- असम में रसल्स वाइपर के बारे में अफवाहों के कारण इस सांप के प्रति लोगों में डर बढ़ा है। यहां कम से कम तीन ऐसी घटनाएं सामने आई हैं जिनमें रसल्स वाइपर जैसे दिखने वाले सांप भी शामिल हैं।
- गलत जानकारी से भरी सनसनीखेज खबरों के कारण रसल्स वाइपर के खिलाफ लोगों में गुस्सा बढ़ रहा है।
- भले ही रसल्स वाइपर असम में दुर्लभ है, लेकिन वैज्ञानिक रिकॉर्ड बताते हैं कि यह राज्य के लिए अजनबी नहीं है। हाल के दिनों में लोगों ने इस प्रजाति के अधिक बार देखे जाने की सूचना दी है।
पिछले साल जुलाई में असम के डिब्रूगढ़ जिले के नामरूप में कुछ किसान उस समय डर गए जब उन्होंने, जिस खेत में वो काम कर रहे थे उसमें एक मोटा, गठीला, भूरे रंग का सांप रेंगता हुआ देखा। इस बिना जहर वाले बर्मीज़ पाइथन को इन किसानों ने जहरीला रसल्स वाइपर समझ कर मार दिया। रसल्स वाइपर, पाइथन की तरह लम्बा और गहरे निशानों वाला सांप, सोशल मीडिया पर चल रही अफवाहों और सनसनीखेज ख़बरों का केंद्र बना हुआ है।
नामरूप जैसी ही दो अन्य घटनाएं पश्चिमी असम के ढुबरी जिले के चापर में घटीं, जहां एक छोटे बर्मीज़ पाइथन और रफ़-स्केल्ड सैंड बोआ को रसल्स वाइपर समझकर गांव वालों ने मार दिया था।
रसल्स वाइपर (Daboia russelii) को अधिकतर छोटे बर्मीज़ पाइथन (Python bivittatus), रफ़-स्केल्ड सैंड बोआ (Eryx conicus) या मिलती-जुलती शारीरिक बनावट वाला सांप मान लिया जाता है।

पिछले कुछ समय से स्थानीय अख़बारों में रसल्स वाइपर, भारत के सबसे जहरीले सांपों में से एक, के असम में ‘अचानक से दिखाई देने’ की घटनाओं के दावों ने सोशल मीडिया में अटकलों को बढ़ा दिया है। लोगों ने घबराना तब शुरू किया जब पिछले साल नवंबर में एक 13-वर्षीय लड़के, तनमय, की रसल्स वाइपर के काटने से मौत हो गयी। घटना के समय तनमय सोनितपुर जिले के बिहागुरी-कालितागांव गांव में गाय चरा रहा था।
यूट्यूब पर पोस्ट किये गए एक इंटरव्यू में दीपांकर बर्मन, 34, ने बताया कि 2016 में बोनगाईगांव के राखलडुबी में कैसे इस सांप के काटने के बाद एंटी वेनम के उपचार के बाद उनकी जान बच पाई। डॉ. सुरजीत गिरि, जो शिवसागर के डिमेओ मॉडल अस्पताल में सर्पदंश के उपचार में अपनी विशेषज्ञता के लिए जाने जाते हैं, ने बताया कि रसल्स वाइपर के काटने का राज्य में कोई आधिकारिक आंकड़ा उपलब्ध नहीं है, लेकिन बर्मन के साथ घटी घटना कागजों में दर्ज पहली घटना है। साल 2019 में हेरपेटोज़ोआ जर्नल में प्रकाशित एक पेपर बर्मन के रसल्स वाइपर के द्वारा काटे जाने और उसके बाद के उपचार की प्रक्रिया को बताता है।
डॉ गिरि के रिकॉर्ड के अनुसार, राज्य भर में रसल्स वाइपर के काटने की पाँच घटनाओं की पुष्टि हुई है, एक बोंगाईगांव जिले में, तीन चिरांग में और एक सोनितपुर में। रसल्स वाइपर के काटने से पीड़ित चार मरीज़ एंटी वेनम उपचार के बाद ठीक हो गए, जबकि सोनितपुर में 13 वर्षीय एक बच्चे (तनमय) की मौत हो गई।
सौरव बोरकटकी, सोनितपुर के स्नेक रेस्क्यू एक्सपर्ट, बताते हैं कि जब तनमय को सांप ने काटा तो वो स्थिर खड़े रहने या लोगों द्वारा उठाये जाने के बजाय अपने घर की तरफ भागा। “वह डर गया था और घर की तरफ भागा। इस कारण जहर उसके पूरे शरीर में फ़ैल गया,” सौरव ने बताया।
