- ख़राब या पुराने हो गए कपड़ों को, जिन्हें अक्सर या तो फेंक दिया जाता है या जला दिया जाता है, डिजाइनरों द्वारा ‘सस्टेनेबल फैशन’ में फिर से उपयोग में लाया जा रहा है, जिससे पर्यावरण के नुकसान में कमी हो रही है।
- पर्यावरण के प्रति जागरूकता, रचनात्मकता और बेहतर व्यावसायिक कौशल का यह नया मिश्रण धीरे-धीरे इस परिवर्तन को आगे बढ़ा रहा है।
- पर्यावरण पर होने वाले नकारात्मक प्रभाव को कम करने के अलावा, ख़राब और पुराने हो चले कपड़ों के साथ नवाचार करने से कुछ आर्थिक और सामाजिक लाभ भी होते हैं, जैसे कम उत्पादन लागत, काम का जल्दी पूरा होना और स्थानीय कारीगरों की मदद।
- हालाँकि जहां पर्यावरणविदों को चिंता है कि कुछ ब्रांड ‘सस्टेनेबल फैशन’ की बढ़ती मांग का फायदा उठाकर ऐसे उत्पाद बना रहे हैं पर्यावरण के उतने अनुकूल नहीं हों, जितना वे दावा करते हैं।
डिजाइनर गौतम गुप्ता के दक्षिण दिल्ली के आलीशान स्टूडियो की दूसरी मंजिल पर ग्राहकों की भीड़ कपड़ों के ढेर में से सबसे ट्रेंडी कपड़ों की तलाश कर रही है। इसके एक मंजिल ऊपर, एक ठंडे खाली कमरे में, बिना बिके और पुराने हो चुके कपड़ों के रोल ‘सम्मानपूर्वक’ अलमारियों में रखे हुए हैं। इन बिना बिके और पुराने हो गए कपड़ों को ‘डेडस्टॉक’ कहा जाता है। कभी दूसरी मंजिल पर इस उल्लास का हिस्सा रहा यह डेडस्टॉक, अब नवीनता और उपभोग में लिप्त दुनिया का गवाह है। डेडस्टॉक एक ऐसे उद्योग, जो पारिस्थितिकी तंत्र पर प्रभाव डालने के लिए जाना जाता है, के लिए बेहतरी का एक रास्ता हो सकता है।
आमतौर पर, गोदामों, स्टॉक रूमों या कपड़ा निर्माताओं और बुनकरों के यहां पड़े रहने के बाद, बेकार हो चुके इन कपड़ों को या तो जला दिया जाता है या लैंडफिल में डाल दिया जाता है, जिससे पर्यावरण पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
डिज़ाइनर एक्सेसरी और फ़ैशन ब्रांड्स की एक बड़ी संख्या अब इन बेकार कपड़ों का उपयोग करके ज़िम्मेदारी भरे परिधान, या रेस्पोंसिबल क्लोदिंग, बनाने के लिए डिज़ाइन में नवाचार कर रही है। पर्यावरण के प्रति जागरूकता, रचनात्मकता और बेहतर व्यावसायिक कौशल का यह नया मिश्रण धीरे-धीरे इस बदलाव को आगे बढ़ा रहा है।

“फैशन और लाइफस्टाइल उद्योग के कुछ पर्यावरणीय प्रभावों को कम करने के लिए डेडस्टॉक एक प्रभावी उपाय के रूप में उभरा है। कपड़ों को बनाने के लिए डेडस्टॉक का उपयोग करने के लिए नई डिजाइन प्रक्रियाओं को अपनाने से हमारा कार्बन उत्सर्जन कम होता है। इससे नए संसाधनों पर हमारी निर्भरता भी कम होती है,” गुप्ता ने बताया। गुप्ता, जो अपने कपड़ों की डिज़ाइन लाइन के लिए नियमित रूप से बुनकरों और कपड़ा गोदामों से डेडस्टॉक खरीदते हैं, कहते हैं कि फेंके गए कपड़ों के ढेर पर्यावरण प्रदूषण में योगदान करते हैं। “आम धारणा के विपरीत, यह अहसास बढ़ रहा है कि एक अच्छा पर्यावरण एक अच्छा व्यवसाय भी है,” उन्होंने कहा।
