- केंद्र सरकार जैव विविधता एवं जलवायु परिवर्तन के दृष्टिकोण से बेहद संवेदनशील सुंदरबन में जल परिवहन व क्रूज टूरिज्म को बढ़ावा देने की योजनाओं पर काम कर रही है। इन दोनों कवायद को लेकर स्थानीय मछुआरे चिंतित हैं और उन्हें लगता है कि इससे उनकी आजीविका को नुकसान होगा।
- विशेषज्ञों का कहना कि भारी जलयान के चलने से सुंदरबन के द्वीपों के तट के अंदर कटाव होता है और ऊपरी सतह सामान्य दिखती है। पश्चिम बंगाल सरकार ने भी भारी जलयान से कटाव होने की बात कही थी, जिसे अंतरदेशीय जलमार्ग विकास प्राधिकरण खारिज करता है।
- मछुआरा संगठनों का कहना है कि भारी जलयान नेविगेशन रूट फॉलो नहीं करते हैं और छोटी नाव के जाल को काट देते हैं, जिससे छोटे मछुआरों को आर्थिक नुकसान होता है।
- सुंदरबन जलमार्ग से होकर फ्लाई ऐश का परिवहन सबसे अधिक मात्रा में होता है। पूर्व में फ्लाई ऐश लदे जलयान दुर्घटनाग्रस्त हुए हैं। मछुआरे फ्लाई ऐश परिवहन, नदी की गहराई कम होने, प्लास्टिक कचरे में वृद्धि, क्रूज पर्यटन के विस्तार को लेकर भी चिंता जताते हैं।
पश्चिम बंगाल के दक्षिण 24 परगना जिले का शिव कालीनगर गांव सुंदरबन के काकद्वीप पर बसा है। इस गांव के 34 वर्षीय मल्लाह पुलक दास उन परंपरागत मछुआरा परिवारों से आते हैं जो सुंदरबन में राष्ट्रीय जलमार्ग-97 के आसपास मछली पकड़कर अपनी आजीविका चलाते हैं। राष्ट्रीय जलमार्ग-97 या सुंदरबन जलमार्ग भारत-बांग्लादेश प्रोटोकॉल रूट का हिस्सा है जिसके चलते परंपरागत मछुआरों के जालों को बड़े जहाज से अधिकतर नुकसान होता रहता है।
पुलक 15 वर्ष की उम्र से मछलियां पकड़ रहे हैं और इस पेशे में उन्होंने दो दशक का समय गुजार दिया है। वे कहते हैं, “जब हमने मछलियां पकड़ना शुरू किया था, तब नदी में इतने जहाज नहीं चलते थे, अब बहुत जहाज हो गए हैं और उनकी संख्या बढ़ती जा रही है।”
पुलक आने वाले सालों में जहाजों की संख्या बढ़ने से अपने परिवार की आजीविका को लेकर आशंकित हैं और मोंगाबे हिंदी से बातचीत में कहते हैं, “जहाज लगातार बढ़ रहे हैं, नदी की गहराई भी कम हो रही है, प्लास्टिक दूषण (प्रदूषण) बढ़ रहा है और मछलियों की संख्या कम हो रही है, ऐसे में हमें मछली पकड़ने दूर बड़ी नदी या समुद्र में जाना होगा।” पुलक बढ़ते जल परिवहन को अपनी व अपने जैसे हजारों छोटे मछुआरों की आजीविका के लिए खतरे के रूप में देखते हैं। वर्तमान में पुलक का परिवार गंगासागर के पास मुड़ीगंगा के मुहाना पर बटतला नदी के आसपास मछलियां पकड़ता है।
पुलक दास का 60 हजार रुपए का जाल घोड़ामाड़ा द्वीप के पास साल 2021 में एक बड़े बांग्लादेशी जहाज द्वारा पूरी तरह क्षतिग्रस्त कर दिया गया था और उसके ऐवज में उन्हें दक्षिण बंग मत्स्यजीवी फोरम(डीएमएफ) के हस्तक्षेप से 30 हजार रुपए का मुआवजा मिला। वे कहते हैं कि बड़े जहाज कई बार अपना रास्ता (नेविगेशन रूट) छोड़ हमारे रास्ते (उस रास्ते में जिसमें छोटी नाव चलती हैं) में आ जाते हैं। वे बताते हैं कि शीतकाल में कोहरे की वजह से कम दृश्यता के कारण ऐसी घटनाएं ज्यादा घटती हैं। वे कहते हैं कि उन बड़े जहाजों के पास जीपीएस सिस्टम, हॉर्न सबकुछ होता है, तब भी ऐसी दुर्घटनाएं हो जाती हैं।