विश्व स्वास्थ्य संस्थान या वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन (WHO) की सर्पदंश की स्थिति से निपटने के दिशा निर्देशों के अनुसार, प्रभावित व्यक्ति को तुरंत स्थिर अवस्था में आ जाना चाहिए। खासकर प्रभावित अंग को स्थिर रखा जाना चाहिए। स्ट्रेचर या काम चलाऊ स्ट्रेचर बनाकर, व्यक्ति को उस पर किसी स्वास्थ्य केंद्र तक ले जाने वाले वाहन तक ले जाना चाहिए। स्थिर और शांत रहने से उपचार के समय तक जहर के शरीर के दूसरे भागों में फैलने की गति को कम रखा जा सकता है।
तनमय की मौत ने न सिर्फ लोगों में साँपों का भय फैला दिया, बल्कि साँपों को मारने की घटनाओं को भी बढ़ा दिया।
रसल्स वाइपर के बारे में भ्रांतियां
तनमय की मौत के बाद से असमिया अख़बारों और न्यूज़ चैनलों में रसल्स वाइपर से जुडी ख़बरें चलने लगीं, जिनमें से कई में इस सांप से जुडी भ्रांतियां थीं। ऑनलाइन मीडिया भी ‘मृत्युदूत रसल्स वाइपर’ जैसी सनसनीखेज हैडलाइन से भरा पड़ा था। प्रतिबिम्ब लाइव द्वारा प्रकाशित एक खबर ने लिखा, “रसल्स वाइपर के काटने के 20 सेकंड में इंसान मर सकता है” और “यह प्रजाति असम में पहली बार देखि गई है”। ऐसी ही, न्यूज़ डेली 24 की एक रिपोर्ट में कहा गया कि “रसल्स वाइपर के काटने से इंसान पलक झपकते ही मर सकता है” और “रसल्स वाइपर का कटा मरीज अस्पताल पहुँचने के पहले मर जायेगा”। इसके पहले न्यूज़18 असम की 26 नवंबर, 2023 की रिपोर्ट में कहा गया, “रसल्स वाइपर असम में एक बाहरी दुनिया का प्राणी है”।
डॉ गिरी ने बताया कि ये सारी ख़बरें गलत जानकारियों से भरी हैं। “सांप के काटने से मौत की घटनाएं कई कारकों जैसे, सांप की प्रजाति और उसका आकार, मरीज की उम्र और आकार, और मरीज की जहर के प्रति संवेदनशीलता,” उन्होंने मोंगाबे इंडिया को बताया। “यह कहना कि रसल्स वाइपर के काटने से वयक्ति 20 सेकंड में मर जाता है, सरासर गलत जानकारी है। अगर मरीज का इलाज नहीं किया जाए तो वह दूसरी अन्य बिमारियों जैसे किडनी, फेफड़े और दिल के फैल होने से एक दिन में मर सकता है। लेकिन वास्तव में यह मरीज में पहले से मौजूद बिमारियों और सांप के काटने के तरीके पर निर्भर करता है। कोई भी सांप किसी इंसान को ‘पलक झपकते’ ही नहीं मार सकता है,” उन्होंने बताया।
भारतीय नेचुरलिस्ट जे. सी. डेनियल की किताब ‘द बुक ऑफ इंडियन रेप्टाइल्स एंड एम्फीबियंस‘ (2002) में कहा गया है कि रसल्स वाइपर के काटने से किसी वयस्क मनुष्य की एक से 14 दिनों के भीतर मृत्यु हो सकती है।
स्नेक रेस्क्यूअर बोरकटकी कहते हैं कि भले ही रसल्स वाइपर पूर्वी असम में बेहद दुर्लभ हैं, लेकिन यह सांप निश्चित रूप से इस राज्य में कोई विदेशी प्रजाति नहीं है। “असम के पश्चिमी जिलों में इस सांप का रिकॉर्ड कम से कम 100 साल पुराना है,” उन्होंने बताया।
असमिया भाषा के फेसबुक ग्रुप ‘ग्रन्थ सुबास’ की एक वायरल पोस्ट में दावा किया गया है कि “रसल्स वाइपर अंडे भी देता है और बच्चे भी पैदा करता है।” जबकि, हकीकत में यह एक ओवोविविपेरस प्रजाति है जो अंडे को अंदर से ही सेते हुए बच्चों को जन्म देती है। सोशल मीडिया पर कुछ लोग यह अफवाह भी फैला रहे हैं कि “रसल्स वाइपर सक्रिय रूप से मनुष्यों का पीछा करता है”, हालांकि विशेषज्ञों का कहना है कि यह प्रजाति स्वाभाविक रूप से आक्रामक नहीं है और मनुष्यों के संपर्क से बचना पसंद करती है, और परेशान होने पर छिप जाती है या भाग जाती है। इसके बाद फैली दहशत और भय के कारण, असमिया भाषा के सोशल मीडिया पर लोग रसल्स वाइपर को मारने की बातें ज़्यादा करने लगे हैं।
