- छत्तीसगढ़ राज्य अनुसूचित जनजाति आयोग (सीजीएसटीसी) का कहना है कि परसा ब्लॉक में खनन की मंजूरी जाली दस्तावेजों के आधार पर दी गई थी।
- हसदेव अरण्य के परसा ब्लॉक में खनन का काम विवादास्पद रहा है और यहां के निवासी लंबे समय से यह कहते रहे हैं कि उन्होंने खनन के लिए कभी सहमति नहीं दी।
- हसदेव अरण्य को मध्य भारत में बिना बंटे हुए सबसे बड़े जंगलों में से एक माना जाता है।
छत्तीसगढ़ सरकार की एक संस्था की ओर से की गई जांच में आरोप लगाया गया है कि राज्य के हसदेव अरण्य में खनन के लिए मंजूरी हासिल करने के लिए अहम दस्तावेजों में जालसाजी की गई थी। इस रिपोर्ट के नतीजे प्रभावित क्षेत्र के निवासियों के दावों से मेल खाते हैं, जिन्होंने लंबे समय से यह दलील दी है कि खनन के लिए उनसे कभी सहमति नहीं ली गई।
छत्तीसगढ़ राज्य अनुसूचित जनजाति आयोग (सीजीएसटीसी) की ओर से की गई जांच, सरगुजा और सूरजपुर जिलों में 1,252 हेक्टेयर क्षेत्र में फैले परसा कोल ब्लॉक से संबंधित है। सीजीएसटीसी ने 4 नवंबर को सरगुजा के जिला मजिस्ट्रेट को भेजी चिट्ठी में अपनी जांच के नतीजों को सार्वजनिक किया।
सीजीएसटीसी ने चिट्ठी में लिखा कि उसे ग्राम सभा (ग्राम परिषद) की बैठकों में शामिल होने वाले लोगों की संख्या में गड़बड़ियां मिली हैं। उसे इस बात के सबूत मिले हैं कि खनन का प्रस्ताव ग्राम सभा की बैठकों के खत्म होने के बाद जोड़ा गया था। आयोग ने परियोजना के लिए दी गई मंजूरी को रद्द करने की सिफारिश की। साथ ही, सरगुजा के जिला मजिस्ट्रेट विलास भोस्कर को चिट्ठी जारी होने के 15 दिनों के भीतर तीन पीड़ित गांवों में ग्राम सभाओं को फिर से बुलाने का निर्देश दिया, ताकि कानून के अनुसार इस मुद्दे पर चर्चा की जा सके।
सीजीएसटीसी के अध्यक्ष भानु प्रताप सिंह ने मोंगाबे इंडिया को बताया, “अभी तक कोई जवाब नहीं आया है। हमने जिला प्रशासन, राज्य सरकार और केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय को पत्र लिखा, लेकिन इनमें से किसी भी अधिकारी ने हमारे नतीजों पर कोई जवाब नहीं दिया।”
अभी तक कोई ग्राम सभा की फिर से बैठक नहीं बुलाई गई है। सीजीएसटीसी रिपोर्ट पर टिप्पणी के लिए मोंगाबे इंडिया ने सरगुजा के जिला मजिस्ट्रेट भोस्कर से संपर्क किया, लेकिन इस खबर के छपने तक उनकी तरफ से कोई जवाब नहीं मिला। केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय से भी पूछे गए सवालों का जवाब नहीं मिल पाया।
केंद्रीय जनजातीय मंत्रालय की पूर्व कानूनी सलाहकार और सर्वोच्च न्यायालय में वकालत करने वाली शोमोना खन्ना ने आयोग के नतीजों को “बहुत ज्यादा असरदार” बताया।
उन्होंने कहा, “रिपोर्ट से यह स्पष्ट हो गया है कि सहमति की प्रक्रिया में बाधा डाली गई थी। चूंकि, यह वैधानिक निकाय की रिपोर्ट है, इसलिए इसके नतीजे अहम हैं। केंद्र सरकार इन नतीजों पर कार्रवाई करने के लिए बाध्य है।”
आयोग की रिपोर्ट जारी होने से कुछ दिन पहले, खनन के लिए ब्लॉक तैयार करने के मकसद से परसा कोल ब्लॉक में पेड़ काटे गए। इस दौरान यहां के निवासियों और पुलिस के बीच हिंसक झड़प हुई। परियोजना की मंजूरी पर चल रहे विवाद और आयोग द्वारा रिपोर्ट जारी होने तक खनन से संबंधित कामों को रोके जाने के निर्देशों के बावजूद पेड़ों को काटा गया।
बढ़ा-चढ़ाकर बताई गई उपस्थिति, सहमति मनगढ़ंत
आयोग ने इस मुद्दे की जांच तब की जब अगस्त 2021 में अलग-अलग गांवों के 50 निवासियों ने शिकायत दर्ज कराई थी। इसमें आरोप लगाया गया था कि सरगुजा जिले के चार गांवों – साल्ही, हरिहरपुर, फतेपुर और घाटबर्रा में खनन के लिए ग्राम सभा की सहमति फर्जी थी।
