- भारत में झारखंड लाख (लाह) का प्रमुख उत्पादक है जो कुल उत्पादन का लगभग 54 प्रतिशत योगदान करता है। लाख के कीट मुख्य रूप से पलाश, कुसुम और बेर के पेड़ों पर पनपते हैं, लेकिन मौसम में बदलाव और इन पेड़ों की कमी की वजह से उत्पादन पर असर होने लगा था।
- गर्मी और अनियमित वर्षा की वजह से कुसुम और बेर जैसे पेड़ों पर लाख के कीड़े रेसीन उत्पादन से पहले ही मर जाते हैं। उच्च तापमान और घटती नमी ने लाख कीड़ों की मृत्यु दर बढ़ा दी है और लिंग अनुपात में असंतुलन पैदा कर दिया है, जिससे मादा कीड़ों की संख्या कम हो गई है।
- इस समस्या का समाधान सेमियालता के पौधे लेकर आए हैं। कम उपजाऊ जमीन में भी उग सकने वाले इन पौधों पर लाख के कीट पाले जा सकते हैं जिससे झारखंड के कई जिलों में उत्पादन में बढ़ोतरी हुई है।
- 2023 में झारखंड सरकार ने लाख की खेती को कृषि का दर्जा दिया है। राज्य में मुख्यतः नौ जिलों- लातेहार, पलामू, रांची, खूंटी, सिमडेगा, गुमला, पश्चिमी सिंहभूम, सरायकेला-खरसांवा एवं गढ़वा लाख की खेती की जाती है।
झारखंड के लातेहार जिला के सुदूर मनिका प्रखंड में शीला उरांव अपने खेत में छोटे-छोटे पौधों के चारों ओर मिट्टी हटा रही हैं। बगल वाली क्यारी में उनकी बेटी रीना पौधे की जड़ के पास मिट्टी को गोलाकार रूप दे रहीं है। खेत में एक-दो पुरुष किसानों के हाथ में जमीन खोदने के लिए गईता है। शीला बता रही हैं कि केले के पत्ते से छोटे और केलवा फूल के पत्ते से थोड़े लंबे पत्ते वाले पौधे सेमियालता हैं।
पलाश परिवार का पौधा सेमियालता (Flemingia semialata) इस इलाके के किसानों के लिए कमाई का अच्छा साधन बन रहा है। इन पौधों पर लाख (लाह) के कीट पनपेंगे जिससे लाख का उत्पादन होगा।
आमतौर पर लाख के कीट कुसुम, पलाश और बेर जैसे जंगली पेड़ों पर पलते हैं, लेकिन बीते कुछ वर्षों में ये बड़े पेड़ मौसम की मार झेल रहे हैं। साथ ही बड़े होने की वजह से इन पेड़ों की देखभाल में मुश्किल आती है।
लाख या लाख के कीट अपने शरीर से एक प्रकार की राल पैदा करते हैं जिसका उपयोग कई तरह के उद्योगों में होता है। लाख का उपयोग चपड़ा बनाने, लहठी बनाने,फर्नीचर की पालिश बनाने, खिलौनों को रंगने और सोने चांदी के आभूषणों में खाली स्थानों को भरने में होता है। साथ ही इसका उपयोग नेल पॉलिश, बूट पॉलिश, हेयर डाई, परफ्यूम, दवा, व बिजली के समान बनाने के साथ अन्य कई वस्तुओं के उत्पादन में किया जाता है। परफ्यूम बनाने में लाख की जो लिक्विड उपयोग में ली जाती है उसकी कीमत हजारों रुपये प्रति लीटर होती है, साथ ही लाख दवाइयों की कोटिंग करने में भी उपयोग में लायी जाती है।
पहले घटा, अब रिकॉर्ड उत्पादन
भारत, लाख का सबसे बड़ा उत्पादक देश है। भारत में हर साल लगभग 20 हज़ार टन लाख का उत्पादन होता है। लाख उत्पादन का करीब 65 प्रतिशत हिस्सा दुनिया के दूसरे देशों को निर्यात किया जाता है।