गैर-लाभकारी थिंक टैंक ‘इंडिया वाटर फाउंडेशन’ के अध्यक्ष और संस्थापक अरविंद कुमार कहते हैं कि अपशिष्ट प्रबंधन के अलावा, डेडस्टॉक का उपयोग करने से पानी की भी बचत होती है, क्योंकि नए कपड़े, विशेष रूप से कपास का उत्पादन में पानी की जरूरत बहुत होती है।
इसके अलावा, डेडस्टॉक सामग्रियों का उपयोग करने से ऊर्जा की खपत कम होती है क्योंकि यह फाइबर उत्पादन, रंगाई और बनवाई जैसी ऊर्जा-गहन कपड़ा निर्माण प्रक्रियाओं को कम कर देता है। इससे कार्बन फुटप्रिंट में कमी आती है।
कुमार बताते हैं कि प्राकृतिक रेशों के मामले में, नई सामग्री का उत्पादन न करने से कीटनाशकों और उर्वरकों जैसे कृषि रसायनों की आवश्यकता भी कम हो जाती है।

सरकारी आंकड़ों के अनुसार, 2022 में भारतीय कपड़ा और परिधान बाजार का मूल्य लगभग 165 बिलियन डॉलर था। करीब 10% की चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर से बढ़ते हुए, इसके 2030 तक 350 बिलियन डॉलर तक पहुँचने का अनुमान है।
कपड़ा और परिधान उद्योग देश के सकल घरेलू उत्पाद में अच्छा योगदान देते हैं और इन्हें रोजगार सृजन करने वाला क्षेत्र माना जाता है, लेकिन साथ ही ये प्रदूषण फैलाने वाले भी हैं।
शोध और परामर्श संस्थाओं जैसे, IDH , फैशन फॉर गुड, सत्व कंसल्टिंग, और रिवर्स रिसोर्सेज द्वारा किए गए कई सर्वेक्षणों से पता चला है कि हर साल वैश्विक कपड़ा कचरे या टेक्सटाइल वेस्ट का लगभग 8.5% (7793 किलो टन) भारत में जमा होता है। इसका 22% से अधिक कचरा या तो लैंडफिल में चला जाता है या जला दिया जाता है।
विश्व बैंक के अनुमान के अनुसार, वैश्विक स्तर पर फैशन उद्योग दुनिया के वार्षिक कार्बन उत्सर्जन के 10% के लिए जिम्मेदार है – जो सभी अंतरराष्ट्रीय उड़ानों और समुद्री शिपिंग से भी अधिक है। साल 2030 तक, फैशन उद्योग के ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में 50% से अधिक की वृद्धि होगी।
ऐसी स्थिति में, कचरे को कम करने और जीवन और जीवनशैली को जिम्मेदार बनाने का कोई भी प्रयास एक स्वागत योग्य कदम है। यह प्रयास डेडस्टॉक उत्पादों की बढ़ती लोकप्रियता में दिखाई देता है क्योंकि युवा उद्यमी ऐसे उत्पादों के उपयोग, मार्केटिंग और उन्हें लोकप्रिय बनाने के लिए नए तरीके अपनाते हैं।
आपदा में अवसर
सस्टेनेबल फैशन के क्षेत्र में डेडस्टॉक के साथ काम करना एक चुनौती और डिजाइन नवाचार का अवसर दोनों है।
डेडस्टॉक डिज़ाइनर ‘ब्रांड जुहू बीच स्टूडियो’ की सह-संस्थापक प्रकृति राव कहती हैं कि डेडस्टॉक पारंपरिक डिज़ाइन प्रक्रिया को उलट देता है। मुंबई में रहने वाली राव कहती हैं, “किसी अवधारणा, थीम और डिज़ाइन की प्रेरणा से शुरू करने के बजाय, यहाँ यात्रा डेडस्टॉक की सोर्सिंग से शुरू होती है और फिर यह तय किया जाता है कि इससे क्या बनाया जा सकता है।”
डेडस्टॉक टेक्सटाइल की अपनी सीमाएं और विशेषताएं हैं, जैसे कि अलग-अलग मोटाई और अवशोषण क्षमता, सीमित रंग और बनावट, छपाई और रंगाई में गलतियां। फैब्रिक पैनल, जो अलग-अलग आकारों और सीमित मात्रा में आते हैं, इस क्षेत्र की चुनौती को बढ़ाते हैं और उन्हें दोबारा इस्तेमाल करने के लिए उन्हें फिर से बनाने की आवश्यकता होती है।
