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[वीडियो] अंधविश्वास के साये में रेड सैंड बोआ सांप का अस्तित्व

गुरुग्राम में एक रेड सैंड बोआ। तस्वीर- शताब्दी चक्रबर्ती/मोंगाबे।

गुरुग्राम में एक रेड सैंड बोआ। तस्वीर- शताब्दी चक्रबर्ती/मोंगाबे।

  • रेड सैंड बोआ एक विषहीन साँप है, जो शुष्क झाड़ियों और घास के मैदानों में रहता है। ये स्थान इसे ढीली मिट्टी प्रदान करते हैं, जिसमें यह खुदाई कर छिप सकता है और शिकार का इंतजार कर सकता है।
  • दुनिया में सबसे अधिक अवैध रूप से व्यापार किए जाने वाले जीवों में से एक होने के कारण, इसे आईयूसीएन रेड लिस्ट में संकटग्रस्त होने की कगार पर (Near Threatened) श्रेणी में रखा गया है। वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 के तहत सुरक्षा मिलने के बावजूद, भारत में भी इस साँप की तस्करी हो रही है।
  • हाल ही में अधिनियम के संशोधन में रेड सैंड बोआ को अनुसूची-I के तहत संरक्षण प्रदान किया गया है।

शुष्क क्षेत्रों में पाए जाने वाला सांप रेड सैंड बोआ शांत स्वभाव का होता है। अपनी अनोखी बनावट के लिए जाना जाते वाले इस सांप का शरीर चिकना, मोटा और गहरे लाल-भूरे रंग का होता है। इसकी विशेषता इसकी पूंछ है, जो इसके शरीर जितनी ही मोटी होती है। यह पूंछ अंत में गोल और कुंद होती है, जिससे पहली नजर में यह सांप के सिर जैसी दिखती है। यह एक विकसित विशेषता है, जो शिकारी को भ्रमित करने के लिए होती है।  

अक्सर किसानों का मित्र कहे जाने वाले रेड सैंड बोआ खेतों के आसपास भी देखे जाते हैं। ये चूहे और अन्य कृतक (Rodents) खाकर उनकी संख्या को नियंत्रित रखने में मदद करते हैं। इसके अलावा, यह सांप पक्षियों, अंडों, छिपकलियों और यहाँ तक कि अन्य साँपों का भी शिकार करता है।

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इस प्रजाति की भारी तस्करी के पीछे व्यापक अंधविश्वास और मिथक जिम्मेदार हैं। अपनी अनोखी पूंछ के कारण इसे अक्सर ‘दोमुंहा साँप’ कहा जाता है। कुछ लोग मानते हैं कि इस साँप को अपने पास रखने से धन और समृद्धि आती है, जबकि कुछ का विश्वास है कि इसकी रीढ़ की हड्डी का उपयोग किसी पर वशीकरण करने के लिए किया जा सकता है। ऐसे अंधविश्वास पूरे देश में इसके अवैध व्यापार को बढ़ावा देते हैं।

एक और अंधविश्वास है कि अधिक वजन वाला सांप अधिक शक्तिशाली और अलौकिक शक्तियों वाला होता है। इस मिथक की वजह से सांप की तस्करी और अधिक क्रूर हो जाती है। इसी अंधविश्वास के कारण तस्कर साँप का वजन बढ़ाने के लिए जबरदस्ती इसे सीसे (लेड) की गोलियाँ खिलाते हैं।

हरियाणा वन विभाग के वन्यजीव निरीक्षक राजेश चहल कहते हैं, “मेरे कार्यकाल में सैंड बोआ की तस्करी के चार-पाँच मामले सामने आ चुके हैं। इसमें केवल किसी एक राज्य के लोग शामिल नहीं होते, बल्कि अलग-अलग राज्यों के लोग इसमें लिप्त होते हैं। यह किसी विशेष समुदाय तक सीमित नहीं है, बल्कि विभिन्न समुदायों के लोग इसमें संलिप्त हो सकते हैं। इसके अलावा, यह भी जरूरी नहीं कि केवल अशिक्षित लोग ही अंधविश्वासों में विश्वास करते हों। हमने देखा है कि अधिक शिक्षित और संपन्न लोग, जो अच्छी आर्थिक स्थिति में हैं, वे भी इस अवैध व्यापार में शामिल होते हैं।”

वे आगे कहते हैं, “पहले सैंड बोआ आसानी से दिखाई दे जाता था। हम इसे कच्ची सड़कों और खेतों के किनारे देख सकते थे। लेकिन अब यह दिखना बंद हो गया है।”

भारत अपनी जैव विविधता के कारण वन्यजीव तस्करी के लिए दुनिया के शीर्ष 20 देशों में शामिल है। दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों के निकटता और तेज़ी से बढ़ता हुआ विमानन बाजार भारत को अवैध व्यापार के लिए एक आदर्श स्रोत, ट्रांज़िट और गंतव्य देश बना देता है। बेजोड़ प्रजातियाँ और उनके अंग, जैसे बाघ, कछुए, कछुए की प्रजातियाँ, मॉनिटर छिपकलियाँ, पैंगोलिन, ज़ेबरा लोच और अन्य कई प्रजातियाँ ऑनलाइन और ऑफलाइन तस्करी की जा रही हैं।


इस वीडियो रिपोर्ट को मोंगाबे इंडिया और ALT EFF के संयुक्त पहल ‘वीडियो रिपोर्टिंग फंड 2024’ के सहयोग से तैयार किया गया है।


बैनर तस्वीरः गुरुग्राम में एक रेड सैंड बोआ। तस्वीर- शताब्दी चक्रबर्ती/मोंगाबे।

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