“अगर मुझे यह सांप मिला तो मैं इसे मार दूँगा। भले ही मुझे जेल जाना पड़े, मैं इस सांप को मार दूंगा,” एक वायरल फ़ेसबुक पोस्ट पर किसी ने रसल्स वाइपर के बारे में लिखा।
बोरकटकी कहते हैं कि लोग को डर है कि इस सांप के काटने से मौत हो सकती है इसलिए वे इस सांप को मारने की मांग कर रहे हैं। “वे जैव विविधता के लिए सांपों के महत्व या सांपों को मारने के पारिस्थितिक परिणामों को समझने में विफल हैं,” उन्होंने आगे कहा।

स्नेक रेस्क्यूअर के खिलाफ सोशल मीडिया
सोशल मीडिया पर सांपों को बचाने वाले स्नेक रेस्क्यूअर को भी तीखी प्रतिक्रिया का सामना करना पड़ा है। बोरकटकी ने अगस्त में अपने फेसबुक अकाउंट पर सोनितपुर के बिहागुरी से बचाए गए रसल्स वाइपर की एक तस्वीर पोस्ट की। इस पोस्ट पर सैकड़ों लोगों ने कमेंट में मांग की कि इस सांप को स्थानीय जंगलों में न छोड़ा जाए। एक व्यक्ति ने कमेंट किया, “कृपया इस सांप को घर ले जाएं और वहीं रखें।” कई लोगों ने यह भी पूछा कि उन्होंने पहले बचाए गए रसल्स वाइपर को कहां छोड़ा था। कई लोगों ने यह भी सवाल उठाया कि “असम के लिए विदेशी” सांप को प्रजनन के लिए जंगल में क्यों छोड़ा गया है।
सांपों को मारने की मांग के खिलाफ बोलने पर भी तीखी प्रतिक्रिया हुई है। बोरकटकी के फेसबुक पोस्ट पर एक व्यक्ति ने कमेंट किया, “आप यहां रसल्स वाइपर के प्रसार के लिए जिम्मेदार हैं क्योंकि आप लोगों को सांप को न मारने के लिए कहते हैं।” इसी तरह, जब एक लेखिका और स्थानीय गैर-लाभकारी संस्था बिहंगम प्रकृति सुरक्षा संगठन की सचिव रितु प्रियम ने फेसबुक पर एक पोस्ट लिखकर इस प्रजाति के बारे में फैलाई जा रही गलत सूचनाओं की ओर ध्यान दिलाया तो एक व्यक्ति ने कमेंट किया, “आपको इन सांपों को अपने घर ले जाना चाहिए।”
![असमिया न्यूज़ चैनल प्रतिबिम्ब लाइव पर एक खबर का स्क्रीनशॉट। खबर का शीर्षक कहता है, "इस [रसल्स वाइपर] सांप के काटने के 20 सेकंड के भीतर एक व्यक्ति की मौत हो सकती है।" हालांकि, विशेषज्ञों का कहना है कि अगर इलाज न किया जाए, तो काटने के एक दिन के भीतर ही मरीज़ किडनी, फेफड़े या दिल के रुकजाने जैसी कई जटिलताओं का शिकार हो सकता है। मरीज़ की पहले से मौजूद स्वास्थ्य स्थितियां भी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।](https://imgs.mongabay.com/wp-content/uploads/sites/35/2025/03/13070330/Photo-4-2048x945-1.jpg)
रसल्स वाइपर का असम में रिकॉर्ड
भले ही कुछ समय पहले तक इस सांप का इस राज्य में पाया जाना काफी दुर्लभ माना जाता था, लेकिन वैज्ञानिक रिकॉर्ड बताते हैं कि रसल्स वाइपर असम के लिए अजनबी नहीं है, खासकर राज्य के पश्चिमी जिलों में। यह सांप मुख्य रूप से खुली ज़मीन, घास या झाड़ीदार इलाकों, चावल के खेतों और अन्य कृषि क्षेत्रों में पाया जाता है। लेकिन यह वर्षावनों से दूर रहता है। हर्पेटोज़ोआ में प्रकाशित 2019 के एक अध्ययन से पता चलता है कि पूर्वोत्तर भारत का एक मेसिक या सम-आद्र निवास स्थान होना इस सांप के इस क्षेत्र में दुर्लभ होने का कारण हो सकता है।
