- टैक्सोनॉमिस्ट जिनी जैकब ने पानी में रहने वाले सूक्ष्मजीव नेमाटोड की प्रजातियों का दस्तावेजीकरण किया है। उनको इस काम के लिए 2024 का ओशन सेंसस अवार्ड मिला।
- नेमाटोड या राउंडवॉर्म समुद्र की तल पर रहने वाले जीवों का एक बड़ा हिस्सा है। ये सूक्ष्म जीव समुद्री या मीठे पानी में रहते हैं।
- अब तक भारत से केवल 658 स्वतंत्र रूप से रहने वाली समुद्री नेमाटोड प्रजातियों का रिकॉर्ड किया गया है।
टैक्सोनॉमिस्ट जिनि जैकब को बचपन से ही सूक्ष्म जीवों की दुनिया में काफी रूचि थी। स्कूल के दिनों में, चींटियां और अन्य छोटे कीड़े उनके जिज्ञासा के विषय होते थे, जिन्हें वे एक साधारण लेंस से देखती थीं। कॉलेज में जूलॉजी उनके लिए स्वाभाविक पसंद थी, जहां शक्तिशाली प्रयोगशाला में प्रयोग होने वाले माइक्रोस्कोप ने साधारण मैग्निफाइंग लेंस की जगह ले ली।
कोचीन यूनिवर्सिटी ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी (CUSAT) से समुद्री जीव विज्ञान में अपनी एमएससी पूरी करने के बाद, जैकब ने विश्वविद्यालय में भारतीय महासागर में रहने वाले बेंटिक (तल में रहने वाले) जीवों पर एक शोध परियोजना से जुड़ गईं। इस शोध के दौरान, उन्होंने बहुत सुंदर दिखने वाले नेमाटोड को देखना शुरू किया। ये सूक्ष्म जीव समुद्री मेइयोफौना का बड़ा हिस्सा हैं। मेइयोफौना, सूक्ष्म जीवों का एक समूह है जो समुद्र, नदी, या झील के तल पर निवास करता है।
इसलिए, जब CUSAT में पीएचडी. के लिए विषय चुनने का समय आया, तो जैकब ने स्वतंत्र रूप से रहने वाली समुद्री नेमाटोड प्रजातियों का अध्ययन करने का फैसला किया। वे कहती हैं, “जब मैं इन्हें माइक्रोस्कोप की मदद से देखती हूं, तो मैं उनकी बनावट से बस मोहित हो जाती हूं।”
मेइयोफौना या मेयोबेंथॉस सूक्ष्म बिना रीढ़ की हड्डी वाले या अकशेरुकी जीव होते हैं, जो समुद्री या मीठे पानी के स्रोत की तली में पाए जाते हैं। इनकी परिभाषा मुख्य रूप से उनके आकार पर आधारित होती है और इन्हें मैक्रोफौना से उनके छोटे आकार के कारण अलग किया जाता है। मेइयो ग्रीक भाषा का शब्द है जिसका अर्थ छोटा होता है। । इनका आकार 44 से 500 माइक्रोमीटर (µm) के बीच होता है।
नेमाटोड के बारे में सब कुछ
नेमाटोड हर तरह के पर्यावरण में रहने वाले जीव हैं। ये स्थलीय (भूमि) और जलीय (जल) दोनों पर्यावरणों में पाए जाते हैं। ये दो प्रकार के होते हैं: परजीवी और स्वतंत्र रूप से रहने वाले।
महासागरों में, स्वतंत्र रूप से रहने वाले नेमाटोड मेयोबेंथॉस (तल में रहने वाले सूक्ष्म जीवों) का एक बड़ा हिस्सा हैं।
स्वतंत्र रूप से रहने वाले नेमाटोड पानी के नीचे तलछट (गाद) में बड़ी संख्या में पाए जाते हैं। ये छोटे जीव पोषक तत्वों के पुनर्चक्रण में अहम भूमिका निभाते हैं और जल पारिस्थितिकी तंत्र को संतुलित रखने में मदद करते हैं।
