- पश्चिम बंगाल का हल्दिया एक प्रमुख औद्योगिक शहर है; जहां पेट्रोकेमिकल, पावर प्लांट, आयरन सहित 100 से अधिक औद्योगिक इकाइयां हैं। विभिन्न औद्योगिक इकाइयों के दूषित जल के नदी में प्रवाह से यहां की मछलियां व उनकी गुणवत्ता प्रभावित हो रही है।
- हल्दिया में जेटी बनाये जाने से गाद की समस्या बढ़ रही है। इससे मछुआरों को मछलियां पकड़ने में दिक्कत होती है।
- हल्दिया से सबसे अधिक मात्रा में फ्लाई ऐश और उसके बाद कोयले का परिवहन किया जाता है, जिसके पानी में घुलने पर मछलियों को नुकसान होता है।
यह रिपोर्ट देश के विभिन्न राष्ट्रीय जलमार्गों पर मोंगाबे हिंदी की सीरीज का पहला भाग है।
पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता से करीब 120 किमी दूर स्थित औद्योगिक नगरी हल्दिया से सटे सालुखखाली गांव के मछुआरे ताजुद्दीन मल्लिक (29) और आलम शाह (31) हुगली (पश्चिम बंगाल में गंगा का नाम) नदी में मछली पकड़कर अपना गुजारा करते हैं। पूर्व मिदनापुर जिले में बसा हल्दिया शहर हुगली और हल्दी नदी से घिरा हुआ है और कई पेट्रोकेमिकल उद्योगों का गढ़ है। हल्दी नदी हुगली की आखिरी सहायक नदी है। यह दक्षिण 24 परगना जिले से निकलती है और हुगली के बंगाल की खाड़ी में गिरने के पहले हल्दिया के पास इसमें मिल जाती है।
हल्दिया और इसके आसपास के मछुआरे हुगली एवं हल्दी नदी के संगम के आसपास के क्षेत्र में मछलियां पकड़ते हैं जो उनकी आजीविका का एकमात्र साधन है। हालांकि, पिछले कुछ सालों में इन नदियों में बढ़ते प्रदूषण और नौवहन के बढ़ते दबाव से ताजुद्दीन और आलम की आजीविका पर गहरा असर पड़ा है।
हल्दिया बंगाल की खाड़ी से काफी करीब है जहां से भारी मात्रा में नदी मार्ग से बांग्लादेश व अन्य जगहों के लिए जल परिवहन किया जाता है। यह शहर रूपनारायण नदी के भी करीब है, जिस पर राष्ट्रीय जलमार्ग – 86 का विकास किया जा रहा है। इन भौगोलिक विशिष्टताओं की वजह से यह जल परिवहन के लिए एक महत्वपूर्ण केंद्र है। हल्दिया में देश का एक प्रमुख नदी बंदरगाह भी स्थित है।
आलम मोंगाबे हिंदी से बातचीत में कहते हैं, “हुगली नदी में पहले से कम माछ (मछली) होता है, क्योंकि हल्दिया की फैक्टरियों का प्रदूषण नदी में बढ़ रहा है।” वहीं, ताजुद्दीन कहते हैं, “बांग्लादेशी बड़े जहाज जब अपने तय रास्ते पर नहीं चलते तो हमारे जाल को क्षति होती है। हम गरीब आदमी हैं और जाल बहुत महंगे होते हैं, उसकी कीमत की भरपाई नहीं की जाती है।”

