले भारत की हिस्सेदारी 10% की है।
अध्ययन के अनुसार, नदियों में गिरने वाले ज्यादातर कचरे का स्रोत (लगभग 70%) शहरी इलाके हैं। बाकी कचरा ग्रामीण इलाकों से आता है। इसकी वजह “नियमों का अभाव और उनका सही ढंग से लागू न होना, कचरे का कम संग्रहण, कचरे को इधर-उधर ले जाने में होने वाला खर्च और कचरे के प्रबंधन की विविध तकनीकों का अभाव” है।
SSP स्थितियों का इस्तेमाल मानव भविष्य के विकास के अलग-अलग संभावित रास्तों को समझाने के लिए किया जाता है। अगर मौजूदा समय में, नगर पालिका क्षेत्र से निकले कचरे के प्रबंधन में मौजूद बाधाएं दूर हो जाती हैं, तो भारत, अफ्रीका, चीन, दक्षिण एशिया, लैटिन अमेरिका और कैरेबियाई को सबसे ज्यादा फायदा होगा। इस स्थिति में, 2030 तक नगर पालिका क्षेत्र के कचरे में 88% तक की कमी देखी जा सकती है, जो वर्तमान स्थिति से काफी कम होगी।
अगर वर्तमान स्थिति बनी रहती है, जहां सर्कुलर अपशिष्ट प्रबंधन प्रणाली धीरे-धीरे अपनाई जा रही है, आर्थिक विकास मध्यम है और असमानताएं मौजूद हैं, तो साल 2040 तक, नगरपालिका क्षेत्र का लगभग 35 मिलियन टन कचरा जलीय वातावरण में जा सकता है। 2040 में, जलीय स्रोतों के कचरे का 95% हिस्सा संभवतः दक्षिण एशिया, चीन, अफ्रीका, लैटिन अमेरिका और कैरेबियाई, और भारत का होगा। इसमें से चीन व दक्षिण एशिया की इसमें हिस्सेदारी 55% की होगी।
अध्ययन में अनुमान लगाया गया है कि “2025 तक, भारत और चीन में नदियों के (1 किमी तक) के नजदीक रहने वाली ग्रामीण आबादी में वृद्धि के कारण नदियों में जाने वाले कचरे की मात्रा बढ़ जाएगी”। यह उस स्थिति में होगा, जब आबादी तेजी से बढ़ेगी, लेकिन शहरीकरण धीमा रहेगा।
अध्ययन में कहा गया है, “हमारे परिणाम दर्शाते हैं कि नगरपालिका क्षेत्र के कचरे को कम करने के लिए, केवल एक चीज (जैसे, प्लास्टिक) या एक ही तरीका (जैसे, रिसाइक्लिंग) पर ध्यान केंद्रित करने की बजाय, सभी तरह के कचरे के प्रबंधन के लिए एकीकृत रणनीति अपनानी होगी। अगर सिर्फ एक ही चीज पर ध्यान देंगे, तो उससे कचरे की समस्याएं और बढ़ सकती हैं (जैसे, सिंगल यूज़ प्लास्टिक कप की जगह पेपर कप का धड़ल्ले से इस्तेमाल करने लग जाना)।
हालांकि, भविष्य के कचरे के प्रबंधन का अनुमान लगाने के लिए SSPs का इस्तेमाल करने की अपनी कुछ सीमाएं हैं। गोमेज सनाब्रिया ने कहा, “SSPs जनसंख्या, आर्थिक और तकनीकी विकास पर आधारित होते हैं। यह स्थानीय विशेषताओं, परंपराओं या राजनीतिक अशांति जैसी घटनाओं को नहीं दर्शाते, जो कचरे के उत्पादन या प्रबंधन को प्रभावित कर सकते हैं। कुल मिलाकर ये सिर्फ सामान्य दिशा दिखाते हैं, स्थानीय कारकों और तरीकों को पूरी तरह से नहीं पकड़ पाते हैं।”
भारत में नगर पालिका क्षेत्र के कचरे की स्थिति
