- केरल में विझिनजम अंतरराष्ट्रीय बंदरगाह का नजदीकी फिशिंग हार्बर, यहां बार-बार होने वाली दुर्घटनाओं और मछुआरों की मौतों के कारण चर्चा में है।
- पानी में बढ़ते रेत के जमाव के चलते बंदरगाह के आसपास के इलाकों में दुर्घटनाओं की संभावना बढ़ गई है। गाद निकालने का काम ठीक से न हो पाने से परेशानी और बढ़ी है।
- हालांकि सरकार और बंदरगाह संचालक दुर्घटनाओं के लिए एक-दूसरे को दोषी ठहरा रहे हैं। लेकिन कई अनियमितताएं सामने आईं हैं, जिनमें से एक बंदरगाह का खराब डिजाइन भी है।
केरल के त्रिवेंद्रम में विझिनजम तट पर बने भारत के पहले गहरे पानी के कंटेनर ट्रांसशिपमेंट पोर्ट, ‘विझिनजम इंटरनैशनल सीपोर्ट’ ने पिछले साल जुलाई में चीन से आए पहले बड़े जहाज को लेकर ट्रायल शुरू किया। लेकिन इस पोर्ट के खबरों में आने की एकमात्र वजह यह नहीं है। दरअसल, यह क्षेत्र आस-पास के मछुआरों के लिए परेशानी का सबब बना हुआ है। इसके पास के मुथलापोझी फिशिंग हार्बर (मछली पकड़ने वाला इलाके) में पिछले 10 सालों में 70 से ज्यादा मछुआरों की जान जा चुकी हैं और उनकी सुरक्षा को लेकर चिंताएं बढ़ी हैं।
अडानी विझिनजम पोर्ट प्राइवेट लिमिटेड (AVPPL) ने एक भू-स्वामी मॉडल और पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप (PPP) के जरिए इस बंदरगाह को बनाया। इसका संचालन ‘डिजाइन, निर्माण, फाइनेंस, संचालन और हस्तांतरण’ (DBFOT) के आधार पर होता है। इस प्रोजेक्ट को अडानी पोर्ट्स प्राइवेट लिमिटेड, केंद्र और केरल सरकार ने मिलकर फाइनेंस किया है।
मुथलापोझी, त्रिवेंद्रम के उत्तरी तट के पास, परुमाथुरा और थाझम्पल्ली गांवों के बीच प्राकृतिक रूप से बना मिट्टी का टीला है। यह टीला दो झीलों, अंचुथेंग और काडिनमकुलाम को अरब सागर से जोड़ता है।
मुथलापोझी फिशर हार्बर – एक तटीय प्रवेश द्वार पर स्थित है जहां वामनपुरम नदी अरब सागर से मिलती है। नदी के मुहाने पर केवल जून से नवंबर के बीच मानसून के मौसम में ही पहुंचा जा सकता है और गर्मियों के दौरान इसमें गाद भर जाती है। इस वजह से फरवरी या मार्च में इसे बंद करना पड़ता है। हार्बर इंजीनियरिंग विभाग ने स्थानीय जहाजों के लिए मछली पकड़ने के दौरान आने वाली गाद की समस्या को दूर करने के लिए 2002 में मुहाने पर इस फिशिंग हार्बर का निर्माण शुरू किया था। साल 2020 में यह बनकर तैयार हो गया।

एक धुंधला अतीत
मुथालपोझी में सामान्यतः मछलियां बहुतायत में पाई जाती हैं। लेकिन मानसून के मौसम में जब समुद्र शांत नहीं रहता, तो मछुआरों को कोल्लम में विझिनजम और नींदकारा जैसे अन्य क्षेत्रों की ओर रुख करना पड़ता है। अंचुथेंग पंचायत के मछुआरे एंटनी देवदास ने बताया कि समुद्री के स्थिर नहीं रहने के कारण कई लोगों की जान जाने के साथ-साथ नावों उनके उपकरणों को भी नुकसान पहुंचता है। इसके चलते नेशनल फिशरवर्कर्स फोरम (NFF) ने मुथलापोझी मुहाने को घाट में बदलने की वकालत की और विरोध प्रदर्शन भी किए। लेकिन देवदास के मुताबिक, सरकार ने इसके बजाय इसे एक ब्रेकवाटर बनाने का विकल्प चुना।