ताजुद्दीन व आलम की ही तरह बंगाल की खाड़ी के पास गंगा डेल्टा के संकटग्रस्त द्वीपों में से एक, घोड़ामाड़ा के 30 वर्षीय मछुआरे विश्वजीत दास की सबसे बड़ी चिंता बड़े मालवाहक जहाजों की आवाजाही के बीच अपने परंपरागत पेशे के अस्तित्व को बचाने की है। विश्वजीत कहते हैं कि बड़े जहाज उन जैसे छोटी नाव वाले मछुआरों के जाल क्षतिग्रस्त कर देते हैं और सामान्यतः उस नुकसान की भरपाई नहीं की जाती है। कुछ साल पूर्व एक बांग्लादेशी मालवाहक जहाज से उनका जाल क्षतिग्रस्त हो गया था इसकी भरपाई के लिए उन्हें 200 लीटर डीजल के आंशिक मुआवजे से संतोष करना पड़ा। यह मुआवजा भी उन्हें, मछुआरों व उनके संगठन द्वारा दबाव बनाने के बाद हासिल हो पाया। यह मुआवजा आंशिक इसलिए है क्योंकि छोटे मछुआरों के जाल की कीमत करीब 50 से 60 हजार रुपए होती है, जबकि 200 लीटर डीजल की कीमत लगभग 18 हजार रुपए ही होती है।
ताजुद्दीन, आलम और विश्वजीत की चिंता में हल्दिया, उसके आसपास के इलाके और सुंदरवन के हजारों मछुआरों की चिंता प्रतिध्वनित होती है। इस संवाददाता के द्वारा इस रिपोर्ट के लिए हल्दिया व सुंदरवन क्षेत्र की तीन चरणों में की गई सघन यात्राओं में दर्जनों मछुआरों ने समान चिंता प्रमुखता से रखी।
केंद्र की महत्वाकांक्षी परियोजना व मछुआरों की बढ़ती चुनौतियां
हल्दिया, केंद्र सरकार की महत्वाकांक्षी जलमार्ग विकास परियोजना का एक महत्वपूर्ण केंद्र है। भारत सरकार के पत्तन, पोत परिवहन एवं जलमार्ग विकास मंत्रालय की इकाई भारतीय अंतरदेशीय जलमार्ग विकास प्राधिकरण (IWAI) द्वारा गंगा-भगीरथी-हुगली रिवर सिस्टम में हल्दिया से इलाहाबाद (अब प्रयागराज) तक 1620 किमी लंबे राष्ट्रीय जलमार्ग-1 के लिए कई स्थानों पर संरचनागत निर्माण किया जा रहा है। इसके तीन महत्वपूर्ण केंद्र पश्चिम बंगाल में हल्दिया, झारखंड में साहिबगंज और उत्तर प्रदेश में वाराणसी के पास रामनगर हैं, जहां मल्टीमॉडल टर्मिनल का निर्माण किया गया है। गंगा-भगीरथी-हुगली रिवर सिस्टम के इस हिस्से को 1986 में ही राष्ट्रीय जलमार्ग-1 घोषित किया गया था। अप्रैल 2014 में भारत सरकार के उपक्रम आरआइटीइएस ने देश में जल परिवहन की संभावनाओं पर एक विस्तृत रिपोर्ट तैयार की, जिसमें जल परिवहन को सड़क व रेल परिवहन से सस्ता बताया गया और राष्ट्रीय जलमार्ग-1 पर हल्दिया से प्रयागराज तक विकास के लिए 12 टर्मिनल चिह्नित किए गए।
इसके बाद केंद्र में मोदी सरकार के अस्तित्व में आने के बाद वर्ष 2016 में संसद में राष्ट्रीय जलमार्ग अधिनियम – 2016 (National Waterways Act – 2016) पारित किया गया, जिसके तहत देश में 111 वाटर वे घोषित किये गए और जलमार्ग विकास परियोजना के तहत राष्ट्रीय जलमार्ग-1 की परियोजनाओं को तीव्रता दी गई। राष्ट्रीय जलमार्ग-1 पारिस्थितीकीय एवं जैव विविधता के दृष्टिकोण से अत्यंत संवेदनशील, विश्व के सबसे बड़े डेल्टा व मैंग्रोव जंगल वाले सुंदरवन क्षेत्र से गुजरने वाले 172 किमी लंबे सुंदरवन जलमार्ग (राष्ट्रीय जलमार्ग–97) से जुड़ा है।