लाख उत्पादक जिलों के स्थानीय साप्ताहिक बाजारों में 2019-20 के दौरान एक सर्वेक्षण किया गया। कुल 18,944 टन लाख के राष्ट्रीय उत्पादन का अनुमान लगाया गया, जिसमें रंगिनी (6050 टन) और कुसुमी (12894 टन) शामिल हैं। लाख उगाने वाले राज्यों में झारखंड राज्य पहले स्थान पर है (54.60%), इसके बाद छत्तीसगढ़ (18.37%), मध्य प्रदेश (13.03%), पश्चिम बंगाल (5.57%), महाराष्ट्र (4.50%), और ओडिशा (3.55%) हैं। ये छह राज्य भारत में कुल लाख उत्पादन का 99% से अधिक योगदान करते हैं।

साल 2019-20 में कुल लाख उत्पादन, औसतन उत्पादन की तुलना में लगभग 3.28% बढ़ा है। पूरे भारत का वार्षिक लाख उत्पादन 1970-71 से 2019-20 के बीच 15,000 टन से 20,000 टन के बीच रहा, जिसमें 1972-73 में 23,000 टन का उच्चतम स्तर और 2010-11 में 9,000 टन का न्यूनतम स्तर था। इसी तरह, झारखंड राज्य ने 1970-71 से 2019-20 के बीच प्रति वर्ष लगभग 7000 टन से 12000 टन का योगदान दिया, जिसमें 1973-74 में 16,000 टन का उच्चतम स्तर और 2010-11 में 4,000 टन का न्यूनतम स्तर था।
लाख उत्पादन पर पलायन का भी असर, सेमियालता से समाधान
पलामू जिले से अलग हुआ लातेहार जिला लाख उत्पादन के मामले में एक वक्त झारखंड में शीर्ष पर था। हालांकि, बीच में उत्पादन में कमी आने लगी थी। महिला किसान प्रभा देवी के मुताबिक 20-30 साल पहले तक लाख उत्पादन में लातेहार जिले का नाम था। लेकिन पिछले कुछ वर्षों से जिले में लाख का उत्पादन कम हो गया था।
लाख की खेती से जुड़ी जयंती गंझु ने मोंगाबे हिन्दी से बातचीत के दौरान बताया कि वह इसकी एक वजह पलायन को मानती हैं। वह कहती हैं कि लाख को तैयार होने में लगभग चार महीने का समय लगता है। लाख तैयार होने के बाद डालियों सहित लाख को काट लिया जाता है। कुसुम के पेड़ बड़े होते हैं, इसमें दो क्विंटल तक लाख का उत्पादन हो सकता है, जबकि बेर और पलाश के पेड़ काफी छोटे होते हैं, इनमें 20 से 25 किलो लाख का उत्पादन होता है।
हालांकि, इन पेड़ों को काटने-छांटने पर ही नये पत्ते निकलते हैं। लाख का कीड़ा नया पत्ता चबाता है।
“इन पेड़ों की लंबाई अधिक होने के कारण हम महिलाएं पेड़ पर चढ़ नहीं पातीं और गाँव के पुरुष अब बाहर कमाने चले जाते हैं जिस कारण पेड़ों की कटाई-छंटाई नहीं हो पा रही है,” जयंती गंझु ने बताया।
दूसरी महिला किसान गीता उरांव भी जयंति की बातों से सहमति जताते हुए कहती हैं, “ऊँचे पेड़ पर महिलाएं दवा भी नहीं छिड़क पाती हैं। लाख के कीड़ों में गर्मी से फंगस लग जाता है फिर कीटनाशक नहीं छिड़कने से कीड़े मर जाते हैं। ऐसे में छोटे-छोटे सेमियालता हमारे लिए वरदान हैं।”
जयंति गंझु पिछले दो साल से लाख की खेती कर रही हैं। “स्वयं सहायता समूह से जुड़ी महिलाओं को लाख उत्पादन के लिए प्रशिक्षण दिया गया है। इसके बाद उन्हें लाख के बीज भी मुफ़्त में दिए जाते हैं। बहुत साल बाद हिम्मत कर लाख की खेती शुरु किये अब चार माह बाद हमारे समूह को 67 हजार रुपया मिला,” उन्होंने बताया।