सरगुजा और सूरजपुर जिले संविधान की पांचवीं अनुसूची में आते हैं, जो आदिवासी क्षेत्रों में भूमि के लिए पर खास प्रावधान करता है। पंचायत (अनुसूचित क्षेत्रों तक विस्तार) कानून के तहत ग्राम सभाओं की सहमति के बिना भूमि का अधिग्रहण नहीं किया जा सकता।
मामले में शिकायतकर्ता और साल्ही गांव के निवासी रामलाल करियाम ने मोंगाबे इंडिया को बताया, “2017 और 2018 के बीच ग्राम सभाएं आयोजित की गईं। इनमें से किसी भी ग्राम सभा ने खनन पर कोई एजेंडा पारित नहीं किया, क्योंकि इस पर कभी चर्चा ही नहीं हुई। पूर्व में, हमने लगातार नए क्षेत्र में खनन का विरोध किया है, क्योंकि हम जानते हैं कि यह कितना नुकसानदेह है।”
परसा कोल ब्लॉक पहले से ही चालू परसा ईस्ट और केंटे बसन (पीईकेबी) ब्लॉक के बगल में है। साल 2015 में, परसा कोल ब्लॉक को राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड (आरवीयूएनएल) को दिया गया था, जो सार्वजनिक क्षेत्र का उपक्रम है। यही कंपनी पीईकेबी ब्लॉक की भी मालिक है। खदान के संचालन और विकास का काम बाद में प्रतिस्पर्धी बोली प्रक्रिया के जरिए निजी समूह अदाणी माइनिंग को सौंप दिया गया।
तीन सालों में, सीजीएसटीसी ने शिकायतकर्ताओं, आरवीयूएनएल के अधिकारियों और सरगुजा और सूरजपुर के जिला अधिकारियों को बुलाया। अपने समन के दौरान, इसने सरगुजा के संभागीय आयुक्त को परसा ब्लॉक में खनन से संबंधित सभी कामों को रोकने के लिए कहा। सीजीएसटीसी की चिट्ठी में कहा गया,“दस्तावेजों की जांच की गई और आवेदक और गैर-आवेदक पक्षों के बयान दर्ज किए गए। इससे यह स्पष्ट हो गया कि 27 जनवरी, 2018 को साल्ही और 24 जनवरी, 2018 को हरिहरपुर में हुई ग्राम सभाओं में सिर्फ जिला पंचायत (जिला परिषद) द्वारा भेजे गए एजेंडा आइटम 1 से 21 तक के प्रस्तावों पर चर्चा की गई और उन्हें स्वीकृति दी गई।” यह कहते हुए कि खनन पर बाईसवां एजेंडा आइटम बाद में ग्राम सभा के दस्तावेजों में जोड़ा गया था।
सीजीएसटीसी की चिट्ठी के अनुसार, ग्राम सभा की बैठक खत्म होने के बाद सरपंच, ग्राम पंचायत अध्यक्ष और ग्राम पंचायत सचिव को आरयूवीएनएल और जिला अधिकारियों द्वारा खनन प्रस्ताव पर हस्ताक्षर करने के लिए धमकाया गया और “दबाव” डाला गया, लेकिन उन्होंने ऐसा करने से इनकार कर दिया। चिट्ठी में कहा गया है, “पूछताछ करने पर, (ग्राम पंचायत) सचिव ने ग्रामीणों और जिला प्रशासन के अधिकारियों के सामने स्वीकार किया कि प्रस्ताव संख्या 22 (खनन पर) उदयपुर के सरकारी विश्राम गृह में लिखा गया था।”
करियाम और सिंह ने बताया कि एजेंडा आइटम 1 से 21 जिले में सड़क बनाने, पानी की पाइप लाइन बिछाने और वन विभाग से संबंधित मामलों से संबंधित थे।
सीजीएसटीसी के पत्र में यह भी कहा गया है कि मंजूरी के लिए केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय को दस्तावेज भेजे जाने से पहले, ग्राम सभा की बैठकों में मौजूद लोगों की संख्या को बढ़ा-चढ़ाकर दिखाया गया था। साल्ही गांव में, संख्या कथित तौर पर 150 से 450, हरिहरपुर में 95 से 195 और घाटबर्रा में 132 से 482 तक बढ़ा दी गई थी।
पत्र में आगे कहा गया है कि सितंबर 2024 में ग्राम सभा की सहमति के मुद्दे पर आयोजित जनसुनवाई के दौरान, आरयूवीएनएल का प्रतिनिधित्व करने वाले दो अधिकारियों, बीएल वर्मा और एम सिंह बाला ने आयोग से जवाब दाखिल करने से पहले 10 दिन का समय मांगा था। आयोग का कहना है कि कंपनी कभी भी आयोग के सामने पेश नहीं हुई और ना ही उसने अपना जवाब दाखिल किया।