ये बड़े आकार के अन्य जीवों जैसे पॉलीक्रीट, मोलस्क और क्रस्टेशियंस के साथ रहते हैं, जो तलछट में रहने वाले नेमाटोड और जैविक पदार्थ खाते हैं। इससे “बेंटिक-पेलैजिक कपलिंग” मजबूत होती है, यानी पानी की तली और ऊपर के खुले जल के बीच पोषक तत्वों और ऊर्जा का आदान-प्रदान सुचारू रूप से होता है।

ये पारस्परिक क्रिया जलीय फूड चेन को बनाए रखने में मदद करती हैं। नेमाटोड और अन्य बेंटिक जीव मछली के लार्वा और वयस्क मछलियों के लिए प्रोटीन युक्त आहार बनकर एक महत्वपूर्ण कड़ी बनाते हैं, जिससे अंततः मछली की संख्या और जैविक मात्रा (बायोमास) बढ़ती है।
वहीं, परजीवी नेमाटोड मछलियों को संक्रमित कर सकते हैं और उनकी प्रजनन क्षमता को प्रभावित कर सकते हैं।
अब तक, भारत में 658 स्वतंत्र रूप से रहने वाले समुद्री नेमाटोड दर्ज किए गए हैं। जिनी जैकब देश में नेमाटोड और अन्य मेइयोफौना का अध्ययन करने वाली गिने-चुने टैक्सोनॉमिस्ट में से एक हैं।
वर्तमान में केरल विश्वविद्यालय में पोस्टडॉक्टोरल अध्ययन कर रहीं जैकब, 2024 में प्रतिष्ठित ओशन सेंसस अवार्ड्स के लिए दुनिया भर से चुने गए टैक्सोनॉमिस्ट में शामिल थीं।
ओशन सेंसस एक वैश्विक पहल है, जो महासागरों में जीवन की खोज को बढ़ावा देने के लिए समर्पित है। इसका लक्ष्य समुद्री प्रजातियों का एक वैश्विक भंडार (ग्लोबल रिपॉजिटरी) तैयार करना है, जो हमारे महासागरों की वास्तविक जैव विविधता को दर्शाए।
ओशन सेंसस अवार्ड्स पेज के अनुसार, जैकब का शोध लगभग 60 नई नेमाटोड प्रजातियों को दर्ज कर शोध में महत्वपूर्ण योगदान करती है। यह विविध पारिस्थितिक तंत्रों में प्रजातियों की विविधता, उनकी पारिस्थितिक भूमिकाओं और पर्यावरणीय स्वास्थ्य को समझने के लिए बुनियादी डेटा उपलब्ध कराता है।
केरल के अलाप्पुझा (अल्लेप्पी) जिले से आने वाली यह जैकब पारंपरिक टैक्सोनॉमी को आधुनिक आणविक तकनीकों (जैसे बारकोडिंग) के साथ जोड़कर नई प्रजातियों की खोज कर रही हैं।
नेमाटोड के शोध में चुनौतियां
जिनी जैकब अब तक 60 से अधिक नई नेमाटोड प्रजातियों को दर्ज कर चुकी हैं, लेकिन उन्होंने औपचारिक रूप से केवल चार प्रजातियों का वर्णन किया है। सात और प्रजातियां समीक्षा प्रक्रिया में हैं, जबकि कई अन्य अलग-अलग चरणों में हैं, जैकब बताती हैं।
ओशन सेंसस के अनुसार, महासागर में पाई गई किसी नई प्रजाति का औपचारिक वर्णन करने में औसतन 10 से 12 साल लगते हैं। यह वैश्विक पहल, ओशन सेंसस अवार्ड्स के जरिए समुद्री टैक्सोनॉमिस्ट को आर्थिक सहयोग प्रदान कर इस प्रक्रिया को तेज करने की कोशिश कर रही है।
जैकब का शोध सफर भी इसी को दर्शाता है। वह कहती हैं, “यह मेरे मामले में भी सही हो सकता है। मैंने इन प्रजातियों को पहली बार 2015 में देखा था, और अब जाकर उनका औपचारिक वर्णन करने की कोशिश कर रही हूं।

CUSAT से समुद्री जीव विज्ञान में मास्टर डिग्री पूरी करने के बाद, जिनी जैकब को समुद्री शोध में उपयुक्त अवसर नहीं मिले।
उन्होंने विश्वविद्यालय में छोटे-मोटे वर्गीकरण और पहचान संबंधी कार्य किए, और यही अनुभव बाद में उनके काम आया, जब उन्हें भारतीय महासागर में एक अग्रणी गहरे समुद्र अनुसंधान परियोजना का हिस्सा बनने का मौका मिला।