पुलक दास सुंदरबन क्षेत्र की नदियों में फ्लाई ऐश व कोयला लदे जहाजों के दुर्घटनाग्रस्त होने को लेकर भी आशंकित रहते हैं, क्योंकि पहले ऐसा हो चुका है। पुलक कहते हैं कि हम छोटी नदी में मछली पकड़ते हैं, अगर कहीं फ्लाई ऐश या कोयला लदा जहाज नदी में डूब जाएगा तो उसके आसपास के 10 किमी के क्षेत्र में मछली नहीं होगी और फिर हमें दूर और अधिक बड़े समुद्र में मछलियां पकड़ने जाना होगा, जो हम जैसे छोटी नाव वालों के लिए सुरक्षित नहीं होता है। छोटी नाव गहरे व विस्तृत जल क्षेत्र में जाने में सक्षम नहीं होती और जबरन ऐसा करना अपनी सुरक्षा को खतरे में डालना होता है।
युवा पुलक की कहानी, उनके अनुभव और भविष्य को लेकर उनकी चिंताएं पर्यावरणीय दृष्टि से बेहद संवेदनशील सुंदरबन क्षेत्र में बढ़ते जल परिवहन व विकासात्मक हस्तक्षेप के संभावित खतरों को इंगित करते हैं।
राज्य सरकार की आपत्ति और विशेषज्ञों का नजरिया
पश्चिम बंगाल सरकार के आपदा प्रबंधन मंत्री जावेद खान भारत और बांग्लादेश के बीच चलने वाले जहाजों की वजह से सुंदरबन क्षेत्र में भारी जहाजों की आवाजाही से उठने वाली तीव्र लहरों से होने वाले कटाव का मुद्दा पूर्व में उठा चुके हैं। उन्होंने उनसे प्राचीन मैंग्रोव व वन्यजीवों को नुकसान होने की भी बात कही थी। हालांकि आइडब्ल्यूएआइ (भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग विकास प्राधिकरण) और कोलकाता पोर्ट ट्रस्ट ने इन आरोपों का खंडन किया था और इसके लिए ज्वार की लहरों और हवा के उतार-चढाव को जिम्मेवार बताते हुए कहा था कि अगर बजरों (मालवाहक जहाज) से कटाव होता तो वैसे नदी तटों का कटाव नहीं होता जहां से बजरे नहीं आते-जाते हैं।
कोलकाता स्थित जादवपुर विश्वविद्यालय के प्रोफेसर और विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ ओसिएनग्राफिक स्टडीज (समुद्र विज्ञान अध्ययन केंद्र) के निदेशक तुहीन घोष ने मोंगाबे हिंदी से बातचीत में कहा, “भारी जलयान (वेसिल्स) के परिवहन से नदी में तरंगें बनती हैं और उससे अंडरकटिंग (जमीन के नीचे से कटाव) होती है, ऐसी शिकायतें घोड़ामाड़ा द्वीप में अधिक है, जहां से होकर बजरे गुजरते हैं। हालांकि ऊपर से द्वीप का तटीय हिस्सा ठीक दिखता है।” वे कहते हैं, “फ्लाई ऐश लदे जहाजों के डूबने से मछलियां नष्ट हो जाती हैं और मछुआरों की आजीविका को नुकसान होता है। फ्लाई ऐश के प्रभाव पर अधिक रिसर्च की जरूरत है।”