हल्दिया मल्टीमॉडल टर्मिनल के लिए तैयार किये गए डीपीआर में अर्थव्यवस्था के विकास और एक प्रतिस्पर्धी कारोबारी माहौल के लिए एक कुशल परिवहन क्षेत्र को आवश्यक बताया गया है। डीपीआर में कहा गया है कि हल्दिया सड़क व रेल मार्ग से अच्छी कनेक्टिविटी के साथ एक नदी बंदरगाह स्थान भी है। यह जगह हल्दिया से इलाहाबाद तक जलमार्ग-1 के मार्ग के पास स्थित पश्चिम बंगाल, बिहार और उत्तरप्रदेश के बिजली संयंत्रों, इस्पात संयंत्रों और विभिन्न उद्योगों की जरूरतों को पूरा करने के लिए आयात के ट्रांसशिपमेंट को आकर्षित करने के लिए अनुकूल स्थान पर स्थित है। साथ ही यह बांग्लादेशी कार्गो के परिवहन के लिए भी एक अनुकूल स्थान है।
डीपीआर में परिवहन के लिए फ्लाई ऐश, उर्वरक, नेचुरल एग्रीगेट, पेट्रोलियम प्रोडक्ट को प्रमुख कमोडिटी के रूप में चिह्नित किया गया और साथ ही ट्रैफिक में मात्रात्मक वृद्धि का आकलन प्रस्तुत किया गया है। इसके अनुसार, 2025 की तुलना में 2035 में फ्लाई ऐश के परिवहन में 31.62 प्रतिशत की वृद्धि हो जाएगी, जबकि 2045 में 2025 की तुलना में यह वृद्धि 62.97 प्रतिशत की होगी। इसी तरह कोयले के परिवहन में 2025 की तुलना में 2035 में 51.88 प्रतिशत और 2040 तक 60.71 प्रतिशत की वृद्धि की अनुमानित संभावना है।
चूँकि सभी प्रमुख कमोडिटी रसायन हैं, ऐसी स्थिति में किसी भी दुर्घटना या रिसाव की स्थिति में नदी में प्रदूषण की आशंका बढ़ जाती है। नदियों में बड़ी संख्या में जहाजों के परिचालन से होने वाला प्रदूषण भी एक मुद्दा है।
जहाजों से नदी में होने वाले प्रदूषण को नियंत्रित करने को लेकर इस संवाददाता द्वारा सूचना के अधिकार कानून के तहत मांगी गई जानकारी में भारतीय अंतर्देशीय जलमार्ग प्राधिकरण द्वारा बताया गया, अंतर्देशीय जलमार्ग प्राधिकरण एक्ट 1985, इनलैंड वेसिल्स एक्ट 2021 और इनलैंड वेसेल्स (प्रिवेंशन एंड कंटेनमेंट ऑफ पॉल्यूशन) रूल्स 2022 जहाजों से अंतर्देशीय जल पर होने वाले प्रदूषण की रोकथाम व नियंत्रण के लिए मार्गदर्शक कारक या गाइडलाइन हैं।
जेटी निर्माण और गाद का संकट
जलमार्ग के विस्तार के लिए जगह-जगह जेटी बनाई जानी हैं। इस निर्माण कार्य में बहुत गाद निकलती है, साथ ही निर्माण के बाद इस क्षेत्र में गाद के जमा होने की गति भी बढ़ जाती है। गाद की वजह से मछुआरों को नाव खेने में, उसे किनारे लगाने में और मछलियां पकड़ने में दिक्कत होती है।
हल्दिया के पास बेगुनाबेड़िया के मछुआरे रवींद्रनाथ पात्रा कहते हैं, “हल्दिया में जो जेटी बनाया गया है, उसके पिलर का निकाला गया गाद वहीं डाल दिया है, इससे वहां गाद जमा हो गया है, जिससे मछुआरों को दिक्कत होती है। दो साल से वहां ड्रेजिंग किया जा रहा है, लेकिन उसका कोई मतलब नहीं है और मछुआरों को कोई लाभ नहीं है।” पात्रा बाचतीत में नए प्रस्तावित जेटी के निर्माण को लेकर भी चिंता प्रकट करते हैं।