साल 2020 में केरल शास्त्र साहित्य परिषद (KSSP) के एक अध्ययन के मुताबिक, इस इलाके के मछुआरे किनारे पर जाल फैलाने जैसे पारंपरिक तरीके और मोटरबोट्स से मछली पकड़ने के आधुनिक तरीके, दोनों का इस्तेमाल करते हैं। अंचुथेंग और मम्पालली जैसे गांवों के मछुआरे मोटर से चलने वाली प्लाईवुड की नावों, कटमरैन और रेशम के जालों पर निर्भर है और वे मानसून के दौरान खासा प्रभावित होते हैं। उन्हें अक्सर कोल्लम जिले के थांगसरी फिशिंग हार्बर पर अपना काम करने के लिए मजबूर होना पड़ता है।
साल 1980 और 1990 के दशक में, केरल स्वातंत्र्य मथ्यथोझिलाली फेडरेशन (KSMTF) जैसे प्रमुख संगठनों की तरफ से सुरक्षित तरीके से मछली पकड़ने की व्यवस्था की मांग बढ़ने लगी थी। उन्होंने थांगसेरी में मछली पकड़ने के पारंपरिक तरीकों जैसी सुविधा की मांग की और ब्रेकवाटर के निर्माण की स्थिति में संभावित तटीय कटाव, जैसा कि कोल्लम में नींदकारा फिशिंग हार्बर में देखा गया था, के बारे में चिंता व्यक्त की। इन चिंताओं के बावजूद, सरकार ने नींदकारा की तर्ज पर (जिसमें झील के अंदर नावों को लंगर डालने के लिए दो जेटी शामिल हैं) यहां फिशिंग हार्बर के निर्माण के साथ आगे बढ़ना पसंद किया। केरल शास्त्र साहित्य परिषद के अध्ययन में कहा गया, “मुहाने को स्थायी रूप से बदलने की व्यवहार्यता का कोई वैज्ञानिक अध्ययन नहीं किया गया। बंदरगाह को 2000 में मंजूरी मिल गई और निर्माण 2002 में शुरू हो गया।”

मछुआरों की बढ़ती मौतें
इस साल अगस्त में, अंचुथेंगु पंचायत के 49 साल के मछुआरे बेनेडिक्ट को, बंदरगाह के पास नाव पलटने से अपनी जान से हाथ धोना पड़ा था। उसके दो महीने पहले, 50 वर्षीय विक्टर की भी इसी तरह की परिस्थितियों में मौत हो गई। इन घटनाओं से पहले के कुछ महीनों में चार और मौतें हुई थीं।
पानी के नीचे रेत जमा होने से बंदरगाह के आसपास दुर्घटनाओं की आशंका बढ़ जाती है। अरब सागर और वमनपुरम झील से आने वाला तलछट पानी के नीचे टीले बना देता है। पश्चिम से समुद्री लहरें और पूर्व से झील की धाराएं मिलकर, रेत से टकराती हैं और ऊंची व अस्थिर लहरें पैदा करती हैं। इन लहरों में फंसी नावें अक्सर नियंत्रण खो देती हैं और चट्टानों या टेट्रापॉड्स (क्षरण रोकने के लिए बने कंक्रीट के ढांचे) से टकरा जाती हैं।
केरल सरकार को बंदरगाह पर मछुआरों की सुरक्षा को लेकर बार-बार आलोचना का सामना करना पड़ रहा है। हालांकि, सरकार अडानी पोर्ट्स पर आरोप लगा रही है कि उन्होंने बंदरगाह के मुहाने पर निर्धारित 5 मीटर की गहराई बनाए रखने में विफलता दिखाई है। अडानी विझिनजम पोर्ट प्राइवेट लिमिटेड और सरकार के बंदरगाह इंजीनियरिंग विभाग के बीच समझौते (MoU) में इस बारे में उल्लेख किया गया था। हालांकि यह समझौता सार्वजनिक रूप से उपलब्ध नहीं है, लेकिन अप्रैल 2018 में तीन साल के लिए हुए इस समझौते को अप्रैल 2021 में तीन साल के लिए और बढ़ा दिया गया था। समस्या का समाधान करने और प्रभावी तरीके से गाद निकालने के लिए, बंदरगाह इंजीनियरिंग विभाग अब अडानी पोर्ट्स से ड्रेजिंग को अपने हाथों में लेने पर विचार कर रहा है।
अप्रभावी ड्रेजिंग