मेइयोफौना पर इस शोध परियोजना ने उन्हें नेमाटोड पारिस्थितिकी (इकोलॉजी) में पीएचडी करने के लिए प्रेरित किया। इस दौरान उन्होंने कई दुर्लभ और नई नेमाटोड प्रजातियों की खोज की।
लेकिन, चूंकि उनके शोध का मुख्य विषय नेमाटोड की पारिस्थितिकी था, इसलिए उन्हें वर्गीकरण (टैक्सोनॉमी) की अपनी महत्वाकांक्षाओं को फिलहाल टालना पड़ा।
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“बहुत कम लोग बेंथोस टैक्सोनॉमी पर काम कर रहे थे, और सामान्य रूप से टैक्सोनॉमी के लिए कोई समर्थन नहीं था,” जैकब कहती हैं।
इसके बावजूद, सीमित संसाधनों और समय में, अपनी पीएचडी के दौरान जैकब ने चार नई नेमाटोड प्रजातियों का वर्णन किया। नई प्रजाति का वर्णन करना कठिन और समय लेने वाला काम है, जैकब बताती हैं। “हमें सभी मौजूदा प्रजातियों की तुलना उनके टाइप स्पेसिमेन (प्रकार नमूने) से करनी होती है। हर माप लेना पड़ता है, हर संरचना (मॉरफोलॉजी) को सटीक रूप से दर्ज करना पड़ता है, और यदि संभव हो तो आणविक डीएनए निष्कर्षण और पहचान करनी होती है।”
“हम टैक्सोनॉमिक शोधपत्रों, पत्रिकाओं और वर्ल्ड रजिस्टर ऑफ मरीन स्पीशीज (WoRMS) जैसी ऑनलाइन साइटों को पढ़ते हैं और उनके साथ तुलना करके सत्यापन करते हैं।
जब संदेह उत्पन्न होता है, तो हम उन शोधकर्ताओं से संपर्क करते हैं जो संबंधित वंश (genus) या परिवार (family) पर काम कर रहे होते हैं और उनके साथ चर्चा करते हैं,” जैकब बताती हैं।
“कभी-कभी, हम सीधे ड्रॉइंग बना लेते हैं, डेटा एकत्रित करते हैं और प्रकाशन व समीक्षा के लिए किसी जर्नल से संपर्क करते हैं।”
अपनी पीएचडी के बाद, जिनी जैकब ने कुछ वर्षों तक काम नहीं किया, क्योंकि वह अन्य जिम्मेदारियों में व्यस्त थीं।
2023 में, उन्होंने ओशन सेंसस अवॉर्ड के लिए प्रस्ताव आमंत्रण देखा, जिसने उनके टैक्सोनॉमिक शोध को एक नई दिशा दी।
भारतीय महासागर में टैक्सोनॉमिक अध्ययन की कमी ही उनकी प्रस्तावना की विशेषता बनी, ऐसा जैकब मानती हैं।
“मेरे टैक्सोनॉमिक कार्य बहुत अधिक प्रकाशित नहीं हुए थे। लेकिन भारतीय महासागर का अध्ययन बहुत कम हुआ है—खासतौर पर भारत के गहरे समुद्र से । मेरे काम के अलावा वहां से कुछ भी नहीं था, और यही चीज़ मेरे पक्ष में गई,” वह कहती हैं।
नेमाटोड से पर्यावरण स्वास्थ्य का संकेत
अपने पोस्टडॉक्टोरल अध्ययन के दौरान, जैकब नेमाटोड समुदायों को पारिस्थितिकी तंत्र आकलन मॉडल के रूप में इस्तेमाल करने की संभावना तलाश रही हैं। “हम केवल नेमाटोड समुदायों का अध्ययन करके किसी भी पारिस्थितिकी तंत्र, तटीय क्षेत्र या गहरे समुद्र की स्थिति और उसके स्वास्थ्य का अनुमान लगा सकते हैं,” जैकब समझाती हैं।
“उस पर्यावरण की जो भी स्थिति होगी, जो भी तनाव होगा, वह नेमाटोड की वृद्धि और उनकी आबादी की गतिशीलता को प्रभावित करेगा।”
जैकब केरल के विभिन्न प्रदूषण स्तर वाले मैंग्रोव क्षेत्रों का अध्ययन कर रही हैं ताकि यह समझा जा सके कि नेमाटोड समुदाय प्रदूषकों पर कैसे प्रतिक्रिया देते हैं।