छोटे मछुआरों के संगठनों के राष्ट्रीय गठजोड़ नेशनल प्लेटफॉर्म फॉर स्मॉल स्केल फिश वर्कर से संबद्ध व दक्षिण बंगाल में सक्रिय दक्षिण बंग मत्स्यजीवी फोरम (DMF) ने 14 अगस्त 2024 को कोलकाता स्थित श्यामा प्रसाद मुखर्जी पोर्ट (पुराना नाम कोलकाता पोर्ट) के चेयरमैन को एक पत्र लिखकर जेटी निर्माण से मछुआरों पर पड़ने वाले असर का मुद्दा उठाया। मालूम हो कि कोलकाता व हल्दिया बंदरगाह कांप्लेक्स इसके नियंत्रण में हैं। पत्र में हल्दिया डॉक-2 पर एक, दो, तीन व चार जेटी निर्माण का विरोध करते हुए कहा गया कि ऐसे निर्माण ने हुगली व रूपनारायण नदी में मछली पकड़ने वाले छोटे मछुआरों को बुरी तरह प्रभावित किया है। पत्र में कहा गया है कि हल्दिया क्षेत्र के आसपास हुगली नदी से निकाली गई गाद रूपनारायण नदी के पास स्थित जियोनखाली में डाली जा रही है। इससे वहां के मछुआरे प्रभावित हो रहे हैं। पूर्वी मिदनापुर के महिषादल ब्लॉक में स्थित जियोनखाली गांव के पास ही हुगली, दामोदर व रूपनारायण नदी का संगम स्थित है।

पत्र में कहा गया है कि जेटी निर्माण नदी के पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान पहुंचाता है और मछली की संख्या को प्रभावित करता है। इस पत्र में यह भी कहा गया है कि बड़े जहाजों की आवाजाही लगातार ध्वनि प्रदूषण और पानी में कंपन का कारण बनते हैं और वे तय शिपिंग रूट का पालन नहीं करते हैं।
दिलचस्प बात यह है कि अंतरदेशीय जलमार्ग, टर्मिनल, जेटी इनवायरमेंट इंपेक्ट एसेसमेंट नोटिफिकेशन 2006 (EIA Notification 2006) के तहत शामिल नहीं हैं, इसलिए इन्हें पर्यावरणीय मंजूरी की जरूरत नहीं है। भारत के जलमार्गों पर रिसर्च करने वाली संस्था मंथन अध्ययन केंद्र की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि विभिन्न परियोजनाओं के लिए पर्यावरणीय मंजूरी से संबंधित प्रावधानों को लेकर जारी पर्यावरणीय प्रभाव अधिसूचना (इआइए अधिसूचना) 2006 में जलमार्गों का कहीं जिक्र नहीं है। इसमें जिस तरह की परियोजनाओं के लिए पर्यावरणीय मंजूरी को अनिवार्य बताया गया है, उसमें बंदरगाह, हार्बर, ब्रेकवाटर, ड्रेजिंग का उल्लेख है। रिपोर्ट में उल्लेख है कि 24 अक्टूबर 2016 के एनजीटी के सामने राष्ट्रीय जलमार्ग से जुड़े एक विवाद पर पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने अपने हलफनामे में कहा कि जेटी, बहुद्देशीय टर्मिनल और अंतरदेशीय जलमार्ग इआए अधिसूचना 2006 के तहत नहीं आते हैं। हालांकि जलमार्ग के लिए जहां ड्रेजिंग की आवश्यकता होगी, वहां पर्यावरणीय अनुमति लेनी होगी।
इस संबंध में मंथन अध्ययन केंद्र के संस्थापक संयोजक व इस रिपोर्ट के मुख्य लेखक श्रीपाद धर्माधिकारी ने मोंगाबे हिंदी से कहा, “सरकार जलमार्ग के लिए जरूरी पर्यावरणीय स्वीकृतियों से चतुराई से बच गई है, उसे सिर्फ ऐसे हिस्से में जहां कोई सेंचुरी या प्रोटेक्टेड एरिया घोषित है और जहां वन्यजीव संरक्षण कानून लागू होता है (जैसे भागलपुर में डॉलफिन सेंचुरी व यूपी में कछुआ सेंचुरी) या फिर वह हिस्सा कॉस्टल रेगुलेशन जोन (जैसे हल्दिया का आंशिक हिस्सा) के तहत आता है तो पर्यावरणीय स्वीकृति की आवश्यकता है। जबकि जरूरत इस बात की है कि संपूर्ण पर्यावरणीय प्रभाव व स्थानीय समुदाय पर पड़ने वाले असर का आकलन होना चाहिए और उससे प्रभावित होने वाले लोगों से परामर्श करना चाहिए।”