मंथन अध्ययन केंद्र की जलमार्ग पर रिसर्चर अवली वर्मा ने मोंगाबे हिंदी से बातचीत में कहा, “डेटा से यह पता चलता है कि भारत से बांग्लादेश परिवहन होने वाले कुल सामग्रियों की मात्रा में करीब 97 प्रतिशत अकेले फ्लाई ऐश होता है, जिसका उपयोग वहां सीमेंट बनाने के लिए या फिर कंस्ट्रक्शन मैटेरियल के रूप में होता है।” तटीय इलाकों में जलवायु परिवर्तन एवं अतिसंवेदशीलता पर शोध करने वाली अवली कहती हैं, “सुंदरबन जलमार्ग में जो वेसल (जलयान) उपयोग किये जा रहे हैं, वे वहां की नदियों व पर्यावरणीय संवेदनशीलता के हिसाब से सुरक्षित नहीं हैं।” वे कहती हैं कि सुंदरबन का इलाका जलवायु परिवर्तन को लेकर अत्यंत संवेदनशील है और चक्रवात का वहां खतरा रहता है, 1500 से 2000 टन क्षमता के वेसल (जलयान) चलते हैं जो पुराने भी होते हैं। अवली कहती हैं, “सुंदरबन जैव विविधता से समृद्ध इलाका है, वहां पर अत्यधिक जल परिवहन का विपरीत असर हो रहा है। सुंदरबन में फ्रेश वाटर और समुद्र का पानी भी मिलता है। वहां इकोलॉजिकल इंटर स्टडीज की जरूरत है।”
अवली जो बातें सैद्धांतिक रूप से कहती हैं, उसी बात को दक्षिण 24 परगना जिले के नामखाना ब्लॉक के बाक्खाली गांव के 67-वर्षीय अभिमन्यु देवनाथ व्यवहारिक रूप से बताते हैं। देवनाथ, जिनका घर सुंदरबन में बंगाल की खाड़ी व चिनाई नदी के संगम के मुहाने पर पास स्थित पर है, कहते हैं, “जब हम बच्चे थे तो इतनी तेज बारिश नहीं होती थी, 2009 के बाद से बारिश व वक्रवात की तीव्रता बढ़ गई।”
वे नदी में गाद जमने की शिकायत करते हुए ड्रेजिंग की जरूरत बताते हैं और कहते हैं कि गहराई कम होने से मछुआरों को दिक्कत होती है, मछली पकड़ने के बाद नदी से बाहर आने में भी ज्यादा समय लगता है जिससे उसकी गुणवत्ता और कीमत प्रभावित होती है। उनके पास मीठे पानी यानी नदी में मछली पकड़ने का सरकार से मिला कार्ड है।
कैसे काम करता है नेविगेशन रूट?
राष्ट्रीय जलमार्ग– 97 के एक डीपीआर के अनुसार, नदी के आकृति विज्ञान में मौसमी परिवर्तन नेविगेशन चैनल को बनाए रखने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। मौसमी वर्षा और अपवाह के आधार पर नदी के आकृति विज्ञान में परिवर्तन के कारण नेविगेशनल चैनल आमतौर पर बदलता रहता है। इस तरह के जलमार्ग पर मुख्य चिंता का विषय सुरक्षा और यातायात में आसानी है। मार्कर बोया, लाइट जैसे उचित नेविगेशन सहायक उपकरण के माध्मय से इसे प्राप्त किया जा सकता है। राष्ट्रीय जलमार्ग-97 (इंडो–बांग्लादेश प्रोटोकॉल रूट) पश्चिम बंगाल में नामखाना से अथराबाकी खाल तक 172 किमी लंबा है।

इस संवाददाता द्वारा सूचना के अधिकार कानून के तहत भारतीय अंतरदेशीय जलमार्ग प्राधिकरण से मांगी गई जानकारी में बताया गया कि सुंदरबन से होकर गुजरने वाले राष्ट्रीय जलमार्ग-97 में नेविगेशन मार्क लगाये गए हैं। सूचना के अधिकार के तहत मिली जानकारी के अनुसार, हल्दिया से सिल्वर प्वाइंट और सिल्वर प्वाइंट ट्री से नामखाना और नामखाना से अथराबाकी के बीच भारत–बांग्लादेश प्रोटोकॉल रूट के तहत भारतीय अंतदेशीय जलमार्ग विकास प्राधिकरण द्वारा नेविगेशन मार्क लगाए गए हैं, जो बांग्लादेश व पूर्वोत्तर क्षेत्र के साथ कनेक्टिविटी प्रदान करते हैं। आरटीआइ में पूछे गए सवाल के जवाब में यह बताया गया कि नेविगेशन रूट के उल्लंघन के आरोप में कोई शिकायत नहीं दर्ज की गई है। जवाब में यह भी जानकारी दी गई कि इस रूट से मुख्य रूप फ्लाई ऐश का परिवहन किया जाता है, इसके अलावा खाद्यान्न, स्टोन एग्रीगेट, कोयला, कोक एवं अन्य खनिज, प्रोजेक्ट कार्गो, पशु आहार आदि का परिवहन किया जाता है।
