- किंग कोबरा के पाए जाने वाले पूरे क्षेत्र में इस सांप के आनुवंशिक और मॉर्फोलॉजिकल विश्लेषण से पता चलता है कि यह एक नहीं, बल्कि चार अलग-अलग प्रजातियां हैं।
- चूँकि पहचानी गई इन चार प्रजातियों में से दो अत्यधिक लुप्तप्राय हैं, इसलिए इस अध्ययन के निष्कर्षों का इन प्रजातियों के संरक्षण और एंटीवेनम के उत्पादन पर असर पड़ सकता है।
- शोधकर्ता इन प्रजातियों के बेहतर और दीर्घकालीन संरक्षण के लिए इनके आवास को बचाने पर जोर दे रहे हैं।
एक नए अध्ययन में पता चला है कि दुनिया का सबसे लंबा जहरीला सांप ‘किंग कोबरा’ जो अब तक एक प्रजाति माना जाता रहा है, एक नहीं बल्कि आनुवंशिक रूप से चार अलग-अलग प्रजातियां हैं। वन्यजीव वैज्ञानिक पी. गौरी शंकर के नेतृत्व में इस रिसर्च में यूके, स्वीडन, मलेशिया और भारत के वैज्ञानिकों ने मिलकर काम किया है।
यह अध्ययन लंबे समय से चली आ रही इस धारणा को चुनौती देता है कि अलग-अलग भौगोलिक क्षेत्रों में पाए जाने वाला किंग कोबरा भले ही दिखने में अलग हो, लेकिन उनका संबंध एक ही प्रजाति ‘ओफियोफैगस हन्नाह’ से है।
गौरी शंकर बताते हैं, “किंग कोबरा का उल्लेख पहली बार साल 1836 में डेनमार्क के शोधकर्ता थियोडोर कैंटर ने ‘हामाड्रायस हन्नाह’ के रूप में किया था। उसके अगले ही साल, दक्षिण पूर्व एशिया के सुंडा क्षेत्र से एक और प्रजाति पाई गई, जिसे हरमन श्लेगल ने ‘नाजा बंगारस’ कहा। साल 2024 में जांच के बाद इसे ‘ऑफियोफैगस बंगारस’ नाम दिया गया। वर्ष 1836 से लेकर 1961 तक, कई वैज्ञानिकों ने किंग कोबरा को सही तरीके से वर्गीकृत करने की कोशिश की, लेकिन सफल नहीं हुए। प्रजाति को लेकर भ्रम के चलते, 1945 में फैसला किया गया कि किंग कोबरा एक ही तरह की प्रजाति (यानी कोई उप-प्रजाति नहीं है) का सांप है और उसका नाम ‘ऑफियोफैगस हन्नाह’ रखा गया।”
करीब 185 सालों से किंग कोबरा की प्रजातियों को लेकर अनिश्चितता के बाद, यह नया अध्ययन आनुवंशिक और मॉर्फोलॉजी सबूतों के आधार पर बताता है कि किंग कोबरा एक ही प्रजाति नहीं, बल्कि चार अलग-अलग प्रजातियां हैं, जिनमें से दो को पहली बार इस टीम ने नाम दिया है।
किंग कोबरा भारत से लेकर फिलीपींस तक फैले दक्षिण और दक्षिण-पूर्व एशिया के उष्णकटिबंधीय जंगलों में व्यापक रूप से पाया जाता है। अध्ययन में पाई गई चार प्रजातियां हैं: ओ. हन्नाह (उत्तरी किंग कोबरा), ओ. बंगारस (सुंडा किंग कोबरा), ओ. कलिंगा (पश्चिमी घाट किंग कोबरा), और ओ. साल्वाटाना (लुज़ोन किंग कोबरा)। उत्तरी किंग कोबरा (ओ. हन्नाह) पूर्वी पाकिस्तान, उत्तरी और पूर्वी भारत, अंडमान द्वीप समूह, इंडो-बर्मा, इंडो-चाइना और थाईलैंड में पाया जाता है। ओ. बंगारस सुंडा शेल्फ क्षेत्र में रहता है, जबकि हाल ही में नामित प्रजातियां ओ. कलिंगा और ओ. साल्वाटाना क्रमशः पश्चिमी घाट और उत्तरी फिलीपींस के लुजोन में पाई जाती हैं।
एक से ज्यादा प्रजातियां