कानून व नियमों के तहत भले ही जेटी को पर्यावरणीय मंजूरी से छूट दी गई हो, पर इसके पर्यावरणीय दुष्प्रभाव पर प्रभावित समुदाय खुल कर बात करता है। दक्षिण बंग मत्स्यजीवी फोरम के अध्यक्ष देवाशीष श्यामल मोंगाबे हिंदी से कहते हैं, “जेटी बनाने से निकलने वाले गाद से नदी में सिल्टेशन यानी गाद जमा होने की समस्या बढ़ रही है। हल्दिया के पास पातीखाली में जेटी निर्माण होने के बाद वहां एक कैनाल भर गया, जिसे पातीखली कैनाल ही कहते हैं, उसमें मछुआरे अपने छोटे नाव को रखा करते थे।” वे कहते हैं कि गाद जमा होने के कारण नदी सिकुड़ती जा रही है और उससे मछलियों की संख्या और मछुआरों की आजीविका को नुकसान हो रहा है।
सेंट्रल इनलैंड फिशरीज रिसर्च इंस्टीट्यूट (CIFRI) के वर्ष 2017 के एक अध्ययन में उल्लेख मिलता है कि राष्ट्रीय जलमार्ग-1 में सागर से फरक्का तक बजरों की आवाजाही से मछुआरों को कुछ परेशानियों का सामना करना पड़ता है। इसमें मछली पकड़ने से जबरन रोकना, जालों का उखड़ जाना, मछली पकड़ने के समय की हानि और जाल के क्षतिग्रस्त होने के खतरे जैसे मुद्दे शामिल हैं। ऐसी समस्या नदी के घुमावदार व संकरे हिस्सों के पास अधिक है।
यह अध्ययन 500 मछुआरों पर किए गए सर्वे पर आधारित है, जिसमें 38 प्रतिशत मछुआरों ने मछली पकड़ने के समय के नुकसान की बात कही। अध्ययन में यह भी उल्लेख है कि जाल नष्ट होने से उनकी आजीविका पर खासा प्रभाव पड़ता है।
हल्दिया का औद्योगिक कचरा और प्रदूषण
हल्दिया के उद्योगों से निकलने वाला प्रदूषित पानी और शहर के सीवेज के नदी में सीधे मिलने से भी हुगली और हल्दी नदी और इन पर आश्रित मछुआरों पर गहरा प्रभाव पड़ता है।
हल्दिया के बेगुनबेड़िया गांव के निवासी मछुआरा रवींद्रनाथ पात्रा कहते हैं, “पातीखाली में हम लोगों ने नदी में गंदा पानी बहाने का विरोध किया था, क्योंकि उससे मछलियां मर जाती हैं या फिर उनको नुकसान होता है, जिससे मछुआरे प्रभावित होते हैं, हमारे गांव में भी होड़खाली खाल से गंदा पानी नदी में बहाया जाता है। बारिश के महीनों में या ठंड के शुरुआती महीने में जब पानी अधिक रहता है तो नुकसान कम पता चलता है, लेकिन उसके बाद यह साफ दिखता है।”
दक्षिण बंग मत्स्यजीवी फोरम के अध्यक्ष देवाशीष श्यामल कहते हैं, “हल्दिया पश्चिम बंगाल का एक प्रमुख औद्योगिक शहर है जहां 100 से अधिक औद्योगिक इकाइयां हैं, जिनका प्रदूषित पानी नदी में जा रहा है उससे मछलियों की संख्या व स्वाद प्रभावित हो रहा है।”
प्रदूषित जल का गंगा या हुगली नदी में पातिखली के पास प्रवाह, इसी जगह जेटी बनाई गई है और इसके पास ही मल्टी मॉडल टर्मिनल का निर्माण हुआ है। तस्वीर- राहुल सिंह मोंगाबे के लिए