आरटीआइ से प्राप्त जानकारी के अनुसार, वित्त वर्ष 2023-24 में अप्रैल 2023 से मार्च 2024 तक 44,77,853.640 टन फ्लाई ऐश का भारत–बांग्लादेश प्रोटोकॉल रूट से परिवहन किया गया और यह इस रूट से कुल परिवहन का 94.267 प्रतिशत है। इसके बाद प्रोजेक्ट कारगो, स्टील का परिवहन किया गया। वहीं, संसद के 30 जुलाई 2024 के एक प्रश्न-उत्तर से पता चलता है कि सुंदरबन जलमार्ग से वर्ष 2019-20 के 3.46 मिलियन टन की तुलना में वर्ष 2023-24 में कार्गो मूवमेंट 50 प्रतिशत बढ कर 5.19 मिलियन टन (51.90 लाख टन) पहुंच गया।
इस जवाब में केंद्रीय बंदरगाह, नौवहन और जलमार्ग मंत्री सर्बानंद सोनोवाल ने बताया है कि सुंदरबन में राष्ट्रीय जलमार्ग-97 पर जहाजों के सुचारू आवागमन के लिए फेयरवे जहाज मार्ग के विकास के लिए काम किये जा रहे हैं और इसके लिए फेज-1 में 20 करोड़ रुपए मंजूर किये गए हैं।

एक ओर जहां आइडब्ल्यूएआइ ने अपने जवाब में नेविगेशन रूट के उल्लंघन की कोई शिकायत दर्ज होने से इनकार किया है, वहीं दूसरी ओर 3 फरवरी 2023 को सभी भारी जलयान ऑपरेटरों, शिपिंग एजेंट और निर्यतकों को एक नोटिस जारी कर उत्तर 24 परगना जिले में कुछ स्थलों पर अवैध रूप से लंगर डालने और नेविगेशन रूट के उल्लंघ की शिकायत मिलने और ऐसा न करने की सख्त हिदायत दी। इस नोटिस में यह भी कहा गया कि सर्वे अधिकारियों से यह रिपोर्ट मिली है कि कुछ बांग्लादेशी ध्वज वाले जलयान तय रूट मतला नदी-बारा हीरोबांगे खाल-बिद्या नदी वाया झारखाली टूरिस्ट जेटी के चिह्नित नेविगेशन रूट के बजाय अपरिभाषित रूट डायमंड सैंड होकर आवाजाही करते हैं। ऐसे में सभी संबंधित पक्षों को आइडब्ल्यूएआइ ने यह सख्त निर्देश दिया कि वे किसी प्रकार की अवैध गतिविधि में शामिल नहीं हों और कानून एवं व्यवस्था से जुड़े किसी मुद्दे से बचें और सिर्फ तय नेविगेशन रूट से होकर आवाजाही करें जहां 24 घंटे नेविगेशन सहायता उपलब्ध है। साथी ही बांग्लादेशी व भारतीय जहाज ऑपरेटर यह सुनिश्चित करें कि हेमनगर एलसीएस में प्रवेश करने व कोलकाता-हल्दिया जाते वक्त व वहां से लौटने के दौरान हेमनगर एलसीएस तक जलयान पर पायलट का रहना सुनिश्चित करें।
‘नेविगेशन रूट का उल्लंघन आम’
दक्षिण बंग मत्स्यजीवी फोरम के महासचिव मिलन दास मोंगाबे हिंदी से बातचीत में कहते हैं, “सुंदरबन वाटर वे से बड़े जहाजों के गुजरने से अक्सर छोटे मछुआरों के जाल क्षतिग्रस्त होते हैं, लेकिन वे रिकार्डेड (दर्ज) नहीं होते हैं, क्योंकि लोकल पुलिस अंतरराष्ट्रीय मामले की बात कह कर उनकी शिकायत नहीं सुनती। हर जगह छोटे मछुआरे संगठित नहीं हैं, दूसरी बात कि हमारे जैसे मछुआरा संगठनों की पहुंच व नेटवर्क हर जगह नहीं है।