अडानी ग्रुप ने मुथलापोझी फिशिंग हार्बर पर पोर्ट प्रोजेक्ट के लिए पत्थरों को ले जाने के लिए एक बजरा लोड-आउट सुविधा और एक स्टॉकयार्ड का निर्माण किया है। त्रिवेंद्रम में रहने वाले महासागर वैज्ञानिक और तटीय पर्यावरण कार्यकर्ता ए.जे. विजयन के अनुसार, इन बदलावों के बाद स्थिति और खराब हो गई। वह कहते हैं, “उन्होंने बजरा लोड करने की सुविधा के लिए दक्षिणी ब्रेकवाटर में ढांचागत बदलाव किए, जिससे चैनल में पानी की धाराएं तेज हो गईं। छोटी मछली पकड़ने वाली नावें अक्सर इन धाराओं में फंस जाती हैं, जिससे वे पलट जाती हैं या ब्रेकवाटर की चट्टानों से टकरा जाती हैं।”
अडानी समूह और सरकार के बीच समझौता, मछली पकड़ने के अलावा अन्य उद्देश्यों के लिए फिशिंग हार्बर के उपयोग की अनुमति देता है। लेकिन इसके लिए मार्च 2024 तक, नौवहन के रास्ते में 5 मीटर की गहराई बनाए रखने के लिए नियमित रूप से ड्रेजिंग की शर्त रखी गई थी। नेशनल फिशवर्कर्स फोरम के संस्थापक-सचिव ए.जे. विजयन बताते हैं, “अडानी समूह को अपने बजरों के लिए बंदरगाह की जरूरत थी, लेकिन जब उन्हें जरूरत नहीं रही तो ड्रेजिंग करना यानी गाद निकालना बंद कर दिया।”
आरोपों के जवाब में, अडानी समूह ने 2023 में एक नोट जारी किया, जिसमें कहा गया कि 2021 में चक्रवात ‘तौकते’ के दौरान मुथलापोझी का दक्षिणी ब्रेकवाटर क्षतिग्रस्त हो गया था, जिससे ड्रेजिंग का काम रुक गया। कंपनी ने इस समस्या के लिए विभाग द्वारा ब्रेकवाटर के रखरखाव में विफलता को जिम्मेदार ठहराया है।
विजयन का कहना है कि अडानी समूह के ड्रेजिंग प्रयासों से रेत सिर्फ एक जगह से दूसरी जगह शिफ्ट हुआ, जिससे रेत जमा होने की समस्या और भी बढ़ गई। वह तर्क देते हुए कहते हैं, “हालांकि ड्रेजिंग एक अस्थायी समाधान है, लेकिन अडानी द्वारा नियमित ड्रेजिंग से इन दुर्घटनाओं को रोका जा सकता था।”

बंदरगाह का खराब डिजाइन
सेंटर फॉर अर्थ साइंस स्टडीज में तटीय समुद्र विज्ञान में विशेषज्ञ रहे, रिटायर्ड वैज्ञानिक डॉ. के.वी. थॉमस ने बताया कि बंदरगाह का डिजाइन उस जगह के लिए स्वाभाविक रूप से सही नहीं था। उन्होंने बताया, “बंदरगाहों को इस तरह डिजाइन किया जाता है कि उनके प्रवेश द्वार पर तलछट का जमाव कम से कम हो। इसके लिए दो ब्रेकवाटर बनाए जाते हैं ताकि हार्बर को लहरों से बचाया जा सके। आदर्श रूप से, निर्माण के दौरान लक्ष्य बंदरगाह के अंदर और प्रवेश द्वार पर लहरों की ऊंचाई 0.3 मीटर से कम रखना होना चाहिए, ताकि गाद जमा न हो। लेकिन ऐसा नहीं किया गया, जिसकी वजह से बंदरगाह में समस्याएं आ रही हैं।”
थॉमस बताते हैं कि डिजाइन का उद्देश्य इनलेट पर तलछट के जमाव को रोकना होना चाहिए था। उन्होंने जोर देकर कहा, “आमतौर पर गाद जमा होने की समस्या को समय-समय पर या नियमित गाद निकालने से हल किया जाता है। लेकिन अगर गाद जमा होने की मात्रा एक खास सीमा से पार हो जाए, तो उसे निकालना बेअसर हो जाता है। मुथलापोझी के मामले में, गाद जमा होने की मात्रा बहुत अधिक है, जो इनलेट बैरियर फिल्टर को बाधित करने के बिंदु तक पहुंच गया है। गाद का ढेर प्रवेश द्वार पर पानी की गहराई को कम कर देता है, जिससे लहरें इनलेट पर टूट जाती हैं और उनकी गति पर असर पड़ता है। बंदरगाह का डिजाइन इस समस्या का हल नहीं निकाल सका। मुख्य डिजाइन में खराबी थी।”
हालांकि, थॉमस का कहना है कि बंदरगाह बनाने से पहले सरकार ने एक वैज्ञानिक अध्ययन किया था, लेकिन अध्ययन में गलतियां थीं, जिसकी वजह से यह समस्या हुई। वह कहते हैं, “बाद में एक या दो बार बंदरगाह को फिर से डिजाइन किया गया, लेकिन मूल डिजाइन वही रहा।“