पश्चिमी घाट में लंबे समय से किंग कोबरा का अध्ययन कर रहे वन्यजीव जीवविज्ञानी रोमुलस व्हाइटकर कहते हैं, “मुझे हमेशा से संदेह था कि किंग कोबरा एक से ज्यादा प्रजातियां हैं, क्योंकि वे एक-दूसरे से दिखने और व्यवहार करने में काफी अलग होते हैं।” उनके मुताबिक, आनुवंशिक डेटा वाले अध्ययन में परमिट लेने और सैंपल इकट्ठा करने सहित कई कारणों से समय लग सकता है। लेकिन विश्वसनीय परिणाम पाने के लिए सावधानीपूर्वक शोध करना जरूरी है। आनुवंशिक उपकरणों में हालिया प्रगति एक बड़ा फायदा रही है। व्हाइटकर कहते हैं, “हमने 2004 में सांपों की फील्ड गाइड (स्नैक्स ऑफ इंडिया: दि फील्ड गाइड) प्रकाशित की था, तब से 40 से ज्यादा नई प्रजातियां खोजी जा चुकी हैं। उदाहरण के लिए, कॉमन वाइन स्नेक को अब सात अलग-अलग प्रजातियों के रूप में पहचाना जाता है। नई तकनीक और प्रजाति रिसर्च के लिए उपलब्ध उपकरणों के कारण यह प्रगति संभव हुई है।”

इस अध्ययन के लिए कुल मिलाकर 153 सैंपल (148 बिना कंकाल के और 5 कंकाल वाले) की जांच की गई। जांच के नतीजे बताते हैं कि आनुवंशिक स्तर पर इन प्रजातियों में एक से चार फीसदी तक का अंतर है। गौरी शंकर के अनुसार, यह काफी महत्वपूर्ण है, क्योंकि इंसान और चिंपैंजी तो आनुवंशिक रूप से सिर्फ एक प्रतिशत ही अलग हैं।
हालांकि, अध्ययन ने चार प्रजातियों को साफ-साफ अलग किया है, लेकिन हो सकता है कि और भी प्रजातियां हों, जिन्हें अभी खोजा नहीं गया हो। गौरी शंकर कहते हैं, “किंग कोबरा की पांच या छह प्रजातियां हो सकती हैं। इसके लिए और अधिक रिसर्च की जरूरत है।” पेपर में उल्लेखित सबसे महत्वपूर्ण शारीरिक विशेषताएं, जिसके आधार पर प्रजातियों को अलग किया गया है, पीठ पर पट्टियों की संख्या है। पेपर में लिखा है, “लुजोन आबादी के वयस्क सांपों की पीठ पर, छोटे सांपों के विपरीत, कोई स्पष्ट हल्की पट्टियां नहीं दिखतीं। वयस्क ओ. साल्वाटाना में पट्टियां हल्की और मुश्किल से दिखाई देती हैं, जिससे वो धब्बे या लगभग बिना पट्टी वाले सांपो की तरह दिखते हैं।”
गौरी शंकर एक फोटो दिखाते हुए कहते हैं, “ओ. कलिंगा में प्रत्येक सफेद बैंड के बीच गहरे रंग के शल्कों की तीन से चार पंक्तियां होती हैं।” उदाहरण के लिए, ओ. हन्नाह के बैंड पर सफेद शल्क के चारों ओर काली पट्टी होती है। दूसरी ओर, ओ. बंगारस में कई हल्की रंग की पट्टियां होती हैं। गौरी शंकर ने बताया, “अगर हम पट्टियों की गिनती करें, तो ओ. कालींगा में 40 से कम पट्टियां होती हैं, ओ. हन्नाह में 40 से 70 के बीच, और ओ. बंगारस में 70 से अधिक। ओ. बंगारस के छोटे सांपों में 100 से 135 तक पट्टियां हो सकती हैं।”
जीवों के संरक्षण पर बड़ा प्रभाव
विशेषज्ञों का मानना है कि इस नए शोध के नतीजों का जीवों के संरक्षण पर बड़ा प्रभाव पड़ेगा। अभी तक, किंग कोबरा को IUCN की संकटग्रस्त प्रजातियों की रेड लिस्ट में असुरक्षित श्रेणी में रखा गया है। गौरी शंकर कहते हैं कि पहले इसे ज्यादातर जगहों पर पाया जाने वाला आम सांप समझा जाता था, जिसके लिए खास संरक्षण की जरूरत नहीं थी। लेकिन, अब हालिया खोजों के बाद नजरिया बदला है। नई खोजी गई चार प्रजातियों में से ओ. कलिंगा और ओ. साल्वाटाना अत्यधिक लुप्तप्राय हैं और अब उन्हें विशेष संरक्षण की जरूरत है। उन्होंने बताया कि फिलीपींस सरकार और लुजोन के अधिकारी इन खोजों को गंभीरता से ले रहे हैं और सांपों के अवैध शिकार, निर्यात और अन्य खतरों पर अंकुश लगाने जैसे कदम उठाने पर विचार कर रहे हैं।