एक अन्य मछुआरा संगठन पश्चिम बंगाल मत्स्यजीवी यूनियन के महासचिव अंबिया हुसैन कहते हैं, सुंदरबन के रास्ते अत्यधिक जल परिवहन होने से छोटे मछुआरों की आजीविका प्रभावित होगी। पिछले कुछ सालों में नदी में जहाज डूबने की कुछ घटनाएं हुई हैं, इससे नदी प्रदूषित होती है। दूसरी बात जब नदी से होकर बड़े जहाज गुजरते हैं तो पानी में रोलिंग अधिक होती है, इससे छोटे नाव वालों के सामने संकट होता है, उन्हें किनारे रहना होता है या डूबने की भी घटनाएं होती हैं। नदी में ट्रैफिक बढ़ने से कटाव भी अधिक होगा।

अंबिया हुसैन कहते हैं, सुंदरबन में अधिक जल परिवहन का एक दूसरा नुकसान यह होगा कि मैंग्रोव के पौधों को बढ़ने का मौका नहीं मिलेगा। वे कहते हैं कि लो-टाइड में मैंग्रोव के बीज नदी के किनारे अपनी जड़े जमाते हैं, लेकिन दोलन व कटाव होने से वे पानी में मिल जाते हैं और पौधों के पनपने व बढ़ने की संभावना कम हो जाती है। वे क्रूज पर्यटन को बढ़ावा दिये जाने पर जाने पर चिंता व्यक्त करते हुए कहते हैं कि इससे संवेदनशील सुंदरबन क्षेत्र में प्लास्टिक व अन्य तरह के कचरे बढ़ेंगे। अंबिया हुसैन कहते हैं कि वाटर वे के विस्तार को लेकर उनके जैसे मछुआरा संगठनों से सरकार की ओर से परामर्श नहीं किया जाता है। वे कहते हैं कि उनका संगठन भी मछुआरों के क्षतिग्रस्त जाल का मुआवजा दिलवाने के लिए प्रयास करता है।
एनजीटी का एसओपी जारी करने का निर्देश
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल पूर्वी बेंच ने दक्षिण बंग मत्स्यजीवी फोरम बनाम भारतीय अंतरदेशीय जलमार्ग प्राधिकरण एवं अन्य के एक ममले में सुनवाई करते हुए 27 जुलाई, 2022 को भारतीय अंतरदेशीय जलमार्ग प्राधिकरण, श्यामा प्रसाद मुखर्जी पोर्ट और पश्चिम बंगाल सरकार के परिवहन विभाग को 13 सितंबर, 2022 से पहले अंतरदेशीय जलमार्गाें पर दुर्घटना की रोकथाम के संबंध में मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) दाखिल करने का निर्देश दिया था। यह मामला भारत–बांग्लादेश प्रोटोकॉल रूट पर फ्लाई ऐश ले जाने वाले बजरों के बार–बार पलटने से संबंधित है जो पर्यावरणीय दृष्टि से अत्यधिक संवदेनशील सुंदरबन से होकर गुजरता है।
नेशनल प्लेटफॉर्म फॉर स्मॉलस्केल फिश वर्कर के नेशनल कन्वीनर प्रदीप चटर्जी ने मोंगाबे हिंदी से बातचीत में कहा, “एनजीटी के आदेश के बाद फरवरी 2023 में एक एसओपी संबंधित प्राधिकारियों द्वारा एनजीटी में दाखिल किया गया था, जिसे हमारी टिप्पणियों के लिए हमें दिया गया था, हमने उस पर टिप्पणी कर उसे वापस किया था, लेकिन उसके बाद फाइनल एसओपी अभी तक जारी नहीं हुआ है और इस संबंध में क्या प्रगति हुई है, इसकी हमें जानकारी नहीं है।”
रिवर क्रूज टूरिज्म की चुनौती