“जो सहनशील प्रजातियां होती हैं, वे फलती-फूलती हैं, जबकि संवेदनशील समूह समाप्त हो जाते हैं।
इसलिए, केवल नेमाटोड समुदायों का मूल्यांकन करके, हम किसी पारिस्थितिकी तंत्र के स्वास्थ्य का अनुमान लगा सकते हैं,” वह कहती हैं।

जैकब नई जगहों और भौगोलिक क्षेत्रों की खोज करते हुए लगातार नई मियोफौना प्रजातियों की पहचान कर रही हैं। “चाहे तटीय क्षेत्रों, मैंग्रोव या गहरे समुद्र से लिए गए नमूने हों, हमें नियमित रूप से नई प्रजातियां मिलती हैं,” जैकब कहती हैं।
“वर्तमान अध्ययन में, हमने कुछ प्रजातियों को नया पाया है, लेकिन फिलहाल मैं केवल पहले से खोजी गई प्रजातियों पर ध्यान केंद्रित कर रही हूं।
प्रजाति-स्तरीय डेटा की भारी कमी है। इसलिए, हमें मुक्त-जीवित नेमाटोड्स, खासकर उत्तरी हिंद महासागर से, पर अधिक डेटा तैयार करना होगा,” वह बताती हैं।
मियोफौना टैक्सोनॉमी का भविष्य
जैकब को उम्मीद है कि वह 2026 तक सभी 60 नेमाटोड प्रजातियों का औपचारिक वर्णन कर सकेंगी।
“अनुदान मिलने का मतलब है कि अब हमारे पास आणविक या अन्य विधियों से टैक्सोनॉमिक अनुसंधान करने के लिए वित्तीय सहायता है। यह हमें टैक्सोनॉमी के क्षेत्र में अधिक योगदान देने के लिए प्रेरित कर रहा है,” जैकब कहती हैं।
वह यह भी आशा करती हैं कि इस फंडिंग से हिंद महासागर में गहरे समुद्र में रहने वाले बेंथिक जीवों के अध्ययन को अधिक पहचान मिलेगी और क्षेत्र में समुद्री जीवन के विस्तृत मानचित्रण का मार्ग प्रशस्त होगा।
अब तक, भारत में शोधकर्ताओं ने मियोफौना के अध्ययन से दूरी बनाए रखी है, लेकिन जैकब चाहती हैं कि यह प्रवृत्ति बदले।
“बेंथोस (समुद्री तल पर रहने वाले जीवों) का अध्ययन करना आसान नहीं है। लोग माइक्रोस्कोप के साथ इतने लंबे समय तक काम करने का धैर्य नहीं रखते। फिलहाल, बहुत कम लोग मियोफौना समूह के अध्ययन के लिए आ रहे हैं,” वह कहती हैं।
जब उनसे पूछा गया कि उन्होंने अपना शोध जीवन नेमाटोड्स के अध्ययन के लिए समर्पित करने का निर्णय क्यों लिया, तो जैकब कहती हैं,
“मुझे लगता है कि मैं इन छोटे जीवों को दुनिया के सामने आने का अवसर दे रही हूं। मैं इस समूह की सभी प्रजातियों का वर्णन करना चाहती हूं!”
इसमें कोई संदेह नहीं कि भारत को जिनी जैकब जैसी और भी शोधकर्ताओं की जरूरत होगी, जो आने वाली पीढ़ियों को समुद्री जीवन के संरक्षण और अनुसंधान की दिशा में मार्गदर्शन कर सकें।
यह खबर मोंगाबे इंडिया टीम द्वारा रिपोर्ट की गई थी और पहली बार हमारी अंग्रेजी वेबसाइट पर 16 जनवरी, 2025 को प्रकाशित हुई थी।
बैनर तस्वीर: टैक्सोनॉमिस्ट जिनी जैकब एक प्रयोगशाला में नमूने का निरीक्षण करते हुए। उन्हें 2024 में ओशन सेंसस अवार्ड से सम्मानित किया गया, क्योंकि उन्होंने 60 से अधिक नेमाटोड प्रजातियों का दस्तावेजीकरण किया है, जिनमें से चार का उन्होंने औपचारिक रूप से वर्णन किया है। तस्वीर सौजन्य: जिनी जैकब।