व्हाइटकर बताते हैं कि पश्चिमी घाट में किंग कोबरा (ओ. कलिंगा) की पूजा की जाती है। अब तक इसी तरीके से इनका संरक्षण किया जाता रहा है। लेकिन अब ये सांस्कृतिक सम्मान ही पर्याप्त नहीं है, क्योंकि क्षेत्र के लगभग 80% जंगल या तो गायब हो गए हैं या गंभीर रूप से प्रभावित हैं। वे इस बात पर जोर देते हैं कि स्थानीय समुदायों को शिक्षित करना भी इस प्रजाति के संरक्षण के लिए बहुत जरूरी है। किंग कोबरा न सिर्फ बड़ा और भयानक दिखता है, बल्कि पारिस्थितिकी तंत्र में कई महत्वपूर्ण भूमिकाएं भी निभाता है, जिसमें स्पेक्टकल्ड कोबरा (नाजा नाज़ा) जैसी चिकित्सकीय रूप से महत्वपूर्ण सांपों की आबादी को नियंत्रित करना भी शामिल है क्योंकि वे दूसरे सांपों को खाते हैं।
एंटीवेनम रिसर्च
इस अध्ययन के निष्कर्षों का एक और महत्वपूर्ण असर एंटीवेनम (विष प्रतिरक्षा) रिसर्च पर पड़ता है। किंग कोबरा के खतरनाक जहर के बावजूद, भारत में उसके काटने पर कोई खास एंटीवेनम नहीं है, संभवतः इसलिए क्योंकि देश में किंग कोबरा के काटने और मौत की घटनाएं में कम होती हैं और यह प्रजाति चिकित्सकीय रूप से महत्वपूर्ण “बड़े चार” सांपों में से नहीं है। लेकिन, हाल ही में कई अलग-अलग प्रजातियों की खोज के साथ, उपलब्ध एंटीवेनम- थाई रेड क्रॉस सोसाइटी का ‘ऑफियोफैगस हन्नाह मोनोवेलेन्ट एंटीविजन’ (OhMAV) – केवल ओ. हन्नाह के जहर के लिए प्रभावी है और अन्य किंग कोबरा प्रजातियों के काटने पर काम नहीं कर सकता है। गौरी शंकर कहते हैं, “यह एंटीवेनम भारत के पूर्वी हिस्सों में काम कर सकता है, लेकिन यह निश्चित रूप से पश्चिमी घाट में काम नहीं करेगा।”
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व्हाइटर बताते हैं कि किंग कोबरा के काटने के लिए एक खास एंटीवेनम (विष-प्रतिरोधक दवा) विकसित करना जरूरी है, क्योंकि भारत में इस्तेमाल होने वाला पॉलीवेलेंट एंटीवेनम और थाई एंटीवेनम दोनों ही किंग कोबरा के विष को कारगर ढंग से बेअसर नहीं करते। भले ही किंग कोबरा के काटने के मामले कम हैं, फिर भी यह जरूरी है क्योंकि सांपों को संभालने वालों, चिड़ियाघर के कर्मचारियों, शोधकर्ताओं और इस प्रजाति के साथ काम करने वालों की सुरक्षा के लिए एंटीवेनम महत्वपूर्ण है। गौरी शंकर कहते हैं कि एंटीवेनम से लोगों में सांप और उसके जहर के प्रति डर कम हो सकता है, जिससे उससे नफरत कम हो सकती है और इस तरह सांप के संरक्षण में मदद मिल सकती है। सबसे जरूरी बात यह है कि अधिकारियों को इस सांप से जुड़े खतरे को रोकने के लिए उनके आवासों की रक्षा के लिए सक्रिय कदम उठाने होंगे।
यह खबर मोंगाबे-इंडिया टीम द्वारा रिपोर्ट की गई थी और पहली बार हमारी अंग्रेजी वेबसाइट पर 20 नवंबर 2024 को प्रकाशित हुई थी।
बैनर तस्वीर: थाईलैंड का ओ. हन्नाह। अभी तक, सभी चार प्रकार के किंग कोबरा को एक ही प्रजाति का माना जाता था, लेकिन नए अध्ययन में चार अलग-अलग आनुवंशिक प्रजातियां पाई गई हैं। तस्वीर- गौरी शंकर