एक ओर सरकार जल परिवहन के विकास पर जोर दे रही है, दूसरी ओर क्रूज के जरिये नदी पर्यटन के विकास की परियोजना पर काम किया जा रहा है। सुंदरबन जलमार्ग देश के उन जलमार्गाें में शुमार है, जहां राष्ट्रीय जलमार्ग विकास प्राधिकरण नदी या जल पर्यटन के विकास की योजना पर काम कर रही है और इन जलमार्गाें की लंबाई के हिसाब से अलग–अलग पैकेज प्रस्तावित हैं। राष्ट्रीय जलमार्ग-97 पर नामखाना–भागवतपुर–सजनेखाली–हेमनगर के बीच चार रात–पांच दिन के क्रूज टूर पैकेज पर काम किया जा रहा है और इसका पायलट प्रोजेक्ट पूरा कर लिया गया है। हालांकि इस रूट पर सुरक्षा संबंधी गतिविधियों व आव्रजन और सीमाशुल्क (इमीग्रेशन और कस्टम्स) जैसी गतिविधियों को सरल बनाने की बात कही गई है। सजनेखाली एक वन्य अभ्यारण्य है।

आइडब्ल्यूएआई के एक दस्तावेज से पता चलता है कि वर्तमान में भारत में बहुदिवसीय नदी पर्यटन के लिए साल भर में 5,000 से भी कम यात्री आते हैं। व्यापक बाजार अनुसंधान और हितधारकों के परामर्श के बाद क्रूज पर्यटन विकास के लिए कई मार्गाें और टर्मिनलों की पहचान की गई है, जहां आइडब्ल्यूएआइ की भूमिका फेयरवे रखरखाव, बुनियादी ढांचा और नीतिगत समर्थन तक होगी।
दक्षिण बंग मत्स्यजीवी फोरम के महासचिव मिलन दास कहते हैं कि सुंदरबन में वन्य जीवों के लिए प्रोटेक्टेड एरिया एवं जैवविविधता बचाने के नाम पर स्थानीय मछुआरों के छोटे नावों के आवागमन को प्रतिबंधित किया जाता है, उन पर कार्रवाई की जाती है, दूसरी ओर उसे रास्ते से फ्लाई ऐश से लदे भारी जहाज व पर्यटक क्रूज गुजरते हैं। टूरिस्ट बोट के इंजन 200 से 300 हॉर्स पॉवर के होते हैं, उनकी आवाज से भी ध्वनि प्रदूषण होता है, जहाजों में रंग लगा होता है जो झड़ कर पानी में गिरता है, इससे मछलियों को दिक्कत होती है और लोकल मछुआरों की आजीविका का नुकसान होता है। वे कहते हैं कि एक ओर सजनेखली होकर पर्यटक क्रूज को बढावा देने की कवायद हो रही है, जो एक फॉरेस्ट रिजर्व है, दूसरी ओर वहां से लोकल मछुआरों को उखाड़ा जा रहा है। वे सुंदरबन क्षेत्र में लगातार रिजर्व फॉरेस्ट एरिया के विस्तार व मछुआरों के मछली शिकार व नाव लगाने की जगह पर मैंग्रोव लगा कर उन्हें उस क्षेत्र से दूर करने का भी आरोप लगाते हैं।
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वहीं, प्रदीप चटर्जी कहते हैं, “सुंदरबन में जाल कट जाते हैं, फ्लाई ऐश जहरीला होता है, टर्मिनल व मिनी पोर्ट बनाए जा रहे हैं, इससे मछलियां उस इलाके में नहीं रह सकेंगी और इससे मछुआरों की आजीविका प्रभावित होगी, अगर नदी में मछली नहीं होगी तो छोटे मछुआरे जी नहीं सकते”।
यह रिपोर्ट देश के विभिन्न राष्ट्रीय जलमार्गों पर मोंगाबे हिंदी की सीरीज का दूसरा भाग है। पहले भाग की रिपोर्ट पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।
बैनर तस्वीर: दक्षिण 24 परगना जिले में नामखाना में हतनिया दोआनिया नदी का दृश्य, यह राष्ट्रीय जलमार्ग – 97 का हिस्सा है। तस्वीर- राहुल सिंह मोंगाबे के लिए