‘फैब्रिक पैनल’ पहले से कटे सांचे होते हैं जिन्हें मूल रूप से किसी खास वस्तु को बनाने के लिए बनाया जाता है लेकिन वे अप्रयुक्त रह गए। फैब्रिक बोल्ट के विपरीत, पैनल में नए माप, डिज़ाइन या प्रिंट होते हैं, जो नए कपड़ों को लगातार आकार, स्टाइल और बड़ी संख्या में डिज़ाइन करने की सुविधा को सीमित करते हैं।
‘पैच ओवर पैच’ की मालिक कविशा पारिख कहती हैं कि डेडस्टॉक की चुनौतियां और नवाचार की गुंजाइश उन्हें रोमांचित करती है और “निर्माण प्रक्रिया को रोमांचक बनाती है।” गुजरात में रहने वाली पारिख छपाई और रंगाई की गलतियों को छिपाने के लिए एप्लीक, पैचवर्क, कटवर्क और क्विल्टिंग जैसी तकनीकों का इस्तेमाल करती हैं। दो अलग-अलग टेक्सटाइल पैच को जोड़ने के लिए, वह थ्रेड डेडस्टॉक से क्रोशे तकनीक का उपयोग करके तीसरा कपड़ा या फीता बनाती हैं।

इसी तरह, गुप्ता गलत तरीके से रंगे या गलत छपे हिस्से को सजाने के लिए हाथ की कढ़ाई और सजावट तकनीकों का उपयोग करती हैं। अन्य मामलों में, डेडस्टॉक कपड़ों का उपयोग पैचवर्क के साथ कपड़ों को सजाने और ब्लाउज और लहंगे के लिए पोटली (ड्रॉस्ट्रिंग के साथ पारंपरिक पाउच) और लटकन (सजावटी लटकन) बनाने के लिए किया जाता है।
गुप्ता का दावा है कि जो डेडस्टॉक पूरी तरह से अनुपयोगी होता है, उसे धागे से अलग करके फिर से नए कपड़े में बुना जाता है – यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिसे डिजाइनर निशा चौहान के ‘इन जॉय लिविंग’ और ‘नो नैस्टीज’ जैसे ब्रांड भी अपनाते हैं। ‘नो नैस्टीज’ डेडस्टॉक यार्न और कपड़े दोनों का स्रोत है। जयपुर के कारीगर फिर इनसे हाथ से नए कपड़े बुनते हैं।
फैशन लेबल ‘डूडलेज’ के सह-संस्थापक पारस अरोड़ा कहते हैं कि चुनौतियों से निपटने के लिए उनके ब्रांड ने शुरुआत में ठोस रंगों में कपास जैसी सरल और अधिक अनुमानित सामग्री पर ध्यान केंद्रित किया। “समय के साथ, हमने महसूस किया कि खरीदार कच्चे माल की दुर्लभ प्रकृति की सराहना करते हैं और इसे एक प्रमुख अंतर के रूप में पहचानते हैं यदि परिधान की दिखावट बरकरार है। यह डेडस्टॉक उत्पादों को एक अनूठी अपील देता है, हमारे नवाचार और सस्टेनेबिलिटी के महत्व को रेखांकित करता है।”
मटेरियल के नवाचार, पर्यावरण के प्रति जागरूकता और सामाजिक कल्याण के कारण खरीदारों की रुचि डिजाइनरों को सीमित मात्रा और छोटे बैच पेश करने के लिए प्रोत्साहित कर रही है। ये कलेक्शन विशिष्टता की एक मजबूत भावना को प्रकट करते हैं और ग्राहकों को लुभाते हैं। मुंबई में एक फिल्म निर्माता स्मृति एस कहती हैं, “मैं नहीं चाहती कि मेरा फैशन हमारे ग्रह पर कोई अतिरिक्त बोझ डाले, इसलिए मैं ऐसे कपड़े खरीदने की कोशिश करती हूँ जो प्रकृति के लिए बेहतर हों।”

प्रकृति और व्यापार के लिए अनुकूल
कपड़ा, उत्पादन और परिवहन की लागत लगातार बढ़ रही है। इसलिए, जब डिजाइनर डेडस्टॉक के साथ काम करते हैं, इससे वे नए संग्रह में इनपुट लागत और पूंजी निवेश को कम करते हैं। “इस बचत का उपयोग मजदूरी, मशीन और लॉजिस्टिक्स जैसी अन्य व्यावसायिक लागतों की भरपाई के लिए किया जा सकता है। इससे हमारा मार्जिन बढ़ता है,” दिल्ली में रहने वाले गुप्ता ने बताया।