लातेहार जिले के चंदवा में सड़क के किनारे वन उत्पादकता संस्थान का दफ्तर है। यहां सूरज सिंह वन उत्पादकता संस्थान के प्रोजेक्ट्स देखते हैं। उन्होंने बताया, “लगभग पौने दो हैक्टेयर में फैले इस फार्म में लाख उत्पादन की गुणवत्ता और उत्पादन बढ़ाने पर कार्य करते हैं। पिछले दिनों कुसुम और बेरी के पेड़ पर हमने लाख के कीड़े डाले लेकिन कीड़ों ने अपने रेसीन उत्पादन के पहले ही दम तोड़ दिया। कुसुम के पेड़ को दिखाते हुए बताया कि हमने दो-तीन बार इन पौधों पर लाख के बीज डाले लेकिन वो बीज उग ही नहीं पाये। बढ़ती गर्मी का कहर कुसुमी लाख उत्पादन पर पड़ा है।”
इस फार्म में खुदाई करते चिरो गाँव के बाल मुकुंद गंझु (38 वर्ष) खेत की खुदाई में लगे हुए हैं। फार्म में अलग-अलग रिसर्च के पेड़-पौधे के बीच गंझु सेमियालता लगाने में व्यस्त थे। पौधे लगाते हुए वे नाखुश हैं। वह कहते हैं, “मेरे गाँव और लातेहार जिले के किसान अब लाख उगाना ही नहीं चाहते। गाँव में ज्यादा औरतें हैं मर्द सब कमाने के लिए पलायन कर गए हैं।”

उन्होंने पुराना समय याद करते हुए कहा कि एक जमाना था अकेले लातेहार में बाईस से ज्यादा आढ़ती लाख को खरीदते थे। पहले कुसुम और बेर पर लाख निकलता था। लाख कीड़ों को खाना-पानी देने वाले पेड़ों में कुसुम का स्थान सबसे बढ़िया है एवं इससे लाख उत्पादन ठीक होता था।
“लेकिन अब ना उतने कुसुम के पेड़ रहे ना लोगों में उत्साह और न कोई पेड़ लगाना चाहता है।” उन्होंने कहा।
सेमियालता क्यों है खास
सेमियालता पौधा अधिकतम सात फीट तक होता है। इसकी आयु 10 वर्ष होती है। एक बार लाख के लिए इसकी शाखाओं को काटने बाद पुनः निकल आता है और अगली खेती के लिए तैयार हो जाता है। छोटा आकार होने के कारण इसकी देख-रेख, दवा का छिड़काव, लाख का बीज लगाने में सुविधा होती हैं। महिला किसान भी इस कार्य को आसानी से कर पाती हैं। एक पौधे से 5-6 किलो तक लाख प्राप्त हो जाता है।
ये पौधे अपनी शाखाओं और पत्तियों की संरचना के कारण लाख उत्पादन के लिए उपयुक्त हैं। यह पौधा लाख कीटों को पोषण और सुरक्षा प्रदान करता है, जिससे उनकी वृद्धि और लाख उत्पादन में सुधार होता है।
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सेमियालता पर अन्य पौधों की तुलना में लाख उत्पादन अधिक और उच्च गुणवत्ता का होता है। यह पौधा खराब मिट्टी में भी उगाया जा सकता है, जहां दूसरी कोई फसल नहीं होती। साथ ही यह मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने में भी सहायक है।
मौसम में बदलाव का असर
रांची स्थित भारतीय प्राकृतिक रेज़िन और गम संस्थान (IINRG) के वैज्ञानिकों की एक टीम द्वारा किए गए शोध ने झारखंड और पश्चिम बंगाल में घटते लाख उत्पादन को बदलते तापमान और वर्षा के पैटर्न से जोड़ा है। इस अध्ययन के लिए, संस्थान के निदेशक आर. रमानी के नेतृत्व में शोधकर्ताओं ने 1984-2012 के दैनिक तापमान और वर्षा के आंकड़ों का विश्लेषण किया। उन्होंने पाया कि सर्दी के पहले और गर्मी के महीने लगातार अधिक