फोरम ने उद्योगों के प्रदूषित पानी के नदी में बहाव को लेकर पश्चिम बंगाल मत्स्य विभाग को 2023 व 2024 में दो पत्र लिखकर कार्रवाई व रोक की मांग की थी। इसके जवाब में अगस्त 2024 में विभाग ने आगे की कार्रवाई के लिए प्रदूषण की जगह का नाम व पता माँगा था। इस पर श्यामल कहते हैं, “ऐसी जगहों को चिन्हित करने का काम मूलतः सरकार व उसके संबंधित विभाग का ही है, जिस बारे में वे हमसे पूछ रहे हैं।” वे कहते हैं कि प्रदूषण स्पष्ट रूप से दिखता है, 40 साल पहले नदी के जिस पानी को लोग पीते थे, उसे अब छू भी नहीं सकते।
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की वेबसाइट पर उपलब्ध डेटा के अनुसार, सितंबर 2024 में पातीखाली के पास के लिये गये नमूने की जांच में इसकी जल गुणवत्ता को मानकों के अनुरूप नहीं पाया गया। यह पानी पीने ही नहीं बल्कि नहाने के लायक भी नहीं पाया गया। वहीं, बोर्ड की ड्रेन से संबंधित सबसे नवीनतम रिपोर्ट (2022 की) में हल्दिया में हुगली नदी पर तीन ड्रेन का ब्यौरा मिलता है। इसमें अकेले ग्रीन कैनाल ड्रेन से 252.82 एमएलडी अनटेप्ड ड्रेन यानी खुले नाले का प्रवाह होता है, यह एक मिश्रित प्रकृति (औद्योगिक एवं घरेलू) और अत्यधिक क्षमता का ड्रेन है। जबकि झीकुरखाली ड्रेन से 10.58 एमएलडीअनटेप्ड ड्रेन का प्रवाह होता है। तीसरा ड्रेन बेगुनबेड़िया गांव में है और उसका डेटा उपलब्ध नहीं है।
सिफरी की 2021 की वार्षिक रिपोर्ट में उल्लेख मिलता है कि हल्दिया से आगे सुंदरवन क्षेत्र में हुगली नदी के ज्वारनदमुख/मुहाना (Estuaries) पर क्रोमियम, कॉपर व जिंक अधिक दर्ज की गई, जबकि उससे ऊपरी क्षेत्र में कैडमियम अधिक पाया गया। ज्वारनदमुख पर रेत की भी समस्या दर्ज की गई। माइक्रोप्लास्टिक का भी प्रदूषण दर्ज किया गया।
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एक अन्य रिसर्च में, हल्दिया में हुगली व हल्दी नदी में हैवी मेट्लस की अत्यधिक मात्रा की वजह से मछलियों के स्वास्थ्य व उनके उत्तकों पर असर पड़ने की बात कही गई है।
दक्षिण बंग मत्स्यजीवी फोरम ने 24 जून 2024 को राज्य सरकार के मत्स्य विभाग को लिखे अपने पत्र में कारखानों के अपशिष्टों से उत्पन्न गंभीर प्रदूषण और उससे छोटे मछुआरों को हो रहे नुकसान को लेकर हस्तक्षेप व आपसी परामर्श की मांग की है। इससे पहले दिसंबर 2023 को लिखे गये पत्र में यह उल्लेख किया था कि इस क्षेत्र में पकड़ी गई मछलियों को पकाते समय उनसे बदबू आने पर मछुआरों द्वारा बेची गई मछलियों के लिए ग्राहकों को पैसा वापस करने जैसी स्थितियां भी आयी हैं। अब तक मछलियों को प्रदूषित करने वाले रसायनों का पता लगाने और इन रसायनों के स्रोत की पहचान के लिए कोई अध्ययन या जांच नहीं की गई है और इसके बिना इसका समाधान संभव नहीं है।
बैनर तस्वीरः हल्दिया में जेटी बनाये जाने से गाद की समस्या बढ़ रही है। इससे मछुआरों को मछलियां पकड़ने में दिक्कत होती है। तस्वीर- राहुल सिंह मोंगाबे के लिए