विजयन ने बताया कि दुर्घटनाओं का मुख्य कारण बनी गाद की समस्या से निपटने और बंदरगाह पर सुरक्षा में सुधार के लिए, पुणे में केंद्रीय जल और विद्युत अनुसंधान स्टेशन (सीडब्ल्यूपीआरएस) ने 2011 के एक अध्ययन में दक्षिण से उत्तर की ओर नियमित सैंड बाईपासिंग लागू करने और दो ब्रेकवाटर का विस्तार करने की सिफारिश की थी। सैंड बाईपासिंग में कटाव को रोकने और नेविगेशन चैनलों को बनाए रखने के लिए ज्वार के प्रवेश द्वारों पर रेत का कृत्रिम रूप से स्थानांतरण शामिल है।
विजयन का तर्क है कि सरकार को ब्रेकवाटर बढ़ाने से पहले सैंड बाईपासिंग पर ध्यान देना चाहिए था। “अगर इसे सफलतापूर्वक लागू किया जाता, तो सैंड बाईपासिंग से न सिर्फ चैनल में गाद जमा होने से रोका जा सकता था, बल्कि उत्तरी तरफ के खोए हुए समुद्र तटों को भी बहाल किया जा सकता था, जिससे तटीय सुरक्षा के लिए बनी दीवारों (सीवॉल) पर होने वाले खर्च में काफी बचत हो सकती थी।”
बेहतर डिजाइन की मांग
केरल स्वातंत्र्य मथ्यथोझिलाली संघ की सूचना के अधिकार (आरटीआई) के जवाब में, हार्बर इंजीनियरिंग विभाग ने पुष्टि की कि बंदरगाह पर सैंड बाईपासिंग को लागू नहीं किया गया था। विभाग के जवाब में यह भी उल्लेख किया गया है कि सीडब्ल्यूपीआरएस अध्ययन की सिफारिशों और केंद्र के सुझावों को शामिल करते हुए एक संशोधित परियोजना प्रस्ताव फिलहाल केरल सरकार के सामने समीक्षाधीन है।
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विजयन उन बड़ी परियोजनाओं के बारे में केंद्र सरकार की नीति में बदलाव की वकालत करते हैं, जिनका वैज्ञानिक आधार कमजोर है। वह कहते हैं, “अगर ऐसी परियोजनाओं को मंजूरी दी जाती है, तो केंद्र को मौजूदा बंदरगाहों को व्यवहार्य बनाए रखने के लिए सैंड बाईपासिंग के लिए 60-40 अनुपात सहित उनके रखरखाव को भी फंड देना चाहिए।”
बार-बार होने वाली दुर्घटनाओं ने स्थानीय मछुआरों के लिए काफी परेशानी पैदा कर दी है। मछली विक्रेता मेबल अब्राहम ने इस साल मई में मुथलापोझी में अपने पति अब्राहम रॉबर्ट को खो दिया था। वह कहती हैं, “मछुआरों को समुद्र में जाते समय कई दिक्कतों का सामना करना पड़ता है, लेकिन उनके पास कोई विकल्प नहीं है क्योंकि उन्हें अपने परिवार का पेट पालना है।”
रॉबर्ट की बेटी शेरली रूबेन ने कहा, “अब जब भी हमारे लोग मछली पकड़ने जाते हैं तो हम डरे रहते हैं। हम फिर से कहीं और शिफ्ट होने को तैयार नहीं हैं; नए माहौल में ढलना मुश्किल होगा। अगर ब्रेकवाटर बढ़ाए गए होते, तो शायद ये हादसे नहीं हुए होते। हम किसी भी परियोजना के खिलाफ नहीं हैं, बस हम सुरक्षित रहना चाहते हैं।”
यह खबर मोंगाबे-इंडिया टीम द्वारा रिपोर्ट की गई थी और पहली बार हमारी अंग्रेजी वेबसाइट पर 4 सितंबर 2024 प्रकाशित हुई थी।
बैनर तस्वीर: मुथलापोझी बंदरगाह में नए विझिनजम अंतरराष्ट्रीय बंदरगाह का प्रबंधन करने वाले अडानी पोर्ट को दुर्घटनाओं के लिए दोषी ठहराया जा रहा है। आरोप लगाया जा रहा है कि उन्होंने बंदरगाह के मुहाने की गाद निकालने का अपना वादा पूरा नहीं किया है। तस्वीर- सरिता एस. बालन, मोंगाबे