असम में इस प्रजाति को सबसे पहले 1929 में देखा गया था। साल 1929 की बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी के जर्नल में प्रकाशित एक रिपोर्ट में, जे. लाउडन ने कहा कि उन्होंने इस प्रजाति के दो सांपों को देखा था और भूटान की तलहटी के पास दरांग जिले से भी एक नमूना इकट्ठा किया था। जर्नल के संपादकों द्वारा जोड़े गए फुटनोट के अनुसार, लाउडन के पास मौजूद नमूना असल में रसल्स वाइपर ही पाया गया।
इस प्रजाति का उल्लेख 1900 में प्रकाशित असमिया भाषा के पहले शब्दकोश ‘हेमा कोसा’ में भी मिलता है। शब्दकोश में इस सांप का उल्लेख स्थानीय असमिया नाम ‘मोरोली’ से किया गया है।
बोंगाईगांव स्थित संरक्षण गैर-लाभकारी संस्था नेचर्स फॉस्टर के जॉयदीप चक्रवर्ती कहते हैं कि उनके पास उपलब्ध रिकॉर्ड के अनुसार, 1994 की शुरुआत में ही एक रसल्स वाइपर को बोंगाईगांव रिफाइनरी एंड पेट्रोकेमिकल्स लिमिटेड (बीआरपीएल) प्लांट परिसर से बचाया गया था। इसी तरह, वन्यजीव फोटोग्राफर प्रशांत कुमार बोरदोलोई ने मोंगाबे इंडिया को बताया कि उन्होंने 1996 में तेजपुर में एक रसल्स वाइपर की तस्वीर खींची थी।

पिछले कुछ सालों में पश्चिमी असम में इस प्रजाति के लगातार देखे जाने की खबरें आई हैं। बोंगाईगांव के एक स्नेक रेस्क्यूअर और नेचर फॉस्टर में वन्यजीव संरक्षण के सचिव कार्तिक उराव ने मोंगाबे इंडिया को बताया कि उन्होंने पिछले तीन वर्षों में बोंगाईगांव और चिरांग जिलों से 14 रसल्स वाइपर बचाए हैं।
चक्रवर्ती कहते हैं कि बिना किसी अध्ययन के यह कहना मुश्किल है कि इस प्रजाति की आबादी बढ़ी है या नहीं, लेकिन बोंगाईगांव में इन सांपों के देखे जाने की संख्या पिछले कुछ वर्षों में निश्चित रूप से बढ़ी है। “बोंगाईगांव जिले में, पिछले दो दशकों में वनों की भारी कटाई वाले क्षेत्रों से सांपों के अक्सर देखे जाने की खबरें आती रहती हैं। उदाहरण के लिए, काकोईजाना रिज़र्व फॉरेस्ट के उत्तरी क्षेत्रों में 2002 और 2012 के बीच बड़े पैमाने पर वनों की कटाई हुई। जिले में रसल्स वाइपर के सबसे ज़्यादा देखे जाने की रिपोर्ट इसी क्षेत्र से मिली है,” वे कहते हैं। साल 2001 से 2023 के बीच, बोंगाईगांव ने 254 हेक्टेयर के वृक्ष क्षेत्र को खो दिया। इस महत्वपूर्ण आवास के नुकसान ने रसल्स वाइपर सहित अन्य वन्यजीवों को मनुष्यों के साथ नज़दीकी संपर्क में ला दिया है।
इसके अलावा, रसल्स वाइपर के डिस्ट्रीब्यूशन पर 2019 में छपी हर्पेटोज़ोआ की स्टडी से पता चलता है कि बढ़ती गर्मी, और शुष्क आवास का विस्तार इस सांप के पूर्वोत्तर भारत में अपनी सीमा के विस्तार की क्षमता को बढ़ा सकता है।
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बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी (बीएनएचएस) के इकोलोजिस्ट और हर्पेटोज़ोआ स्टडी के सह-लेखकों में से एक, बिस्वजीत चकदार कहते हैं, “वैश्विक स्तर पर, जलवायु परिवर्तन ने सांपों के डिस्ट्रीब्यूशन पैटर्न को बहुत प्रभावित किया है।” वास्तव में, अन्य जगहों पर किए गए अध्ययनों से पता चला है कि जलवायु परिवर्तन के परिणामस्वरूप जहरीले सांपों ने अपना दायरा बढ़ाया है। “रसल्स वाइपर के लिए भी इस संभावना को नकारा नहीं जा सकता है,” उन्होंने बताया।
यह खबर मोंगाबे इंडिया टीम द्वारा रिपोर्ट की गई थी और पहली बार हमारी अंग्रेजी वेबसाइट पर 28 अगस्त, 2024 को प्रकाशित हुई थी।
बैनर तस्वीर: सौरव बोरकाटकी द्वारा 2 अगस्त, 2024 को सोनितपुर जिले के बिहागुरी क्षेत्र से बचाया गया रसल्स वाइपर। तस्वीर – सौरव बोरकाटकी।