पत्र में कहा गया है, “परसा कोल ब्लॉक के लिए पर्यावरण मंजूरी और वन भूमि को दूसरे काम में लगाने की अनुमति प्राप्त करने के लिए, राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड ने जिला प्रशासन के अधिकारियों और कर्मचारियों का दुरुपयोग किया। उन्होंने चुनी गई आदिवासी महिला सरपंचों और मनोनीत किए गए ग्राम सभा अध्यक्षों को मानसिक रूप से परेशान किया, उन पर धोखाधड़ी से तैयार किए गए प्रस्तावों पर हस्ताक्षर करने का दबाव डाला। यह अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) कानून के तहत उत्पीड़न का मामला है।”
मीडिया को दिए गए बयान में, आरयूवीएनएल ने आयोग के नतीजों का खंडन किया। कंपनी ने कथित तौर पर कहा, “ग्राम सभा की मंजूरी का मुद्दा अभी लंबित है और किसी भी अदालत ने अनुमति में कथित अनियमितता के पहलू पर अभी तक कोई प्रतिकूल टिप्पणी नहीं की है।”
खनन से और बढ़ सकता है मानव-वन्यजीव संघर्ष
हसदेव अरण्य को मध्य भारत के सबसे बड़े वन क्षेत्रों में से एक माना जाता है। केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा स्वीकृत और भारतीय वानिकी अनुसंधान और शिक्षा परिषद की ओर से इस जंगल की जैव विविधता पर किए गए 2019 के अध्ययन में पाया गया कि यह वन नौ प्रजातियों का घर है जिन्हें वन्यजीव संरक्षण कानून के तहत सबसे ज्यादा सुरक्षा दी गई है। रिपोर्ट में परियोजना को “सख्त” पर्यावरण सुरक्षा उपायों के साथ आगे बढ़ाने की सिफारिश की गई है।
साल 2021 में भारतीय वन्यजीव संस्थान (डब्ल्यूआईआई) की एक अन्य रिपोर्ट में चेतावनी दी गई थी कि खनन गतिविधियों से हाथियों के आवास को नुकसान के कारण उनके साथ संघर्ष और भी बदतर हो सकता है। डब्ल्यूआईआई की रिपोर्ट कहती है, “इस परिदृश्य में हाथियों के सुरक्षित आवासों के लिए कोई और खतरा संभावित रूप से मानव-हाथी संघर्ष को राज्य के अन्य नए क्षेत्रों तक बढ़ा सकता है, जहां संघर्ष को कम करना राज्य के लिए असंभव होगा। हसदेव अरण्य कोलफील्ड में खनन के लिए कोयला ब्लॉकों को खोलना जैव विविधता संरक्षण और वन-निर्भर स्थानीय लोगों की आजीविका की अनिवार्यता से समझौता करेगा।”
और पढ़ेंः हसदेव अरण्य: विधानसभा के संकल्प, सुप्रीम कोर्ट में हलफनामे के बावजूद बढ़ता कोयला खनन
परसा कोल ब्लॉक को केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय द्वारा 2020 में चरण एक की वन मंजूरी दी गई थी, जबकि चरण दो की मंजूरी 2021 में दी गई थी। राज्य सरकार द्वारा अंतिम मंजूरी 2022 में मिली। 184 मिलियन टन कोयले के भंडार वाले इस ब्लॉक को हर साल 50 लाख टन उत्पादन क्षमता के साथ मंजूरी दी गई है।
हसदेव अरण्य में खनन का विरोध करने वाले छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन (सीबीए) ने कहा कि वह राज्य भर के दस हजार गांवों में आयोग की रिपोर्ट की प्रतियां बांटेगा। सीबीए ने अपने बयान में कहा, “आगामी शीतकालीन सत्र में, ग्राम सभाओं के प्रस्ताव का उल्लंघन करके हसदेव वन को नष्ट करने के खिलाफ राज्य विधानसभा में एक लाख सार्वजनिक याचिकाएं पेश की जाएंगी।” उन्होंने आगे कहा, “सीबीए मांग करता है कि आयोग की रिपोर्ट पर कार्रवाई करके खदान को जारी की गई वन और पर्यावरण मंजूरी को तुरंत रद्द किया जाना चाहिए। दोषी अधिकारियों और खनन कंपनी के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज किया जाना चाहिए।”
यह खबर मोंगाबे इंडिया टीम द्वारा रिपोर्ट की गई थी और पहली बार हमारी अंग्रेजी वेबसाइट पर 28 नवंबर, 2024 को प्रकाशित हुई थी।
बैनर तस्वीर: छत्तीसगढ़ में हसदेव झरना। विकिमीडिया कॉमन्स (CC BY-SA 4.0) के जरिए उमेश रात्रे की तस्वीर।