चूंकि ये बचे हुए और अप्रचलित कपड़े हैं, इसलिए खरीद से लेकर उत्पादन तक की प्रक्रिया में कम समय लगता है। छोटे व्यवसायों को भी लाभ होता है, क्योंकि वे भंडारण और इन्वेंट्री प्रबंधन पर कम खर्च करते हैं। कुछ लोगों का तर्क है कि ये कलेक्शन नए ग्राहकों को आकर्षित कर रहे हैं। डेडस्टॉक गारमेंट्स और एक्सेसरीज के लिए ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म ‘रिफैश’ की संस्थापक आकांक्षा कैला आकाशी कहती हैं, “खरीदारों का एक वर्ग जो पर्यावरण के प्रति जागरूक है, वह ऐसे ब्रांड की तलाश कर रहा है जो पर्यावरण मूल्यों के साथ मेल खाता हो।”
और पढ़ेंः ‘टेक, मेक, वियर एंड थ्रो’ के दौर में भारत की सर्कुलर फैशन का अर्थतंत्र
आकाशी का दावा है कि ‘रीफैश’ पर वर्तमान में 130 ब्रांड मौजूद हैं, जिनमें 90 स्वदेशी ब्रांड शामिल हैं। उन्होंने बताया कि उनके प्लेटफॉर्म पर प्रति वर्ष 20% की बिक्री वृद्धि देखी जा रही है।
हालांकि, अरोड़ा का कहना है कि डेडस्टॉक फैशन राजस्व लाभ की तुलना में पर्यावरणीय लाभ पर अधिक केंद्रित है। व्यवसाय से परे, यह बुनाई और संबंधित समुदायों को लाभ पहुंचाकर सामाजिक पूंजी भी बना रहा है – जो चक्रीय अर्थव्यवस्था या सर्कुलर इकोनॉमी के लिए एक सकारात्मक पहलू है।

कविशा पारिख का दावा है कि वह अपना सारा कच्चा माल (डेडस्टॉक फैब्रिक) स्थानीय बाजारों से खरीदती हैं और गुजरात और हिमाचल प्रदेश के कारीगरों के साथ काम करती हैं। पारिख बताती हैं, “कारीगरों का पारंपरिक शिल्प दिलचस्प है, लेकिन वे बाजार के रुझान और डिजाइन मूल्य को नजरअंदाज कर देते हैं। यहीं पर हम मूल्य जोड़ने और कारीगरी को संरक्षित करने के लिए कदम उठाते हैं।”
हालांकि, ये कदम अच्छे और पर्यावरण के अनुकूल हैं, लेकिन कुछ विशेषज्ञ ग्रीनवाशिंग के बारे में भी आगाह करते हैं। इंडिया वाटर फाउंडेशन के कुमार कहते हैं कि कुछ ब्रांड सस्टेनेबल उत्पादों के लिए बढ़ती मांग का लाभ उठा सकते हैं। जाने-माने पर्यावरण संरक्षणवादी माइक पांडे कहते हैं, “उपभोक्तावाद से प्रेरित दुनिया में ‘टिकाऊ शर्ट’ सुनने में अच्छी लग सकती है, लेकिन हमें गहराई में जाकर समस्या के मूल कारण को समझना होगा। ज़्यादा उत्पादन क्यों किया जाए?”
हालांकि, ब्रांड्स और डिजाइनरों का कहना है कि ग्रीनवाशिंग के बारे में आलोचना नियंत्रण और संतुलन बनाए रखने का काम करती है, लेकिन अत्यधिक आलोचना हतोत्साहित कर सकती है और बेहतर प्रयासों को बाधित कर सकती है।
यह खबर मोंगाबे इंडिया टीम द्वारा रिपोर्ट की गई थी और पहली बार हमारी अंग्रेजी वेबसाइट पर 20 अगस्त 2024 को प्रकाशित हुई थी।
बैनर तस्वीर: डूडलेज द्वारा डेडस्टॉक कपड़े से बनी एक पोशाक। आमतौर पर, डेडस्टॉक कपड़े गोदामों में पड़े रहते हैं या जला दिए जाते हैं या लैंडफिल में डाल दिए जाते हैं, जिससे पर्यावरण पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। तस्वीर – डूडलेज।