गर्म हो रहे हैं, जबकि सर्दी के बाद के महीने पहले की तुलना में अधिक ठंडे हो रहे हैं। अगस्त के अधिकतम तापमान में 1.7°C तक की वृद्धि और न्यूनतम तापमान में 0.5°C तक की कमी दर्ज की गई। अपनी रिपोर्ट में रमानी कहते हैं कि अगस्त और सितंबर के बारिश वाले महीनों के दौरान तापमान में बदलाव बेहद महत्वपूर्ण होता है, क्योंकि ये महीने लाख कीटों की प्रजनन-पूर्व और प्रजनन के लिए जरूरी है।

उनका कहना है कि तापमान में वृद्धि लाख कीटों की मृत्यु दर को बढ़ाती है। अध्ययन यह भी बताते हैं कि बढ़ते तापमान से यह संभव है कि लाख कीड़े विभिन्न रोगों शिकार हो जाते हैं। रमानी यह भी बताते हैं कि उच्च तापमान लाख कीटों के लिंग अनुपात को प्रभावित करता है। “अध्ययनों से पता चला है कि उच्च तापमान के कारण लाख कीटों में नर की संख्या से बढ़ जाती है, वे कहते हैं। चूंकि केवल मादा लाख स्रावित करती हैं, उनकी संख्या में कमी से लाख उत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।” रमानी ने बताया।
साल 2022 में छपे एक शोधपत्र के अनुसार झारखण्ड राज्य ने ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना के दौरान लाख उत्पादन में 9.85% की सकारात्मक वृद्धि दर दर्ज की, जो बारहवीं पंचवर्षीय योजना में घटकर -6.07% हो गई। जिलावार लाख उत्पादन के औसत मूल्य में ग्यारहवीं से बारहवीं योजना के दौरान प्रतिशत परिवर्तन से पता चला कि रांची-खूंटी जिले में 134% की वृद्धि के साथ सबसे अधिक वृद्धि दर्ज की गई, इसके बाद गुमला (45%), सिमडेगा (27%) और सिंहभूम (27%) का स्थान रहा। हालांकि, कुछ जिलों में सामान्य गिरावट देखी गई और सबसे अधिक गिरावट लातेहार (-69%) में दर्ज की गई, इसके बाद गढ़वा (-68%) और पलामू (-3%) का स्थान रहा। रांची-खूंटी जिले में वृद्धि इस ओर इंगित करता है कि इन जिलों में तापमान में ज्यादा बढ़ोतरी नहीं हूँ जिस वजह से लाख क्रिस्टलीकृत हुए, लेकिन लातेहार, गढ़वा और पलामू जिलों में बढ़ते तापमान और घटती नमी ने असर दिखाया है।
वन उत्पादकता संस्थान, रांची के वैज्ञानिक आदित्य कुमार कहते हैं कि कुसुम वृक्ष पर ग्रीष्मकालीन और शीतकालीन दोनों मौसम के लाख कीट को पाला जा सकता है। रंगीनी लाख कीट की तुलना में कुसमी लाख कीट नजदीक-नजदीक बैठते हैं एवं इनकी लाख उत्पादन क्षमता रंगीनी के मुकाबले अधिक होती है। कुसमी लाख से अगहनी (शीतकालीन) और जेठवी (ग्रीष्मकालीन) फसल क्रमशः जून-जुलाई से जनवरी-फरवरी तथा जनवरी-फरवरी से जून-जुलाई तक की होती है।
“अब गर्मी की वजह से लाख क्रिस्टलीकृत नहीं हो पा रहे हैं और लाख निकलने से पहले ही लाख के कीड़े मर जाते हैं। कुसुमी लाख के लिए ठंडी और नमी भरी जलवायु आवश्यक है। लेकिन अब झारखंड में लाख उत्पादन बढ़ते तापमान,अनियमित वर्षा और जलवायु परिवर्तन की मार झेल रहा है,” कुमार कहते हैं।
बैनर तस्वीरः सेमियालता पौधा अधिकतम सात फीट तक होता है। इसकी आयु 10 वर्ष होती है। तस्वीर- आदित्य कुमार