भारत सरकार के अनुसार, भारत में रोजाना तकरीबन 1,52,245 मीट्रिक टन नगरपालिका ठोस कचरा उत्पन्न होता है, जिसमें से लगभग 75% को प्रोसेस कर लिया जाता है। नगरपालिका क्षेत्रों के कचरे में घरों, दुकानों, मेडिकल और निर्माण-तोड़-फोड़ का कचरा शामिल होता है।
ठोस अपशिष्ट प्रबंधन नियम के अनुसार, कचरे को स्रोत पर ही अलग-अलग कर देना चाहिए। और इसका पालन कराने की जिम्मेदारी पूरी तरह से राज्य सरकारों की है। लेकिन भारत में ज्यादातर कचरे में बायोडिग्रेडेबल (जैविक) घटक होते हैं जिन्हें अलग नहीं किया जाता है। इससे मिश्रित कचरा बनता है, जिसका ऊर्जा मान कम होता है। इसे जलाया नहीं जा सकता है, इसलिए, इसे डंप साइट्स या लैंडफिल में भेज दिया जाता है।
2021 में स्वच्छ भारत मिशन 2.0 को शुरू किया गया था, जिसका लक्ष्य 2026 तक सभी शहरों को कचरा मुक्त बनाना है। इसके लिए स्रोत पर ही कूड़े को पूरी तरह से अलग-अलग करना, घर-घर जाकर कूड़ा उठाना और सभी प्रकार के कचरे का वैज्ञानिक प्रबंधन व वैज्ञानिक रूप से बने लैंडफिल में सुरक्षित निपटान सुनिश्चित करना है। बोस कहते हैं कि कचरे को स्रोत पर ही अलग-अलग करना, कूड़े के निपटान के लिए सबसे जरूरी पहला कदम है, जो अक्सर आकर्षक तकनीकी समाधानों (जैसे, कचरे से ऊर्जा संयंत्र) पर ध्यान देने की वजह से नजरअंदाज कर दिया जाता है। बोस आगे कहते हैं, “फिलहाल तो, मौजूदा बुनियादी ढांचे के साथ, स्वच्छ भारत मिशन 2.0 के लक्ष्यों को समय पर पूरा कर पाना मुश्किल नजर आता है।”
IIASA अध्ययन में कहा गया है कि “नगरपालिका क्षेत्र से निकले कचरे को संसाधित करने की राज्य क्षमता में सुधार के अलावा, एक वैश्विक मानकीकृत ढांचा भी जरूरी है, जो शहरों से निकले कचरे के उत्पादन, संरचना व प्रवाह की निगरानी करने और साथ ही कचरे में कमी व अपशिष्ट प्रबंधन प्रणालियों में सुधार लाने के लिए लक्षित कार्यों (राजनीतिक, आर्थिक और तकनीकी उपायों सहित) के कार्यान्वयन का अनुसरण कर सकता है।”
और पढ़ेंः नदियां कैसे बन गई प्लास्टिक कचरे की हाइवे, हरिद्वार, आगरा और प्रयागराज में हुआ सर्वे
अध्ययन में आगे कहा गया है “एक मानकीकृत ढांचा आकलन की अनिश्चितता को कम करेगा और शहरी क्षेत्रों के कचरे के संकट से निपटने के लिए रणनीति विकसित करने के लिए बेहतर ज्ञान और जानकारी प्रदान करेगा। यह ढांचा दूसरी बार इस्तेमाल में आने वाले पदार्थों की उपलब्धता और प्रवाह के संबंध में सर्कुलर इकोनॉमी की प्रगति की निगरानी में भी योगदान दे सकता है।”
यह खबर मोंगाबे इंडिया टीम द्वारा रिपोर्ट की गई थी और पहली बार हमारी अंग्रेजी वेबसाइट पर 25 जुलाई 2024 को प्रकाशित हुई थी।
बैनर तस्वीर: गंगा नदी में प्लास्टिक प्रदूषण के खिलाफ विरोध दर्ज कराती एक कार्यकर्ता। तस्वीर- आकाशरनीसन, विकिमीडिया कॉमन्स [CC BY-SA 4.0]